Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 8 फूलों से जान-पहचान

Bihar Board Class 6th Science Book Solutions विज्ञान Chapter 8 फूलों से जान-पहचान – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 8 फूलों से जान-पहचान

प्रश्न 1.
(क) फूल का नर भाग है –
(i) अंखुड़ी
(ii) पंखडी
(iii) पुंकेसर
(iv) स्त्रीकेशर
उत्तर:
(iii) पुंकेसर

(ख) फूल का मादा भाग है
(i) पुंकंसर
(ii) स्त्रीकेसर
(iii) अंखुड़ी
(iv) पंखुड़ी
उत्तर:
(i) पुंकंसर

(ग) ऐसा फूल जिसमें केवल पुंकेसर हाते हैं, स्त्रीकेसर नहीं होते हैं, कहलाते हैं –
(i) नर फूल
(ii) मादा फूल
(iii) अलिंगी फूल
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(iv) इनमें से कोई नहीं

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(घ) ऐसा फूल जिसमें पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं –
(i) एकलिंगी
(ii) द्विलिंगी फूल
(iii) अलिंगी फूल
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ii) द्विलिंगी फूल

(ङ) पूर्ण फूल के कितने भाग होते हैं ?
(i) दा
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच
उत्तर:
(iii) चार

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों पर सही और गलत का निशान लगाएँ।
(क) सभी द्विलिंगी फूल पूर्ण फूल होते हैं।
(ख) सभी. पूर्ण फूल द्विलिंगी होते हैं।
(ग) फूलों की अंखुड़ियाँ आपस में जुड़ी हों तो पंखुड़ियाँ भी आपस में जुड़ी होती हैं।
उत्तर:
(क) गलत
(ख) सही
(ग) सही।

प्रश्न 3.
धतूरा, बैंगन, लौकी के फूलों में से कौन से फूल पूर्ण हैं तथा कौन से अपूर्ण? पता करके कारण सहित लिखें।
उत्तर:
धता एवं बैंगन के फल पूर्ण फूल होते हैं। क्योंकि इसमें पुष्प के चारों चक्र उपस्थित होते हैं। यानि इस फूल में अंखुड़ी, पंखुड़ी, स्त्रीकंसर तथा पुंकेसर उपस्थित हैं। जबकि लौकी के फूल अपूर्ण होते हैं क्योंकि इसमें चारों चक्र उपस्थित नहीं होता।

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Bihar Board Class 6 Science फूलों से जान-पहचान Notes
अध्ययन सामग्री

पेड़-पौधों के सभी भागों में पुष्प (फूल) का एक अलग ही स्थान प्राप्त है। पौधों की सुन्दरता बढ़ाने से लेकर फल उत्पादन तक इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पुष्प अपनी सुन्दरता से सिर्फ मानव को ही नहीं बल्कि कीट-पतंग को भी अपनी ओर आकर्षित करता है जिसके द्वारा निषेचन प्रक्रिया पूरी होती है।

आकारिकीय रूप से फूल एक प्ररोह है, जिस पर गाँठें तथा रूपान्तरित पुप्पी पत्रियाँ लगी रहती हैं। यह तने या शाखाओं के शीर्ष अथवा पत्ती के अक्ष में उत्पन्न होकर प्रजनन का कार्य करता है तथा फल एवं बीज उत्पन्न करता है। प्रायः एक पुष्प चार प्रकार की रूपान्तरित पत्तियों का बना होता है जो कि पुष्पवृन्त के फूले हुए सिरे पुष्पासन पर लगी होती है। इन्हें बाह्यदलपुंज, दलपुंज, पुमंग तथा जायांग कहते हैं। जिन पुष्पों में चारों प्रकार के चक्र होते हैं, उन्हें पूर्ण पुष्प कहते हैं, जिन पुष्पों में एक या एक से अधिक चक्र अनुपस्थित होते हैं। उसे अपूर्ण पुष्प कहते हैं। बाह्यदल पुंज एवं दलपुंज को पुष्प का सहायक अंग एवं पुमंग तथा जायांग को पुष्प का आवश्यक अंग कहते हैं।

