MP Board Class 10th Hindi Book Solutions हिंदी Chapter – 4 गेहूँ और गुलाब NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 4 गेहूँ और गुलाब
प्रश्न 1.
पृथ्वी पर मानव अपने साथ क्या लेकर आया है?
उत्तर:
पृथ्वी पर मानव अपने साथ भूख और प्यास लेकर आया है।
प्रश्न 2.
मानव को मानव किसने बनाया?
उत्तर:
मानव को मानव गुलाब ने बनाया।
प्रश्न 3.
मानव जीवन सुखी और आनन्दित कब होता
उत्तर:
मानव जीवन सुखी और आनन्दित तब होता है जब वह गेहूँ और गुलाब में सन्तुलन बना कर रखता है।
प्रश्न 4.
गुलाब किसका प्रतीक बन गया है?
उत्तर:
गुलाब विलासिता, भ्रष्टाचार, गन्दगी और गलीच का प्रतीक बन गया है।
प्रश्न 5.
आज का मानव किस परम्परा से प्रभावित है?
उत्तर:
आंज का मानव शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले साधनों की प्रचुरता से प्रभावित हो रहा है।
प्रश्न 6.
कामनाओं को स्थूल वासनाओं के क्षेत्र से ऊपर उठाकर हमारी प्रवृत्ति किस ओर होनी चाहिए ?
उत्तर:
कामनाओं को स्थूल वासनाओं के क्षेत्र से ऊपर उठाकर सूक्ष्म भावनाओं की ओर प्रवृत्त होना चाहिए।
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गेहूँ और गुलाब लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गेहूँ और गुलाब से मानव को क्या प्राप्त होता है?
उत्तर:
गेहूँ से मानव के शरीर की पुष्टि होती है और गुलाब से मानव के मानस की तृप्ति होती है।
प्रश्न 2.
मनुष्य पशु से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
मनुष्य के शरीर में पेट का स्थान नीचे है और हृदय तथा मस्तिष्क ऊपर। पशुओं के शरीर में पेट और मानस समानान्तर रेखा में होते हैं।
प्रश्न 3.
विज्ञान ने गेहूँ के बारे में क्या बतलाया है?
उत्तर:
विज्ञान ने गेहूँ के बारे में बताया है कि पृथ्वी और आकाश के कुछ तत्त्व एक विशेष प्रक्रिया से पौधों की बालियों में संगृहीत होकर गेहूँ बन जाते हैं।
प्रश्न 4.
गेहूँ और मानव शरीर का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
गेहूँ और मानव शरीर का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। गेहूँ खाकर ही मानव अपनी चिरबुभुक्षा को शान्त करता है।
प्रश्न 5.
वृत्तियों को वश में करने के लिए मनोविज्ञान के कौन-से उपाय बताये हैं?
उत्तर:
वृत्तियों को वश में करने के लिए मनोविज्ञान ने दो उपाय बताये हैं-
इन्द्रियों का संयम और
वृत्तियों का उन्नयन।
प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार शुभ दिन का स्वरूप कैसा होगा?
उत्तर:
लेखक के अनुसार शुभ दिन तब होगा जब हम स्थूल शारीरिक आवश्यकताओं की जंजीर तोड़कर सूक्ष्म मानव जगत् के लिए नया लोक बसायेंगे।
गेहूँ और गुलाब दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘गेहूँ और गुलाब’ में लेखक सन्तुलन स्थापित करना क्यों चाहते हैं?
उत्तर:
गेहूँ और गुलाब में लेखक सन्तुलन स्थापित करना इसलिए चाहते हैं कि ताकि वह सुखी सानन्द रहे।
प्रश्न 2.
वृत्तियों के उन्नयन का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वृत्तियों के उन्नयन का आशय यह है कि हम कामनाओं को स्थूल वासनाओं के क्षेत्र से ऊपर उठाकर सूक्ष्म भावनाओं की ओर प्रवृत्त कराएँ।
प्रश्न 3.
