MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 18 युद्ध-गीता

MP Board Class 8th Hindi Book Solutions हिंदी Chapter 18 युद्ध-गीता- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 18 युद्ध-गीता

युद्ध-गीता बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
निशाचर = राक्षस, रात्रि में विचरण करने वाले पताका = ध्वजा, झण्डी; जलद = बादल; समर = युद्ध; रेनु = धूल; घोर भयानक, डरावना; अकुलाइ व्याकुल होकर; मारु = एक विशेष राग जिसे युद्ध के मैदान में योद्धाओं में उत्साह पैदा करने के लिए बजाया जाता है; दशानन रावण; हौं- मैं. कराल = कठोर; बंद-समूह; बरन-वर्ण, रंग; जूथ-समूह; मरुत = हवा; सूर शूरवीर; सुमति = श्रेष्ठ बुद्धि; वसुधा= धरती, पृथ्वी; रव= शोर; गाजहि गरजते हैं; केहरिनाद = सिंहनाद: सुभट्टा = उत्तम वीर; भूप = राजा; मर्कट बन्दर; नाना-बान = अनेक तरह के बाण; संक- शंका या सन्देह; जान = सुन-समझकर; अधीरा- बेचैन; स्यंदन = रथ; दृढ़ = मजबूत, पक्का; घोरे = अश्व, घोड़े; कृपाना = तलवार; त्रोन = तरकस; रिपु = शत्रु; पदकंज = कमल के समान पैर; आयुध = हथियार; जोरी = जोड़ी; विरथ = बिना रथ के पदत्राना = जूते; धीरज = धैर्य चाका पहियाविरति = वैराग्य कोदण्डा- धनुष: अभेद = अभेद्य, जिसे काटा या छेदा न जा सके ताके = उसके मिस = बहाने; कटकु-सेना; गज = हाथी;प्रेरे-प्रेरित किये हुए; बहुबहुत से पयोधि-समुद्र पनवभेरी;प्रलय-विनाश;नफीरि= तुरही; पौरुष = पुरुषार्थ; मर्दहु = मसल दो; कपिन्ह = वानरों को; सपच्छ = पंखंयुक्त; चतुरंगिनी अनी = चार प्रकार की सेना; मत्त = मतवाले; गरजे = चिंघाड़ने लगे; विरदैत = युद्ध कला में चतुर; निकाया = समूह; कंधर – कंधा; निसान = नगाड़ा; घन = बादल; सहनाई-शहनाई; उच्चरहि बोल रहे थे, ऊँची आवाज में कह रहे थे; ठट्ठा = समूह; दुहाई = पुकार; भूधर = पर्वत; महादुम = बड़े-बड़े पेड़; निज-निज = अपने-अपने; वरनानि = वर्ण, रंगभेद की भलाई; सनेह = प्रेमपूर्वक; सौरज = शौर्य; परहित = दूसरे से, चर्म = ढाल; शक्ति = ताकत, बल; कवच =शरीर की रक्षा करने वाला आवरण; संसार रिपु-संसार रूपी शत्रु; पुंज = समूह; मृगराज = सिंह; भिरे = भिड़ गये, लड़ने लगे; वंदि- वन्दना करके आना अन्य प्रकार का, दूसरी तरह का; दम = इन्द्रियों का वश में होना; रज्जु = रस्सी; परसु = फरसा; सिलीमुख = बाणजाके जिसके; कहँ-कहाँ अमल = निर्मल, पवित्र।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखिए
(क) राक्षस सेना के चलने पर धरती पर क्या प्रभाव पड़ा है
?
उत्तर
राक्षस सेना के चलने पर धरती व्याकुल हो उठी।

(ख) कवि ने दौड़ते वानर-भालुओं की तुलना किससे की है?
उत्तर
कवि ने दौड़ते वानर-भालुओं की तुलना पंख धारण करके उड़ने वाले पर्वत समूह से की है। .

