Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम्

Bihar Board Class 7th Sanskrit Book Solutions संस्कृत Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम्- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम्

मौखिकः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुरुत –

अशान्तः
मानवश्च
द्वेषग्रस्तः
स्वार्थसिद्धिः
महत्त्वाकांक्षा
शोषणाय
वाञ्छन्ति
कश्चित्उ
त्कर्षम्दुः
खकारणम्प्र
सन्नः
आनन्दमयश्च
शस्त्रादीनम्दृ
ष्ट्वा
प्रमुदितः
तथैव
आत्मभावनाम्मि

त्ररूपाः
बन्ध रूपाश्च
शत्रुभावना
वैज्ञानिकस्य
अल्पीकृतः
एकस्मिन्प्र

भावयति
वैश्वीकरणम्वि
श्वसमारोहेषु
भवत्येकनीडम्शि
क्षास्थले
लक्षणमस्ति
हितोपदेशः
लघुचेतसाम्उ
दारचरितानाम्व
सुधैव, कुटुम्बकम् ।

नोटः उच्चारणं छात्र स्वयं करें ।

Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम्
प्रश्न 2.
निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत –

अधुना
द्वेषग्रस्तः
स्वार्थसिद्धिः
प्रेरयति
वाञ्छन्ति
शस्त्रम
वस्तुतः
परस्परम्द्वे
षः
वैश्वीकरणम्वि
श्वबन्धुत्वम्ए
कनीडाः
लघुचेतसाम्उ
दारचरितानाम्कु
टुम्बकम्
।।
उत्तराणि-

अधुना – आजकल
द्वेषग्रस्तः = ईर्ष्या से युक्त
स्वार्थसिद्धिः – अपने हित के सिद्धि
प्रेरयति = प्रेरणा देता है
वाञ्छन्ति = चाहते हैं
शस्त्रम् = शस्त्र
वस्तुतः = वास्तव में
परस्परम् = आपस में
द्वेषः = ईर्ष्या
वैश्वीकरणम् = वैश्वीकरण
विश्वबन्धुत्वम् = वैश्विक भाईचारा
एकनीडा: = एक घोंसले में रहनेवाले
लघुचेतसाम् = निम्न विचारवाले लोगों का
उदारचरितानाम् = निम्न विचारवाले लोगों का
कुटुम्बकम् = व्यापक विचारवालों का परिवार
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प्रश्न 3.
इमानि पदानि पठत –

भवति – भवतः – भवन्ति
भवसि – भवथः – भवथ
भवामि – भवाव: – भवामः

लिखितः

प्रश्न 4.
अधोलिखितानि पदानि लिखत –

द्वेषग्रस्तः
स्वार्थसिद्धिः
महत्त्वाकांक्षा
वाञ्छन्ति
दुःखकारणम्
भवत्येकनीडम्
लघुचेतसाम्,
उदारचरितानाम्

कुटुम्बकम् ।
नोट : छात्र स्वयं लिखें ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखितानां पदानां सन्धिं सन्धिविच्छेदंवा कुरुत –

मानवश्च
महत्त्व + आकांक्षा
तथा + एव
अद्यापि
भवति+एकनीडम्
हित+उपदेश
वसुधा+एव

उत्तराणि –

मानवश्च = मानव: + च
महत्त्व + आकांक्षा = महत्वाकांक्षा
तथा + एवं = तथैव
अद्यापि = अद्य + अपि
भवति + एकनीडम् = भवत्येकनीडम्
हित+उपदेश = हितोपदेशः
वसुधा + एव = वसुधैव
Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम्
प्रश्न 6.
कोष्ठात् उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –

साम्प्रतं सम्पूर्ण संसारः …………………… वर्तते । (शान्त:, अशान्तः)
अशान्तः मानवः ………… इव भवति । (देवः, दानवः)
वयं परस्परं ………….. भवेम । (मित्ररूपाः , शत्रुरूपाः )
अद्य वैज्ञानिकस्य विकासस्य परिणामः वर्तते यत् संसारः …………………….. । (अल्पीकृतः, दीर्घाकृतः)
यदि मानवः देववत् भवेत् तदा संसारः शान्तः आनन्दमयः ………….. च भविष्यति । (अप्रसन्न:, प्रसन्न:)
समारोहे, शिक्षास्थले कार्यस्थले वा सर्वे …………… भवन्ति । (बहुनीडाः, एकनीडाः
)
उत्तराणि-

