MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Chapter 22 सूक्तयः

MP Board Class 8th Sanskrit Book Solutions संस्कृत सुरभिः Chapter 22 सूक्तयः- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Chapter 22 सूक्तयः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) कः सर्वत्र पूज्यते? (कौन सब जगह पूजा जाता है?)

उत्तर:
विद्वान्। (विद्वान्)

(ख) कस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता वर्तते? (किसका स्वयं स्वामित्व है?)
उत्तर:
विक्रमार्जितसत्त्वस्य। (पराक्रम के द्वारा अर्जित शक्ति)

(ग) कस्मात् परं सुखं नास्ति? (किससे बढ़कर सुख नहीं है?)
उत्तर:
ज्ञानात्। (ज्ञान से।)

(घ) सर्वत्र धनं किम् अस्ति? (सर्वत्र क्या धन है?)
उत्तर:
शीलम्। (चरित्र।)

(ङ) केषां क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति? (किनकी कार्य की सिद्धि साहस से होती है?)
उत्तर:
महताम्। (महान् लोगों की)

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प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत(एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) पूजास्थानं के न भवतः? (पूजा के योग्य कौन नहीं होते हैं?)

उत्तर:
पूजास्थानं लिङ्ग वयः च न भवतः। (पूजा के योग्य लिंग और आयु नहीं होती है।)

(ख) दुर्लभं वचः का? (दुर्लभ वाणी क्या है?)
उत्तर:
हितं मनोहरि च दुर्लभं वचः। (हितकारी और मनोहारी वाणी दुर्लभ है।)

(ग) केषाम् आज्ञा अविचारणीया? (किनकी आज्ञा अविचारणीय है?)
उत्तर:
गुरुणाम् आज्ञा अविचारणीय है। (गुरुओं की आज्ञा अविचारणीय है।)

(घ) किंन अन्विष्यति किंच मृग्यते? (कौन नहीं खोजता है और कौन खोजा जाता है?)
उत्तर:
रत्नं न अन्विष्यति तत् च मृग्यते। (रत्न नहीं खोजता है और वह ही खोजा जाता है।)

(ङ) महतां क्रियासिद्धिः कुत्रं भवति? कुत्र न भवति? (महान् लोगों की क्रिया की सिद्धि कहाँ होती है? कहाँ नहीं होती है?)
उत्तर:
महतां क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति, उपकरणे न। (महान् लोगों की क्रिया की सिद्धि साहस से होती है, साधनों से नहीं होती है।)

प्रश्न 3.
रिक्तस्थानानि पूरयत (रिक्त स्थान भरो-)
(क) ……….. एकरूपता।
(ख) ………. सर्वत्र पूज्यते।
(ग) नास्ति ……… परं सुखम्।
(घ) गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च ……… न च ………।
(ङ) ……….. सर्वत्र वै धनम्।
उत्तर:
(क) महताम्
(ख) विद्वान्
(ग) ज्ञानात्
(घ) लिङ्गम्, वयः
(ङ) शीलम्।

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प्रश्न 4.
विलोमपदानि पाठात् चित्त्वा लिखत- (विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखो-)
(क) एकत्र
(ख) दोषः
(ग) अस्ति
(घ) अनेकरूपता
(ङ) दुःखम्।
उत्तर:
(क) सर्वत्र
(ख) गुणः
(ग) नास्ति
(घ) एकरूपता
(ङ) सुखम्।।

प्रश्न 5.
उचितमेलनं कुरुत(उचित मिलान करो-)
MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Chapter 22 सूक्तयः 1
उत्तर:
(क) → (iii)
(ख) → (v)
(ग) → (iv)
(घ) → (ii)
(ङ) → (i)

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां, समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने “आम्” (हाँ) और अशुद्ध वाक्यों के सामने “न” (नहीं) लिखो-)

(क) हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
(ख) विद्वान सर्वत्र न पूज्यते।
(ग) गुणाः पूजास्थानम्।
(घ) रत्नम् अन्विष्यति न मृग्यते।
(ङ) विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्।

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प्रश्न 7.
संस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत(संस्कृत वाक्यों में प्रयोग करो-)
(क) सर्वत्र
(ख) दुर्लभम्
(ग) मृग्यते
(घ) ज्ञानात
(ङ) एव।
उत्तर:
MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Chapter 22 सूक्तयः 2

प्रश्न 8.
रेखाङ्कितम् पदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत(रेखांकित शब्द के आधार पर प्रश्न निर्माण करो-)
(क) विद्वान् सर्वत्र पूज्यते। (विद्वान सभी जगह पूजे जाते हैं।)
उत्तर:
कः सर्वत्र पूज्यते? (कौन सभी जगह पूजे जाते हैं?)

