MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 13 चतुरः वानरः

MP Board Class 6th Sanskrit Book Solutions संस्कृत सुरभिः Chapter 13 चतुरः वानरः- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 13 चतुरः वानरः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) जम्बूवृक्षेः कुत्र आसीत्? (जामुन का वृक्ष कहाँ था?)

उत्तर:
नदीतीरे (नदी के किनारे)

(ख) कः प्रतिदिनं जम्बूफलानि खादति स्म? (प्रतिदिन कौन जामुन के फल खाया करता था?)
उत्तर:
वानरः (बन्दर)

(ग) वानरस्य मित्रं कः आसीत्? (बन्दर का मित्र कौन था?)
उत्तर:
मकरः (मगरमच्छ)

(घ) का वानरस्य हृदयं खादितम् इच्छति? (बन्दर के हृदय को कौन खाना चाहती थी?)
उत्तर:
मकरस्य पत्नी (मगरमच्छ की पत्नी)।

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प्रश्न 2.
कवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) वानरः कस्मै जम्बूफलानि ददाति स्म? (बन्दर किसे जामुन के फल दिया करता था?)

उत्तर:
वानरः मकराय जम्बूफलानि ददाति स्म। (बन्दर मगरमच्छ को जामुन के फल दिया करता था।)

(ख) मकरः कस्यै जम्बूफलानि अयच्छत्? (मगरमच्छ किसको जामुन के फल देता था?)
उत्तर:
मकरः स्वपत्न्यै जम्बूफलानि अयच्छत्। (मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को जामुन के फल दिये।)

(ग) वानरः कीदृशानि फलानि खादति स्म? (बन्दर कैसे फल खाया करता था?)
उत्तर:
वानरः मधुराणि फलानि खादति स्म। (बन्दर मीठे फल खाया करता था।)

(घ) नद्याः मध्ये मकरः वानरं किम् अवदत्? (नदी के बीच मगरमच्छ ने बन्दर को क्या बतलाया?)
उत्तर:
नद्याः मध्ये मकरः वानरं अवदत्, “मम पत्नी तव हृदयं खादितुं इच्छति।” (नदी के बीच मगरमच्छ ने बन्दर को बतलाया, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है।”)

प्रश्न 3.
रिक्तस्थानानि पूरयत (खाली स्थानों को भरो)
(क) शुष्कं पत्रं (1) ………… (2) ………..
(ख) रक्तं कमलं (3) ………. (4) …………
(ग) निर्मलं हृदयं (5) ………. (6) ………..
(घ) स्वस्थं शरीरं (7) ………… (8) ……….
(ङ) सुन्दरं गृहम् (9) ………… (10) ………..
उत्तर:

शुष्के पत्रे
शुष्कानि पत्राणि।
रक्ते कमले
रक्तानि कमलानि।
निर्मले हृदये
निर्मलानि हृदयानि
स्वस्थ शरीरे
स्वस्थानि शरीराणि।
सुन्दरे गृहे
सुन्दराणि गृहाणि ।
प्रश्न 4.
ध्यानेन वाक्यं पठित्वा पुनः लिखत (ध्यान से वाक्य को पढ़कर फिर से लिखो)
(क) निखिलः गृहं अगच्छत्।
(ख) रामः वने अवसत्।
(ग) पिता पुत्रं अवदत्।
(घ) सा उच्चैः अहसत्।
उत्तर:
(क) निखिलः गृहं गच्छति स्म।
(ख) रामः वने वसति स्म।
(ग) पिता पुत्रं वदति स्म।
(घ) सा उच्चैः हसति स्म।

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प्रश्न 5.
उदाहरणम् अनुसृत्य लिखत (उदाहरण के अनुसार लिखो)
यथा-खाद् + क्त्वा = खादित्वा
मकरः जम्बूफलानि खादित्वा प्रसन्नः अभवत्।
(क) बालकः विद्यालयं ……… पाठं पठति। गम् + क्त्वा
(ख) बालिका उच्चैः ……….. वदति। हस् + क्त्वा
(ग) वानरः वृक्षे ………. तिष्ठति। कूर्द + क्त्वा
(घ) बालकः पाठं ………. खेलति। पठ् + क्त्वा
उत्तर:
(क) बालक: विद्यालयं गत्वा पाठं पठति।
(ख) बालिका उच्चैः हँसित्वा वदति।
(ग) वानरः वृक्षे कूर्दित्वा तिष्ठति।
(घ) बालकः पाठं पठित्वा खेलति।

