Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण

Bihar Board Class 10th Social Science Book Solutions सामाजिक विज्ञान Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण

चे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगायें।

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में किस स्थल मार्ग से एशिया और यूरोप का व्यापार होता था ?
(क) सूती मार्ग
(ख) रेशम मार्ग
(ग) उत्तरा पथ
(घ) दक्षिण पथ
उत्तर-
(ख) रेशम मार्ग

प्रश्न 2.
पहला विश्व बाजार के रूप में कौन-सा शहर उभर कर आया ?
(क) अलेक्जेन्ड्रिया
(ख) दिलमून
(ग) मैनचेस्टर
(घ) बहरीन
उत्तर-
(ख) दिलमून

प्रश्न 3.
आधुनिक युग में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में होने वाली सबसे बड़ी क्रांति कौन सी थी?
(क) वाणिज्यिक क्रान्ति
(ख) औद्योगिक क्रान्ति
(ग) साम्यवादी क्रान्ति
(घ) भौगोलिक खोज
खाज
उत्तर-
(ख) औद्योगिक क्रान्ति

प्रश्न 4.
“गिरमिटिया मजदूर’ बिहार के किस क्षेत्र से भेजे जाते थे?
(क) पूर्वी क्षेत्र
(ख) पश्चिमी क्षेत्र
(ग) उत्तरी क्षेत्र
(घ) दक्षिणी क्षेत्र
उत्तर-
(ख) पश्चिमी क्षेत्र

प्रश्न 5.
विश्व बाजार का विस्तार आधुनिक काल में किस समय से आरंभ हुआ?
(क) 15वीं शताब्दी
(ख)-18वीं शताब्दी
(ग) 19वीं शताब्दी
(घ) 20वीं शताब्दी
उत्तर-
(ख)-18वीं शताब्दी

प्रश्न 6.
विश्वव्यापी आर्थिक संकट किस वर्ष आरंभ हुआ था?
(क) 1914
(ख) 1922
(ग) 1929
(घ) 1927
उत्तर-
(ग) 1929

प्रश्न 7.
आर्थिक संकट (मंदी) के कारण यूरोप में कौन सी नई शासन प्रणाली का उदय हुआ?
(क) साम्यवादी शासन प्रणाली
(ख) लोकतांत्रिक शासन प्रणाली
(ग) फासीवादी-नाजीवादी शासन प्रणाली
(घ) पूँजीवादी शासन प्रणाली
उत्तर-
(ग) फासीवादी-नाजीवादी शासन प्रणाली

प्रश्न 8.
ब्रेटन दुइस सम्मेलन किम वर्ष हुआ?
(क) 1945
(ख) 1947
(ग) 1944
(घ) 1952
उत्तर-
(ग) 1944

प्रश्न 9.
भूमंडलीकरण की शुरूआत किस दशक में हुआ?
(क) 1990 के दशक में
(ख) 1970 के दशक में
(ग) 1960 के दशक में
(घ) 1980 के दशक में
उत्तर-
(क) 1990 के दशक में

प्रश्न 10.
द्वितीय महायुद्ध के बाद यूरोप में कौन सी संस्था का उदय आर्थिक दुष्प्रभावों को समाप्त करने के लिए हुआ?
(क) सार्क
(ख) नाटो
(ग) ओपेक
(घ) यूरोपीय संघ
उत्तर-
(घ) यूरोपीय संघ

निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें :

प्रश्न 1.
अलेक्जेंड्रिया नामक पहला विश्व बाजार………….के द्वारा स्थापित किया गया।
उत्तर-
यूनानी सम्राट सिकन्दर

प्रश्न 2.
विश्वव्यापी आर्थिक संकट ……………………..देश से आरंभ हुआ।
उत्तर-
यूरोपीय

प्रश्न 3.
………………..नामक सम्मेलन के द्वारा विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना हुई।
उत्तर-
ब्रेटन वुड्स

प्रश्न 4.
आर्थिक संकट से विश्व स्तर पर……………………..नामक एक बड़ी सामाजिक समस्या उदित हुई ?
उतर-
बेरोजगारी

प्रश्न 5.
……………………….ने 1990 के बाद भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को काफी तीव्र कर दिया ?
उत्तर-
जॉन विलियम्स

सही मिलान करें:

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण – 1
उत्तर-

  1. (ख)
  2. (क)
  3. (घ)
  4. (ग)
  5. (च)
  6. (ङ)।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
विश्व बाजार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
बाजार जहाँ विश्व के सभी देशों की वस्तुएं आमलोगों को खरीदने के लिए उपलब्ध हों। जैसे, भारत की आर्थिक राजधानी ‘मुम्बई।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति क्या है?
उत्तर-
उत्पादन के क्षेत्रों में मशीनों और वाष्प की शक्ति के उपयोग से जो व्यापक परिवर्तन हुए और इन परिवर्तनों के कारण लोगों की जीवन पद्धति और उनके विचारों में जो मौलिक परिवर्तन हुए उसे ही औद्योगिक क्रान्ति कहते हैं।

प्रश्न 3.
आर्थिक संकट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
अर्थतंत्र में आनेवाली वैसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि, उद्योग और व्यापार का विकास अवरुद्ध हो जाए, आर्थिक संकट कहलाता है।

प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जीवन के सभी क्षेत्रों में एक अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप जिसने दुनिया के सभी भागों को आपस में जोड़ दिया है-सम्पूर्ण विश्व एक बड़े गाँव के रूप में परिवर्तित हो गया।

प्रश्न 5.
ब्रिटेन वुड्स सम्मेलन का उद्देश्य क्या था?
उत्तर-
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार बनाये रखना एवं विश्वशांति स्थापित करना।