(ख) गुणाः पूजास्थानम्? (गुण पूजा के योग्य हैं।)
उत्तर:
के पूजास्थानम्? (कौन पूजा के योग्य हैं?)

(ग) आज्ञा गुरुणां ह्यविचारणीया। (गुरुओं की आज्ञा अविचारणीय है।)
उत्तर:
आज्ञा केषाम् ह्यविचारणीया? (किनकी आज्ञा अविचारणीय है?)

(घ) नास्ति ज्ञानात् परं सुखम्। (ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं है।)
उत्तर:
नास्ति कस्मात् परं सुखम्? (किससे बढ़कर सुख नहीं है?)

(ङ) क्रियासिद्धि सत्त्वे भवति। (कार्य की सिद्धिः साहस से होती है।)
उत्तर:
किम् सत्त्वे भवति?(क्या साहस से होती है?)

(साधकों के अनुभव से निकली वाणी उक्ति या सूक्ति हो जाती है। यहाँ युक्ति की अपेक्षा जीवन के अनुभव का महत्त्व है। सूक्ति के सुनने के बाद ही कहने वाला और सुनने वाला सूक्ति के तत्व को समान रूप से अनुभव करता है। सूक्ति जीवन के सार को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।)

सूक्तयः हिन्दी अनुवाद

(1) विद्वान सर्वत्र पूज्यते।
अनुवाद :
विद्वान् सब जगह पूजा जाता है?

व्याख्या :
कोई मूर्ख व्यक्ति है तो उसका सम्मान अपने घर तक ही होता है। कोई धनी व्यक्ति है तो उसकी सीमा अपने गाँव तक ही है अर्थात् उसका सम्मान अपने गाँव तक ही होता है। कोई राजा है तो उसकी पूजा (सम्मान) अपने देश में ही होती है, परन्तु यदि कोई विद्वान् है तो उसका सम्मान अपने घर, गाँव एवं देश में ही नहीं होता बल्कि सारे संसार में होता है।

(2) महतामेकरूपता।
अनुवाद :
महान् व्यक्ति एक समान रहते हैं।

व्याख्या :
महान् व्यक्ति चाहे सुख हो या दुःख हो एक समान ही रहते हैं क्योंकि सुख-दुःख तो आते-जाते रहते हैं इसलिए वे अपने स्वभाव को परिवर्तित नहीं करते। महान् लोग जैसा सोचते हैं वैसा ही बोलते हैं और जैसा बोलते हैं वैसा ही करते हैं। उनकी कथनी और करनी में एक समानता रहती है। जैसे सूर्य उगते समय भी लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है। वैसे ही महान लोग भी सर्वदा एक समान रहते हैं।

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(3) शीलम् सर्वत्र वै धनम्।
अनुवाद :
चरित्र (या स्वभाव) सब जगह धन है।

व्याख्या :
विदेश जाने पर विद्या ही धन होता है। विपत्ति आने पर बुद्धि ही धन होती है। मृत्यु के पश्चात् परलोक जाने पर धर्म ही धन होता है। परन्तु विचित्र सब जगह धन है। इसलिए चरित्र की रक्षा करनी चाहिए। धन का क्या है, आता है और चला जाता है। व्यक्ति धन से क्षीण है तो वह क्षीण नहीं कहलाता परन्तु चरित्र से गिरने पर उसका सब तरफ से पतन हो जाता है।

(4) नास्ति ज्ञानाम् परं सुखम्।
अनुवाद :
ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं है।

व्याख्या :
संसार में सब वस्तुएँ नश्वर हैं, वे एक समय आने पर स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं। केवल ईश्वर ही सत्य सनातन है। जब मनुष्य को यह ज्ञान हो जाता है तो भौतिक सुखों से उसकी अनासक्ति हो जाती है। इसलिए कहते हैं कि ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं है।

(5) आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया।
अनुवाद :
गुरु की आज्ञा को सोचना नहीं चाहिए।

