MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 7 नीति के दोहे

MP Board Class 7th Hindi Book Solutions हिंदी Chapter-7 नीति के दोहे NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 7 नीति के दोहे

प्रश्न 1. निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(क) कवि के अनुसार अति कहाँ-कहाँ वर्जित है ?

उत्तर
कवि के अनुसार अति हर जगह वर्जित है।

(ख) कबीर के अनुसार निन्दक को निकट रखने से क्या लाभ हैं?
उत्तर
कबीर के अनुसार निन्दक को पास रखने से हमारे सभी दोष दूर हो जाते हैं।

(ग) ‘एकै साधे सब सधे से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
‘एकै साधे सब सधे’ से तात्पर्य है कि किसी एक की मानने से सभी मन जाते हैं अर्थात् किसी आधार को साधकर रखने से सभी आधार स्वयं ही सध जाते हैं।

(घ) कवि तुलसीदास ने ‘काया’ और ‘मन’ की तुलना किससे की है?
उत्तर
कवि तुलसीदास ने ‘काया’ की तुलना खेत से और ‘मन’ की तुलना किसान से की है ?

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(ङ) ‘संत हंस गुन गहहि पय’ से कवि का क्या आशय
उत्तर
उपर्युक्त सुक्ति में कवि यह बताना चाहता है कि संत उस हंस के समान है जो जल (दोष) को छोड़कर दूध (गुण) को ग्रहण कर लेता है।

(च) कवि वृन्द ने सज्जन पुरुष के स्वभाव की क्या विशेषता बताई है ?
उत्तर
कवि वृन्द के अनुसार सज्जन पुरुष कभी भी, किन्हीं भी परिस्थितियों में अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करते

(छ) भरपूर वर्षा कब होती है?
उत्तर
जब कलसे (कलश) का पानी गर्म हो, चिड़िया धूल में नहाए तथा चींटी अण्डा लेकर चले तो भरपूर वर्षा होने की सम्भावना होती है।

(ज) चने की अच्छी खेती किस प्रकार की मिट्टी में होती है ?
उत्तर
चने की अच्छी खेती ढेलेदार मिट्टी में होती है।

प्रश्न 2. नीचे लिखे चार-चार विकल्पों में से सही विकल्प को छाँटकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
(क) कवि के अनुसार कुल्हाड़ी को ……. सुगन्धित करता है।

(1) फूल
(2) चन्दन
(3) हवा
(4) भौरा।
उत्तर
(2) चन्दन

(ख) रहिमन ……. कब कहै, लाख टका मेरो मोल।
(1) चाँदी
(2) लोहा
(3) सोना
(4) हीरा।
उत्तर
(4) हीरा।

(ग) तुलसीदास ने सन्त को….. के समान कहा है।
(1) कौआ
(2) हंस
(3) बगुला
(4) कोयल।
उत्तर
(2) हंस

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(घ) कवि के अनुसार …….. बिना साबुन के स्वभाव को साफ करता है।
(1) रिश्तेदार
(2) पड़ोसी
(3) मित्र
(4) निंदक।
उत्तर
(4) निंदक

(ङ) घाघ और भड्डरी की कहावतों के अनुसार धूल में ………. नहाती है।
(1) चिड़िया
(2) मोरनी
(3) कोयल
(4) मुर्गी।
उत्तर
(1) चिड़िया

(च) गेहूँ की अच्छी खेती ……… होती है।
(1) पीली मिट्टी में
(2) काली मिट्टी में
(3) ढेले वाली मिट्टी में
(4) मैदे के समान बारीक मिट्टी में।
उत्तर
(4) मैदे के समान बारीक मिट्टी में।

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प्रश्न 3.
निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय।
बोया पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ से खाय॥

(ख) करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात तें, सिल पर परत निसान।

उत्तर
‘परीक्षोपयोगी पद्यांशों की व्याख्या’ नामक शीर्षक देखें।

प्रश्न 4. निम्नांकित भावों के लिए दोहों में से उचित पंक्ति छाँटकर लिखिए
(क) महान पुरुष अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते।

उत्तर
बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलें बोल॥

(ख) अधिक बोलना व अधिक चुप रहना अच्छा नहीं होता।
उत्तर
अति का भला न बोलना अति की भली न चूप॥

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
पछताय, सुभाय, चूप, काज, पोहिये, मोल, आस, नास, पौन, रसरी, निसान, सजनता, बरखा, घर, खेत।

उत्तर
शब्द
MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 7 नीति के दोहे 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के दो-दो पर्यायवाची शब्द लखिए
पेड़, पवन, पानी, सरोवर, फूल, नदी, पक्षी।

