MP Board Class 8th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 13 ग्राम्य जीवन

MP Board Class 8th Hindi Book Solutions हिंदी Chapter 13 ग्राम्य जीवन – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 8th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 13 ग्राम्य जीवन

(क) सही जोड़ी बनाइए

प्रश्न 1.
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
MP Board Class 8th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 13 ग्राम्य जीवन 1
उत्तर
(अ) 4, (ब) 3, (स) 2, (द) 1

(ख) सही शब्द चुनकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए

(अ) एक दूसरे की ममता है, सब में ………………. समता है। (प्रेममयी, क्रोधमयी)
(ब) छोटे से …………………. के घर हैं, लिपे-पुते हैं, स्वच्छ सुघर हैं। (लकड़ी, मिट्टी)
(स) खपरैलों पर बेले छाई, …………………. हरी, मन भाई। (फूली-फली, खिली-खिली)
(द) प्रायः सबकी सब विभूति हैं, पारस्परिक ………. है।(अनुभूति, सहानुभूति)
उत्तर
(अ) प्रेममयी
(ब) मिट्टी
(स) फूली-फली
(द) सहानुभूति।

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प्रश्न 3.
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(अ)आडंबर और अनाचार किन लोगों में नहीं होता है?
(ब) हवा को किससे बढ़कर बताया है?
(स) गाँवों में आँगन तट कैसे होते हैं?
(द) कवि ने नन्दन-विपिन को किस पर निछावर किया है?
उत्तर
(अ) आडंबर और अनाचार गाँव के लोगों में नहीं होता है।
(ब) हवा को डॉक्टरी दवा से बढ़कर बताया है।
(स) गाँवों में आँगन तट गोपद चिहित होते हैं।
(द) कवि ने नन्दन-विपिन को शाम के समय गाँव के वातावरण पर निछावर किया है?

प्रश्न 4.
लघु उत्तरीय प्रश्न

(अ)
कवि ने ग्राम्य-जीवन को शहरी जीवन से श्रेष्ठ क्यों माना है?
उत्तर
कवि ने ग्राम्य-जीवन को शहरी जीवन से श्रेष्ठ माना है। यह इसलिए कि यहाँ थोड़े में निर्वाह हो जाता है। यहाँ कोई दाब, पेंच और छल-कपट नहीं है। यहाँ आडंबर और अनाचार नहीं है।

(ब)
गाँव के घरों की क्या विशेषताएँ होती हैं?
उत्तर
गाँव के घर मिट्टी के घर हैं। वे लिपे-पुते हैं। वे स्वच्छ और सुन्दर हैं।

(स)
गाँववालों का स्वभाव कैसा होता है?
उत्तर
गाँववालों का स्वभाव बड़ा ही सरल और सीधा-सादा होता है। उसमें कोई छल-कपट नहीं होता है। उसमें परस्पर सहानुभूति होती है। उसमें दूसरे के प्रति ममता और समता होती है।

(द)
‘श्रम-सहिष्णु सब जन होते हैं’ से कवि का क्या ‘आशय है?
उत्तर
श्रम-सहिष्णु सब जम होते हैं’ से कवि का क्या आशय है-गाँव के लोग घोर परिश्रमी होते हैं। वे जी नहीं चुराते हैं। हमेशा मेहनत करने के कारण उनमें आलस्य बिलकुल ही नहीं होता है।

(ई)
गाँवों में अतिथि-सत्कार किस प्रकार होता है?
उत्तर
गाँवों में अतिथि-सत्कार विशेष प्रकार से होता है। अतिथि को आदरपूर्वक ठहराया जाता है। उसके प्रति अपने किसी संबंधी की ही तरह आदर देकर खुश किया जाता है। फिर सम्मान के साथ विदा किया जाता है।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
बोलिए और लिखिए_ ग्रामीण, अन्तःकरण, उज्ज्वल, श्रम, सहिष्णु।
उत्तर
ग्रामीण, अन्तःकरण, उज्ज्वल, श्रम, सहिष्णु।

प्रश्न 2.
सही वर्तनी पर गोला लगाइए
निरवाह, निर्वाह, निवार्ह, र्निवाह,
साहानुभूति, शहानुभूति, सहानुभूति, सहानूभूती,
आतिथ्य, अतिथ्य, आतीथ्य, आतिथय,
आर्शीवाद, आसीरवाद, आशीवार्द, आशीर्वाद ।

उत्तर
निर्वाह, सहानुभूति, आतिथ्य, आशीर्वाद ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
अपनी-अपनी, सीधे-सादे, दिन-दिन, ग्राम्य-जीवन
उत्तर

