MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः

MP Board Class 10th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दुर्वा Chapter 15 भगीरथः – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः


प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) सूर्यवंशस्य राजा कः आसीत्? (सूर्यवंश के राजा कौन थे?)
उत्तर:
सगरः (सगर)

(ख) यागस्य विध्नं कर्तुं कः मार्ग चिन्तितवान्? (यज्ञ का विध्न करने के लिए किसने तरीका सोचा था?)
उत्तर:
देवेन्द्रः (देवराज इन्द्र)

(ग) सगरपुत्राः कस्य पुरतः अश्वं दृष्टवन्तः? (सगरपुत्रों ने किसके सामने अश्व देखा?)
उत्तर:
कपिलमुनेः (कपिल मुनि के)

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(घ) कस्य वंशे भगीरथस्य जननम् अभवत्? (भगीरथ का जन्म किस वंश में हुआ?)
उत्तर:
सगरस्य (सगर के)

(ङ) आकाशगङ्गां शिवः कुत्र निक्षिप्तवान्? (आकाश गङ्गा को शिव ने कहाँ छिपा लिया?)
उत्तर:
जटासु (जटाओं में)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक वाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) भगीरथः कान स्वर्गं नेतुं निश्चितवान्? (भगीरथ ने किनको स्वर्ग ले जाने का निश्चय किया?)

उत्तर:
भगीरथः स्वपूर्वजान् स्वर्ग/नेतुं निश्चितवान्। (भगीरथ ने अपने पूर्वजों को स्वर्ग में ले जाने का निश्चय किया।)

(ख) कं ध्यात्वा भगीरथः तपः कृतवान्? (किसको ध्यान कर भगीरथ तप कर रहे थे?)
उत्तर:
ईश्वरं ध्यात्वा भगीरथः तपः कृतवान्। (ईश्वर को ध्यान करके भगीरथ ने तप किया।)

(ग) भगीरथः नदी भूमितः कुत्र नीतवान्? (भगीरथ नदी को भूमि से कहाँ ले गया)
उत्तर:
भगीरथः नदी भूमितः पातालं नीतवान्। (भगीरथ नदी को भूमि से पाताल को ले गया।)

(घ) कस्याः अपरं नाम भागीरथी? (किसका दूसरा नाम भागीरथी है?)
उत्तर:
गङ्गायाः अपरं नाम भागीरथी। (गंगा का दूसरा नाम भागीरथी है।)

(ङ) के कार्य प्रारभ्य न परित्यजन्ति? (कौन कार्य को शुरू करके नहीं छोड़ते?)
उत्तर:
उत्तमजनाः कार्य प्रारम्भ न परित्यजन्ति। (उत्तम लोग कार्य प्रारम्भ कर के नहीं छोड़ते।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) देवेन्द्रः किमर्थं सगराय असूयति स्म? (देवेन्द्र किसलिए सगर से घृणा करता था?)
उत्तर:

‘अश्वमेधं कृत्वा सगरः स्वयम् इन्द्रः भविष्यति’ इत्यर्थे देवेन्द्र। सगराय असूयति स्म। (“अश्वमेध करके ग्ग्गर स्वयं इन्द्र बन जाएगा’ इसलिए देवेन्द्र सगर से घृणा करता था।)

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(ख) भगीरथः किं निश्चयं कृतवान्? (भगीरथ ने क्या निश्चय किया?)
उत्तर:
यदा गङ्गायाः जलं भस्म स्प्रक्ष्यति तदा एव सगरपुत्राणां पापस्य नाशः अपि भविष्यति इति भगीरथः निश्चयं कृतवान्। (जब गङ्गा का जल भस्म को स्पर्श करेगा तभी सगर पुत्रों के पाप का नाश भी होगा, यह निश्चय भगीरथ ने किया।)

(ग) नीचमध्यमोत्तमजनामां लक्षणं किम्? (नीच, मध्यम और उत्तम लोगों के लक्षण क्या हैं?)
उत्तर:
नीचैः विध्नभयेन न प्रारभ्यते कार्ग, मध्यमाः प्रारभ्य विधनविहता विरमन्ति, उत्तमजनाः प्रारम्भ विध्नौ पुनः-पुनः अपि प्रतिहन्यमानाः न परित्यजन्ति। (नीच लोग विध्नों के भय से कार्य को शुरू नहीं करते, मध्यम लोग शुरू करके विध्न आने पर बीच में छोड़ देते हैं और उत्तम लोग शुरू करके विध्नों के बार-बार आने पर भी डर कर कार्य नहीं छोड़ते।)

