MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 14 सहनशीलता

MP Board Class 6th Hindi Book Solutions सुगम भारती Chapter -14 सहनशीलता NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 14 सहनशीलता

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. (क) सही जोड़ी बनाइए

  1. दीप्ति – (क) व्याघ्र
  2. सहन – (ख) विनय.
  3. नर – (ग) हीन
  4. दंत – (घ) शीलता
    उत्तर
  5. (ख), 2. (घ), 3. (क), 4. (ग)

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प्रश्न (ख)
दिए गए विकल्पों में से उपयुक्त विकल्प चुनकर रिक्त स्थान भरिए- .

  1. नर व्याघ्र……को कहा गया है। (युधिष्ठर दुर्योधन)
  2. रामचन्द्र सिंधु के किनारे…..तक पथ माँगते रहे। (तीन दिवस/पाँच दिवस)
  3. उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के…….से। (शर/बल)
  4. क्षमा शोमती उस भुजंग को जिसके पास….. हो। (अभिय/गरल)
    उत्तर
  5. दुर्योधन, 2. तीन दिवस, 3. शर, 4. गरल।

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Chapter 14 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए

(क) कौरवों ने कायर किसको समझा?
उत्तर
कौरवों ने पांडवों को कायर समझा।

(ख) क्षमा किसे शोभती है?
उत्तर
क्षमा उसे शोभती है जिसके पास दम है, ताकत है, साहस है।

(ग) सिंधु से रास्ता किसने माँगा?
उत्तर
सिंधु से रास्ता राम ने माँगा।

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(घ) इस कविता में ‘सुयोधन’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर
इस कविता में ‘सुयोधन का संबोधन दुर्योधन के लिए किया गया है।

(ङ) किन गुणों को सारा जग पूजता है?
उत्तर
सहनशीलता, क्षमा और दया, तप और त्याग जैसे गुणों को सारा जग पूजता है।

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन से पाँच वाक्यों में दीजिए

(क) ‘नर व्याघ्र’ का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर
कवि ने ‘नर व्याघ्र’ का प्रयोग सुयोधन (दुर्योधन) के लिए किया है। वह आदमी होकर भी जानवर जैसा वर्ताव कर रहा था। उसमें मानवता नाम की कोई चीज नहीं थी इसीलिए कवि ने ‘नर व्याघ्र’ का प्रयोग किया है।

(ख) सागर किसके चरणों में आ गिरा और क्यों?
उत्तर
सागर राम के चरणों में आ गिरा क्योंकि वह राम के क्रोध को देखकर डर गया। उसे लगा कि राम अपने बाणों से उसे जलाकर भस्म कर देंगे।

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(ग) ‘क्षमा शोमती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
उपरोक्त पंक्ति का शाब्दिक अर्थ है-विष वाला सांप अगर आपको नहीं काटता है, तो इसका मतलब है कि उसने आप पर उपकार किया। अर्थात् क्षमा उस व्यक्ति को शोभा देता है जो वीर है, ताकतवर है और कर्तव्यनिष्ठ है।

(घ) ‘सच पूछो तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर
उपरोक्त पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाह रहा है कि वाणों में विनय का तेज भी निहित होता है। उसी के साथ कोई संधि चाहता है। उसी को लोग पूजते हैं और अंत में जीत भी उसी की होती है।

(ङ)
कवि इस कविता के माध्यम से क्या सन्देश देना चाहता
उत्तर
क्षमा किसी सुपात्र को शोभा देता है। आप यदि किसी दुर्जन को क्षमा करते हैं तो वह आपको कमजोर समझेगा। क्षमा देने का अधिकार केवल सक्षम और शक्तिशाली को होता है। कमजोर क्या किसी को क्षमा करेगा।

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भाषा की बात

प्रश्न 4.
शुद्ध उच्चारण कीजिए
क्षमा, व्याघ्र, क्षमाशील, समक्ष, पौरुष, दीप्ति, संपूज्य

उत्तर
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 5.
शुद्ध वर्तनी पर गोला लगाइए
सहारा, साहरा, साहारा
शोमति, शीमीति, शोमती
वनीत, विनीत, वीनीत
दिपिती, दीप्ति, दीपती

उत्तर

सहारा, साहरा, साहारा
शोमति, शोमीति, शोमती
वनीत, विनीत, वीनीत
दिपिती, दीप्ति, दीपती

प्रश्न 6.
‘सहनशील’ शब्द में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर ‘सहनशीलता’ शब्द बना है। इसी प्रकार के अन्य शब्द बनाइए
उत्तर
सफल – सफलता
धीर – धीरता
वीर – वीरता
अधीर – अधीरता
व्याकुल – याकुलता
सरल – मरलता
मधुर – मधुरता

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों में से अनुस्वार एवं अनुनासिकता वाले शब्दों को छांटिए
कहाँ, “भुजंग, दंतहीन, माँगना, सिंधु, बंधा, बंधन, संपूज्य, आँच, प्रशंसा, आँख, चाँद, कलाएँ, तुरंत।