उसके श्रम के साथ संगीत बँधा हुआ था और संगीत के साथ श्रम’-इस पंक्ति का भाव विस्तार कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति का भाव यह है कि जब तक मानव के जीवन में गेहूँ और गुलाब का सन्तुलन रहा तब तक कमाता हुआ गाता था और गाता हुआ कमाता था। इस प्रकार श्रम और संगीत दोनों एक साथ मिले हुए थे।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित अंश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(अ) मानव शरीर में पेट …………..रेखा में नहीं है।
उत्तर:
लेखक श्री बेनीपुरी जी कहते हैं कि मानव और पशु की शारीरिक रचना में अन्तर है। मानव की शारीरिक रचना में उसके पेट का स्थान नीचे है, पेट के ऊपर हृदय का और हृदय से भी ऊपर मस्तिष्क का स्थान होता है। पशुओं के समान उसका पेट और मानस समानान्तर रेखा में नहीं है। जिस दिन मानव सीधा तनकर खड़ा हो गया उसी दिन मानस (मस्तिष्क) ने उसके पेट पर विजय प्राप्त कर ली।
प्रश्न 5.
रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा-शैली पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने निबन्धों में एक विशेष प्रकार की अलंकृत भाषा का प्रयोग किया है। आपकी भाषा में सूत्रात्मकता है। एक सूत्र के रूप में आप किसी बात को कह देते हैं। आपकी शैली भावुकता प्रधान है। भाषा में आपने शब्द चित्रों को अत्यन्त सजीव बना दिया है। आपके निबन्धों में विचारों की गम्भीर अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। साथ ही उसमें उपदेशात्मकता भी आ गयी है।
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गेहूँ और गुलाब भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
पाठ में आये हुए इन सामासिक शब्दों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए
उत्तर:
सौन्दर्य-बोध = सौन्दर्य का बोध = तत्पुरुष समास।
मन-मोर = मन का मोर = तत्पुरुष समास।
गृह-युद्ध = गृह का युद्ध = तत्पुरुष समास।
कीट-पतंग = कीट और पतंग = द्वन्द्व समास।
इन्द्र-धनुष = इन्द्र का धनुष = तत्पुरुष समास।
प्रश्न 2.
दिये गये शब्दों से वाक्य बनाइए
उत्तर:
कच्चा-कुम्हार कच्चा घड़ा तैयार कर रहा है।
शारीरिक-गेहूँ शारीरिक जरूरतों को पूरा करता है।
मानसिक-गुलाब मानसिक स्तर को व्यक्त करता है।
भ्रष्टाचार-शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति में कभी-कभी मानव भ्रष्टाचार की राह भी अपना लेता है।
गेहूँ बनाम गुलाब महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
गेहूँ और गुलाब बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘गेहूँ बनाम गुलाब’ निबन्ध के लेखक हैं-
(क) सरदार पूर्णसिंह
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(घ) अज्ञेय।
उत्तर:
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
प्रश्न 2.
‘गेहूँ और गुलाब’ निबन्ध है-
(क) ललित
(ख) विचारात्मक
(ग) वर्णनात्मक
(घ) राजनीतिक।
उत्तर:
(क) ललित
प्रश्न 3.
गेहूँ और गुलाब किस बात के प्रतीक हैं?
(क) श्रम का
(ख) एक से शरीर पुष्ट होता है और दूसरे से मन प्रफुल्लित होता है
(ग) विलासिता का
(घ) भौतिकता एवं सौन्दर्य बोध।
उत्तर:
(घ) भौतिकता एवं सौन्दर्य बोध।
प्रश्न 4.
प्रथम संगीत का स्वर किस समय गूंजा?
(क) पक्षियों के द्वारा
(ख) पशुओं के द्वारा
(ग) गेहूँ के ऊखल में कूटने पर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) गेहूँ के ऊखल में कूटने पर
प्रश्न 5.
‘गेहूँ और गुलाब’ निबन्ध में गेहूँ किसका प्रतीक है? (2011)
(क) अमीरी का
(ख) गरीब का
(ग) श्रमिक का
(घ) विलासी का।
उत्तर:
(क) अमीरी का
रिक्त स्थानों की पूर्ति
गेहूँ और गुलाब में हम फिर एक बार ………… स्थापित करें।
मानव शरीर में पेट का स्थान …………… है।
विलासिता शरीर को नष्ट करती है और …………..को भी।
इन्द्रधनुष ने उसके हृदय को भी इन्द्रधनुषी रंगों में ………… दिया।
मानव पृथ्वी पर आया …………. लेकर, क्षुधा लेकर।
उत्तर:
सन्तुलन
नीचे
धन
रंग
भूख।
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सत्य/असत्य
गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्या चाहते हैं-पुष्ट शरीर या तृप्त मानस?