अशान्तः
दानवः
मित्ररूपाः
अल्पीकृत
प्रसन्नः
एकनीडाः ।
प्रश्न 7.
अधालिखितानां वाक्यानाम् अनुवादं हिन्दीभाषायां कुरुत –

अधुना सम्पूर्णः संसारः अशान्तो वर्तते ।
सर्वे स्वसुखं वाञ्छन्ति (इच्छन्ति) ।
शान्तः मानवः देव इव भवति ।
वयं परस्परं मित्ररूपाः भवेम ।
अद्य विश्वबन्धुत्वं प्रभूतम् आवश्यकम् अस्ति ।
अयं निजः परो वा इति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।

उत्तराणि-

आज सम्पूर्ण संसार अशान्त है ।
सभी अपना सुख चाहते हैं ।
शान्त मनुष्य देवता के समान होते हैं ।
हमलोग आपस मित्र की तरह रहें ।
आज विश्वबन्धुता की अत्यधिक आवश्यकता है।
यह अपना है और यह दूसरे का, ऐसा सोचना क्षुद्र बुद्धि वाले का है।
उदार विचारवालों के लिए तो पृथ्वी ही परिवार है।
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प्रश्न 8.
उदाहरणानुगुणं प्रथम-मध्यम-उत्तम-पुरुषरूपाणि लिखत –

Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम् 1
उत्तराणि-
Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम् 2

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प्रश्न 9.
एकवचने परिवर्तयत

संसाराः – संसारः

सर्वे (पुं०) – ……………….
मित्ररूपाः – ……………….
समारोहेषु । – ……………….
समाजानाम् – ……………….
उदारचरितानाम् – ……………….

उत्तराणि –
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प्रश्न 10.
पाठानुसारं सत्कथनस्य पुरः ”✓” तथा असत्यकथनस्य पुरतः ”✗” इति चिह्नम् अङ्कयत –

अधुना सम्पूर्णः संसारः शान्तो वर्तते । (✗)
स्वार्थसिद्धिः कमपि शोषणाय प्रेरयति । (✓)
शान्तः मानवः देवदत् भवति । (✓)
अद्य विश्वबन्धुत्वं प्रभूतम् आवश्यकम् अस्ति। (✓)
समारोहेषु जनाः बन्धुत्वं दर्शयन्ति । (✓)
अयं निजः परो वेति गणना उदारचरितानाम् । (✗)
दुष्टचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् । (✗)
प्रश्न 11.
संस्कृते अनुवादं कुरुत –

आजकल सम्पूर्ण संसार अशांत है।
सैनिक देश (देशं/ राष्ट्र) की रक्षा करते हैं । (रक्ष-रक्षा करना)
छात्र बैग में (स्यूते) पुस्तक रखते हैं । (रक्ष – रखना)
राधा भात (ओदन) पकाती है।
बाघ । व्याघ्राः ) वन में रहते हैं ।
तुम्हारी बहन (भगिनी) कहाँ पढ़ती है ?
हिमालय से गंगा निकलती है (निःसरति/निर्गच्छति)।

उत्तराणि-

अधुना सम्पूर्ण: संसारः अशान्तो वर्तते ।
सैनिकाः देशं रक्षन्ति ।
छात्राः स्यूते पुस्तकं रक्षन्ति ।
राधा ओदनं पचति ।
व्याघ्राः वने निवसन्ति ।
तव भगिनी कुत्र पठति ?
हिमालयात् गंगा नि:सरति ।
Bihar Board Class 7 Sanskrit वसुधैव कुटुम्बकम् Summary
[आज विश्व अशान्ति के सागर में वर्तमान है । सर्वत्र असंतोष, महत्त्वाकांक्षा, ईर्ष्या, पक्षपात इत्यादि के कारण संघर्ष के बादल छाये हुए हैं। ऐसी स्थिति में प्राचीन भारत की ओर सभी की दृष्टि जाती है जहाँ सम्पूर्ण पृथ्वी को अपना परिवार समझा जाता था। भारत ने विभिन्न विदेशी जातियों का स्वागत किया तथा उन्हें भारतीय बनाया । विश्व को अशान्ति से मुक्त करने के लिए आज उसी उद्घोष की आवश्यकता है कि पूरी पृथ्वी परिवार के समान मान्य तथा पालनीय है। मानवता के इसी संदेश को प्रस्तुत पाठ में प्रकट किया गया है।

