MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 3 बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते

MP Board Class 7th Sanskrit Book Solutions संस्कृत सुरभिः Chapter 3 बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 3 बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते

प्रश्न 1.
प्रश्नों का एक शब्द में उत्तर लिखो
(क) सिंहस्य नाम किम् आसीत्? [सिंह का नाम क्या था ?]
उत्तर:
दुर्मुखः

(ख) सिंहः केषां वधं करोति स्म? [सिंह किनका वध किया करता था?]
उत्तर:
पशूनाम्

(ग) सर्वे पशवः कस्य समीपम् अगच्छन्? [सभी पशु किसके पास गये?]
उत्तर:
सिंहस्य

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(घ) सिंहः कूपस्य जले किम् अपश्यत्? [सिंह ने कुएँ के जल में क्या देखा था?]
उत्तर:
स्वप्रतिबिम्बम्

(ङ) अपरं सिंहं मत्वा दुर्मुखः किम् अकरोत्? [दूसरा सिंह मानकर दुर्मुख ने क्या किया?]
उत्तर:
गर्जनम्।

प्रश्न 2.
एक वाक्य में उत्तर लिखो
(क) कः पराक्रमशीलः भवति? [पराक्रमशील कौन होता है?]

उत्तर:
सिंहः पराक्रमशीलः भवति। [सिंह पराक्रमशील होता है।]

(ख) एकदा कस्य वारः समायातः? [एक दिन किसकी बारी आई?]
उत्तर:
एकदा शशकस्य वारः समायातः। [एक दिन खरगोश की बारी आई।]

(ग) शशकः सिंहं कुत्र अनयत्? [खरगोश सिंह को कहाँ ले गया?]
उत्तर:
शशकः सिंह कूपम् अनयत्। [खरगोश सिंह को कुएँ पर ले गया।]

(घ) सिंहः कया पीडितः आसीत्? [सिंह किससे पीड़ित था?]
उत्तर:
सिंहः क्षुधया पीडितः आसीत्। [सिंह भूख से पीड़ित था।]

(ङ) सिंहस्यं गर्जनस्य का भवति? [सिंह की गर्जना से क्या होता है?]
उत्तर:
सिंहस्य गर्जनस्य प्रतिध्वनिः भवति। [सिंह की गर्जना से प्रतिध्वनि होती है।]

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प्रश्न 3.
शुद्ध कथनों के सामने ‘आम् (हाँ)’ (और) अशुद्ध कथनों के सामने ‘न’ लिखो
(क) दुर्मुखः पशुनां वधं न करोति स्म।
(ख) एकः पशुः प्रतिदिनं क्रमेण सिंहस्य समीपं गच्छति स्म।
(ग) सिंह तु क्षुधया पीडितः आसीत्।
(घ) शशक: मार्गे वस्तुतः अपरं सिंहं न अपश्यत्।
(ङ) शशकः दुर्मुखं एकस्य गभीरस्य कूपस्य समीपम् अनयत्।
उत्तर:
(क) ‘न’
(ख) आम्
(ग) आम्
(घ) आम्
(ङ) आम्।

प्रश्न 4.
विलोम शब्दों को जोड़ो
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 3 बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते img 1
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (5)
(ग) → (1)
(घ) → (2)
(ङ) → (3)

प्रश्न 5.
अधोलिखित शब्दों का सन्धि विच्छेद करो
(क) सदैव
(ख) मृगेन्द्रः
(ग) बलेनैव
(घ) सूर्योदयः
(ङ) महौजस्वी
(च) यथोक्तम्
(छ) एकैकम्।
उत्तर:
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 3 बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते img 2
प्रश्न 6.
अधोलिखित शब्दों में सन्धि कीजिए
(क) देव + एकत्वम्
(ख) राजा + ईशः
(ग) बुध्या + एव
(घ) मद + उन्मत्तः
(ङ) जल + ओधः।
उत्तर:
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 3 बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते img 3

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प्रश्न 7.
कोष्ठक से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थानों को पूरा करो
(क) त्वं किमर्थं सर्वदा पशूनां वधं ………। (करोति/करोषि)
(ख) सः सिंहस्य समीपम् ……….. (अगच्छत्/अगच्छन्)
(ग) अहम् अधुना तस्य भोजनाय …………।
(गच्छति/गच्छामि) (घ) अस्मिन् कूपे सः सिंहः ………। (वसति/वसामि)
उत्तर:
(क) करोषि
(ख) अगच्छत्
(ग) गच्छामि
(घ) वसति।

बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते हिन्दी अनुवाद :

शिक्षकः :
छात्राः! कः पशुः सर्वश्रेष्ठः अस्ति?

