MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम्

MP Board Class 10th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दुर्वा Chapter 13 महाभारते विज्ञानम्- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम्


प्रश्न 1.
कपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) महाभारतस्य प्रणयनं केन कृतम्? (महाभारत की रचना किसने की?)
उत्तर:

वेदव्यासेन (वेदव्यास के द्वारा)

(ख) जलं बिना किं न सम्भवम्? (जल के बिना क्या सम्भव नहीं?)
उत्तर:
जीवनम् (जीवन)

(ग) खगोलशास्त्रं कस्मिन् क्षेत्र प्रसिद्धम्? (खगोलशास्त्र किस क्षेत्र में प्रसिद्ध है?)
उत्तर:
कालगणनाक्षेत्रे (कालगणना के क्षेत्र में)

(घ) राजप्रासादादीनां निर्माणे कस्य उपयोगः भवति स्म? (राजमहल आदि के निर्माण में किसका उपयोग होता था?)
उत्तर:
अयसः (लोहे का)

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(ङ) केन दर्शनेन सूक्ष्मवस्तु बृहद् इव भासते? (किसके द्वारा देखने से छोटी वस्तु बड़ी लगती थी?)
उत्तर:
काचकेन (शीशे से)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) शिष्यान् कथं परीक्षेत? (शियों की कैसे परीक्षा ली जानी चाहिए?)

उत्तर:
यथा शुद्धं कनकं तापच्छेदनिघर्षणैः परीक्ष्येत तथा शिष्यान् परीक्षेत।

(जैसे शुद्ध सोने को तपाकर, काटकर और घिसकर परखा जाता है वैसे ही शिष्यों की परीक्षा ली जानी चाहिए।)

(ख) आभरणस्वरूपेण कयोः उपयोगिता महाभारते वर्णितम्? (आभूषण रूप में किन की उपयोगिता महाभारत में वर्णित है?)
उत्तर:
आभरणस्वरूपेण सुवर्णरजतयोः उपयोगिता महाभारते वर्णितम्। (आभूषण के रूप में सोने और चाँदी का उपयोग महाभारत में वर्णित है।)

(ग) जनाः सुगन्धद्रव्याणां निर्माणार्थं कस्य उपयोगः कुर्वन्ति स्म? (लोग सुगन्ध द्रव्यों को बनाने के लिए किसका उपयोग करते थे?)
उत्तर:
जनाः सुगन्ध द्रव्याणां निर्माणार्थं पुष्पाणां तैलस्य उपयोगः कुर्वन्ति स्म। (लोग सुगन्धित द्रव्यों को बनाने के लिए फूलों के तेल का उपयोग करते थे।)

(घ) वेदव्यासेन महाभारतस्य प्रणयनं किमर्थं कृतम्? (वेदव्यास के द्वारा महाभारत को रचना किस लिए की गई?)
उत्तर:
वेदव्यासेन महाभारतस्य प्रणयनं लोकोपकाराय कृतम्। (वेदव्यास ने महाभारत की रचना लोकोपकार के लिए की।)

(ङ) महाभारतं कस्याः परिचायकग्रन्थः? (महाभारत किसका परिचायक ग्रन्थ है?)
उत्तर:
महाभारतं भारतीयसनातन वैदिक संस्कृतेः परिचायक ग्रन्थः। (महाभारत भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति का परिचायक ग्रन्थ है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) मानवस्य स्वभावः कः? (मानव का स्वभाव क्या है?)

उत्तर:
मानवस्य स्वभावः अयम् अस्ति यत् सः लज्जया स्वकीयं नश्वरम् अपि शरीरम् वस्त्रेण आच्छादितुम् इच्छति। (मानव का स्वभाव है कि वह लज्जा ने अपने नश्वर शरीर को भी वस्त्र से ढंकना चाहता है।)

(ख) रसायनशास्त्रविषये व्यासदेवः किं कथयति? (रसायनशास्त्र के विषय में व्यासदेव क्या कहते हैं?)
उत्तर:
रसायन शास्त्र विषये व्यासदेवः कथयति यत्-रसायन विदः सुप्रयुक्त रसायनाः च एव जरया भग्नाः दृश्यन्ते, उतमैः नागैः नगा इव।

