Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 4 हॉकी का जादूगर

Bihar Board Class 6th Hindi Book Solutions किसलय Kislay Bhag 1 Chapter 4 हॉकी का जादूगर NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 4 हॉकी का जादूगर

पाठ से –

Hockey Ka Jadugar Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 1.
ध्यानचंद किस खेल से सम्बन्ध रखते हैं?
उत्तर:
ध्यानचंद का संबंध हॉकी के खेल से रहा है।

जादूगर का बदला Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 2.
दूसरी टीम के खिलाड़ी ने ध्यानचंद को हॉकी क्यों मारी?
उत्तर:
विपक्षी टीम के खिलाड़ी ध्यानचंद से गेंद छीनने की कोशिश करते लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती। इतने में गुस्से में आकर एक खिलाड़ी ने ध्यानचंद के सिर पर हॉकी दे मारी।

Hockey Ke Jadugar Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 3.
ध्यानचंद ने अपनी सफलता का राज क्या बताया है?
उत्तर:
मेजर ध्यानचंद ने अपनी सफलता का राज बताते हुये कहा है-“मेरे पास सफलता का कोई गुरुमंत्र तो है नहीं। लगन, साधना और खेल की भावना ही सफलता के सबसे बड़े मन्त्र हैं।”

Jadugar In Hindi Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 4.
“दोस्त! खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं लगता”‘- ऐसा ध्यानचंद ने क्यों कहा?
उत्तर:
चोट खाकर पुन: मैदान में लौटने के बाद ध्यानचंद ने एक के बाद एक छः गोल विरोधी दल के गोलपोस्ट में दाग दिये। खेल की समाप्ति के बाद ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा- मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” वह खिलाड़ी सुनकर अत्यन्त शर्मिन्दा हुआ।

Hockey Jadugar Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 5.
ध्यानचंद को कब से ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा?
उत्तर:
1936 में बर्लिन में आयोजित ऑलम्पिक खेल को भारतीय हॉकी टीम के मेजर ध्यानचंद कप्तान बनाये गये। उस समय वे सेना में लांसनायक थे। उस ऑलम्पिक खेल में भारत का हॉकी स्वर्ण पदक प्राप्त करने का गौरव मिला। उस सफलता का श्रेय लोगों ने ध्यानचंद के करिश्माई खेल को दिया और इन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा।

पाठ से आगे –

हॉकी का जादूगर Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 1.
अगर ध्यानचंद हॉकी नहीं खेलते तो वे क्या कर रहे होते?
उत्तर:
अगर ध्यानचंद हॉकी नहीं खेलते तो वे सेना में एक सामान्य सैनिक की तरह अपनी सेवा देते रहते और अपनी सेवा की बदौलत उनकी पदोन्नति उच्च पदों पर होती रहती और फिर एक दिन वे सेवानिवृत्त होकर ..अन्य सेवा अधिकारी की तरह जीवन-यापन करते।

Hulagan Bihar Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 2.
ध्यानचन्द की जगह अगर आप होते तो अपना बंदला किस प्रकार लेते?
उत्तर:
हो सकता है कि इस झगड़े का निपटारा मैदान में ही हो जाता और दोनों टीमें एक दूसरे से हॉकी का स्टिक लेकर आपस में भीड़ जाती और खेल का मैदान युद्ध के मैदान में परिवर्तित हो जाता।

कक्षा 6 हिंदी पाठ 4 प्रश्न उत्तर Bihar Board Hindi प्रश्न 3.
खेलते समय नोक-झोंक क्यों होते हैं?
उत्तर:
खेलते समय झगड़े अक्सर खेल भावना के विपरीत जाने से होते हैं। अपने-आप को विजेता बनाने की होड़ में खिलाड़ी आपस में भिड़ जीते हैं और उपनी श्रेष्ठता झगड़कर तय करना चाहते हैं। वैसे खेल के दौरान आवेश में आ जाना स्वाभाविक भी है।

कक्षा 6 हिंदी पाठ 4 Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 4.
विजेता बनने के लिये मनुष्य में क्या-क्या गुण होने चाहिये?
उत्तर:
विजेता बनने के लिये व्यक्ति में लगन, साधना, साहस और खेल-भावना के गुण का समावेश आवश्यक है।