(ग) श्रीराम के पराक्रम का मुख्य आधार क्या है ?
उत्तर
श्रीराम के पराक्रम का मुख्य आधार धर्म केतत्व (शौर्य, धैर्य, सत्य-शील, साहस, यम-नियम, दम, दया, परोपकार आदि) हैं।

(घ) धर्मरथ के दो पहिए कौन-कौन से हैं ?
उत्तर
धर्मरथ के दो पहिए-शौर्य और धैर्य हैं।

प्रश्न 3.
शिक्षक की सहायता से सही जोड़ी बनाइए
MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 18 युद्ध-गीता 1
उत्तर
(क) → (3), (ख) → (4), (ग) → (2), (घ)→(1)

प्रश्न 4.
इन प्रश्नों के उत्तर तीन से चार पंक्तियों में लिखिए
(क) युद्धभूमि में विभीषण ने अधीर होकर श्रीराम से क्या कहा ?

उत्तर
युद्ध भूमि में विभीषण ने अधीर होकर श्रीराम से कहा कि हे स्वामी आपका शत्रु रावण युद्ध की सभी सामग्री (साधन-रथ आदि) से युक्त है। आपके पास वे साधन नहीं हैं जिनकी सहायता से युद्ध लड़ा जा सके और शत्रु पर विजय प्राप्त हो सके।

(ख) श्रीराम ने विभीषण की शंका का समाधान किस प्रकार किया?
उत्तर
श्रीराम ने विभीषण की शंका का समाधान करते हुए कहा कि जिस रथ की सहायता लेकर विजय प्राप्त की जाती है, वह अन्य (दूसरे ही) प्रकार का होता है। वह धर्म रथ होता है जिसमें शौर्य-धैर्य के पहिए, सत्य-शील की मजबूत ध्वजा होती है। विवेक का बल होता है। इन्द्रिय दमन और परोपकार के घोड़े क्षमा और कृपा की रस्सी से बँधे होते हैं। इन सभी सद्गुणों के रथ पर सवार होकर बाहरी और आन्तरिक शत्रुओं को जीता जा सकता है।

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(ग) आत्मशक्ति और बाह्यशक्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
आत्मशक्ति में धर्म के वे तत्व सम्मिलित हैं जिन्हें हम धर्म के आधारभूत तत्व मानते हैं। इनमें शौर्य, धैर्य, सत्य-शील, साहस, यम-नियम, दम, दया, परोपकार आदि गुण सम्मिलित होते हैं। इसे ही सद्गुणों से संयुक्त धर्म रथ कहते हैं। बाह्य शक्ति में-भौतिक साधन होते हैं जिनमें रथ, कवच व अनेक प्रकार की युद्ध सामग्री से युक्त अति बलवान सैनिक होते हैं। इस बाह्यशक्ति में सद्गुणों का अभाव होता है।

(घ) श्रीराम ने धर्मरथ में जोते चार घोड़े किसे कहा है ?
उत्तर
श्रीराम ने धर्मरथ में जोते हुए चार घोड़े-विवेक, दम, परहित तथा क्षमा को बताया है। इनके द्वारा खींचा गया रथ सर्वत्र गति पकड़े रहता है। मनुष्य अपने विवेक, दम, परहित और क्षमा के बल से किसी भी बाधा पर विजय प्राप्त कर लेता है।

(ङ) संसार रूपी शत्रु को किस रथ पर सवार होकर जीता जा सकता है?
उत्तर
संसार रूपी शत्रु को धर्मरथ पर सवार होकर जीता जा सकता है। इस धर्मरथ में शौर्य और धैर्य के पहिए लगे रहते हैं। सत्य और शील का मजबूत ध्वज होता है। क्षमा, कृपा और समता की रस्सी से बल, विवेक, दम और परोपकार के घोड़े जुते रहते हैं। इस विशेष प्रकार के रथ पर सवार व्यक्ति संसार-शत्रु को जीतकर अपने वश में कर लेता है।