(रसायन शास्त्र के विषय में व्यासदेव कहते हैं कि रसायन शास्त्र के जानकारों को उत्तम सापों द्वारा पर्वत के सभान ठीक प्रकार से प्रयुक्त रसायन पुराने होने के कारण व्यर्थ दिखाई देते हैं।)

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(ग) भौतिकशास्त्रे अतीव प्रसिद्धः कः विचारः? (भौतिकशास्त्र में बहुत प्रसिद्ध विचार क्या है?)
उत्तर:
भौतिकशास्त्रे अतीव प्रसिद्धः विचारः यत् “वस्तूनाम् अन्यसापेक्षं चलनम्” इति। (भौतिकशास्त्र का अधिक प्रसिद्ध विचार है कि ‘वस्तुएँ अन्यों के साथ चलती हैं।”)

प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयत-(उचित क्रम से जोडिए-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 1
उत्तर:
(क) 2
(ख) 3
(ग) 1
(घ) 5
(ङ) 4

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)

(क) महाभारते सर्षपतैलस्य बहुशः उल्लेखो वर्तते।
(ख) राजरोगाणां शमनाय पञ्चसप्तविविधा चिकित्सा करणीया।
(ग) महाभारतं लक्षैकपद्यात्मकं महाकाव्यम् अस्ति।
(घ) यत् महाभारते अस्ति तदन्यत्र नास्ति।
(ङ) वस्तूनाम् अन्यसापेक्षं चलनम् भौतिकशास्त्रस्य सिद्धान्तः।।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्।

प्रश्न 6.
अधोलिखितशब्दानां विभक्तिं वचनञ्च लिखत
(नीचे लिखे शब्दों की विभक्ति और वचन लिखिए-)

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 2
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 3

प्रश्न 7.
अधोलिखतपदानां धातुं लकारं वचनं च लिखत
(नीचे लिखे पदों के धातु, लकार और वचन लिखिए
-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 4
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 5

प्रश्न 8.
धोलिखितशब्दानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम लिखत
(नीचे लिखे पदों के सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम लि
खिए-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 6
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 13 महाभारते विज्ञानम् img 7

प्रश्न 9.
धोलिखितपदानां पर्यायवाचिशब्दान् लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए-)
यथा- जलम् – वारि

(क) वेदव्यासः
(ख) कालः
(ग) सुवर्णम्
(घ) मनुष्यः
उत्तर:
(क) वेदव्यासः – कृष्णद्वैपायनः
(ख) कालः – समयः
(ग) सुवर्णम् – कनकम्
(घ) मनुष्यः – मानवः

प्रश्न 10.
अधोलिखितव्ययानां वाक्यप्रयोगं कुरुत
(नीचे लिखे अव्ययों के वाक्य बनाइए)
यथा- अत्र – अहम् अत्र अस्मि

(क) अपि
(ख) इदानीम्
(ग) बिना
(घ) यथा
(ङ) एव
उत्तर:
(क) अपि – अहम् अपि गच्छामि ।(मैं भी जाती हूँ।)
(ख) इदानीम् – इदानीम् शयनं कुरु। (अब सो जाओ।)
(ग) बिना – त्वाम् विना अहम् न गमिष्यामि। (तुम्हारे बिना मैं नहीं जाऊँगी।)
(घ) यथा – यथा करिष्यति तथा प्राप्तं करिष्यति। (जैसा करोगे वैसा पाओगे।)
(ङ) एव – रामः एव प्रथमम् आगमिष्यति। (राम ही प्रथम आएगा।)

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योग्यताविस्तार –

कृष्णद्वैपायनवेदव्यासविषये निबन्धो लिखत।
कृष्णद्वैपायनवेदव्यास जी के विषय पर निबन्ध लिखो।

महाभारते कति पर्वाणि सन्ति तेषां नामानि लिखत।
महाभारत में कितने पर्व है, नाम लिखो।

महाभारते विज्ञानम् पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में श्री वेदव्यास जी द्वारा रचित ‘महाभारत’ के विषय पर चर्चा की गई है तथा इस ग्रन्थ की वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या की गई है, जिससे यह पता चलता है कि महाभारत में विज्ञान के सभी विषय-भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, खगोलशास्त्र, कृषि सम्बन्धी व्यवस्था, वैद्यशास्त्र, लौहशास्त्र आदि अनेक विषय सम्मिलित हैं।