उत्तर
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के सामने दिए गए उनके अर्थ मिलाइए
MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 7 नीति के दोहे 3
उत्तर
(1)→ (घ), (2)→ (ङ), (3)→ (क), (4)→ (ख), (5)→ (ग)

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नीति के दोहे कबीर

  1. ह ऐसा संसार है, जैसा सेमल फूल।
    दिन दस के ब्यौहार को, झूठे रंगि न भूल॥

शब्दार्थ-व्यौहार = व्यवहार; रंगि = रंग।

सन्दर्भ-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के ‘नीति के दोहे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीर हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कबीर ने मनुष्य को नाशवान संसार से सावधान किया है।

व्याख्या-कबीर मनुष्य को समझाते हुए कहते हैं कि यह संसार सेमल के फूल के समान क्षणिक है। जिस प्रकार सेमल का फूल देखने में तो सुन्दर लगता है, किन्तु सारहीन होता है, शीघ्र ही नष्ट हो जाता है; उसी प्रकार यह संसार सुहावना लगता है, किन्तु उसका यह आकर्षक रूप क्षणिक है। इसलिए मनुष्य को संसार के थोड़े दिन के इस चमत्कार की चकाचौंध के भ्रम से बचना चाहिए।

  1. करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय।
    बोया पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ से खाय।।

शब्दार्थ-पछताय- पछताना; अम्ब-आम। सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कबीर ने करने से पूर्व सोचने के लिए कहा है।

व्याख्या-कबीर कहते हैं कि मनुष्य को किसी के प्रति कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए। गलत काम करने पर प्राप्त परिणाम को देखकर बाद में पछताना मूर्खता है। वे कहते हैं कि यदि तुम कड़वा बबूल बोओगे तो बदले में कड़वा फल ही पैदा होगा। आम की कल्पना अथवा उम्मीद भी करना बेमानी है। अर्थात् प्रत्येक मनुष्य अपनी करनी के अनुसार ही फल प्राप्त करता है।

  1. निन्दक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय।
    बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय॥

शब्दार्थ-निन्दक- निन्दा करने वाला; नियरे = पास में; कुटी = कुटिया; निर्मल = साफ, स्वच्छ; सुभाय = स्वभाव।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में निन्दा करने वाले को मित्र बनाने की बात कही गई है।

व्याख्या-कबीर कहते हैं कि मनुष्य को सदैव अपनी निन्दा करने वाले का स्वागत करना चाहिए और उसे अपने पास रखना चाहिए। वास्तव में, निन्दा करने वाला व्यक्ति बिना पानी और साबुन के तुम्हारे व्यवहार में से तुम्हारे दोषों को दूर कर तुम्हारे स्वभाव को स्वच्छ और कोमल बना सकता है।

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  1. ति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
    अति का भला न बोलना, अति की भली न चू
    प।

शब्दार्थ-अति = अधिक; चूप = चुप।। सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कबीर ने किसी भी चीज की अति को गलत बताया है।

व्याख्या-कबीर कहते हैं कि मनुष्य को सामान्य एवं सन्तुलित व्यवहार करना चाहिए। जिस प्रकार पानी की आवश्यकता प्रत्येक जीवधारी को होती है, किन्तु आवश्यकता से अधिक अथवा अत्यधिक वर्षा से प्रलयकारी बाढ़ आ जाती है, जरूरत से ज्यादा धूप भी मनुष्य और पेड़-पौधों को झुलसाने लगती है, ज्यादा बोलना भी मूर्खता की निशानी माना जाता है तथा समय पर न बोलना अर्थात् अत्यधिक चुप्पी भी नुकसानदेह होती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य को किसी भी कार्य में ‘अति’ से बचना चाहिए।

नीति के दोहे रहीम

  1. रुवर फल नहीं खात हैं, सरवर पियहिन पान।
    कहि रहीम परकाज हित, सम्पत्ति संचहि सुजान।॥

शब्दार्थ-तरुवर = वृक्ष; सरवर = तालाब; पान = जल; परकाज-दूसरों का कार्य संचहि- इकट्ठा करना।

सन्दर्भ-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के ‘नीति के दोहे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रहीम हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में रहीम ने सज्जन पुरुषों की तुलना । वृक्ष व तालाब से की है।

व्याख्या-रहीम कहते हैं कि असंख्य मीठे व सरस फलों से लदे वृक्ष अपने फल को स्वयं नहीं खाते हैं और न ही अथाह जल को स्वयं में समेटे तालाब अपना पानी स्वयं पीता है। वे सदैव औरों का ही भला करते हैं। ठीक उसी प्रकार, सज्जन लोग दूसरों के कार्यों को पूरा करने के लिए अर्थात् परोपकार हेतु धन एकत्रित करते हैं।