युद्ध-गीता भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों को वाक्यों में प्रयोग कीजिए
लोभ, समकक्ष, पराक्रम, धर्मनीति, आत्मशक्ति, दुर्जय, मर्यादा।

उत्तर

लोभ पाप का मूल होता है।
रवि और मोहन को परस्पर समकक्ष ही लाभ मिल सकेगा।
महाराणा प्रताप ने अपने पराक्रम से ही देश की आजादी का दीपक बुझने नहीं दिया।
भारतीय धर्म नीति सहिष्णुता प्रधान है।
आत्मशक्ति शम और दम से बढ़ सकती है।
रावण की सेना वानर-सेना के लिए दुर्जय बन चुकी थी।
मर्यादा का उल्लंघन कष्टकारी हो सकता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में प्रयुक्त उपसर्ग पहचानकर लिखिए
विशेष, विरथ, अधीर, दुर्जय।

उत्तर
शब्द उपसर्ग + शब्द

विशेष = वि + शेष
विरथ = वि + रथ
अधीर = अ + धीर.
दुर्जय = दु: + जय
प्रश्न 3.
बॉक्स में कुछ शब्द और उनके विलोम शब्द लिखे हैं। इनकी सही जोड़ियाँ बनाकर लिखिए
उचित, अपेक्षा, विजय, लाभ, जीवन, सुरक्षा, पराजय, धर्म, अनुचित, मृत्यु, असुरक्षा, उपेक्षा, अधर्म, हानि।

उत्तर
सही – जोड़ियाँ

उचित → अनुचित
अपेक्षा → उपेक्षा
विजय → पराजय
लाभ → हानि
जीवन → मृत्यु
सुरक्षा → असुरक्षा
धर्म → अधर्म।
प्रश्न 4.
पाठ के आधार पर जोड़े बनाइए
(क) रण – (1) दर्शन
(ख) युद्ध – (2) रथ
(ग) मार्ग – (3) सिर
(घ) धर्म – (4) नीति
(ङ) दस – (5) कला
उत्तर
(क) → (4), (ख) → (5), (ग) → (1), (घ)→ (2), (ङ)→ (3)

प्रश्न 5.
निम्नलिखीत शब्दों का समास विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए
धर्मनीति, प्रतिदिन, आत्मशक्ति, राम-रावण।

उत्तर
MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 18 युद्ध-गीता 2

प्रश्न 6.
निम्नलिखित अनुच्छेद में यथास्थान उचित विराम चिह्न लगाइए
चरित्र का अर्थ है आचरण या चाल-चलन यहाँ आचरण का अर्थ है सदगुणों का भण्डार जिस व्यक्ति के व्यवहार में सत्य, न्याय, प्रेम, मानवता, करुणा, दया, अहिंसा, त्याग आदि गुण एकत्र हो जाते हैं वह चरित्रवान कहलाता है यहाँ चरित्र की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है किस बल पर पाण्डव कौरवों पर भारी पड़े किस बल पर वनवासी राम ने लंकापति रावण को परास्त किया

उत्तर
चरित्र का अर्थ है, आचरण या चाल-चलन । यहाँ आचरण का अर्थ है, सद्गुणों का भण्डार। जिस व्यक्ति के व्यवहार में सत्य, न्याय, प्रेम, मानवता, करुणा, दया, अहिंसा, त्याग आदि गुण एकत्र हो जाते हैं; वह चरित्रवान कहलाता है। यहाँ चरित्र की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। किस बल पर पाण्डव कौरवों पर भारी पड़े ? किस बल पर वनवासी राम ने लंकापति रावण को परास्त किया ?