अंखुड़ियाँ या बाह्यदल पुंज – यह पुष्प का सबसे बाहरी चक्र होता है। प्रायः यह हरे रंग के बाह्यदलों का चक्र होता है। इसका मुख्य कार्य कलिका अवस्था में पुष्प के अन्य भागों की रक्षा तथा प्रकाश-संश्लेषण करना होता है। कुछ पुण्यों में यह रंगीन होकर परागण के लिए कीटों को आकर्पित करता है।

पंखुड़ी या दल पुंज – यह पुष्प का दूसरा चक्र होता है, जो बाह्य दलपुंज के अन्दर स्थित होता है। यह प्राय: 2-6 दलों का बना होता है। ये प्रायः रंगीन हात हैं और इनका मुख्य कार्य परागण के लिए कीटों को आकर्षित करना है।

पुष्पासन – फूल के डंठल के जिस सिरे पर फूल के सभी अंग जुड़े रहते हैं, उसे पुष्पासन या फूल का आसन कहते हैं।

पुमंग – पुंकेसर के समूह चक्र को पुमंग कहते हैं। दलों से घिरा यह पुष्प का तीसरा चक्र होता है। ये प्रायः रंगीन होते हैं और इनका मुख्य कार्य परागण के लिए कीटों को आकर्पित करना है। पुंकेसर पुष्प का नर जननांग होता है।

जायांग – यह पुष्प का केन्द्रीय भाग व चौथा चक्र होता है। स्त्रीकेसर के समूह को जायांग. कहते हैं। पुष्प के ये मादा जननांग होते हैं। प्रत्येक जायांग एक या अनेक अण्डपों का बना होता है। जायांग मादा बीजाणु उत्पन्न करता है। अण्डप तीन भागों का बना होता है-
(क) अण्डाशय
(ख) वर्तिका
(ग) वर्तिकाग्र

परागण – परागकणों के परागाकोष से मुक्त होकर उसी जाति के पौधे जायांग के वर्तिकान तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहा जाता है। जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकान पर या उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचता है, तो इसे स्वपरागण कहते हैं। परन्तु जब परागकण उसी जाति के दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचता है, तो इसे पर-परागण कहते हैं। पर-परागण कई माध्यमों से होता है।

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निषेचन – परागण के पश्चात निषेचन की क्रिया होती है। परागनली – बीजाण्ड में प्रवेश करकं बीजाण्डकाय को भेदती हुई भ्रूणकोष तक पहुँचती है और परागकणों को वहाँ छोड़ देती है। इसके बाद एक नर युग्मक एक अण्डकोशिका से संयोजन करता है। इसे निपेचन कहते हैं। अब निषेचित अंण्ड युग्मनज कहलाता है। यह युग्मनज बीजाणुभिद् की पहली इकाई है। निपेचन के बाद बीजाण्ड से बीज, युग्मनज से भ्रूण तथा अण्डाशय से फल बनता है।

पूर्ण फूल – वे सभी फूल जिसमें अंखुड़ी, पंखुड़ी, पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर चारों अंग उपस्थित हों उसे पूर्ण फूल कहते हैं।

अपूर्ण फूल – वे सभी फूल जिसमें अंखुड़ी. पंखुड़ी, पुंकेसर तथा ‘स्त्रीकेसर में से कोई भी अंग अनुपस्थित हो उसे अपूर्ण फूल कहते हैं।

एकलिंगी फूल – एसा फूल जिसमें पुंकेसर या स्त्रीकंसर में से केवल एक ही अंग उपस्थित हो। एकलिंगी फूल दो प्रकार के होते हैं – नर फूल तथा मादा फूल।

नर फूल – वैसे फूल जिसमें केवल पुंकेसर होते हैं, स्त्रीकंसर नहीं होते हैं।

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मादा फूल – वैसा फूल जिसमें केवल स्त्रीकंसर होता है। पुंकेसर नहीं होते हैं। उसे मादा फूल कहते हैं।

द्विलिंगी फूल – वं सभी फूल जिसमें स्त्रीकेसर तथा पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं उसे द्विलिंगी फूल कहते हैं।

अलिंगी फूल – वे सभी फूल जिसमें स्त्रीकंसर तथा पुंकेसर दोनों ही उपस्थित न हों उसे अलिंगी फूल कहते हैं।

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