व्याकरण –

Hindi Class 6 Chapter 4 Bihar Board Hindi प्रश्न 1.
थोड़ी देर बाद मैं पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुंचा। आते ही मैंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखकर कहा- ‘तुम चिंता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा” मेरे इतना कहते ही वह खिलाड़ी घबड़ा गया।
ऊपर के वाक्य में मैं, मैंने, उस, तुम, इसका, मेरे, इतना, वह आदि शब्द संज्ञा की जगह आए हैं। ऐसे शब्द सर्वनाम कहलाते हैं।
उत्तर:
संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। सर्वनाम के निम्नांकित छ: भेद हैं –

(क) पुरुषवाचक सर्वनाम – जो शब्द बोलने वाला अपने लिए, सुननेवाले के लिए या किसी अन्य के लिए प्रयोग किए जाते हैं, पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे – मैं, तुम, वह ।

(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम-जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु की ओर संकेत के लिए प्रयोग किया जाए, वे निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- उस, इसका, इतना।

(ग) अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जो शब्द किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध नहीं कराता है, वे अनिश्यवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे – कोई, कुछ।

(घ) प्रश्नवाचक सर्वनाम-प्रश्न करने के लिए जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग करते हैं, प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे – कौन, क्या।

(ङ) सम्बन्धवाचक सर्वनाम-जो शब्द किसी व्यक्ति वस्तु या घटना का संबंध जोड़ते हैं, वे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे- जो, से, जिसने, जैसा, तैसा ।

(च) निजवाचक सर्वनाम-जो शब्द कर्ता अपने लिए प्रयोग करता है, वे निजवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे – अपना, स्वयं, आप ही।

निम्नलिखित वाक्यों में मोटे अक्षरों में छपे सर्वनाम के भेद सामने कोष्ठक में लिखिए।
प्रश्नोत्तर

(क) कौन खा रहा है? (प्रश्नवाचक)
(ख) मैं अपने काम पर लौट आया। (पुरुषवाचक)
(ग) यही मेरा घर है। (निश्चयवाचक)
(घ) जैसी करनी वैसी भरनी (सम्बन्धवाचक)
(ङ) मैं स्वयं चला जाऊँगा। (निजवाचक)
(च) कुछ तो किया करो। (अनिश्चयवाचक)

प्रश्न 2.
इन शब्दों से वाक्य बनाइए। धक्का -मुक्की , नोंक-झोंक, बार-बार, जैसे-जैसे, वैसे-वैसे।
उत्तर:
(क) धक्का -मुक्की – बस में चढ़ने के लिये बच्चों में ध क्का-मुक्की होने लगी।
(ख) मार-पीट-वहाँ दो दलों में मार-पीट हो गयी और कई-एक लोग घायल हो गये।
(ग) जैसे-तैसे-जैसे-तैसे हमलोगों ने भीड़ वाले रास्ते को पार किया।
(घ) गुरु-मंत्र-ध्यानचंद ने कहा-मेरे पास सफलता का कोई गुरु-मंत्र – नहीं है।
(ङ) वैसे-वैसे-जैसे-जैसे आप मेहनत करेंगे वैसे-वैसे आपको सफलता मिलेगी।

प्रश्न 3.
इन वाक्यों में क्रिया शब्द को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
(क) खेल में तो यह सब चलता ही है।
(ख) मैं पंजाब रेजीमेंट की ओर से खेला करता था।
(ग) बाद में हम झाँसी आकर बस गये।
(घ) वह बार-बार मुझे खेलने के लिये कहते।
(ङ) बर्लिन ओलम्पिक में हमें स्वर्ण पदक मिला।

प्रश्न 4.
नीचे लिखे शब्दों को क्रम में सजाकर वाक्य बनाइए –
(क) नौसिखिया/उस समय/मैं एक/था/खिलाड़ी।
(ख) आता/खेल में/मेरे/गया/निखार ।
(ग) शर्मिंदा/वह/बड़ा/हुआ/सचमुच/खिलाड़ी।
(घ) ले जाया/मैदान से/बाहर/मुझे।

उत्तर:
(क) मैं उस समय एक नौसिखिया खिलाड़ी था।
(ख) मेरे खेल में निखार आता गया।
(घ) वह सचमुच बड़ा शर्मिंदा खिलाड़ी हुआ।
(घ) मुझे मैदान से बाहर ले जाया गया ।

