Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 3 आंतरिक बल एवं उससे बनने वाली भू-आकृतियाँ

Bihar Board Class 7th Social Science Book Solutions सामाजिक विज्ञान Chapter 3 आंतरिक बल एवं उससे बनने वाली भू-आकृतियाँ NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 3 आंतरिक बल एवं उससे बनने वाली भू-आकृतियाँ

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न (क)
भूकंप के झटके क्यों आते हैं ?
उत्तर-
पृथ्वी के अन्दर गतिमान प्लेटों के टकराने से भूकंप के झटके आते

प्रश्न (ख)
भूकम्प का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
भूकम्प का मानव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । छोटे-बड़े मकान ध्वस्त हो जाते हैं। बहुत-से आदमी उसके मलवे में दब जाते हैं । इस प्रकार भारी जानमाल की हानि होती है।

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प्रश्न (ग)
ज्वालामुखी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कभी-कभी और कहीं-कहीं पृथ्वी के अन्दर से तरल अग्नि की । ज्वाला निकलने लगती है, उसी को ज्वालामखी कहते हैं।

प्रश्न (घ)
ज्वालामुखी ने मानव जीवन को प्रभावित किया है, कैसे?
उत्तर-
पहले तो ज्वालामुखी ने अपने लपेटे में मनुष्य को तो लिया ही, उसके खेत-खलिहान और बाग-बगीचों को जला डाला । जहाँ ज्वालामुखी मृत हो गई और निकला लावा ठंडा हो गया वहाँ मनुष्य को उपजाऊ जमीन मिल गई । इस प्रकार मानव जीवन कुप्रभावित हुआ तो लाभावित भी हुआ

प्रश्न (ङ)
पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के परिणाम स्वरूप निर्मित होनेवाली स्थलाकृतियाँ कौन-कौन सी हैं ? वर्णन कीजिए।’
उत्तर-
पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के परिणामस्वरूप निर्मित होने वाली स्थलाकृतियाँ अनेक हैं । ज्वालामुखी पर्वत पृथ्वी की आंतरिक शक्ति का परिणाम है । वैसे ही पृथ्वी की आंतरिक शक्ति से पहाड़ बनते हैं, पहाड़ियाँ बनती हैं और पठार बनते हैं। पठारों पर भी पहाड़ियाँ दिख जाती हैं।

प्रश्न (च)
मोड़दार एवं संचयन पर्वतों में क्या भिन्नता है एवं क्या समानता है ?
उत्तर-
धरातलीय भाग पर उत्पन्न दबाव के कारण जब मोड़ पड़ता है तो वह भाग ऊपर उठ जाता है और मोड़दार पर्वत का रूप धारण कर लेता है । इसके विपरीत ज्वालामुखी से निकले मैग्मा और लावा जब काफी मात्रा

में एकत्र हो जाते हैं तब कालक्रम में ठंडा होकर संचयित पर्वत बन जाते हैं । दोनों पर्वत ऊंचे होते हैं। लेकिन मोडदार पर्वत काफी ऊंचे होते हैं, जिससे उनपर बर्फ जम जाती है, लेकिन संचयन पर्वत उतने ऊँचे नहीं होते जिससे उनपर बर्फ नहीं जमती । समानता यह है कि दोनों को पर्वत ही कहा जाता है।

प्रश्न (छ)
पर्वत और पठार में क्या अंतर है?
उत्तर-
पर्वत और पठार में यह अंतर है कि पर्वत की ऊँचाई धीरे-धीरे बढ़ती है और ऊपर बहुत कम बराबर स्थान होता है जबकि पठार की ऊँचाई अकस्मात बढ़ती है और ऊपर काफी बराबर स्थान रहता है । पहाड़ों पर बर्फ जमती है, लेकिन पठारों यर खनिज मिलते हैं।

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प्रश्न (ज)
पर्वत के प्रकारों का उदाहरण के साथ वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पर्वत चार प्रकार के होते हैं :