महाभारते विज्ञानम् पाठ का अनुवाद

  1. भारतीयसनातनवैदिकसंस्कृतेः परिचायकः, आकरग्रन्थः ‘श्रीमन्महाभारतम्। यस्य प्रणयनं भगवता वेदव्यासेन लोकोपकाराय कृतम् अस्ति। एतस्य महत्ताविषये स्वयमेव कृष्णद्वैपायनोमुनिः प्रकाशयति –
    “धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
    यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्।।”

‘महाभारतम्’ न केवलं विश्वकोशत्वेन विद्यते पुराणेतिहासादीनाम् अपित्वत्र वैज्ञानिकदृष्टया भौतिकशास्त्र-खगोलशास्त्र-कृषि-जलबन्ध-जलसेचनादिव्यवस्था-रसायनशास्त्र वैद्यकशास्त्र-लौहशास्त्र-वस्त्रनिर्माण-शस्त्रास्त्रनिर्माणञ्चालन-विधिरित्यादयः बहवः विषयाः ज्ञान-विज्ञानोपेताः वर्णिताः सन्ति। तेषु केचनविषयाः अत्र उदाह्रियन्ते

अन्वयः :
(धर्मे चार्थे …………… तत् वचित्) हे भरतर्षभ! धर्मे च, अर्थे च, कामे च, मोक्षे च यद् इह अस्ति, तद् अन्यत्र (अस्ति), यद् इह न अस्ति, तत् क्वचित् न (अस्ति)

शब्दार्थाः :
परिचायकः-परिचय कराने वाला-Introducer; आकरग्रन्थः-खान रूपी ग्रन्ध-Storehouse; प्रणयनम्-लिखना-writing, composition; इह-यहाँ (इस संसार में)-here (in this world); क्वचित्-कहीं-somewhere; न क्वचित्-कहीं नहीं-nowhere

अनुवाद :
भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति का परिचय कराने वाला खान रूपी ग्रन्थ ‘श्रीमन्महाभारत’ है। जिसकी रचना भगवान वेदव्यास के द्वारा लोकोपकार के लिए की गई है। इसकी महानता के विषय में स्वयं ही कृष्णद्वैपायन मुनि प्रकाशित करते हैं। हे भरतर्षभ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में जो यहाँ है, वह सब जगह है, जो यहाँ नहीं है, वह कहीं नहीं है।

‘महाभारत’ न केवल विश्वकोश के रूप में पुराण-इतिहास आदि है, बल्कि यहाँ वैज्ञानिक दृष्टि से भौतिकशास्त्र, खगोलशास्त्र, कृषि, जलबन्ध, जलसेचन आदि व्यवस्थाएँ, रसायनशास्त्र, वैद्यकशास्त्र, लौहशास्त्र, वस्त्रनिर्माण, अस्त्र-शस्त्र निर्माण तथा सञ्चालन की विधि आदि बहुत से विषय ज्ञान और विज्ञान से युक्त वर्णित हैं। उनमें से कुछ पियों के यहाँ उदाहरण दिए जा रहे हैं –

English :
Mahabharat-introducer of vedic culture-Enshrines knowledge of religion, wealth, love and redemption-encyclopediafull of scientific knowledge-full of knowledge and wisdom.

  1. भौतिकशास्त्रम्-‘वस्तूनाम् अन्यसापेक्षं चलनम्’ इत्येषः विचारः भौतिकशास्त्रे अतीव प्रसिद्धः। महतः आश्चर्यस्य विषयोऽयम् अस्ति यत् इमं मतं भगवान बादरायणः संस्थापयति महाभारते –
    “चलं यथा दृष्टिपथं परैति सूक्ष्म महद्पमिवाभिभाति।
    स्वपमालोचयते च रूपं परं तथा बुद्धिपथं परैति॥”

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अस्य पद्यस्य प्रथमे पादे तेन स एव विचारः प्रकटितः अस्ति। अत्रैव अन्यौ अपि द्वौ भौतिकशास्त्रसम्बद्धौ विचारौ कथितौ स्तः। तौ च-‘काचकेन दर्शनेन सूक्ष्मम् अपि वस्तु बृहद् इव भासते’ इति स्वच्छे दर्पणे वस्तुनः रूपस्य तादृशमेव प्रतिबिम्बं दृश्यते’ इति च।