  1. कै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
    रहिमन मूलहिं सीचिबो फूले फलै अघाय॥

शब्दार्थ-मूलहिं – जड़ को; सींचिबो = सींचना।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में रहीम ने ‘मूल’ की महत्ता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या-रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष के मात्र एक स्थान-मूल (जड़) को सींचने से पूरा पेड़ फलता-फूलता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य को किसी एक मूल (आधार) को साधना चाहिए। एक मूल के साधने पर सब अपने आप ही सध जाते हैं अर्थात् सब कुछ प्राप्त हो जाता है। इसके विपरीत सबको साधने की हालत में सब कुछ चला जाता है अर्थात् कोई भी कार्य नहीं बनता।

  1. बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलैं बोल।
    रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल

शब्दार्थ-बडाई प्रशंसा: टका-मद्रा। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। ।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में रहीम ने मनुष्य को बड़बोलेपन से बचने की सलाह दी है।

व्याख्या-रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार हीरा अमूल्य रल होते हुए भी अपने मूल्य का आकलन स्वयं नहीं करता, बल्कि सामान्य पत्थरों की भाँति पड़ा रहता है, ठीक उसी प्रकार महान् व्यक्ति भी कभी भी ऊँचे बोल नहीं बोलता और न ही स्वयं ही अपनी प्रशंसा में ऊँची-ऊँची बातें बनाता है।

नीति के दोहे तुलसीदास

  1. तुलसी काया खेत है, मनसा भयो किसान।
    पाप, पुण्य दोऊ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥

शब्दार्थ-काया = शरीर; दोऊ = दोनों।

सन्दर्थ-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा भारती’ के ‘नीति के दोहे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास ने ‘जैसा बोओगे वैसा काटोंगे’ कहावत पर बल दिया है।

व्याख्या-तुलसीदास जी कहते हैं कि मानव का शरीर किसान की उपजाऊ भूमि अर्थात् खेत के समान है तथा उसका मन स्वयं एक मेहनतकश किसान है। पाप और पुण्य दो बीज है जिन्हें अपने विवेक के अनुसार किसान को अपने खेत में बोना । है। यदि वह पाप का बीज बोयेगा तो प्राप्त होने वाली फसल
अनिष्टकारी होगी किन्तु यदि वह पुण्य के बीज अपने खेत में बोयेगा तो कड़े परिश्रम से प्राप्त फसल अत्यन्त शुभकारी होगी। अब यह मनुष्य के स्वयं के हाथ में है कि वह कैसा फल प्राप्त करना चाहता है।

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  1. मिथ्या माहुर सज्जनहि, खलहि गरल सम साँच।
    तुलसी छुअत पराइ ज्यों, पारद पावक आँच॥

शब्दार्थ-मिथ्या = असत्य; माहुर = विष, गरल = विष; पारद = पारा।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने सज्जन और दर्जन ‘ के स्वभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या-तुलसीदास जी कहते हैं कि सज्जन लोगों के लिए असत्य विष के समान है, जबकि दुर्जन व्यक्ति के लिए । सत्य विष के समान कष्टदायक है। ये दोनों इनके स्पर्श मात्र से ठीक वैसे ही दूर हो जाते हैं जिस प्रकार आग की ऊष्मा पाकर | पारा हो जाता है। कहने का ताल्पर्य यह है कि सज्जन से झूठ और
दुर्जन से सत्य सदैव दूर ही रहते हैं।

  1. जड़ चेतन गुन दोष मय, बिस्व कीन्ह करतार।
    संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि वारि विकार।

शब्दार्थ-गुन = गुण। पय = दूध।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने भगवान द्वारा रचित संसार को गुणों और दोषों से युक्त बताया है।

व्याख्या-तुलसीदास जी कहते हैं कि ईश्वर द्वारा रचित इस संसार में गुण और दोष समान रूप से व्याप्त हैं। यहाँ के जड़ और चेतन जीव गुणों और दोषों दोनों से युक्त हैं, परन्तु सज्जन – लोग हंस की तरह जलरूपी बुराई को छोड़कर, दूध (गुण) को ग्रहण कर लेते हैं।

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नीति के दोहे वृनीति के दोहे

  1. विद्या-धन उद्यम बिना, कहाँ जु पावै कौन।
    बिना डुलाए ना मिले, ज्यों पंखा को पौन॥