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प्रश्न 7.
(अ) निम्नलिखित छन्दों के चरणों में मात्राएँ पहचानकर उनका नाम लिखिए।
उत्तर
MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 18 युद्ध-गीता 3
चौपाई छन्द है। चौपाई के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण का प्रयोग नहीं होता है।

प्रश्न 7.
(ब) इस पाठ में से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण छाँटकर लिखिए। .
उत्तर

बिविध भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना॥
बरन बरन बिरदैत निकाया। समर सूर जानहिं बहु माया॥ .
अति विचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेनु जनु साजी॥
अमन अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
प्रश्न 8.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम शब्द लिखिए
धीरज, सौरज, सील, छमा, ईस, बुधि, ताकत, जम।

उत्तर

धैर्य
शौर्य
शील
क्षमा
ईश
बुद्धि
शक्ति
यम।
प्रश्न 9.
पाठ में आए उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकार के अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर
उपमा-अमन अचल मन त्रोन समाना। रूपक-महा अजय संसार रिपु, जीती सकइ सो बीर। उत्प्रेक्षा-प्राबिट जलद मरुत जनु प्रेरे।

युद्ध-गीता सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

(1) चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा ।।
विविध भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल पताका ध्वज नाना

शब्दार्थ-निसाचर = राक्षस; कटकु = सेना; अपारा = संख्या में बहुत अधिक; चतुरंगिनी-चार प्रकार की-गज सेना, रथ सेना, घुड़सवार और पैदल सेना; अनी = सेना; बहु = अनेक, बहुत प्रकार के धारा = कतार; विविध भाँति = अनेक प्रकार के बाहन = सवारियाँ; बिपुल बहुत-सी; पताका = झण्डियाँ ध्वज = झण्डे; नाना = अनेक प्रकार के।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के पाठ ‘युद्ध-गीता’ से अवतरित हैं। इनके रचियता-तुलसीदास हैं।

प्रसंग-रामचरितमानस के लंका काण्ड से उद्धृत इन पंक्तियों में राम और रावण के मध्य होने वाले युद्ध के लिए आने वाली सेनाओं का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-राक्षसराज रावण की अपार सेना युद्धक्षेत्र की ओर चलने लगी। वह सेना चतुरंगिनी (गज, रथ, अश्व व पैदल सेना) थी और बहुत-सी कतारों में रावण की सेना चली जा रही थी। उस सेना में बहुत प्रकार के वाहन और रथ चले जा रहे थे। उन (वाहनों) पर बहुत प्रकार की पताकाएँ और ध्वज फहरा रहे थे।

(2) चले मत्त गज जूथ घनेरे। प्राबिट जल्द मरूत जनु प्रेरे॥
बरन बरन बिरंदैत निकाया। समर सूर जानहि बहु माया॥

शब्दार्थ-मत्त = मतवाले गज = हाथी; जूथ = झुण्ड, दल; घनेरे = बहुत से; प्राबिट = बरसात; जलद = बादल; मरुत = हवा; जनु = मानो; प्रेरे = प्रेरित किए जाकर; बरन बरन = वर्ण और आकार के बिरदैत = युद्धकला में चतुर (निपुण); निकाया = समूह; समर = युद्ध; सूर = योद्धा; माया = कपट।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-रावण की सेना की विपुलता और सैनिकों की युद्धवीरता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-रावण की सेना में मतवाले हाथियों के बहुत-से दल युद्ध क्षेत्र की ओर उसी तरह चले जा रहे थे मानो वर्षा ऋतु में हवा से प्रेरित बादलों का समूह चला आ रहा हो। विविध वर्ण के प्रसिद्ध योद्धाओं का समूह भी था। वे सभी युद्धवीर थे और अनेक प्रकार के युद्ध सम्बन्धी कपटपूर्ण चाल से परिचित थे।

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(3) अति विचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेतु जनु साजी।
चलत कटक दिगसिधुर दगही। छुअित पयोधि कुधर डगमगहीं॥

शब्दार्थ-विचित्र = अनोखा; बाहिनी = फौज, सेना; बिराजी = विराजमान है; साजी = सजाई है; कटक = सेना; दिगसिंधुर-दसों दिशाओं रूपी हाथी; पयोधि सागर; छुभित= क्षुब्ध होकर; कुधर = पर्वत, पहाड़।