प्रश्न 6.
उचितक्रियापदं योजयत (उचित क्रियापद से जोड़ो)
(क) त्वं कुत्र ………..। (गमिष्यसि/गमिष्यति)
(ख) अहं पत्रं ………..। (लेखिष्यामि/लेखिष्यन्ति)
(ग) वयं पुष्पाणि …………। (आनेष्यन्ति/आनेष्यामः)
(घ) यूयं कदा ………..। (वदिष्यसि/वदिष्यथ)
(ङ) सः फलं ………….। (खादिष्यति/आगमिष्यति)
(च) ते उच्चैः …………। (हसिष्यावः/हसिष्यन्ति)
(छ) किं युवा भोपालनगरे ………..? (वसिष्यथ:/वसिष्यथ)
(ज) आवां पाठं …………..। (पठिष्यावः/पठिष्यथ:)
(झ) तौ विद्यालयं …………..। (आगमिष्यतः/आगमिष्यन्ति)
उत्तर:
(क) गमिष्यसि
(ख) लेखिष्यामि
(ग) आनेष्यामः
(घ) वदिष्यथ
(ङ) खादिष्यति
(च) हसिष्यन्ति
(छ) वसिष्यथः
(ज) पठिष्यावः
(झ) आगमिष्यतः।

योग्यताविस्तारः

कथां आधृत्य क्रमानुसारं पुनः लिखत (कथा के आधार पर क्रमानुसार पुनः लिखो)
(क) त्वं तु जले वससि, कथम् अहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।
(ख) परं सा दृढनिश्चया आसीत्।
(ग) एकस्मिन् नदीतीरे एकः जम्बूवृक्षः आसीत्।
(घ) अद्य त्वं मम गृहमागच्छ।।
(ङ) रे मित्र! मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे निहितम्।
(च) तस्मिन् एकः वानरः प्रतिवसति स्म।
(छ) इतः परं त्वया सह मम मैत्री समाप्ता।
(ज) त्वं मूर्खः असि।
(झ) कश्चित् मकरः तस्य मित्रम् आसीत्।
उत्तर:
(ग) → (च) → (झ) → (ख) → (घ) → (क) → (ङ) → (ज) → (छ)।

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चतुरः वानरः हिन्दी अनुवाद

एकस्मिन् नदीतीरे एकः जम्बूवृक्षः आसीत्। तस्मिन् एकः वानरः प्रतिवसति स्म। सः नित्यं जम्बूफलानि खादति स्म। कश्चित् मकरः तस्य मित्रम् आसीत्। सः वानरः प्रतिदिनं तस्मै जम्बूफलानि ददाति स्म। अतः सः मकरः तस्य वानरस्य प्रिय मित्रम् अभवत्।

अनुवाद :
एक नदी के किनारे एक जामुन का पेड़ था। उस पर एक वानर रहा करता था। वह प्रतिदिन जामुन के फल खाया करता था। कोई मगरमच्छ उसका मित्र था। वह बन्दर प्रतिदिन उसको जामुन के फल दिया करता था। अत: वह मगरमच्छ उस बन्दर का प्रिय मित्र बन गया।

एकदा मकरः कानिचित् जम्बूफलानि स्वपत्न्यै अयच्छत्। तानि खादित्वा तस्य पत्नी अचिन्तयत्, “अहो! सः वानरः प्रतिदिनं मधुराणि जम्बूफलानि खादति। अतः नूनं तस्य हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति” इति। सा स्वपतिम् अवदत्, “भो प्रतिदिनं मधुराणि जम्बूफलानि खादित्वा त्वं वानरमित्रस्य हृदयं कियत् मधुरं स्यात्? तस्य हृदयं खादित्वा मम हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति। तत् यदि माम् जीवितां दुष्टम् इच्छसि तर्हि आनय शीघ्रं तस्य वानरस्य हृदयम्।”

मकरः स्वपत्नी बहुविधैः निवारितवान्। परं सा दृढ़निश्चया आसीत्। विवशः मकरः स्वमित्रं वानरं प्रति गत्वा अवदत, “मित्र प्रतिदिनम् अहम् एव अन्नं आगच्छामि। अद्य त्वं मम गृहमागच्छ।”

वानरः प्रत्युवाच, “त्वं तु जले वससि, कथम् अहं तत्र गन्तुं शक्नोमि?”