अन्वयः :
(चलं यथा दृष्टि …………. बुद्धिपथं परैति॥’)
यथा चलं दृष्टिपथं परैति, सूक्ष्म महद् रूपम् इव अभिभाति, रूपं स्वरूपं च आलोचयते, तथा परं बुद्धिपथं परैति॥

शब्दार्थाः :
संस्थापयति-स्थापित करता है-establishes-sets up; अभिभाति-दिखाई देता है-Appears;आलोचयते-दिखलाता है-shows, displays; परैति-आती है-comes.
अनुवाद-भौतिकशास्त्रम्-‘वस्तुएं दूसरों पर निर्भर होकर चलती हैं’ यह विचार भौतिक शास्त्र में बहुत प्रसिद्ध है। अधिक आश्चर्य की बात यह है कि यही मत भगवान बादरायण ने महाभारत में स्थापित किया है-

जिस प्रकार चलते हुए दृष्टिपथ पर आती हुई, छोटी वस्तु बड़े के समान दिखाई देती है, वैसे ही दूसरे की बुद्धिपथ पर आई हुई वस्तु का रूप और स्वरूप दिखाई पड़ता है। इस पद्य के प्रथम पाद में उसके द्वारा वही विचार प्रकट किया गया है। यहीं और भी दो भौतिक शास्त्र संबंधी विचारों को कहा गया है। वे हैं-“शीशे में देखने से छोटी सी वस्तु भी बहुत बड़ी लगती है” और “साफ शीशे में वस्तु के रूप की वैसी ही परछाई दिखाई देती है’।

English :
Physics: Material depends on other items for motionsame principle found in Mahabharata-Lens enlarge the size of an object-Clear glass reflects the original shape of the objects.

  1. खगोलशास्त्रम्-कालगणनाक्षेत्रे भारतीयं खगोलशास्त्रं विश्वस्मिन् प्रसिद्धम् अस्ति। खगोलस्य भावार्थः भवति यद् आकाशः अपि पृथिवीव गोलः अस्ति। महाभारते तु, विपलं ‘सेकेण्ड’ इति आङ्ग्लीयनाम्ना प्रसिद्धम्, इत्यस्यापि विभागः कृतः दृश्यते।
    यथा –
    “काष्ठा निमेषा दश पञ्च चैव त्रिशत्तु काष्ठा गणयेत् कलां ताम्।
    त्रिंशत्कलाश्चापि भवेन्मुहूर्तो भागः कतायाः दशमश्च यः स्यात्॥

एवमेव सूर्यचन्द्रग्रहणविषयिण्याः खगोलीयघटनायाः वर्णनम् अपि महाभारतकारः करोति।

अन्वयः :
(काष्ठा निमेषा ……………….. यः स्यात्।)

दशः काष्ठाः निमेषाः पञ्च च एव त्रिंशत् तु काष्ठा तां कलां गणयेत् मूहूर्तो भागः त्रिंशत् कलाः च अपि भवेत् यः कलायाः दशमः च स्यात्।

शब्दार्थाः :
विपलम्-क्षण-Moment; आङ्ग्लीयनाम्ना-अंग्रेजी नाम से-by English name; काष्ठा-18 निमेष की संख्या-number of 18 moments; निमेषा-नेत्रों की पलक गिरने का समय-blinking (winking) time of eyes.

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अनुवाद :
खगोलशास्त्रम्-कालगणना के क्षेत्र में भारतीय खगोल शास्त्र इस विश्व में प्रसिद्ध है। खगोल का भावार्थ होता है कि आकाश भी पृथिवी की तरह गोल है। महाभारत में तो, क्षण ‘सैकेण्ड’ इस अंग्रेजी नाम से प्रसिद्ध है, इसके भी छोटे-छोटे भाग किए हुए दिखते हैं। जैसे

दस काष्ठा (18 निमेष का एक काष्ठा), निमेष पाँच ही है, तो 30 काष्ठा, उसको एक कला (खण्ड) गिनते हैं। और एक क्षण का भाग भी 30 कलाएँ होती हैं, जो कला का दसवां भाग होती हैं।

इस प्रकार ही सूर्य और चन्द्र ग्रहण के विषयों का, तथा खगोलीय घटनाओं का वर्णन भी महाभारत लिखने वाला करता है।

English :
Geography-Measurement of time-sky also round like earth-parts of seconds mentioned in Mahabharata. Kashtha, Kala and Muharta are mentioned in Mahabharata. Divisions of Kala.