प्रश्न 4.
उचितशब्देन रिक्तस्थानानि पूरयत-(उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(क) सगरः ………… कृतवान्। (गोमेधयागं/अश्वमेधयाग)
(ख) कार्य प्रारम्भ ………… विरमन्ति। (मध्याः /नीचाः)
(ग) भगीरथः पुनः ………… कृतवान्। (जपः/तपः)
(घ) गङ्गा सगरपुत्राणां ………… स्पृष्टवती। (शरीराणि/भस्मानि)
(ङ) भगीरथः ………… भूमौ आनीतवान् (गजां यमुना)
उत्तर:
(क) अश्वमेधयागं
(ख) मध्याः
(ग) तपः
(घ) भस्मानि
(ङ) गङ्गां

प्रश्न 5.
यथायोम्यं योजयत-(उचित क्रम से जोड़िए-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः img 1
उत्तर:
(क) 2
(ख) 4
(ग) 1
(घ) 5
(ङ) 3

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘न’ इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ तथा अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)

(क) सगरः अश्वमेधयागं न कृतवान्।
(ख) कपिलमुनिः ध्याने आसीत्।
(ग) सगरपुत्राः अश्वम् अन्वेष्टुं न गतवन्तः।
(घ) सगरस्य पुत्राः भस्मीभूताः जाताः।
(ङ) भगीरथः गङ्गां भूमौ न आनीतवान्।
उत्तर:
(क) न
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) आम्

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प्रश्न 7.
दाहरणानुसारं शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
(उदाहरण के अनुसार शब्दों के मूलशब्द, विभक्ति और वचन लिखिए)

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः img 2
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः img 3

प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं धातुं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत
(उदाहरण के अनुसार धातु और प्रत्यय अलग कीजिए-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः img 4
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 15 भगीरथः img 5

प्रश्न 9.
अधोलिखितशब्दानां समानार्थशब्दान् लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए-)
यथा- शक्तः – समर्थः
(क) राजा
(ख) मुनिः
(ग) गङ्गा
(घ) भूमिः
(ङ) शिवः
उत्तर:
(क) राजा – नृपः
(ख) मुनिः – साधुः
(ग) गङ्गा – भागीरथी
(घ) भूमिः – धरा
(ङ) शिवः – रूद्रः

प्रश्न 10.
निम्नलिखित-अव्ययानि प्रयुज्य वाक्यनिर्माणं कुरुत
(नीचे लिखे अव्ययों को प्रयुक्त कर वाक्य बनाइए)
यथा- एकदा – नृपः एकदा यागं कृतवान्
(क) तत्र
(ख) एव
(ग) यदा
(घ) पुरतः
(ङ) अपि
उत्तर:
(क) तत्र एकम् पुस्तकम् अस्ति। (वहाँ एक पुस्तक है।)
(ख) राहुलः फलम् एव खादति। (राहुल फल ही खाता है।)
(ग) यदा अहम् गमिष्यामि तदैव सः पठिष्यति। (जब मैं जाऊँगा, तभी वह पढ़ेगा।)
(घ) गृहस्य पुरतः उद्यानम् अस्ति। (घर के सामने बगीचा है।)
(ङ) त्वम् अपि चल। (तुम भी चलो।)

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योग्यताविस्तार –

गङ्गायाः विषये अन्याः कथाः अन्विष्य लिखत पठत च।
(गङ्गा के विषय में अन्य कथाएँ ढूंढकर लिखें और पढ़ें!)

एवम् अन्याः अपि शिक्षाप्रदाः कथाः पठत; तथा च निम्नलिखितौ श्लोको
कण्ठस्थं कुरुत(ऐसी अन्य शिक्षाप्रद कथा पढ़िए व निम्नलिखित श्लोकों को कण्ठस्थ करो।

“गङ्गा गङ्गेति यो ब्रूयाद योजनानां शतैरपि।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति॥”

मातर्गङगे तरलतरङ्गे सततं वारिधिवारिणि सङगे।
मम तव तीरे पिबतो नीरं ‘हरि हरि’ जपतः पततु शरीरम्॥

भगीरथः पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में गङ्गा नदी के स्वर्ग से धरती पर आने की कथा का वर्णन किया गया है, जिससे धरती के लोगों को मुक्ति प्राप्त हो सके। इसके लिए ‘सगर’ के वंशज’ भगीरथ ने कठिन तप किया जिसके फलस्वरूप गङ्गा धरती पर रूकी।