रमेश: :
महोदय! सिंहः सर्वश्रेष्ठ अस्ति।

शिक्षकः :
कथम्?

अखिलेश: :
सिंहः पराक्रमशीलः भवति।

शिक्षकः :
शोभनम्, परन्तु बलेनैव कोऽपि सर्वश्रेष्ठः न, अपितु बुध्यैव श्रेष्ठः भवति।

हितेश: :
किं बलापेक्षया बुद्धिः महत्त्वपूर्णा भवति?

शिक्षकः :
आम्, यः बुद्धिमान् स एव बलवान् भवति।

राजेशः :
कथम् एवम्?

शिक्षकः :
शृणोतु

अनुवाद :
शिक्षक :
हे छात्रो! कौन-सा पशु सर्वश्रेष्ठ होता है?

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रमेश :
महोदय! शेर सर्वश्रेष्ठ होता है।

शिक्षक :
कैसे?

अखिलेश :
शेर पराक्रमी होता है।

शिक्षक :
बहुत सुन्दर, परन्तु बल से ही कोई भी सर्वश्रेष्ठ नहीं होता है, अपितु बुद्धि से ही श्रेष्ठ होता है।

हितेश :
क्या बल की अपेक्षा बुद्धि महत्त्वपूर्ण होती है?

शिक्षक :
हाँ, जो बुद्धिमान होता है, वही बलवान होता है।

राजेश :
ऐसा किस प्रकार है?

शिक्षक :
सुनो

एकस्मिन् पर्वते दुर्मुखः नाम महौजस्वी सिंह वसति स्म। सः च सदैव बहूनां पशूनां वधं करोति स्म। एकदा सर्वे पशवः सिंहस्य समीपम् अगच्छन् अवदन् च-मृगेन्द्र ! त्वं सदैव पशूनां वधं कथं करोषि? प्रसीद, वयं स्वयं तव भोजनाय प्रतिदिनम् एकैकं पशुं प्रेषयिष्यामः।

ततः सिंह अवदत्-यदि यूयम् एवम् इच्छथ तर्हि तथा कुर्वन्तु। तः प्रभृति एकः पशुः प्रतिदिनं क्रमेण सिंहस्य समीपं गच्छति स्म।

एकदा एकस्य शशकस्य वारः समायातः। सूर्योदयसमये सिंहस्य समीपंगच्छन् स्ः अचिन्तयत्-‘मम मरणंतु निश्चितम् एव, अतः मन्दगत्यैव गच्छामि।’ अनन्तरं स्वजीवनरक्षायै उपायं चिन्तयित्वा सः सिंहस्य समीपम् अगच्छत्।।

अनुवाद :
एक पर्वत पर दुर्मुख नामक महान ओजवान शेर रहा करता था और वह सदा ही बहुत से पशुओं का वध किया करता था। एक दिन सभी पशु शेर के पास गये और बोले-हे मृगराज ! आप सदा ही पशुओं का वध क्यों किया करते हो ? प्रसन्न हो जाइये, हम अपने आप ही आपके भोजन के लिए प्रतिदिन एक-एक पशु भेज दिया करेंगे।

इसके बाद शेर बोला-यदि तुम सब ऐसा चाहते हो तो वैसा ही करें। तब से लेकर एक पशु प्रतिदिन क्रम से (अपनी बारी से) सिंह के पास आ जाया करता था।

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एक दिन एक खरगोश की बारी आयी। सूर्य निकलने के समय शेर के पास जाते हुए उसने विचार किया-“मेरी मृत्यु तो निश्चित है ही, अतः (मैं) धीमी गति से ही चलता हूँ।” इसके बाद अपने जीवन की रक्षा के लिए उपाय पर विचार करके वह शेर के पास गया।

तत्र सिंहः तु क्षुधया पीडितः आसीत्। अतिक्रुद्धः सः शशकम् अपृच्छत्-त्वं बिलम्वेन कथं आगतवान्? शशकः सविनयम् अवदत्-राजन्! न मम दोषः! मार्गे अपरः सिंहः आसीत्। सः माम् अपश्यत् अवदत् च “अहम् अस्य वनस्य राजा, अहं त्वां भक्षयिष्यामि।” अहं तम् अवदम्-अस्य वनस्य राजा तु दुर्मख नाम सिंहः अस्तिः। सः अद्यैव मां भक्षयिष्यति। अहम् अधुना तस्यैव भोजनाय गच्छामि। अहं तु केनापि प्रकारेण तं वञ्चयित्वा भवतः समीपं आगतः। एतत् श्रुत्वा दुर्मुखः अतिक्रुद्ध अभवत्।