Solar and lunar eclipses also mentioned in Mahabharata.

  1. कृषि-जलबन्ध-जलसेचनादिव्यवस्था-‘जलमेव जीवनम्’ इत्युक्त्या सिद्धयति यत् जलं बिना जीवनं कथमपि न सम्भवम्। जलं न भविष्यति चेत्तदा धान्योत्पत्तिः कथं भविष्यति? अतः जलबन्धपूर्वकं विशालजलराशिं सकलय्य तस्य सम्यक् रूपेण सेचनादि व्यवस्था करणीया। एतदर्थं सत्यवतीसुतः महाभारते उल्लिखति –
    “क्षेत्रं हि रसवत् शुद्धं कर्षकेणोपपादितम्।
    ऋते वर्ष न कौन्तेय!, जातु निर्वतयेत् फलम्।

तत्र वै पौरुषं ब्रूयुः आसेकं यत्नकारितम्। सस्यानां जलसेचनाय नदीषु जलबन्धाः स्थापयितुम अपि निर्दिशति।।

श्लोक का अन्वयः :
(क्षेत्रं हि रसवत् …………. निर्वर्तयेत् फलम्।।)
हि कर्षकेण उपपादितं क्षेत्रं रसवत् शुद्धम् कौन्तेय। वर्षम् ऋते न जातु फलं निवर्तयेत्।

शब्दार्थाः :
सङ्कलय्य-एकत्रित करके-storing; कर्षकेण-किसान के द्वारा-by the farmer; उपपादितम्-उत्पादित-produce; ऋते-बिना-without; आसेकम्-गीला करना-to nmoisten; सस्यानाम्-फसलों की-of crops/foodgrains;

अनुवाद :
कृषि-जलबन्ध (बाँध)-जल सेचन सिंचाई आदि की व्यवस्था-‘जल ही जीवन है’ यह कहकर सिद्ध होता है कि जल के बिना जीवन किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं है। यदि जल नहीं होगा तो धान आदि की उत्पत्ति कैसे होगी? इसलिए बाँध बनाने से पहले बहुत सारा जल एकत्रित कर उसकी ठीक प्रकार से सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए। इसलिए सत्यवती पुत्र ने महाभारत में उल्लेख किया है कि हे कौन्तेय किसानों के द्वारा उत्पादित क्षेत्र रसवान् और शुद्ध है। पर वर्षा के बिना उनके फल नहीं हो पाएँगे।

तब उनके द्वारा मेहनत के साथ जल देने का (गीला रखने का प्रयत्न करने को भी कहना चाहिए। फसलों की जल से सिंचाई के लिए नदियों पर बाँध बनाने का भी निर्देश दिया है।

English :
Agriculture, dams and irrigation-water is life-source of agricultural produce-dams or rivers for irrigation-rain water a must for irrigation.

  1. रसायनशास्त्रम्-महाभारतकाले रसायनशास्त्रस्य पर्याप्तः विकासः अभवत्। तस्माद् एव औषधिविज्ञानं, धातुशास्त्रं च विकसितम्। व्यासदेवः कथयति –
    ‘रसायनविदश्चैव सुप्रयुक्तरसायनाः।
    दृश्यन्ते जरया भग्ना नगा नागैरिवोत्तमैः॥’

नानाविधानां सुगन्धद्रव्याणां निर्माणार्थं पुष्पाणां तैलस्य च उपयोगः तदानीन्तनाः जनाः कुर्वन्ति स्म। तिल-सर्षपतैलस्य बहुशः उल्लेखो वर्तते।

अन्वयः :
(रसायनविदश्चैव ………… इवोत्तमैः) रसानविदः, सप्रयक्तरसायनाः च एव जरया भग्ना दृश्यन्ते, उतमैः नागैः नगा इव।

शब्दार्थाः :
पर्याप्तः-काफी-enough, sufficient; सुप्रयुक्त-ठीक प्रकार प्रयोग किए गए-well utilised ; भग्ना-टूटा हुआ, व्यर्थ-broken, useless; दृश्यन्ते-दिखाई देते हैं-appear; तदानीन्तनाः-उस समय के-of those times; सर्षप-सरसों-mustard.