सन्दर्भ-पूर्ववत्। प्रसंग-रावण की सेना का सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया गया

व्याख्या-तुलसीदासजी कहते हैं कि लंकापति रावण की सेना बड़ी विचित्र है। रावण की सेना को देखकर ऐसा लगता है कि वीर बसंतराज ने अपनी सेना को सजाया हो। उनकी सेना के चलने से दसों दिशाओं रूपी हाथी डिगने लगे, सागर क्षुब्ध हो उठे तथा पर्वत डगमगाने लगे।

(4) उठी रेनु रबि गयऊ छपाई। मरुत थकित बसुधा अकुलाई॥
पनव निसान घोर रव बाजहिं। प्रलय समय के घन जनु गाजहिं॥

शब्दार्थ-रेनु धूल: रबि-सूर्य:गयऊछपाई-छिप गया; मरुत = हवा; थकित = थक गई; बसुधा – पृथ्वी; अकुलाई = व्याकुल हो गई; पनव = युद्ध भेरी का बाजा; निसान = नगाड़ा; रव = शोर; बाजहि = बजने लगे; घन = बादल; जनु = मानो; गाजहिं = गरज रहे हों।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-राक्षसराज रावण की शक्तिशाली सेना की विशालता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-लंका नरेश रावण की सेना युद्धक्षेत्र की ओर जब प्रयाण (प्रस्थान) कर रही थी, तब उसके चलने से जो धूल उठी, उससे सूर्य छिप गया। हवा भी थक गई, पृथ्वी भी व्याकुल होने लगी। रणभेरी और युद्ध के नगाड़े इस तरह बजने लगे मानो प्रलय के समय के बादल गरजना कर रहे हों।

(5) भेरति नफीरि बाज सहनाई। मारु राग सुभट सुखदाई॥
कहरि नाद बीर सब करहीं। निज निज बल पौरुष उच्चरहीं।

शब्दार्थ-नफीरि = तुरही; भेरति = भेरी बज रही है। सहनाई – शहनाई; बाज = बजाई जा रही है। मारु राग- युद्ध में योद्धाओं को उत्साहित करने के लिए बजाया जाने वाला मारु राग; सुभट = योद्धाओं को; सुखदाई = अच्छा लग रहा है; केहरि नाद = सिंह नाद (सिंह गर्जना);बीर = योद्धा; पौरुष = पुरुषार्थ;
उच्चरहीं = वर्णन कर रहे थे।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-रावण के योद्धाओं की शक्ति तथा रणकौशल का वर्णन किया जा रहा है।

व्याख्या-युद्धक्षेत्र के लिए प्रस्थान करती हुई रावण की विशाल सेना को प्रेरित करने के लिए तुरही और भेरी तथा शहनाई बज रही है। युद्धवीरों को अच्छा लगने वाला मारु राग बजाया जा रहा है। सभी योद्धा सिंह गर्जना कर रहे हैं। वे सभी अपने-अपने बल और पुरुषार्थ का बखान कर रहे हैं।

(6) कहड़ दसानन सुनु सुभट्टा। मर्दहु भालु कपिन्ह के ठट्टा।
हाँ मारिऊँ भूप द्वौ भाई। अस कहि सन्मुख फौज रेंगाई।

यह सुधि सकल कपिन्ह जब पाई। धाए करि रघुबीर दुहाई॥

शब्दार्थ-दसानन दश मुख वाला रावण; कहड़ = कहने लगा; सुनु = सुनो; सुभट्टा = अत्यधिक वीर, उत्तम वीर; मर्दहु – मसल दो; कपिन्ह, बन्दरों; ठट्टा = समूह; हौं = मैं; मारिऊँ = मारूंगा; भूप द्वौ भाई = राजा के पुत्र दोनों भाइयों को; अस = ऐसा; कहि-कहकर; सन्मुख = अपने ही सामने फौज-सेना; रेंगाई = आगे को बढ़ाया, सुधि = समाचार; सकल = सभी; कपिन्ह = बन्दरों ने धाए – दौड़ पड़े; दुहाई = पुकारना।