क्रोधोद्धतः दुर्मुखः अवदत्-हे शठ! कुत्र अस्ति सः अपरः सिंहः? तं सत्वरं मां दर्शय। शशकः सिंहम् एकस्य गभीरस्य कूपस्य समीपम् अनयत् अकथयत् च-स्वामिन् पश्यतु! अस्मिन् कूपे एव सः सिंह वसति।।

अनुवाद :
वहाँ शेर तो भूख से बहुत कष्ट पा रहा था। बहुत क्रोधित होकर उसने खरगोश से पूछा-तुम देर से क्यों आए हो? खरगोश विनयपूर्वक बोला-हे राजा! (इसमें) मेरा दोष नहीं है। मार्ग में दूसरा शेर था। उसने मुझे देखा और (वह) बोला-“मैं इस वन का राजा हूँ, मैं तुम्हें खाऊँगा।” मैं उससे बोला-इस वन का राजा तो दुर्मुख नाम का शेर है। वह आज ही मुझको खा लेगा। मैं अब उसके भोजन के लिए ही जा रहा हूँ। मैं तो उसे किसी भी प्रकार से ठग कर (धोखा देकर) आपके पास आया हूँ। इसे सुनकर दुर्मुख बहुत क्रोधित हुआ।

क्रोध से उत्तेजित होकर दुर्मुख बोला-हे दुष्ट। वह दूसरा शेर कहाँ है? मुझे उसको शीघ्र दिखाओ। खरगोश शेर को एक गहरे कुएँ के पास ले गया और बोला-हे स्वामी! देखिए। इसी कुएँ में वह शेर रहता है।

दुर्मुखः तस्य कूपस्य जले स्वप्रतिबिम्बं पश्यति। सः स्वप्रतिबिम्बम् एव अपरं सिंह मत्वा गर्जति। तस्य गर्जनस्य प्रतिध्वनिः भवति। अतः कूपे अपरः सिंह अस्ति इति विचिन्त्य सः कूपे कूर्दति मृत्युं च प्राप्नोति।

यथोक्तम्-
“बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।
पश्य सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः॥”

सर्वेशः :
अवगतम्, तदेव बलाद् बुद्धिः विशिष्यते। शिक्षकः-आम्, सत्यम्।

अनुवाद :
दुर्मुख उस कुएँ के जल में अपनी परछाईं देखता है। वह अपनी परछाईं को ही दूसरा शेर मानकर दहाड़ लगाता है। उसकी दहाड़ की प्रतिध्वनि होती है (उसकी दहाड़ की गूंज उठती है)। अतः कुएँ में, दूसरा शेर है, ऐसा सोचकर वह कुएँ में कूद पड़ता है और मृत्यु को प्राप्त होता है।

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जैसा कि कहा गया है-
“जिसके पास बुद्धि होती है, उसके पास ही बल होता है, बुद्धिहीन के पास बल कहाँ (होता है)? देखो, मद से मतवाला बना हुआ शेर खरगोश के द्वारा मार दिया गया।”

सर्वेश :
समझ में आ गया, इसीलिए तो बुद्धि बल से बढ़कर होती है।

शिक्षक :
हाँ, सत्य है।

बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते शब्दार्थाः

प्रसीद = प्रसन्न होओ। प्रेषयिष्यामः = भेजेंगे। अचिन्तयत् = सोचा। चिन्तयित्वा = सोचकर। शशकः = खरगोश। अपरः = दूसरा। अद्यैव = आज ही। अधुना = इस समय, अब। श्रुत्वा = सुनकर। सत्वरम् = शीघ्र। क्षुद्यया = भूख से। क्रोधोद्धत = क्रोध से उत्तेजित होकर। मत्वा = मानकर। वञ्चयित्वा = ठगकर। अपश्यत् = देखा। विचिन्त्य = सोचकर। निपातितः = गिराया गया। अनयत् = लाया। ततः प्रभृति = तब से लेकर (अब तक)। मदोन्मत्तः = मद से मतवाला।

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