Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला

Bihar Board Class 9th Hindi Book Solutions हिंदी गद्य खण्ड Chapter 5 मधुबनी की चित्रकलाNCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला

प्रश्न 1.
मधुबनी चित्रकला क्या है? परिचय दीजिए।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला जो कभी जमीन, भीत्ति और कपड़े तक सीमित था, धीरे-धीरे, कागज और कैनवास पर भी इसका अंकन होने लगा। पहले इन चित्रों में कलाकारों द्वारा निर्मित प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था किन्तु बाद में कृत्रिम रंगों का उपयोग होने लग गया। मिथिलांचन की इस लोकचित्रकला को मधुबनी पेंटिंग के नाम से जाना जाता है।

मधुबनी चित्रकला में रंग, विषय, शैली और चित्रकार वर्ग में विविधता भी रही _है। इनमें रेखा और रंगों के अनेक सूक्ष्म प्रयोग मिलते हैं चित्र का किनारों (बार्डर) घिरा होना अनिवार्य होता है और दुहरी रेखाओं वाली किनारी में मछली, फल, – फल, चिड़ियाँ आदि का अंकन होता है। सीमा रेखा यानि किनारी के अंदर चित्रित – दृश्य या प्रसंगों में जरूरी होता है कि रेखा और रंग से कोई स्थान खाली नहीं बचे। खाली स्थानों को भरने में प्रकृति और पशु-पक्षियों के चित्र सहायक होते हैं।

मिथिला को चित्रकारी यानि मधुबनी पेंटिंग का संबंध विभिन्न पजा-पाठ और मांगलिक अवसरों से तो रहा ही है साथ ही उसका एक प्रमुख भाग तोत्रिक उद्देश्यों से भी जुड़ा है। यहाँ के चित्रों में चार महादेवियों-महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली और चामुण्डां के चित्रांकन के साथ ही साथ काली, कमला, तारा, छिन्नमस्ता, मातंगी, पोडशी, भैरवी, भुवनेश्वरी, धूमावती और बगुलामुखी इन दसों के चित्रांकन की भी परंपरा रही है।

मिथिलांचल की यह मधुबनी चित्रकला रेखा प्रधान चित्र होने के कारण इसमें रेखा या रंग की अस्पष्टता दृष्टिगोचर नहीं होती। प्रसंग या व्यक्ति के भाव की व्यंजना करा देने की प्रमुखता के बावजूद चित्र में खाली जगहों को भरने या सजावट करने में कलाकार की रुचि तथा श्रम के भरपूर प्रमाण मिलते हैं। अनार की कलम, बाँस की कूँची, सींक या बाँस की तिली में लगी रुई और स्वनिर्मित रंगों के साथ रासायनिक रंगों के सहारे ही मधुबनी चित्रकला के हजारों वर्ष के प्राचीन विरासत सरक्षित रखा गया है। बिहार की समद्ध लोक चित्रकला की परंपरा में मधबनी की रंगीन चित्रकारी को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला
प्रश्न 2.
मधुबनी चित्रकला के कितने रूप प्रचलित हैं।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला के तीन प्रमुख रूप प्रचलित हैं।
(i) भूमि आकल्पन (ii) भित्ति चित्रण और (iii) पेंट चित्रण।
(i) भूमि आकल्पन-प्रायः हर संस्कृति में भूमि आकल्पना की परंपरा रही है। उत्तर प्रदेश में ब्रज क्षेत्र, साँझी, पहाड़ी क्षेत्र की ‘आँजी’, राजस्थान में ‘मांडना’, गुजरात में ‘साँथिया’, दक्षिण प्रदेशों का ‘ओलम’, असम की ‘अल्पन’ आदि भूमि आकल्पन के रूप हैं। बिहार में ‘चौका पुरना’ कहा गया है जो पूजा-पाठ के समय कलश स्थापन की जगह अनिवार्य होता है। इसे ही मिथिला में आश्विन या अरिपन’ कहा जाता है। मिथिलांचल में यह ‘अरिपन’ किसी भी पूजा, उत्सव, अनुष्ठान या विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर भूमि पर निर्मित्त चित्र हुआ करता है। विवाह के अरिपन में कमल, मछली, पुरइन (कमल का पत्ता), बाँस आदि के चित्र बनाये जाते हैं, अर्थात् भूमि पर किये जाने वाले चित्रांकन को भूमि आकल्पन कहते हैं। .