सन्दर्भ- पूर्व की तरह।

प्रसंग-रावण द्वारा अपनी विशाल सेना को आगे बढ़ने का आदेश दे दिए जाने पर, श्रीराम की वानर-सेना भी इस समाचार को सुनकर राम की दुहाई देकर युद्धक्षेत्र की ओर दौड़ पड़ी।

व्याख्या-दशमुखों वाले रावण ने कहा कि हे श्रेष्ठ वीरो ! आप सभी सुनें। आप सभी वानरों और भालुओं के समूह को मसल डालो। मैं, राजा के पुत्र दोनों भाइयों को मारूंगा। यह कहकर अपने सामने ही अपनी सेना को आगे बढ़ाया। यह समाचार सभी वानरों ने जब प्राप्त किया तो वे भी रघुवीर श्री रामचन्द्रजी की दुहाई देते हुए दौड़ पड़े।

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(7) धाए बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते।
मानहुँ सपच्छ उडाहिं भूधर बूंद नाना बानते॥
नख दसन सैल महादुमायुध सबल संक न मानहीं।
जय राम राव मत्त गज मगराज सुजसु बखानहीं।

शब्दार्थ-धाए = दौड़ पड़े; बिसाल = बड़े आकार के कराल- भयंकर; मर्कट = बन्दर; ते वे; सपच्छ = पंख धारण कर; भूधर = पहाड़, पर्वत; बंद = समूह; नाना अनेक प्रकार केबान = तीर या विस्फोटक; नख = नाखून; दसन = दाँत; सैल = पर्वत; महादुमायुध = बड़े-बड़े वृक्ष रूपी हथियार; सबल = बलवान; संक-भय, सन्देह; मत्तगज मतवाला हाथी; मृगराज = सिंह; सुजसु- महान् यश का; बखानहीं = बखान करते हैं।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-पूर्व की तरह।

व्याख्या-बड़े आकार वाले भयंकर बन्दर और भालू दौड़ पड़े। वे काल के समान थे। मानो पंख धारण किए हुए पहाड़ों का समूह उड़ रहा हो। वे अनेक तरह के बाण इत्यादि (विस्फोटक) जैसे थे। वे नाखून, दाँत, पर्वत एवं बड़े-बड़े वृक्षों को युद्ध के हथियार रूप में धारण किए हुए थे, वे बलवान होने से बिल्कुल भी भयभीत नहीं होते थे। मतवाले हाथी के समान रावण के लिए मृगराज (सिंह) बने हुए श्रीराम की वे (वानर इत्यादि) जय-जयकार कर रहे थे तथा उनके अच्छे यश का (कीर्ति का) वर्णन कर रहे थे।

(8) दुहु दिसि जय-जयकार करि निज निज जोरी जानि।
भिरे बीत इत रामहि उत रावनहि बखानि॥

शब्दार्थ-दुहु दिसि = दोनों ओर; जोरी = जोड़ी; जानि = समझकर; भिरे-भिड़ बैठे; बीत = युद्ध समाप्त हो जाने के बाद: इत = इधर; उत = उधर; रावनहि = रावण (के गुणों का); बखानि = वर्णन कर रहे थे।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-पूर्व की तरह।

व्याख्या-दोनों ओर से ही (राम की ओर से तथा रावण की ओर से) जय-जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी का (बराबरी का) समझकर वे भिड़ गये (युद्ध करने में लग गये)। युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद, इधर से राम की और उधर से रावण की विशेषताओं का वर्णन कर रहे थे।

(9) रावनु रथी बिरथ रघुवीरा। देखि विभीषन भयउ अधीरा ।।
अधिक प्रीति मन भा सन्देहा। बंदि वरन कह सहित सनेहा ।