अधुना सम्पूर्णः संसारः अशान्तो ………………… तद् दुःखकारणम् ।

शब्दार्थ-अधुना = आजकल । अशान्तः – जो शान्त न हो, बेचैन । प्रति ” (की) ओर । द्वेषग्रस्त = ईर्ष्या से युक्त | महत्त्वाकांक्षा – ऊंची इच्छा । स्वार्थसिद्धिः – अपने हितों की सिद्धि । स्वस्य – अपने का । कामना – इच्छा । परस्य – दूसरे का । शोषणाय – शोषण के लिए / कष्ट देने के लिए। कमपि .. किसी को भी ।

प्रेरयति – प्रेरणा देता है । वाञ्छन्ति “चाहते/ चाहती हैं । कश्चित् = कोई 1 उत्कर्षम = ऊँचाई (को)। सरलार्थ-आजकल सम्पूर्ण संसार अशान्त है । देश देश के प्रति, समाज समाज के प्रति मनुष्य मनुष्य के प्रति द्वेष ग्रस्त है । इसका कारण भी है । स्वार्थ सिद्ध, सुख की इच्छा और ऊँची इच्छा दूसरे का शोषण करने के लिए प्रेरित करता है । सभी अपना सुख चाहते हैं, कोई दूसरे का सुख या उन्नति को नहीं सहन करते है। इससे अशांति होता है । यह दु:ख का कारण है।

Bihar Board Class 7 Sanskrit Solutions Chapter 8 वसुधैव कुटुम्बकम्
अशान्तः मानवः राक्षसः इव भवति …………………….द्वषः शत्रुभावना च न भवेत् ।

शब्दार्थ- राक्षसः = दैत्य । सहते = सहन करता । करती है। शस्त्रादीनाम् = शस्त्र (पकड़कर चलाये जाने वाले हथियार) आदि का । दृष्ट्वा – देखकर । प्रमुदितः = प्रसन्न, आनन्दित, खुश । मन्यते – माना जाता है । एकरूपाः – समान, एक जैसा । सन्तानाः – संतान (बहुवचन) ।

आत्मभावनाम् = अपनी जैसी भावना (को) । धारयति – धारण करते हैं, रखते हैं । वस्तुतः – सचमुच । परस्परम् = आपस में । भवेम = (हम)हों। मोहः = लगाव । द्वेषः – ईर्ष्या, जलन । शत्रुभावना – दुष्टता की भावना । . सरलार्थ-अशान्त मनुष्य राक्षस के समान होता है । यदि वह देव तुल्य बन जाए तो संसार शान्त, प्रसन्न और आनन्दमय हो जाएगा । तब शस्त्रों की आवश्यकता नहीं होगी । एक दूसरे को देखकर खुशी होना चाहिए । जैसे अपने बान्धव और परिवार को मानते हैं वैसे ही दूसरे लोगों को भी बान्धव और परिवार मानना चाहिए । सभी एक-समान हैं, एक ईश्वर की संतान हैं, भिन्न । कैसे हैं ? जो सभी लोगों में अपनी जैसी भावना को धारण करता है, वह वास्तव में देवता है। हमारा लक्ष्य वही होना चाहिए जो हम सभी आपस में मित्रवत् और बन्धुवत रहें । तब मोह, द्वेष और शत्रुता की भावना नहीं होनी चाहिए ।

अद्य वैज्ञानिकस्य ……….न कुर्यात् । तथा च हितापदेश:

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ शब्दार्थ- अल्पीकृतः – छोटा हो गया (है) । एकस्मिन् = एक में । घटिता – घटी हुई । शीघ्रमेव (शीघ्रम एव) – जल्दी ही । प्रभावयति – प्रभावित करता है, असर डालता है । वैश्वीकरणस्य – वैश्वीकरण का (विश्व के देशों का आर्थिक, वैज्ञानिक आदि आधारों पर जड़ना – वैश्वीकरण) । प्रभावात् – प्रभाव से । उत्पादः – उत्पन्न वस्तु 1 विश्वबन्धुत्वम् = वैश्विक (संसार भर में) भाईचारा । प्रभूतम् = बहुत अधिक । भवत्येकनीडम् – एक घोसले का निवासी होता / होती है । कार्यस्थले – कार्य की जगह में /पर । एकनीडाः – एक घोसले में रहने वाले । स्वार्थः – अपना हित ।

नश्यति – नष्ट होता है, लुप्त या अदृश्य होता है । परमार्थः – सर्वोच्च लक्ष्य । वर्धते – बढ़ता है । स्वदेशः = अपना देश, राष्ट्र । परदेशः = दूसरे का देश । उदारस्य = उदार, बड़े दिल वाले का । लक्ष्णमस्ति (लक्षणम् अस्ति)लक्षण / पहचान / चिह्न है । कुर्यात् – करना चाहिए । अयम् – यह । निजः – अपना । परो ( परः) – पराया । वेति (वा इति) – अथवा ऐसा । गणना – गिनती । लघुचेतसाम् – तुच्छ । निम्न विचार वाले लोगों का । उदारचरितानाम् – व्यापक विचार वाला का की । वसुधैव (वसुधा एव) – धरती । पृथ्वी ही । कुटुम्बकम् = परिवार, संबंधी ।

सरलार्थ-आज वैज्ञानिक विकास का परिणाम है जो संसार छोटा हो गया है। आज एक देश में घटित घटना पूरे विश्व को प्रभावित करती है।” वैश्वीकरण के प्रभाव से एक उत्पाद शीघ्र सभी देशों में जाता है । अतः आज विश्वबन्धुत्व की बड़ी आवश्यकता है । उत्सवों और समारोहों में आपस में मिलते हुए लोग बन्धुत्व प्रदर्शित करते हैं ।

हमारे शास्त्रों में कहा गया हैजो विश्व एक घोंसले का निवासी होता है । जैसे एक घोंसला में पक्षियों का परिवार रहता है वैसे ही कहीं समारोह में शिक्षालयों में तथा कार्यशालाओं में सभी एक घोंसला में रहनेवाला होता है । जैसे वहाँ बन्धुता है वैसे ही सामान्य जीवन में भी देशों के, समाजों के और वर्गों के बीच एक घोंसलापन और बन्धुत्व होना चाहिए । वहाँ स्वार्थ पूर्णत: नष्ट हो जाता है और परमार्थ वृद्धि पाता है । अपना देश और दूसरे का देश परमार्थतः एक ही है । उदार लोगों का यही लक्षण है कि उसे अपना और पराये का विचार नहीं करना चाहिए। और हितोपदेश में कहा गया है यह अपना है यह दूसरों का है ऐसी गणना निम्न विचार वालों का है. व्यापक विचार वालों का तो पृथ्वी ही परिवार है।

व्याकरणम्

सन्धि-विच्छेदः

मानवश्च = मानवः + च (विसर्ग सन्धि)
महत्त्वाकांक्षा, = महत्त्व + आकांक्षा (दीर्घ सन्धि)
आनन्दमयश्च = आनन्दमय: + च (विसर्ग सन्धि)
तथैव = तथा + एव (वृद्धि सन्धि) ।
बन्धरूपाश्च = बन्धुरूपाः + च (विसर्ग सन्धि)
अद्यापि = अद्य + अपि (दीर्घ सन्धि)
भवत्येकनीडम् = भवति + एकनीडम् (यण् सन्धि)
जीवनेऽपि = जीवन + अपि (पूर्वरूप सन्धि)
हितोपदेशः = हित + उपदशः (गुण सन्धि)
वेति = वा + इति (गुण सन्धि)
वसुधैव = वसुधा + एव (वृद्धि सन्धि)

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प्रकृति-प्रत्यय-विभागः

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