भगीरथः पाठ का अनुवाद

  1. सूर्यवंशस्य राजा सगरः आसीत्। सः एकदा अश्वमेधयागं कृतवान्। यागस्य अन्ते यागस्य अश्वः यत्र तत्र सञ्चारं कृतवान्। अश्वमेधं कृत्वा सगरः स्वयम् इन्द्रः भविष्यति इति देवेन्द्रस्य असूया आसीत्। तस्मात् सः यागस्य विघ्नं कर्तुं मार्ग चिन्तितवान्। ततः अश्वं गृहीत्वा पाताललोके कपिलमुनेः पुरतः स्थापितवान्। तदा मुनिः तपः कुर्वन् ध्याने
    आसीत्। अतः सः किमपि न ज्ञातवान्।

शब्दार्थ :
असूया-घृणा, ईर्ष्या-hatred, envy; यागम्-यज्ञ- sacrifice; पुरतःसामने-in front of.

अनुवाद :
सूर्यवंशी राजा सगर थे। उन्होंने एक बार अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ के अन्त में यज्ञ का घोड़ा यहाँ-वहाँ घूमने लगा। अश्वमेध-यज्ञ करके सगर स्वयं इन्द्र बन जाएगा, ऐसी इन्द्र की घृणा (ईष्या) थी। वहाँ से वह यज्ञ को ध्वंस करने की मार्ग में (युक्ति) सोचने लगा। फिर अश्व लेकर पातललोक में कपिलमुनि के सामने रख दिया। तब मुनि तप करते हुए ध्यान में थे। इसलिए उन्हें कुछ पता नहीं चला।

English :
King Sagar performed a sacrifice-Lord Indra became envious because he would grab Indra’s throne. Left the sacrificial horse in front of Kapil Muni in Patal Lok (hades)

  1. सगरस्य षष्टिसहस्त्रपुत्राः अश्वम् अन्वेष्टुं सर्वत्र गतवन्तः। अन्ते ते पातालं गतवन्तः। तत्र मुनेः पुरतः ते अश्वं दृष्टवन्तः। मुनिः एव चोरः इति चिन्तयित्वा ते तं निन्दितवन्तः। कुपितः मुनिः तान् सगरपुत्रान् क्रोधाग्निना दग्धवान्। ते भस्मरूपेण तत्र पाताललोके स्थितवन्तः। तेषां सद्गतिः न अभवत्। एतेषां मुक्तिः कथं भवेत्? पूर्वजानां मुक्तिः वंशजप्रयत्नैः एव सम्भाव्यते इति शास्त्रमतम्।

सगरस्य वंशे भगीरथस्य जननम् अभवत्। सः स्वपूर्वजान् स्वर्गं नेतुं निश्चितवान्। यदा गङ्गायाः जलं भस्मं स्प्रत्यति तदा एव सगरपुत्राणां पापस्य नाशः अपि भविष्यति इति भगीरथस्य निश्चयः।

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शब्दार्थाः-षष्टिसहस्त्राः :
साठ हजार-sixty thousand; अन्चेष्टुम्-ढूँढ़ने के लिए-to search; दग्धवान्-जला दिया-burnt.

अनुवाद :
सगर के साठ हजार पुत्र घोड़े को ढूँढ़ने के लिए सब तरफ गए। अन्त में वे पाताल गए। उन्होंने वहाँ मुनि के सामने घोड़ा देखा। मुनि ही चोर है वह सोचकर उन्होंने उसकी निन्दा की। क्रोधित मुनि ने उन सगर के पुत्रों को क्रोध की अग्नि में जला दिया। वे भस्म रूप में वहाँ पाताल लोक में पड़े रहे। उनकी सद्गति नहीं हुई। इनकी मुक्ति कैसे हो? पूर्वजों की मुक्ति वंशजों के प्रयत्नों से सम्भव है यह शास्त्र का विचार है।

सगर के वंश में भगीरथ का जन्म हुआ। उसने अपने पूर्वजों को स्वर्ग ले जाने का निश्चय किया। जब गङ्गा का जल भस्म को स्पर्श करेगा, तभी सगर पुत्रों के पाप का नाश भी होगा, ऐसा भगीरथ ने सोचा।

English :
Sagar’s son blamed the muni for the theft, the muni burnt them to death in the fire of anger-Bhagiratha was born in Sagar’s family. His ancestors could reach heaven only if the water of the Ganges touched the ashes.