शब्दार्थ-रथी = रथयुक्त; बिरथ – बिना रथ के भयउहो गया; अधीर = धैर्यहीन; प्रीति = प्रेम होने से; सन्देहा = शंका; बंदि= वन्दना करके; कह- कहने लगा; सहित सनेहा = प्रेमपूर्वक।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-युद्ध की सामग्री से रहित राम को देखकर विभीषण बहुत ही अधीर होने लगा।

व्याख्या-युद्ध के मैदान में लंका नरेश रावण रथयुक्त था जबकि श्रीरामचन्द्रजी रथ से रहित थे। विभीषण ने जब इस तरह श्रीरामजी को बिना रथ के देखा तो वह अधीर हो उठे। विभीषण श्रीराम जी से बहुत अधिक प्रेम करते थे। प्रेम की अधिकता होने के कारण विभीषण के मन में सन्देह हो उठा। (सन्देह इस बात का कि श्रीरामचन्द्रजी युद्ध में रावण पर विजय प्राप्त नहीं कर सकेंगे।) वह विभीषण उनके (श्रीरामचन्द्रजी के) चरणों की वन्दना करके प्रेमपूर्वक कहने लगा।

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(10) नाथ न रथ नहिं तन पद जाना।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना ।।
सुनहु सखा कह कृपा निधाना।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना ॥

शब्दार्थ-तन = शरीर; पद = पैर;त्राना = रक्षक, बचाव करने वाला कवच इत्यादि केहि बिधि-किस प्रकार से;जितबजीत प्राप्त कर सकोगे; बीर बलवाना = (रावण) अत्यन्त वीर है और शक्तिशाली है; आना = अन्य या दूसरा; स्यंदन = रथ।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-रावण के शक्तिशाली होने पर विभीषण इस चिन्ता से युक्त हैं कि श्रीरामचन्द्रजी युद्ध के साधनों से रहित होकर किस तरह युद्ध में जीत प्राप्त करेंगे।

व्याख्या-विभीषण श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं कि हे मेरे स्वामी! आपके पास युद्ध करने के लिए रथ नहीं है, शरीर और पैरों की सुरक्षा के लिए कवच इत्यादि भी नहीं है। उस वीर और बलवान रावण को आप किस तरह जीत सकोगे। कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी ने कहा कि हे मेरे मित्र (विभीषण) सुनो। जिस रथ से विजय प्राप्त होती है, वह रथ तो दूसरा ही होता है।

(11) सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे।
छमा कृपा समता रजु जोरे ॥

शब्दार्थ-सौरज = शौर्य; धीरज = धैर्य; तेहि = जिसमें; चाका = पहिये; दृढ़ = मजबूत; ध्वजा = झण्डा; पताका = झण्डियाँ; घोरे = घोड़े; रजु रस्सी; जोरे = जोते हुए हैं।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-विजय प्राप्त करने के रथ की विशेषताओं का उल्लेख श्रीरामचन्द्र जी कर रहे हैं।

व्याख्या-जिस रथ में शौर्य और धैर्य रूपी पहिए लगे हुए हैं,सत्य और शील की मजबूत ध्वजा और पताकाओं से जिस रथ को सजाया गया है, बल, विवेक, दम तथा दूसरों की भलाई करने की भावना के घोड़ों को, क्षमा, कृपा और समानता की रस्सी से जोता गया है। उस रथ से विजय प्राप्त होती है।

(12) ईस भजन सारथी सजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर विग्यान कठिन कोदंडा॥

शब्दार्थ-ईस-ईश्वर भजनु भजन करना;सारथी-रथ हाँकने वाला; बिरति = विरक्ति, वैराग्य; चर्म = ढाल कृपाना। कृपाण, तलवार; परसु = फरसा; प्रचंडा = तीव्र बर = श्रेष्ठ, विग्यान = विज्ञान ही; कठिन = कठोर; कोदंडा = धनुष।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-बाहरी और भीतरी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के उपाय बताए गए हैं।