उत्तर
अनुस्वर वाले शब्द-भुजंग, दंतहीन, सिंधु, बंधन, संपूज्य, प्रशंसा, तुरंत
अनुनासिकता वाले शब्द-कहाँ, माँगना, बंधा, आँच, आँख, चाँद, कलाएँ ।

प्रश्न 8.
दिए गए शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
भुजंग, गरल, दर्प, पथ, शर, नर

उत्तर
सांप, विष, घमंड, रास्ता, बाण, पुरुष।

प्रश्न 9.
दिए गए शब्दों में से विलोम शब्दों की जोड़ी बनाइए
सरल, दयालु, चरण, कठिन, दुष्ट, दासता, आजादी, शीश

उत्तर
सरल- कठिन
दयालु – दुष्ट
चरण – शीश
दासता – आजादी

सहनशीलता प्रसंग सहित व्याख्या

  1. क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
    सबका लिया सहारा
    पर नर-व्याघ्र, सुयोधन तुमसे
    कहो, कहाँ, कब हारा?

शब्दार्थ-मनोबल= मन की शक्ति। सहारा =मदद। सुयोध = दुर्योधन।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक सुगम भारती-6 में संकलित कविता ‘सहनशीलता’ से ली गई हैं। इसके कवि हैं-रामधारी सिंह दिनकर’। कवि ने महाभारत के प्रसंग को लेकर युधिष्ठिर की सहनशीलता का परिचय दिया है। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि तुमने तो हमेशा ही क्षमा, दया, तप, त्याग और मनोबल का सहारा लिया किंतु सुयोधन (दुर्योधन) पर उसका कोई असर नहीं पड़ा।

उसने कभी तुम्हारे सामने हार नहीं मानी। अतः तुम्हें उसके सामने अपनी शक्ति दिखानी पड़ेगी। अपने शत्रु के आगे विनयशील बनमे से अच्छा है उसे अपनी ताकत दिखाओ। इस प्रकार इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने सहनशीलता की प्रशंसा तो की ही है, लेकिन कभी-कभी -उसके साथ पौरुष बल दिखाने की भी आवश्यकता पड़ती है।

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  1. क्षमा शोभती उस भुजंग को,
    जिसके पास गरल हो।
    उसको क्या, जो दंतहीन,
    विषरहित, विनीत, सरल हो।

शब्दार्थ-शोभती = शोभा देना। भुजंग = सांप । गरल= विष । दंतहीन = बिना दाँत का। विनीत = सरल सज्जन।

प्रसंग-पूर्ववत्

व्याख्या-महाभारत के प्रसंग को लेकर युधिष्ठिर की सहनशीलता का परिचय दिया गया है। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि तुमने हमेशा से ही क्षमा, दया, तप आदि का सहारा लिया है, लेकिन सुयोधन (हुर्योधन) पर उनका कोई असर नहीं हुआ है। तुम अपने दुश्मन के आगे क्षमाशील बने रहे और वह तुम्हें कायर समझता रहा। क्षमा दरअसल उसी को शोभा देती है जो शक्तिशाली है। जो स्वयं कमजोर है, वह किसी को क्या क्षमा दे सकता है।

श्रीकृष्ण एक उदाहरण द्वारा इसकी पुष्टि करते हैं। वे कहते हैं कि विष वाला सर्प अगर तुम्हें छोड़ दे अर्थात् काटे नहीं तब हम कह सकते हैं कि उसने तुम पर कृपा की। लेकिन जो सांप विषहीन और दंतहीन है, उसकी क्षमा के लिए कोई मोहताज नहीं होता।

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  1. सिंधु देह धर, त्राहि-त्राहि’
    करता आ गिरा शरण में।
    चरण पूज, दासता ग्रहण की,
    बंधा मूढ़ बंधन में।

शब्दार्थ-देह=शरीर । त्राहि-त्राहि=बचाओ-बचाओ। | दासता=गुलामी। मूद्र=मूर्ख।

प्रसंग-पूर्ववत्

राम तीन दिनों तक समुद्र की पूजा कर उससे रास्ता देने के लिए आग्रह करते रहे। लेकिन समुद्र अनसुनी करता रहा। आखिरकार राम की सहनशीलता खत्म हो गई। वे क्रोधित हो उठे। जब क्रोध में आकर उन्होंने समुद्र को जला देने के लिए अपना धनुष उठाया, तब वही समुद्र ‘त्राहि-त्राहि’ करते हुए राम के चरणों में गिर |पड़ा। उसने सदा के लिए राम की दासता स्वीकार कर ली। इसलिए श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाते हुए कहा |कि उसे भी अब सहनशीलता छोड़नी चाहिए और अपने शत्रु के सामने अपना असली रूप दिखाना चाहिए।

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