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अनुवाद :
रसायनशास्त्र-महाभारत के समय में रसायनशास्त्र का काफी विकास हुआ। वहीं से औषध विज्ञान और धातु शास्त्र का विकास हुआ। व्यासदेव कहते हैं

‘रसायनशास्त्र के जानकार को उत्तम साँपों के द्वारा पर्वत के समान अच्छे प्रकार से प्रयोग किए गए रसायन पुराने होने के कारण व्यर्थ दिखाई देते हैं।

अनेक प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों को बनाने के लिए फूलों के तेल का उपयोग उस समय के लोग करते थे। तिल और सरसों के तेल का बहुत उल्लेख है।

English :
Chemistry, medical service and metallurgy are offshoot of Chemistry.

Sap of plants was used to produce scent. Sesamum and mustard oil is widely mentioned.

  1. वैद्यकशास्त्रम्-मनुष्य सदा नीरोगः भवेत्। अत एव स्वस्थशरीरार्थं बहवः उपायाः वर्णिताः सन्ति। वैद्यकशास्त्रम् आरोग्यशास्त्रम् अपि कथ्यते। स्वास्थ्यघातकाः ये राजरोगादयः सन्ति। तेषां सर्वथा शमनाय द्विसप्ततिविधाः चिकित्साः करणीयाः। उल्लेख एवं विधः विद्यते –
    ‘द्वासप्ततिविधा चैव शरीरस्य प्रतिक्रिया।
    देशजातिकुलानां च धर्माः समनुवर्णिताः ॥7

शान्तिपर्वणि59’ श्लोक का अन्वयः-(द्वासप्तति ………… समानुवर्णिताः॥)

शरीरस्य प्रतिक्रिया द्वासप्ततिविधा च एव। देश, जाति, कुलानां च धर्माः समनुवर्णिताः (सन्ति)

शब्दार्थाः :
घातका-नष्ट करने वाले-destroyers;शमनाय-शान्ति/रोकने के लिए-to pacify; द्विसप्ततिविधाः-72 प्रकार की-of 72 types.

अनुवाद :
वैद्यशास्त्र-मनुष्य सदा नीरोगी रहे। इसलिए स्वस्थ शरीर के लिए बहुत से उपायों का वर्णन है। वैद्यशास्त्र को आरोग्यशास्त्र भी कहते हैं। जो स्वास्थ्य को नष्ट करने वाले राजरोग आदि है। उनकी हमेशा की शान्ति के लिए 72 इलाज करने चाहिएं। उनका उल्लेख इस प्रकार है-

‘शरीर की प्रतिक्रिया बहत्तर (72) प्रकार की ही है। देश, जाति और कुलों के धर्म का इसमें वर्णन हैं।’

English :
Medical science-Science of healthy living-72 treatments are known to cure diseases. Physical process-of 72 types-according to location (climate) race, and nature of families.

  1. लौहशास्त्रम्-वयं जानीमः यत् सुवर्ण, रजतं, ताळं, सीसं, नपुः, अयः इति नाम्ना धातवः प्रसिद्धाः सन्ति। आभग्णस्वरूपेण, क्रयविक्रयव्यवहारसाधनत्वेन च सुवर्णरजतयोः उपयोगिता महाभारते वर्णिता अस्ति। राजप्रासादादीनां निर्माणे अयसः उपयोगः भवति स्म। सुवर्णस्य अग्नौ तापनेन शुद्धीकरणक्रमः तदानीन्तनस्य व्यवहारस्य प्रमाणम् उपस्थापयति –
    ‘यथा हि कनकं शुद्धं तापच्छेदनिघर्षणैः।
    परीक्ष्येत तथा शिष्यान ईक्षेत्शीलगुणदिभिः॥४६॥शान्तिपर्वणि329

श्लोक का अन्वयः :
(यथा हि कनकं ………… शीतगुणादिभिः।।)
यथा हि शुद्धं कनकं तापच्छेद निघर्षणैः परीक्ष्येत तथा शिष्यान् शीलगुणादिभिः ईक्षेत्॥

शब्दार्थाः :
त्रपुः-रांगा-tin pewter; आभरण-आभूषण-ornament; अयः-लोहा -iron; राजप्रासादादिनाम्-राजमहल आदि के-of royal palaces etc; तापनेन-तपाने से-heating; तापच्छेदनिघर्षणैः-तपाकर, काटकर; घिसकर-heating, cutting and rubbing; परीक्ष्येत-परीक्षा करनी चाहिए-to be tested; ईक्षेत्-देखना चाहिए-to be seen.