अनुवाद :
एक दिन मगरमच्छ ने कुछ जामुन के फल अपनी पत्नी को दिये। उन्हें खाकर उसकी पत्नी ने सोचा, “अहो! वह बन्दर प्रतिदिन मीठे जामुन के फल खाता है। अतः अवश्य ही उसका हृदय भी अति मधुर होगा।” वह अपने पति से बोली, “अरे, प्रतिदिन मधुर जामुन के फल खाकर आपके वानर-मित्र का हृदय कितना मधुर होगा ? उसके हृदय को खाकर मेरा हृदय भी अति मधुर हो जायेगा। इसलिए यदि मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो शीघ्र ही उस बन्दर के हृदय को लाओ।”

मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अनेक प्रकार से रोका (इन्कार किया) परन्तु वह पक्के निश्चय वाली थी। विवश हुआ मगरमच्छ अपने मित्र बन्दर के पास जाकर बोला, “हे मित्र, प्रतिदिन मैं ही यहाँ आया करता हूँ। आज तुम मेरे घर आओ।”

बन्दर ने उत्तर दिया, “तुम तो जल में रहते हो, मैं वहाँ किस तरह जा सकता हूँ?”

मकरः अवदत्, “अलं चिन्तया। त्वं मम पृष्ठोपरि उपविश। अहं त्वां नेष्यामि।”

यदा तौ नद्याः मध्यभागे स्थितौ तदा मकरः वानरम् अवदत्, “मम पत्नी तव हृदयं खादितुंइच्छति। अतः त्वां मम गृहं नयामि।”

मकरस्य वचनेन वानरः भीतः। किन्तुः चतुरः वानरः शीघ्रम् अवदत्, “रे मित्र! मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे निहितम्। अतः त्वं शीघ्र मां तत्र नय। अहं प्रमुदितमना मम हृदयं तुभ्यं दास्यामि। मकरः वानरं पुनः तास्यावासं आनीतवान्। चतुरः वानरः शीघ्रं कूर्दित्वा वृक्षोपरि आरुहत्।”

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अनुवाद :
मगरमच्छ बोला, “चिन्ता मत करो। तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”

जब वे दोनों नदी के मध्य भाग ठहर गये, तब मगरमच्छ बन्दर से बोला, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है। अतः तुमको घर ले चलता हूँ।”

मगरमच्छ के वचन से बन्दर भयभीत हो गया। किन्तु चतुर बन्दर शीघ्र बोला, “अरे मित्र ! मेरा हृदय तो वृक्ष के कोटर में रखा हुआ है। अतः तुम शीघ्र मुझे वहाँ ले चलो। मैं प्रसन्न मन से अपने हृदय को तुम्हें दे दूंगा। मगरमच्छ बन्दर को फिर से उसके निवास पर लेकर आया। चतुर बन्दर शीघ्र ही कूदकर वृक्ष के ऊपर चढ़ गया।”

वानरः उच्चैः हसित्वा मकरम् अवदत्, “रे मूर्ख! किं हृदयं कदापि शरीरात् पृथक् भवति? त्वं मूर्खः असि। इति परं त्वया सह मम मैत्री समाप्ता।”

इति उक्त्वा वानरः पुनः मधुराणि जम्बूफलानि अभक्षयत्।

“विश्वासो हि ययोर्मध्ये तयोर्मध्येऽस्ति सौहृदम्।
यस्मिन्नवास्ति विश्वासः तस्मिन् मैत्री क्व सम्भवा॥”

अनुवाद :
बन्दर ऊँचे स्वर में हँसकर मगरमच्छ से बोला, “अरे मूर्ख! क्या हृदय कभी शरीर से अलग होता है? तुम मूर्ख हो। इससे आगे तुम्हारे साथ मेरी मित्रता समाप्त हो गई।”

ऐसा कहकर, बन्दर ने फिर मधुर (मीठे) जामुन के फल खाये।

“जिनके मध्य विश्वास है, उनके साथ ही मित्रता होती है। जिसमें विश्वास नहीं होता है, वहाँ (उसमें) मित्रता कैसे सम्भव है।”

चतुरः वानरः शब्दार्थाः

जम्बूवृक्षः = जामुन का पेड़। प्रतिवसति स्म = रहता था। कानिचित् = कुछ। खादित्वा = खाकर। चिन्तयित्वा = सोचकर। कियत् = कितना। स्यात् = होना चाहिए। तर्हि = तो। आनय = लाओ। बहुविधैः = अनेक प्रकार से। निवारितवान् = रोका। अद्य = आज। प्रत्युवाच = उत्तर दिया। शक्नोमि= सकता हूँ। अलं चिन्तया = चिन्ता मत करो। नेष्यामि = ले जाऊँगा। नद्याः = नदी के। खादितुम् इच्छति = खाने के लिए इच्छा करती है/करता है। कोटरे = खोखले में। प्रमुदितमना = प्रसन्न मन से। आरुहत् = चढ़ गया। इतः परम् = इसके बाद। अभक्षयत् = खाए। सौहृदम् = मित्रता। कूर्दित्वा = कूदकर। कश्चित = कोई। निहितम् = रखा है। नूनं = निश्चित। दृष्टुम् = देखना।

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