व्याख्या-श्रीरामचन्द्रजी विभीषण को उपदेश देते हैं कि ईश्वर का भजन, श्रेष्ठ ज्ञान से युक्त सारथी, वैराग्य की बाल, सन्तोष की तलवार, दान का फरसा, तेज बुद्धि से युक्त शक्ति, श्रेष्ठ विज्ञान रूपी कठोर धनुष विजय प्राप्त करने के साधन हैं।

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(13) अमल अचल मन त्रोन समाना।
सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
कवच अभेद बिन गुर पूजा।
एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥
सखा धर्मरथ अस रथ जाकें।
जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।

शब्दार्थ-अमल = निर्मल, पापरहित; अचल = स्थिर; त्रोन = तरकस; जम = यम; सम = शम; सिलीमुख = बाण; नाना = अनेक; अभेद = न टूट सकने वाला; बिप्र = ब्राह्मण; एहि सम = इसके समान; दूजा = दूसरा, अन्य; सखा = मित्र; अस = ऐसा, इस प्रकार का; जाकें = जिसके पास; जीतन कहाँ न कहाँ विजय प्राप्त नहीं करता कतहुं रिपु ताकें = उसके कितने ही शत्रु हो सकते हैं।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-पूर्व की तरह।

व्याख्या-श्रीरामचन्द्रजी ने विभीषण को बताया कि जिसके पापरहित (निर्मल) और स्थिर मन रूपी तरकस में शम, यम, नियम के अनेक बाण हैं; ब्राह्मण और गुरु की पूजा रूपी अभेद्य कवच जिसके पास है, तो इनके समान विजय प्राप्त करने का कोई भी दूसरा उपाय नहीं है। हे मित्र ! जिसके पास धर्मरथ रूपी ऐसा रथ है, तो वह कहाँ विजय प्राप्त नहीं करता ? चाहे, उसके कितने ही शत्रु क्यों न हों ? अर्थात् उसे सभी जगह विजय प्राप्त होती है।

(14) महा अजय संसार रिपु जीती संकइ सो बीर।
जाके अस रथ होइ दृढ़, सुनहु सखा मतिधीर ॥
सुनि प्रभु बचन बिभीषण हरषि गहे पद कंज।
ऐहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ॥

शब्दार्थ-अजय = न जीते जाने योग्य, अजेय; रिपु = दुश्मन, शत्रु; जीत सकई = जीत सकता है; सो = वहीं; जाकें = जिसका; दृढ़ = मजबूत; मतिधीर = धैर्ययुक्त बुद्धि वाला; हरषि = प्रसन्न होकर; गहे = पकड़ लिए; पद कंज = कमल जैसे चरणों को; ऐहि = इसके; मिस = बहाने से; मोहि = मुझको; उपदेसेहु – उपदेश दिया; कृपा = कृपा करके; सुखपुंज = सुख समूह, सुखराशि।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-श्रीरामचन्द्रजी के उपदेश को सुनकर विभीषण स्वयं को अत्यन्त सुखी अनुभव करने लगा।

व्याख्या-श्रीरामचन्द्रजी ने विभीषण को सम्बोधित करते हुए कहा कि हे धैर्यशाली बुद्धि वाले मेरे मित्र तुम सुनो ! जिसके पास ऐसा (ऊपर की पंक्तियों में बताया गया) मजबूत धर्म रथ होता है, वही वीर इस बहुत बड़े अजेय संसार रूपी दुश्मन को जीत सकता है। – प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के वचनों को सुनकर प्रसन्न होकर कमल के समान उनके (श्रीराम के) चरणों को पकड़ लिया। (और कहने लगा कि) हे सुखराशि राम ! आपने इसी बहाने से मुझे उपदेश देकर बड़ी कृपा की है।


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