वलित पर्वत
भ्रंशोत्थ पर्वत
संचयन पर्वत तथा
अवशिष्ट पर्वत

  1. वलित पर्वत-धरातलीय भाग पर उत्पन्न दाब के कारण चट्टानों में बल पड़ने लगते हैं । इससे वहाँ की धरातल ऊपर उठ जाता है और वलित पर्वत बनता है । उदाहरण में एशिया का हिमालय, यूरोप का रॉकी ।
  2. भ्रंशत्य पर्वत-धरातल पर कहीं और कभी समांतर भ्रंश के बाद बीच का भाग ऊपर उठा रह जाता है और पर्वत-सा दिखने लगता है। ऐसे ही पर्वत को भ्रंशोत्थ पर्वत कहते हैं । जैसे यूरोप का ब्लैक फॉरेस्ट और भारत का विन्ध्याचल ।
  3. संचयन पर्वत-ज्वालामुखी द्वारा निकले लावा ठंडा होकर संचित होते जाते हैं । कालक्रम में इस संचित लावा का ढेर लग जाता है और पर्वत बन जाता है । इसी को संचयन पर्वत कहते हैं । जैसे जापान का फ्यूजियामा तथा अफ्रिका का किलोमंजारो।
  4. अवशिष्ट पर्वत-हवा, वर्षा, बर्फबारी आदि अपरदन की शक्तियों द्वारा पर्वत की चोटी कटती-छंटती तथा घिसती रहती है। इससे इसकी ऊंचाई बहुत कम हो जाती है । उदाहरण है अरावली, पूर्वी और पश्चिमी घाट पर्वत ।

प्रश्न (झ)
पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के क्या-क्या प्रभाव नजर आते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के निम्नलिखित प्रभाव नजर आते हैं :

भूकम्प,
ज्वालामुखी तथा
विभिन्न प्रकार के पर्वतों का बनना ।
प्रश्न (ज)
भूकम्प से सर्वाधिक नुकसान कब एवं कहाँ होता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भूकम्प से सर्वाधिक नुकसान तब होता है जब वहाँ के बासिन्दे लापरवाह रहते हैं। पुनः भूकम्प का अधिक नुकसान वहाँ होता है जहाँ के मकान भूकम्परोधी नहीं बने होते ।

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प्रश्न (ट)
भूकम्प से होनेवाली क्षति से हम कैसे बच सकते हैं?
उत्तर-
भूकम्प से होनेवाली क्षति से हम तभी बच सकते हैं जब नागरिकों को इससे बचने के उपायों से अवगत करायें । जो भी भवन बनें, उनको ” वैज्ञानिक ढंग से भूकम्परोधी बनाया जाय । इससे भूकम्प से होनेवाली क्षति को कम किया जा सकता है या क्षति से बचा जा सकता है।

प्रश्न (ठ)
पठार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
पठार निम्नलिखित छः प्रकार के होते हैं :

महाद्वीपीय पठार
वायूढ़ निक्षेप पठार
हिमनदीय निक्षेपण पठार
लावा निर्मित पठार
अंतरपर्वतीय पठार तथा
गिरिपद पठार
प्रश्न 2.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए :

धिकेन्द्र
उद्गम केन्द्र
सिस्मोग्राफ तथा
रिक्टर स्केल ।

उत्तर-

  1. अधिकेन्द्र-पृथ्वी के ऊपर उद्गम क्षेत्र के ठीक सामने का भाग अधिकेन्द्र’ कहलाता है । भूकम्प का अधिक कुप्रभाव अधिकेन्द्र के पास ही होता है और उसके चारों ओर क्रमशः कम होते जाता है।
  2. उद्गम केन्द्र-पृथ्वी के अन्दर का वह भाग, जहाँ से भूकम्प प्रारम्भ होता है उस भाग को ‘उद्गम केन्द्र’ कहते हैं । तात्पर्य कि उद्गम केन्द्र तथा अधिकेन्द्र ठीक आमने-सामने होते हैं।
  3. सिस्मोग्राफ-भूकम्प की तीव्रता मापने वाले यंत्र को ‘सिस्मोग्राफ’ कहते हैं । अस्मोग्राफ रिक्टर पैमाने का बना होता है।
  4. रिक्टर पैमाना-जिस पैमाने में भूकम्प की तीव्रता को मापते हैं उस पैमाने को ‘रिक्टर पैमाना’ कहते हैं । सिस्मोग्राफ का पमान ‘रिक्टर’ ही होता है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित को कीजिए:

(क) भूकम्प एवं ज्वालामुखी से सम्बंधित खबरों एवं चित्रों का संकलन कीजिए और मानव जीवन पर इनके प्रभाव से सम्बंधि त एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

(ख) अपने आस-पास के पर्वतों का अवलोकन कर उनका नाम पता कीजिए तथा लिखिये कि ये किस प्रकार के पर्वत हैं ।

(ग) भारत के मानचित्र पर भूकम्प के विभिन्न क्षेत्रों को अलग-अलग रंगों में दर्शाइए एवं कक्षा में प्रदर्शित कीजिए । भूकम्प के क्षेत्रों को घेर दिया गया है ।
संकेत :
ये सभी प्रश्न छात्रों को स्वयं करने हैं । (ग) का उत्तर तैयार करने लिए नीचे दिए गए मानचित्र का सहारा लें ।

Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 3 आंतरिक बल एवं उससे बनने वाली भू-आकृतियाँ 1
Bihar Board Class 7 Social Science आंतरिक बल एवं उससे बनने वाली भू-आकृतियाँ Notes
पाठ का सार संक्षेप

आये दिन हम भूकंप की बातें रेडियो-टेलिविजन पर सुनते-देखते रहते हैं। अखबारों में भी पढ़ते हैं । भूकंप में भूमि काँपने लगती है और कभी-कभी भारी जान-माल का नुकसान होता है। छोटे-बड़े घर और भवन धराशायी हो जाते हैं । कभी-कभी भूकंप के अफवाह से भी लोग डर के मारे काँप उठते

पृथ्वी की ऊपरी परत सियाल के नीचे और मेंटल के ऊपर प्लेट बने होते हैं। ये प्लेट गतिमान अवस्था में रहते हैं । कभी-कभी दो प्लेट आपस में टकरा जाते हैं, जिससे भारी कंपन होता है। जहाँ पर ये प्लेट टकराते हैं उसे भूकंप का उद्गम केन्द्र कहते हैं । कंपन की तरंगें ऊपर पृथ्वी तल (धरातल) तक पहुँच कर उसे हिलाने लगती हैं । इसी को भूकंप कहते हैं ।

भूकंप के प्रभाव से पृथ्वी पर कहीं-कहीं भारी बदलाव आ जाता है । पृथ्वी फट जाती है और अन्दर से बालू और पानी निकलता है । कहीं की भूमि धंस जाती है और कहीं की भूमि ऊपर उठ जाती है। मानव बसाव वाले क्षेत्र में तो भारी बरबादी होती है। भूकंप जितना तीव्र होता है, बर्बादी उतनी ही अधिक होती है। भूकंप की तीव्रता मापने वाले यंत्र को ‘जिस्मोग्राफ’ कहते हैं और मापन की इकाई रिक्टर है।

न तो भूकंप आने की सही भविष्यवाणी की जा सकती है और न ही इसके आने को रोका जा सकता है। हाँ, भूकंप से बचने के लिए सावधानी बरती जा सकती है । बचाव के उपाय किये जा सकते हैं और जनता में जागरुकता पैदा की जा सकती है, जिससे होने वाला नुकसान कम-से-कम हो सके । सबसे आवश्यक है कि भूकंपरोधी मकान का निर्माण हो । भूकंप के समय घर के अन्दर चौकी या टेबुल के नीचे छिपें या बाहर मैदान में भागें । दीवार और बिजली के खंभे से दूर रहें ।

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भूकंप से भी भयावह एक घटना है, जिसे ज्वालामुखी कहते हैं । ज्वालामुखी उन स्थानों पर फूटते हैं जहाँ की प्लेटें कमजोर होती हैं । प्लेटों के आने-जाने के अलावा ताप के कारण कहीं के प्लेट पिघल जाते हैं और ऐसे कमजोर परत की खोज करते हैं, जिनको फोड़कर वे ऊपर आ जायें ।