(ii) भित्ति चित्र : भित्ति चित्र, अर्थात् दीवारों पर बनाये जाने वाला चित्र है। भूमि चित्रों की तुलना में दीवार पर बनाये जाने वाले चित्रों में अधिक कलात्मकता होती है। इसकी भावप्रवणता और कल्पनाशीलता अधिक प्रभाव निर्माण करते हैं। भित्ति चित्र में स्थायित्व अधिक होता है। मिथिलांचल के इन चित्रों में सर्वाधिक कलात्मकता विवाहोत्सव के कोहवर लेखन में दिखाई पड़ता है। यह चतुष्कोणीय .. अर्थात् आयताकार या वर्गाकार होता है, जो अनार की डंडी की कलम तथा रुई से बनी तुलिका (ब्रस) द्वारा बनाया जाता है। मिथिला के भीत्ति चित्रों में राधाकृष्ण की रासलीला, रामसीता विवाह, जट-जटिन आदि पौराणिक और लोककथाओं का भी चित्रण होता है।

(iii) पट-चित्रण : कवि विद्यापति के समकालीन राजा शिव सिंह के काल में पट- चित्रण कला का विशेष विकास हुआ था। विभिन्न प्रसंगों के दृश्य कपड़े पर अंकित करने की उस परंपरा का ही विकास आज कागज या कैनवासों पर दिखाई. पड़ता है। पट-चित्रण की परंपरा ने मिथिलांचल की रंगीन चित्रकला को उत्कर्ष तथा प्रसिद्धि की शिखरों तक पहुँचाया है।

प्रश्न 3.
कोहबर चित्रकारी क्या है? बताइए। .
उत्तर-
कोहबर चित्रकारी भीत्ति चित्र का एक सर्वाधिक कलात्मक चित्रकारी है। नव विवाहिता दंपति सर्वप्रथम ससुराल में जिस स्थान पर एक साथ बैठते हैं उसे कोहबर कहा जाता है। कोहबर की चित्रकारी वैवाहिक अवसर पर किसी जानकार महिला द्वारा अनार की डंडी और रुई से बनी तूलिका द्वारा विभिन्न रंगों का प्रयोग करते हुए चतुष्कोणीय (वर्गाकार या आयताकार) चित्रांकन किया जाता है। कोहबर चित्रों में तीन भाग होते हैं-(क) गोसाईं घर (कुलदेवता का स्थान) (ख) कोहबर : घर और (ग) कोहबर घर का कोनिया (कोहबर का बाहरी भाग)। इन तीनों जगहों पर चित्रांकन के अलग-अलग रूप होते हैं। कोहबर चित्रांकन चतुष्कोणीय होता है जिसमें तोता, कमल का पत्ता, बाँस, कछुआ, मछली के अतिरिक्त नैना जोगिन और सामा-चकेवा के चित्रांकन की भी परंपरा है।

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प्रश्न 4.
मधुबनी चित्रकला में रंग प्रयोग की विशेषता बताइए।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला में रंगों के प्रयोग की विशेष भूमिका है। इन चित्रकारिता में प्रयोग होने वाले रंग चित्रकार पहले स्वयं अपने परिजनों से घर ही. बनाते थे। ये रंग-विभिन्न फूल, फल, छाल आदि से बनने वाले रंगों में करजनी की फली, दीप की फुलिया, पेवरी, रामरस, सिंदूर, नील आदि के सहारे बनाये जाते थे जिनमें बबूल के गोंद का सामान्य प्रयोग होता था। मधुबनी चित्रकला में गोमूत्र, नील, . गेरु, बकरी का दूध, कौड़ी, मोती, ताँबा, तूतिया, लाजवर्त (रत्न) आदि से बने रंगों का भी प्रयोग होता था। ..