व्याख्या :
गुरु सर्वदा शिष्य का कल्याण ही देखते हैं। गुरु कुम्हार के समान एवं घड़े के समान होता है। गुरु ही शिष्य के भविष्य का निर्माण करते हैं। इसलिए गुरु जो भी आज्ञा दे चाहे वह उस समय अच्छी हो या बुरी उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि उसका परिणाम निश्चित रूप से अच्छा ही निकलेगा। अतः गुरु की आज्ञा पर भले-बुरे का विचार नहीं करना चाहिए।

(6) हितम् मनोहारि च दुर्लभ वचः।
अनुवाद :
हितकारी और मनोहर वचन दुर्लभ होता है।

व्याख्या :
हितकारी (कल्याणकारी) और मनोहारी (मन को अच्छी लगने वाली) बातें संसार में बहुत ही कम होती हैं। क्योंकि सत्य कड़वा होता है और असत्य मीठा होता है। जो अच्छी भी लगे और कल्याणकारी भी हो, ऐसा दुर्लभ है। अतः मनुष्य को हितकारी बातों पर ध्यान देना चाहिए, चाहे वह अप्रिय ही क्यों न हों।

(7) क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे।
अनुवाद :
महान लोगों के कार्य साहस से पूर्ण होते हैं, साधनों से नहीं।

व्याख्या :
महान् लोगों के किसी भी कार्य की सिद्धि साहस। से होती है, साधनों के होने पर नहीं। साधन तो सहायक होते हैं, | कार्य पूर्ण करने के लिए साहस परम आवश्यक है। जैसे श्रीराम
ने अल्प साधन होते हुए भी साहस से लंका पर विजय प्राप्त की।

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(8) गुणा पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः।।
अनुवाद :
गुण पूजा के योग्य होते हैं, गुणियों में लिंग और अवस्था की अपेक्षा नहीं होती।

व्याख्या :
गुणों का सर्वदा आदर होता है, वह गुणी के किसी भी लिंग (पुरुष या स्त्री) या आयु (बचपन या वृद्धावस्था) के होने पर कोई प्रभाव नहीं डालते। अर्थात् गुणी व्यक्ति स्त्री या पुरुष हो अथवा किसी भी आयु का हो, उसका सर्वदा सम्मान होता है।

(9) न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत्।
अनुवाद :
रत्न किसी को खोजने नहीं जाता अपितु वह। स्वयं खोजा जाता है।

व्याख्या :
मनुष्य में यदि गुण हों तो उसे प्रकट करने की। आवश्यकता नहीं होती, गुणों के पारखी लोगों द्वारा वे स्वयं ही पहचान लिए जाते हैं। रत्न कभी अपने ग्राहक को खोजने के के लिए नहीं जाता बल्कि ग्राहक ही उसे खोजता हुआ आ जाता है। उदाहरण के लिए कुँआ प्यासे को नहीं खोजता बल्कि प्यासा ही कुँए को खोजता है।

(10) विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता।
अनुवाद :
पराक्रम के द्वारा अर्जित शक्ति से स्वयं ही। स्वामित्व आता है।

व्याख्या :
मनुष्य में पराक्रम के द्वारा अर्जित शक्ति से स्वयं ही स्वामित्व (शासन) करने की क्षमता आती है। उदाहरण के लिए। जंगल में सिंह का सभी जानवर मिलकर राज्याभिषेक नहीं करते बल्कि सिंह अपने पराक्रम की शक्ति से जंगल पर राज करता है।

सूक्तयः शब्दार्थाः

एकरूपता सब को एक भाव से मानना। मृगेन्द्रता=सिंह का आधिपत्य/पशुओं का स्वामित्व। वाणी = वचन। ह्यविचारणीया = विचार करने योग्य नहीं। क्रियासिद्धिः = कार्य की सिद्धि। अन्विष्यति = ढूँढेगा। पूजास्थानम् = पूजा योग्य/आदर योग्य/पूजा का स्थान। मृग्यते = ढूँढता है। वयः = अवस्था/आयु। लिङ्गम् = पुरुष/स्त्री (पुल्लिङ्ग/स्त्रीलिङ्ग)। विक्रमार्जितसत्त्वस्य = पराक्रम द्वारा प्राप्त किये हुए स्वामित्व का। लिङ्गम् = पुरुष/स्त्री पुल्लिङ्ग/स्त्रीलिङ्ग)।


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