अनुवाद :
लोहशास्त्र-हम जानते हैं कि सोना, चाँदी, ताँबा, सीसा, राँगा, लोहा आदि धातुएं संसार में प्रसिद्ध हैं। आभूषण बनाने में तथा खरीदने-बेचने के व्यवहार के साधन में सोना और चाँदी का उपयंग महाभारत में वर्णित है। राजमहल आदि के निर्माण में लोहे का प्रयोग होता था। सोने को अग्नि में तपा कर शुद्धीकरण का क्रम उस समय के व्यवहार का प्रमाण स्थापित करता है

‘जैसे शुद्ध सोना तपा कर, काट कर और घिसकर परखा जाता है, वैसे ही शिष्यों के शीलगुण आदि भी देखने चाहिएं।’

English :
Various metals-Silver and Gold were used in making ornaments and as means of exchange-Iron was very useful as building material. Gold was purified by heating in fire-It was tested in fire, by cutting and rubbing

  1. वस्त्रनिर्माणम्-मानवस्य स्वभावोऽयम् अस्ति, यत् सा लज्जया चकीयं नश्वरम् अपि शरीरं वस्त्रेण आच्छादितुम् इच्छति। वैदिककालाद् एव वस्त्रनिर्माण-परम्परा वर्तते। महाभारते ऊर्ण-कापसि-कौशेयादिवस्त्राणां निर्माणस्य, तत्र तु स्वापेक्षितस्य वर्णस्य संयोजनस्प च वर्णनं मिलति।
    यथा –
    “यादृशेन हि वर्णेन भाव्यते शुक्लमम्बरम्।
    तादृशं कुरुते रुपम् एतदेवमवेहि में॥५॥ शान्तिपर्वणणि २६३

अनेन ज्ञायते यद् इदं लक्षैकपद्यात्मकं महाकाव्यं महाभारतं एकतः पुरुषार्थचतुष्टयप्रकाशकं वर्तते, ततो अपि अधिकं ज्ञानविज्ञानयोः वैशा च समुपदिशति।

श्लोक का अन्वयः :
(यादृशेन हि ………… एतदेवमवेहि मे॥) हि यादृशेन वर्णेन शुक्लम् अम्बरं भाव्यते तादृशं रूपं कुरुते, एतद् एवम् एव मे (मतम्) अवेहि।

शब्दार्थाः :
आच्छादितुम्-ढंकने के लिए-to cover, to hide;कौशेयम्-रेशमी-silken; संयोजनस्य-मिलाने का-mixing; स्वापेक्षितस्य-अपनी अपेक्षा, इच्छा के-at sweet will; अम्बरम्-वस्त्र-clothes; वैशधम्-विस्तार पूर्वक-in detail; समुपदिशति-ठीक प्रकार सेinstruct; अवेहि-उपदेश करता है- advises.

अनुवाद :
वस्त्रनिर्माण-मानव का यह स्वभाव है कि वह लज्जा से अपने नश्वर शरीर को वस्त्र से ढंकने की इच्छा करता है। वैदिक काल से ही वस्त्र बनाने की परम्परा है। महाभारत में ऊन, कपास, रेशम आदि के वस्त्रों के निर्माण का और उनमें अपनी इच्छा के रंग मिलाने का वर्णन मिलता है। जैसे –

‘जैसे रंग से सफेद वस्त्र सुन्दर लगता है, वैसे ही रूप हो जाता है। यह ऐसे ही मेरा ‘विचार’ है।

इससे ज्ञात होता है कि यह एक लाख पद्यों वाला महाकाव्य ‘महाभारत’ एक ओर चार प्रकार के पुरुषार्थों का प्रकाशक है, इससे भी अधिक ज्ञान और विज्ञान, के विषयों का ठीक प्रकार से उपदेश करता है।


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