अर्थात् मधुबनी चित्रकला में पहले कलाकारों के परिवार में निर्मित प्राकृतिक रंगों के ही प्रयोग होते थे परंतु अब उसमें कृत्रिम रंग और रासायनिक रंगों का उपयोग आरम्भ हो गया है। मिथिलांचल की इस चित्रकला में विभिन्न रंगों का प्रयोग इसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि में मददगार सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 5.
मधुबनी चित्रकला को ख्याति दिलाने में किस चित्रकार ने विशेष भूमिका निभाई?
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला को ख्याति दिलाने में प्रसिद्ध चित्रकार उपेन्द्र महारथी ने विशेष भूमिका निभाई है। ये मिथिला के चित्रकारी से इतने प्रभावित हए कि संपूर्ण बिहार की लोक चित्रकारी पर अध्ययन करने में वर्षों समय लगा दिया। मिथिलांचल चित्रकला की विशिष्टताओं को उन्होंने उसके पूरे महत्व के साथ चित्रकला के विशेषज्ञों के समक्ष उजागर करने में विशेष भूमिका निभायी थी।

प्रश्न 6.
भूमि आकल्पन से आप क्या समझते हैं? परिचय दीजिए।
उत्तर-
‘भूमि आकल्पन’ का अर्थ है भूमि पर बनाये जाने वाला चित्र। बिहार .
में पूजा पाठ के समय कलश स्थापन की जगह पर अनिवार्य रूप से बनाया जाता है, इसे यहाँ चौका पूरना भी कहा जाता है। इस भूमि आकल्पन की परंपरा देश के प्रायः प्रत्येक प्रदेश की संस्कृतियों में दिखाई पड़ती है। महाराष्ट्र में इसे रंगोली, गुजरात में साथिया, उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में सांझी और पहाडी क्षेत्र में आँगी नाम से जाना जाता है। दक्षिण प्रदेशों का ओलम, असम की अल्पन आदि भूमि आकल्पना के ही रूप हैं। इसे ही मिथिला में आश्विन या अरिपन कहा जाता है। मिथिला के किसी पुजा, उत्सव, अनुष्ठान या विवाह जैसे मांगलिक अवसर का भूमिचित्र हुआ करता है। वैवाहिक अरिपन में कमल, मछली, पुरइन (कमल का पत्ता) बाँस आदि के चित्र बनाने की परंपरा रही है।

प्रश्न 7.
मधुबनी चित्रकला में खाली स्थान क्यों नहीं छोड़े जाते हैं?
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला के चित्रों में खाली स्थान नहीं छोड़े जाते हैं क्योंकि लोकमान्यता है कि इन खाली स्थानों में दुष्ट आत्मायें प्रवेश न कर जायें। इसलिये चित्रों के खाली जगहों को भरने या सजावट करने में कलाकार की रुचि तथा श्रम के भरपूर प्रमाण मिलते हैं। वैसे स्थानों को फूल, पत्ते, टहनी आदि के चित्रों से भर दिये जाते है।

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प्रश्न 8.
मधुबनी चित्रकला के दलित चित्रकार वाले रूप की कुछ सामान्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला के कुछ दलित चित्रकारों ने संभ्रांत परिवार को चित्रकारिता से हट कर इसके एक स्वतंत्र रूप का विकास कर लिया है। इन दलित परिवारों की भी अपनी परंपरा रही है। ब्राह्मण एवं कायस्थ परिवारों में विकसित शैलियों में रंग और चित्रण से सूक्ष्म भिन्नतायें मिलती हैं। इन दलित परिवारों में गोबर के रस तथा काले रंग के सहारे चित्रकारी होती रही है और उनके द्वारा गृहित विषय लोकजीवन के यथार्थ से अपेक्षाकृत अधिक भरे होते हैं।

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