शब्द – वाक्य-प्रयोग
अपनी अपनी – अपनी आजकल सभी को अपनी- अपनी ही पड़ी है।
सीधे सादे – सीधे-सादे आजकल ठगे जाते
दिन दिन – दिन-दिन महँगाई बढ़ रही है।
ग्राम्य जीवन – ग्राम्य-जीवन सबका मनचाहा है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में से जल, हवा, और विपिन के समानार्थी (पर्यायवाची शब्द) छाँटकर लिखिए
वायु, पानी, वन, जंगल, पवन, नीर, समीर, कानन, सलिल।
उत्तर
पर्यायवाची शब्द
जल-पानी, नीर, सलिल।
हवा-वायु, पवन, समीर।
विपिन-वन, जंगल, कानन।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में तत्सम और तद्भव शब्द छाँटकर सूची बनाइए
पद, चाँद, पैर, नैन, हाथ, धरा, अमिय, काम, चन्द्र, हस्त, अग्नि देवता, सुभीता, नयन, धरती, देव, सुविधा, कार्य, आम, अश्रु, आग, आम्र, आँसू।

उत्तर
तत्सम-पद, धरा, चन्द्र, हस्त, अग्नि देवता, नयन, देव, कार्य, अश्रु, आम्र।
तद्भव-चाँद, पैर, नैन, हाथ, अमिय, काम, सुभीता, धरती, सुविधा, आम, आग, आँसू।

प्रश्न 6.
नीचे दी हुई पंक्तियों में से सर्वनाम शब्द छाँटिए
(अ) क्यों न इसे सबका मन चाहे।
(ब) अपनी-अपनी घात नहीं है।
(स) तो न उसे आती बरबादी।
(द) देती याद उन्हें चौपालें।
(ई) सब में प्रेममयी ममता है।
उत्तर
सर्वनाम शब्द
(अ) इसे
(ब) अपनी-अपनी
(स) उसे
(द) उन्हें
(ई) सबमें।

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प्रमुख पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ

  1. अहा! ग्राम्य-जीवन भी क्या है क्यों न इसे सब का मनचाहे।
    थोड़े में निर्वाह यहाँ है, ऐसी सुविधा और कहाँ है।
    यहाँ शहर की बात नहीं है, अपनी-अपनी घात नहीं है।
    आडम्बर का काम नहीं है, अनाचार का नाम नहीं है।

शब्दार्थ
ग्राम्य-गाँव । निर्वाह-गुजारा । घात-दाव-पेंच, छल। आडंबर-ढोंग, दिखावा। अनाचार-दुराचार, बुरा व्यवहार।

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिन्दी सामान्य) के भाग-8 के पाठ-13 ‘ग्राम्य-जीवन’ से ली गई हैं। इनके रचयिता श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गाँव के जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि__

व्याख्या
अहा! गाँव के जीवन का क्या कहना है! सचमुच में यह इतना अधिक सुन्दर है कि इसे भला ऐसा कौन नहीं है, जो इसे बार-बार न चाहेगा। इसकी सबसे अधिक अच्छाई है कि यहाँ थोडी-सी सुविधा में गजारा हो जाता है। इस प्रकार की सुविधा और कहीं नहीं है। यहाँ शहर की कोई बात नहीं हैं दुसरे शब्दों में यहाँ कोई शहरी विशेषताएँ नहीं हैं। इसलिए यहाँ शहरी कोई दाव-पेंच या छल नहीं है। किसी प्रकार का दिखावा नहीं है। इसी प्रकार कोई यहाँ किसी तरह का अनाचार-दुराचार नहीं दिखाई देता है।

विशेष

भारतीय गाँव की खूबियाँ बतायी गई हैं।
यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

  1. सीधे-सादे भोले-भाले, हैं ग्रामीण मनुष्य निराले। एक दूसरे की ममता है,
    सब में प्रेममयी समता है। यद्यपि वे काले हैं
    तन से, पर अति ही उज्जवल हैं मन से।
    अपना और ईश्वर का बल है, अन्तःकरण अतीव सरल है

शब्दार्थ
ग्रामीण-गाँव के। ममता-प्रेम, लगाव । समतासमानता। तन-शरीर। अति-अधिक। अन्तःकरण-हृदय।

संदर्भ – पूर्ववत्

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गाँव के लोगों की अच्छाइयों को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या
गाँव के लोग बड़े ही सीधे-साधे और भोले-भाले होते हैं। वे बहुत ही निराले और दूसरे के प्रति समता और लगाव रखते हैं। उनमें परस्पर प्रेममयी समानता होती है। यह बात अवश्य है कि वे काले और कुरूप होते हैं, लेकिन उनका मन बहुत ही सुन्दर और आकर्षक होता है। उन्हें और किसी का भरोसा नहीं होता है। उनका तो केवल अपना और ईश्वर पर ही भरोसा होता है। इस प्रकार उनका हृदय बड़ा ही सरल और खुला हुआ होता है।