‘गुलाब’ मनुष्य की मानसिक तृप्ति और सौन्दर्य बोध का प्रतीक है। (2009)
गेहूँ मनुष्य की भूख एवं शारीरिक आवश्यकता का प्रतीक है। (2009, 12, 15)
क्या प्रचुरता मानव को सुख और शान्ति नहीं दे सकती है?
मानव के जीवन में जब तक गेहूँ और गुलाब का सन्तुलन रहा वह सुखी रहा,सानन्द रहा।
उत्तर:
सत्य
सत्य
सत्य
असत्य
सत्य
सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 4 गेहूँ और गुलाब img-1
उत्तर:
- → (ख)
- → (ङ)
- → (घ)
- → (ग)
- → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
गुलाब की दुनिया कैसी दुनिया है?
गेहूँ आज किसका प्रतीक है?
मानव शरीर में पेट का स्थान कहाँ है?
उसका साँवला दिन में गायें चराता था,रास रचता था। किसके लिए प्रयोग किया है?
गुलाब आज किसका प्रतीक बन गया है?
उत्तर:
रंगों की दुनिया
आर्थिक और राजनीतिक सम्पन्नता का
नीचे
कृष्ण
विलासिता का, भ्रष्टाचार का, गन्दगी और गलीज का।
गेहूँ और गुलाब पाठ सारांश
‘गेहूँ और गुलाब’ रामवृक्ष बेनीपुरी का प्रसिद्ध एवं प्रतीकात्मक निबन्ध है।
इस निबन्ध में लेखक ने गेहूँ को भौतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति का प्रतीक माना है तथा गुलाब को मानसिक एवं सांस्कृतिक प्रगति का मानव प्राचीन काल से ही सौन्दर्य प्रेमी रहा है। गुलाब के प्रति मानव का विशेष आकर्षण रहा है क्योंकि यह सुन्दर पुष्प होने के साथ-साथ उपयोगी भी है। सुगन्ध के लिए भी गुलाब का महत्त्व है।
गेहूँ का प्रयोग हम भोजन के रूप में करते हैं। गुलाब को खुशबू के लिए प्रयोग करते हैं व सूंघते भी हैं। एक से पेट भरता है, तो दूसरे से व्यक्ति को मानसिक सन्तुष्टि मिलती है। मानव ने अथक् परिश्रम करके गेहूँ का उत्पादन किया। इसी प्रकार से गुलाब की भी खेती की। इस प्रकार मनुष्य ने गुलाब और गेहूँ में सन्तुलन बनाये रखने का प्रयत्न किया है।
भौतिक सुख और सुविधाओं से मनुष्य को स्थायी सुख और शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती है। ये सब तो दिखावा और छलावा है लेकिन मानव इन सुख-सुविधाओं के पीछे निरन्तर दौड़ रहा है। इसी कारण मनुष्य में स्वार्थवश मानवता के स्थान पर दानवता बढ़ती जा रही है। ये सब प्रवृत्ति समाज के हित में नहीं है। अतः ऐसा प्रयत्न करना चाहिए जिससे मानसिक संस्कार विकसित हों अर्थात् गेहूँ पर गुलाब की और शरीर पर मन की जीत हो जाय।
अब गेहूँ की दुनिया समाप्त हो रही है। गुलाब की दुनिया विकसित होती जा रही है। अतः विज्ञान और मानव दोनों को सचेष्ट रहना चाहिए अन्यथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का विनाश निश्चित है।
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गेहूँ और गुलाब संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) मानव को मानव बनाया गुलाब ने। मानव, मानव तब बना, जब उसने शरीर की आवश्यकताओं पर मानसिक वृत्तियों को तरजीह दी।
कठिन शब्दार्थ :
मानसिक वृत्तियों = मन की भावनाओं। तरजीह दी = महत्त्व दिया।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘गेहूँ और गुलाब’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी जी हैं।
प्रसंग :