इन पिघले तत्व को ‘मैग्मा’ कहते हैं। जहाँ पर ज्वालामुखी फूटता है, वहाँ भारी मात्रा में पिघली हुई चट्टानें, गर्म गैस, जलवाष्प, राख और धुआं निकलता है और पृथ्वी पर त्रिकोनाकार ऊँची एक आकृति बन जाती है, जिसे ज्वालामुखी पहाड़ कहते हैं । सक्रिय ज्वालामुखी से समय-समय पर गर्म आग जैसा लावा निकलते रहता है ।

ज्वालामुखी के मृत हो जाने पर यह लावा कालान्तर में ठंडा होकर उपजाऊ मिट्टी बन जाता है । दक्षिण भारत की काली मिट्टी इसी प्रकार बनी है। सक्रिय ज्वालामुखी के ऊपरी सिरे पर चिलम जैसी एक आकृति बन

जाती है, जिसे क्रेटर कहते हैं । इस क्रेटर से कभी-कभी गर्म लावा निकलता – है और भारी तबाही मचाता है । – पृथ्वी के आंतरिक बल के कारण ही पहाड़ों का निर्माण होता है ।

जब दो प्लेटें आपस में टकराते हैं तो वे पृथ्वी के ऊपर उठ जाते हैं । जिस बल से ये ऊपर उठते हैं उन्हें पर्वत निर्माणकारी बल कहते हैं। भारत का हिमालय तथा दक्षिण अमेरिका का एण्डीज पर्वतों का निर्माण इसी प्रकार हुआ है । जहाँ चट्टानों में संकुचन या तनाव उत्पन्न होता है, वहाँ पृथ्वी नीचे धंस जाती है और धंसान घाटी.का निर्माण होता है । पर्वत निम्नलिखित प्रकार के होते हैं :

वलित पर्वत
भ्रंशोत्थ पर्वत
संचयन पर्वत तथा
अवशिष्ट पर्वत

  1. वलित पर्वत-धरातलीय भाग में उत्पन्न तनाव और दबाव के कारण मोड़ या बल पड़ते हैं, जिससे वलित या मोडदार पर्वत बनते हैं । जैसे-हिमालय और रॉकी पर्वत ।
  2. भंशोत्थ पर्वत-जब पृथ्वी के अन्दर के किसी क्षेत्र में समांतर भ्रंश के बाद बीच का भाग ऊपर उठा रह जाता है। इन्हें भ्रंशोत्थ या ब्लाक पर्वत कहते हैं। जैसे ब्लैक फॉरेस्ट पर्वत और भारत का विंध्याचल ।
  3. संचयन पर्वत-ज्वालामुखी द्वारा निकले लावा संचित होकर ठंडा होने पर पर्वत का रूप ग्रहण कर लेते हैं। इन्हें ही संचयित पर्वत या ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं । जैसे-जापान का फ्यूज़ियामा, अफ्रिका का किलीमंजारो ।
  4. अवशिष्ट पर्वत-ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर अपरदन होते रहता है । इस कारण ये घिसते-टूटते रहते हैं । बचे भाग को अवशिष्ट पर्वत कहते हैं । अरावली पर्वत अवशिष्ट पर्वत ही है।

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पठार भी पृथ्वी पर का एक प्रसिद्ध आंकृति है । इसकी ढाल लगभग खड़ी होती है और ऊपर काफी फैलाव होता है । यद्यपि पठार का ऊपरी भाग बराबर होता है किन्तु कहीं-कहीं पहाड़ियाँ भी पाई जाती हैं । पठार अनेक प्रकार के होते हैं । जैसे-महाद्वीपीय पठार, वायूढ निक्षेप पठार, हिमनदीय निक्षेपण पठार, लावा निर्मित पठार, अंतरपर्वतीय पठार, गिरिपद पठार । झारखंड के छोटानागपुर का पठार एक प्रसिद्ध पठार है।

मैदान समतल होते हैं । यह नदियों द्वारा लाई बाढ़ की मिट्टी द्वारा बने होते हैं । ये काफी उपजाऊ भी होते हैं जहाँ अनेक फसलें उपजाई जाती हैं

मैदानों में ही घनी जनसंख्या पायी जाती है। हमारा बिहार राज्य गंगा नदी के मैदान में ही है। मैदान समुद्र तल से ऊँचे तो होते हैं, लेकिन बहुत कम, लगभग 100 से 150 मीटर तक ऊँचे।

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