  1. तस्मिन् काले भूलोके गङ्गा न आसीत्। आकाशमार्गे तस्याः प्रवाहं सोढं भूमिः शक्ता न आसीत्। तां प्रथमतः गृहीतुं परमेश्वरः एव शक्तः आसीत्। तस्मात् ईश्वरं ध्यात्वा भगीरथः तपः कृतवान्। सहस्त्रवर्षानन्तरम् एव ईश्वरः आकाशगङ्गां स्वजटासु ग्रहीतुम् अङ्गीकारं दत्तवान्। एवं सा नदी ईश्वरस्य जटामु प्रथमं पतितवती। आकाशगङ्गा तदा गर्विता आसीत्। “कथम् एषः ईश्वरः मां धारयितुं शक्तः?” इति चिन्तितवती सा। नद्याः गर्वं ज्ञात्वा शिवः तां जटासु एव निक्षिप्तवान्। अतः नद्याः एकः जलबिन्दुः अपि बहिः भूमौ न पतितः।

शब्दार्थाः :
सोढ़म्-सहन करने के लिए-to bear; शक्ता-समर्थ/शक्ति-able,strong; अङ्गीकारम्-स्वीकृति दी-consented; गर्विता-घमण्ड युक्त-proud; निक्षिप्तवान्-फेंक दिया-threw.

अनुवाद :
उस सनय धरती पर गङ्गा नहीं थी। आकाश मार्ग में उसके बहाव को सहने की शक्ति नहीं थी। उसे सबसे पहले पकड़ने में परमेश्वर ही समर्थ थे। इसलिए भगवान का ध्यान कर भगीरथ ने तप किया। हजार वर्षों के बाद ही ईश्वर ने आकश-गङ्गा को अपनी जटाओं में बाँधने की स्वीकृति दी। इससे वह नदी भगवान की जटाओं से पहली बार गिरी। तब आकाशगंगा घमण्ड युक्त हो गयी। “कैसे इस ईश्वर ने मुझे धारण किया?” उसने यह सोचा। नदी के घमण्ड को जानकर शिव ने उसे जटाओं में ही छिपा लिया। इससे नदी के जल की एक बूंद भी बाहर नहीं गिरी।

English :
Ganga could not flow in the sky. God gave consent to preserve the Garga in his locks of hair. Aerial Ganga became proud. Shiva retained the Ganga in his lock of hair.

  1. भगीरथः दुःखितः अभवत्। सः पुनः तपः कृतवान्। शिवः तस्य पुरतः प्रत्यक्षः अभवत्। “हे ईश! नदीं भूभौ विसृजतु” इति भगीरथः प्रार्थितवान्। तां प्रार्थनाम् अङ्गीकृत्य शिवः नद्याः जल भूमौ विसृष्टवान्। भगीरथः नदी भूमितः पातालं नीतवान्। पाताले प्रवहन्ती गङ्गा सगरपुत्राणां भस्मानि स्पृष्टवती। सगरपुत्राः स्वर्गलोक गतवन्तः।

इत्थं भगीरथस्य प्रयत्नाः अपूर्वाः। सः गङ्गां भूमौ आनीतवान्। अनेन कारणेन एव तस्याः नद्याः भागीरथी इति अन्यत् नाम अस्ति। प्रयत्नविषये उक्तञ्च-

प्रारभ्यते न खुल विध्नभयेन नीचैः, प्रारभ्य विधनविहता विरमन्ति मध्याः। विप्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः, प्रारभ्यचोत्तमजनाः न परित्यजन्ति॥

शब्दार्थाः :
प्रत्यक्ष-देह रूप में प्रगट-appeared in person; विसृजतु-भेजो/ विसर्जित करो-release; विसृष्टवान्-भेजा विसर्जित किया।-sent, released.

अनुवाद :
भगीरथ दुखी हो गया। उसने फिर तप किया। शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। “हे प्रभु!” नदी को भूमि पर भेजो” भगीरथ ने प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर शिव ने नदी का जल भूमि पर भेज दिया। भगीरथ नदी को भूमि से पाताल ले गया। पाताल में बहती हुई गङ्गा ने सगरपुत्रों की भस्म को स्पर्श किया। सगरपुत्र स्वर्गलोक को चले गये।

इस प्रकार भगीरथ के प्रयत्न अपूर्व विलक्षण थे। वह गङ्गा को भूपि पर लाया। इस कारण ही नदी का ‘भागीरथी’ दूसरा नाम है। प्रयत्न के विषय में कहा भी है

“नीच लोग विध्नों के भय से कार्य को प्रारम्भ नहीं करते। मध्यम लोग प्रारम्भ कर विध्न आने पर बीच में छोड़ देते हैं। परन्तु उत्तम लोग बार-बार विध्न पड़ने पर परेशान होकर भी प्रारम्भ करके कार्य को नहीं छोड़ते अर्थात् पूरा करते हैं।”

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