लेखक ने इस अंश में यह बताया है कि जहाँ गेहूँ शरीर की आवश्यकताओं के लिए जरूरी है, वहीं गुलाब मानसिक वृत्तियों के लिए जरूरी है।
व्याख्या :
लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी कहते हैं कि गेहूँ मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताओं अर्थात्, भूख आदि के लिए जहाँ आवश्यक है, वहीं गुलाब मानसिक सभ्यता को पनपाता है। अतः पूर्ण मानव बनने के लिए हमें गेहूँ और गुलाब दोनों चाहिए।
विशेष :
मानवीय सभ्यता के लिए गुलाब जैसी उच्च भावनाओं की भी आवश्यकता है।
भाषा भावानुकूल।
(2) मानव शरीर में पेट का स्थान नीचे है, हृदय का ऊपर और मस्तिष्क का सबसे ऊपर। पशुओं की तरह उसका पेट और मानस समानान्तर रेखा में नहीं है। जिस दिन सीधे तनकर खड़ा हुआ, मानस ने उसके पेट पर विजय की घोषणा की।
कठिन शब्दार्थ :
समानान्तर = एक सीध में। मानस = मनुष्य।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने मानव और पशुओं की शारीरिक बनावट के अन्तर को समझाया है।
व्याख्या :
लेखक श्री बेनीपुरी जी कहते हैं कि मानव और पशु की शारीरिक रचना में अन्तर है। मानव की शारीरिक रचना में उसके पेट का स्थान नीचे है, पेट के ऊपर हृदय का और हृदय से भी ऊपर मस्तिष्क का स्थान होता है। पशुओं के समान उसका पेट और मानस समानान्तर रेखा में नहीं है। जिस दिन मानव सीधा तनकर खड़ा हो गया उसी दिन मानस (मस्तिष्क) ने उसके पेट पर विजय प्राप्त कर ली।
विशेष :
लेखक पशु और मानव के अन्तर को बताते हुए कह रहा है कि दोनों में मुख्य अन्तर है कि जहाँ पशु में शारीरिक आवश्यकताओं को प्राप्त करने की इच्छा होती है, वहीं मानव में उच्च विचारों को प्राप्त करने की इच्छा होती है।
भाषा भावानुकूल।
(3) जब तक मानव के जीवन में गेहूँ और गुलाब का सन्तुलन रहा, वह सुखी रहा, सानन्द रहा।
कठिन शब्दार्थ :
सानन्द = आनन्दपूर्वक।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक बताना चाहता है कि मानव जीवन में गेहूँ और गुलाब का सन्तुलन बहुत आवश्यक है। इन दोनों में सन्तुलन न रहने पर मानव सुखी नहीं रह सकता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जब तक मानव जीवन में गेहूँ और गुलाब में सन्तुलन बना रहेगा, तभी तक मानव सुखी और सानन्द रहेगा। जैसे ही दोनों का सन्तुलन बिमड़ेगा मानव जीवन नरक बन जायेगा।
विशेष :
लेखक ने गेहूँ और गुलाब के सन्तुलन पर जोर दिया है।
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(4) कैसा वह शुभ दिन होगा, जब हम स्थूल शारीरिक आवश्यकताओं की जंजीर तोड़कर सूक्ष्म मानव जगत का नया लोक बसाएँगे।
कठिन शब्दार्थ :
स्थूल = दिखाई देने वाला। सूक्ष्म = प्रत्यक्ष न दिखाई देने वाला।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इसमें लेखक ने स्थूल शारीरिक आवश्यकताओं – की तुलना में सूक्ष्म मानव जगत को महत्त्व दिया है।
व्याख्या :
लेखक बेनीपुरी जी कहते हैं कि मानव जीवन में तभी खुशहाली एवं आनन्द की प्राप्ति होगी जब हम शारीरिक आवश्यकताओं की जंजीर को तोड़कर सूक्ष्म मानव जगत का नया लोकं बसाएँगे।
विशेष :
इस अंश में लेखक ने सूक्ष्म मानव जगत का – महत्त्व बताया है।
भाषा भावानुकूल।