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
अखबार में रोजाना खेल का एक पृष्ठ आता है। आपको जो खबर अच्छी लगे उसे संकलित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
यह पाठ एक ‘संस्मरण’ है। आप भी अपना कोई संस्मरण लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हॉकी का जादूगर Summary in Hindi
पाठ का सार-संक्षेप

यह संस्मरण हॉकी के एक अद्भुत खिलाड़ी के जीवन की घटनाओं पर आधारित है जिसे बाद में ‘हॉकी का जादुगर’ कहकर सम्मानित किया गया और इसी सम्मान से उसे विश्वभर में जाना जाने लगा। उसका नाम था ध्यानचन्द। बड़ा होकर उसने सेना में नौकरी कर ली और सिपाही से तरक्की पाकर मेजर बना जो सेना में एक उच्च पद माना जाता है।

ध्यानचंद का जन्म 1904 में, प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ था। बाद में ध्यानचंद का परिवार झाँसी आकर बस गया। 16 साल की उम्र में ध्यानचंद, फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट में एक सिपाही के रूप में भर्ती हुआ। इस रेजिमेंट का हॉकी के खेल में बड़ा नाम था। इस रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे बार-बार ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिये प्रेरित करते। उस छावनी में हॉकी खेलने का कोई समय निर्धारित नहीं था। सैनिक जब चाहते मैदान में पहुँच जाते और अभ्यास शुरू कर देते। ध्यानचंद ने भी हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद ने लिखा है कि उस समय वह एक नौसिखिया खिलाड़ी था -धीरे-धीरे उसने खेल में प्रवीणता हासिल करनी शुरू कर दी और उसके खेल में निखार आता गया।

सन् 1936 के बर्लिन ऑलम्पिक में ध्यानचंद को भारत की टीम का कप्तान बनाकर भेजा गया। बर्लिन ऑलम्पिक में लोग ध्यानचंद के खेल से इतने प्रभावित हुये कि इन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा। उस समय ध्यानचंद सेना में लांसनायक के पद पर कार्यरत थे।

ध्यानचंद अपने संस्मरण में कहा है कि ऐसा नहीं है कि खेल में सारे गोल इन्हीं के द्वारा बनाये जाते थे। वे कहते हैं – “मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाय। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल-प्रेमियों का दिल जीत लिया। बर्लिन ओलम्पिक में हमें स्वर्ण पदक मिला।”

। खेल के मैदान में घटित एक घटना का उल्लेख करते हये मेजर ध्यानचंद लिखते हैं- खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और मारपीट की घटनाएँ तो होती रहती हैं। जिस दिन हम खेला करते थे, उन दिनों भी यह सब चलता था।

सन् 1933 की बात का उल्लेख करते हुये वे कहते हैं – “उन दिनों मैं पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेलता था। एक दिन पंजाब रेजिमेंट और संपर्स एण्ड माइनर्स टीम के बीच मुकाबला हो रहा था। माइनर्स टीम के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती। इतने में एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर हॉकी मेरे सिर पर दे मारी। मुझे मैदान से बाहर ले जाया गया। थोड़ी देर बाद मैं पट्टी बाँध कर फिर मैदान में आ पहुँचा। आते ही खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रख कर कहा- “तुम चिन्ता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।” वह खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की बात सुनकर घबड़ा गया और पूरे खेल के दौरान मेरी ओर ही देखता रहा, कि मैं कब उसके सिर पर हॉकी मारने वाला हूँ। इसी दौरान मैंने झटपट एक के बाद एक छः गोल कर दिये। खेल खत्म होने पर मैंने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा- “दोस्त! खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं लगता। मैंने तो अपना बदला ले लिया।” वह खिलाड़ी अपनी करनी पर शर्मिन्दा था क्योंकि उसने जानबूझकर एक गलत काम किया था।

आज जब भी कोई मुझसे पूछता है कि मेरी सफलता का क्या राज है तो मैं एक ही उत्तर देता हूँ “लगन, साधना और खेल-भावना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं। हार या जीत मेरी नहीं है, बल्कि पूरे देश की है।”

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