शब्दार्थ-उद्यम – परिश्रम; पौन – पवन।

सन्दर्भ-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के ‘नीति के दोहे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर वृन्द हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में परिश्रम के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या-वृन्द कहते हैं कि जिस प्रकार गर्मी के समय में बिना पंखे को घुमाये (परिश्रम किए) उसकी हवा का आनन्द नहीं लिया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार विद्या रूपी धन को बिना परिश्रम किये प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अर्थात् प्रत्येक मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति हेतु अथक मेहनत करनी चाहिए।

  1. करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
    रंसरी आवत-जात तें, सिल पर परत निसान।।

शब्दार्थ-जड़मति = मूर्ख; सुजान = चतुर; रसरी = रस्सी; सिल- पत्थर।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कवि ने निरन्तर अभ्यास के चमत्कारिक परिणामों के बारे में बताया है।

व्याख्या-कविवर वृन्द कहते हैं कि जिस प्रकार मामूली रस्सी के कुएँ के पत्थर पर निरन्तर आने-जाने (ऊपर-नीचे होने) से पत्थर तक घिसने लगता है अर्थात् उस पर निशान पड़ जाते हैं, ठीक उसी प्रकार लगातार अभ्यास करने से मूर्ख से मूर्ख मनुष्य भी चतुर व गुणी बन सकता है। अतः मनुष्य को किसी भी कार्य में वांछित सफलता की प्राप्ति के लिए सतत् प्रयास और निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिए।

  1. सज्जन तजत न सजनता, कीन्हेषु दोष अपार।
    ज्यों चन्दन छेदै तऊ सुरभित करै कुठार॥

शब्दार्थ-तजत = छोड़ना; कुठार = कुल्हाड़ी।

सन्दर्भ- पूर्व की तरह।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कवि ने सज्जन लोगों के सज्जनता न छोड़ने के गुण का वर्णन किया है।

व्याख्या-कविवर वृन्द कहते हैं कि सज्जन लोग कभी भी अपनी सज्जनता नहीं त्यागते चाहे उनके प्रति कैसा भी कठोरतम् व्यवहार ही क्यूँ न किया जाए। ऐसे लोगों का स्वभाव चन्दन के उस वृक्ष के समान होता है जो उसको काटने वाली कुल्हाड़ी के दोषों को क्षमा करके उसे भी अपनी सुगन्ध से सुगन्धित कर देता है।

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नीति के दोहे घाघ और भड्डरी
(मौसम और कृषि सम्बन्धी कहावतें)

  1. कलसे पानी गरम हो, चिड़िया न्हावें धूर।
    अण्डा लै चींटी चले, तो बरखा भरपूर॥

शब्दार्थ-कलसे = पानी भरने का पात्र, कलशा; न्हावै – नहाना; धूर-धूल;, बरखा – वर्षा।

सन्दर्भ-प्रस्तुत कहावत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के ‘नीति के दोहे’ नामक पाठ से ली गई है। इसके रचयिता घाघ और भड्डरी हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को भौंपकर भविष्य के मौसम की सम्भावना को आंका जा सकता है।

व्याख्या-प्रस्तुत कहावत में कहा गया है कि जब कल्से का पानी गरम हो, चिड़िया धूल में नहाए और चीटी अण्डा लेकर चले तो भरपूर वर्षा होने की सम्भावना रहती है।

  1. मैदे गेहूँ, ढेले चना।

शब्दार्थ-ठेले – ढेलेदार मिट्टी।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-किस प्रकार की मिट्टी में कौन-सी फसल बोई जाए, इसका वर्णन अत्यन्त सरल शब्दों में किया गया है।

व्याख्या-इस कहावत में कहा गया है कि मैदे की तरह बारीक मिट्टी में गेहूँ और ढेलेदार मिट्टी में चने की फसल बोने से पैदावार अच्छी होती है।

नीति के दोहे शब्दकोश

मिथ्या = झूठा, असत्य; करि = करना; अति = अधिक, ज्यादा; निंदक = बुराई करने वाला; निर्मल = स्वच्छ, साफ; तरुवर = पेड़; सरवर = सरोवर, तालाब; पान = पीना, एक विशेष प्रकार का पत्ता या बेल; पर दूसरा, पंख; संचहि – इकट्ठा करना; पोहिए = पिरोना; सुजान = समझदार, सज्जन, सयाना; गरल = विष, जहर; वशीकरण = वश में करना; तज – त्यागना; पातक = पाप, अपराध; पौन = पवन, तीन-चौथाई; उद्यम = उद्योग, परिश्रम; डुलाए = झूला झुलाना; जड़मति = मूर्ख, बुद्धिहीन; सिल = पत्थर; सुरभित – सुगन्धित; कुठार = कुल्हाड़ी; वारि = जल; पय = दूध; गहहिं = ग्रहण करना।


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