विशेष

गाँव के लोगों की खूबियों को ज्ञानवर्द्धक रूप में प्रस्तुत किया गया है। .
यह अंश रोचक है।
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  1. प्रायः सबकी सब विभूति हैं, पारस्परिक सहानुभूति है।
    कुछ भी ईर्ष्या-द्वेष नहीं है, कहीं कपट का लेश नहीं है।
    छोटे से मिट्टी के घर हैं, लिपे-पुते हैं, स्वच्छ सुघर हैं।
    गोपद चिह्नित आँगन तट हैं, रखे एक और जल-घट हैं।

शब्दार्थ
प्रायः-लगभग। विभूति-धन-संपति, वैभव । पारस्परिक-परस्पर, एक-दूसरे के प्रति । ईर्ष्या-द्वेष, वैर, विरोध । कपट-छल। लेश-अंश मात्र, थोड़ा-सा भी। सुघर-सुंदर। गोपद-गाय के खुर। तट-किनारा।

संदर्भ – पूर्ववत्।

प्रसंग-पूर्ववत्।

व्याख्या
गाँव के लोगों के पास परस्पर सहानुभूति और सहयोग ही धन, संपत्ति और वैभव है। उनमें एक-दूसरे के प्रति कुछ भी वैर, विरोध आदि बुरे भाव नहीं हैं। उनमें एक-दूसरे के लिए छल-कपट थोड़ा-सा भी नहीं है। उनका घर मिट्टी का ही है, लेकिन वह लीपा-पोता हुआ बड़ा ही साफ, आकर्षक और सुन्दर है। उनके घर के आँगन में एक ओर गाय के खुर से और दूसरी ओर रखे हुए पानी के घड़े से शोभित होते हैं।

विशेष

गाँव के लोगों और उनके स्वभाव को सामने लाने का प्रयास किया गया है।
यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

  1. खपरैलों पर बेलें छाईं, फूली-फली हरी, मन भाई।
    काशीफल कुष्मांड कहीं है, कहीं लौकियाँ लटक रही हैं।
    है जैसा गुण यहाँ हवा में, प्राप्त नहीं डॉक्टरी दवा में।
    सन्ध्या समय गाँव के बाहर, होता नंदन विपिन निछावर।

शब्दार्थ
काशीफल-कदू । कुष्मांड-कुम्हड़ा, सफेद कदू। संध्या-शाम। नंदन- देवताओं का। विपिन-वन, जंगल। निछावर-त्याग, बलिदान।

संदर्भ – पूर्ववत्।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गाँव के वातावरण का चित्र खींचते हुए कहा है कि

व्याख्या
गाँव में घर खपरैल के होते हैं। उन पर बेलें छायी रहती हैं। उन पर कई प्रकार की सब्जियाँ लटक रही होती हैं। वे हरी-हरी और फूली-फली होती हैं। उन्हें देखकर मन खिल उठता है। कहीं कद्दू की बेलें खपरैलों पर लटकी रही होती हैं, तो कहीं सफेद कददू की बेलें। खपरैलों पर कहीं-कहीं लौकियाँ लटकती हुई होती हैं, तो कहीं-कहीं कई और बेलें भी इसी प्रकार दिखाई देती हैं। यहाँ की हवा में स्वास्थ्य को ठीक रखने का गुण है वह किसी डॉक्टरी दवा से बेहतर है। शाम के समय गाँव के बाहर का वातावरण नंदन वन से कहीं अधिक सुखद होता है। उस पर तो वह निछावर होता हुआ दिखाई देता है।

विशेष

गाँव के स्वरूप का सच्चा चित्र है।
तुकान्त शब्दावली है।
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  1. श्रम-सहिष्णु सब जन होते हैं, आलस में न पड़े सोते हैं।
    दिन-दिनभर खेतों में रहकर, करते रहते काम निरंतर ।
    अतिथि कहीं जब आ जाता है, वह आतिथ्य यहाँ पाता है।
    ठहराया जाता है ऐसे, कोई संबंधी हो जैसे।

शब्दार्थ
श्रम-सहिष्णु-घोर परिश्रमी। निरंतर-हमेशा।

संदर्भ – पूर्ववत्।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गाँव के लोगों की अच्छाइयों को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या
गाँव के लोग घोर परिश्रमी होते हैं। इसलिए वे आलसी नहीं होते हैं। वे पूरे दिन खेतों में लगातार काम करते रहते हैं। जब उनके यहाँ कोई अतिथि आ जाता है, तो वह संतुष्ट होकर ही वापस जाता है। वे उसका आदर-सम्मान अपने किसी सगे-संबन्धी की ही तरह करके उसे खुश कर देते है।

विशेष

गाँव के लोगों की महानता को आकर्षक रूप में चित्रित किया गया है।
यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।


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