प्रश्न 6.
बहुराष्ट्रीय कंपनी क्या है ?
उत्तर-
कई देशों में एक ही साथ व्यापार और व्यवसाय करने वाली कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनी कहा जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
1929 के आर्थिक संकट के कारणों को संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर-

नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में जो भारी वृद्धि हुई उससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि जो कुछ उत्पादित किया जाता था, उसे खरीद सकने वाले लोग बहुत कम थे।
विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल्य की विकृति।
प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति ने किस प्रकार विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तत किया ?
उत्तर-
औद्योगिक क्रान्ति ने बाजार को तमाम आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बना दिया। इसी के साथ जैसे-जैसे औद्योगिक क्रान्ति का विकास हुआ बाजार का स्वरूप विश्वव्यापी होता चला गया और 20वीं शताब्दी के पहले तक तो इसने सभी महादेशों में अपनी उपस्थिति कायम कर ली।

प्रश्न 3.
विश्व बाजार के स्वरूप को समझावें।
उत्तर-
औद्योगिक क्रान्ति के फैलाव के साथ-साथ बाजार का स्वरूप विश्वव्यापी होता गया। इसने व्यापार, श्रमिकों का पलायन और पूंजी का प्रवाह इन तीन आर्थिक प्रवृत्तियों को जन्म दिया।
व्यापार मुख्यतः कच्चे मालों को इंगलैंड और अन्य यूरोपीय देशों तक पहुँचाने और वहाँ के कारखानों में निर्मित वस्तुओं को विश्व के कोने-कोने में पहुंचाने तक सीमित था।

प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के योगदान (भूमिका) को स्पष्ट करें।
उत्तर-
1980 के दशक के बाद आर्थिक रूप से काफी जर्जर हो चुकी स्थिति के प्रभाव को कम करने में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का योगदान काफी सराहनीय रहा जिसने भूमंडलीकरण को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 5.
1950 के बाद विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निमाण के लिए किए जाने वाले प्रयासो का उल्लेख करें।
उत्तर-
द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद उससे उत्पन्न समस्या को हल करने तथा व्यापक तबाही से निबटने के लिए पुनर्निर्माण का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आरंभ हुआ। 1957 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय, यूरोपीय इकॉनॉमिक कम्युनिटि (ई. ई. सी.) की स्थापना की गयी। इसमें फ्रांस, प. जर्मनी, बेल्जियम, हालैण्ड, लग्जमबर्ग और इटली शामिल हुआ। इन देशों ने एक साझा बाजार स्थापित किया। 1960 में ग्रेट ब्रिटेन इसका सदस्य बना। तत्कालीन विश्व के दोनों महत्वपूर्ण आर्थिक शक्तियाँ सं. रा. अमेरिका एवं सोवियत रूस अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। इस प्रयास में अमेरिका की सहायता, विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भरपूर सहायता की। जबकि रूस ने अपने विचारों और राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल ज्यादा किया। दोनों देशों ने अपनी नीतियों के अनुसार विश्व के दो देशों का सहयोग किया।

प्रश्न 6.
विश्व बाजार के लाभ-हानि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
विश्व बाजार के लाभ-विश्व बाजार ने व्यापार और उद्योग को तीव्रगति से बढ़ाया। आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था के उदय में सहायता की। औपनिवेशिक देशों में यातायात के साधनों, खनन, बागवानी जैसे संरचनात्मक क्षेत्र का विकास हुआ। कृषि उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। नवीन तकनीकों को सृजित किया। शहरीकरण के विस्तार में सहायता की।

विश्व बाजार की हानि – इससे औपनिवेशिक देशों का शोषण और तीव्र हो गया। लघु तथा कुटीर उद्योग नष्ट होने लगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1
929 के आर्थिक संकट के कारण और परिणामों को स्पष्ट करें।
उत्तर-
आर्थिक संकट के कारण- इसका बुनियादी कारण स्वयं इसकी अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था जो निम्न है-

बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार- यूरोप को छोड़कर शेष सभी देशों में बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार होता गया जिससे मुनाफे बढ़ते चले गये, दूसरी तरफ अधिकांश लोग गरीबी और अभाव में पिसते रहे।
उत्पादन में वृद्धि नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में – तो भारी वृद्धि हुई लेकिन उसे खरीदने वाले लोग कम थे।
कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल्य की विकृति-कृषि क्षेत्र में भी अति उत्पादन के कारण उत्पादों की कीमतें गिरने लगी जिससे किसानों की आय घटने लगी। अतः ज्यादा माल बेचकर अपनी आय स्तर को बनाए रखने के लिए किसानों में होड़ मच गयी।
कर्म का प्रभाव-1920 के मध्य में बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर युद्ध हो चुकी अपनी अर्थव्यवस्था को नए सिरे से विकसित करने का प्रयास किया। लेकिन में घरेल स्थिति में संकट के कुछ संकेत मिलने से वे लोग कर्ज वापस माँगने लगे। इससे के समक्ष गहरा आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ।
अमेरिका में संकट अमेरिका में संकट के लक्षण प्रकट होते ही उसने अपने संरक्षण के लिए आयात शुल्क में वृद्धि कर दी तथा आयात की मात्रा को सीमित कर दिया। संकट का असर धीरे-धीरे अन्य देशों में प्रकट होने लगा और वे प्रयास करने लगे कि अपनी आवश्यकता : अधिकांश वस्तुएँ स्वयं ही उत्पादित कर लें, जिसमें आर्थिक राष्ट्रवाद संकुचित होने लगा और व्यापार की कमर टूट गयी।
आर्थिक संकट के परिणाम-

मंदी के कारण बैंकों ने लोगों को कर्ज देना बन्द कर दिए। कों की वसूली तेज कर दी।
किसान अपनी उपज को नहीं बेच पाने के कारण बर्बाद हो गए।
कारोबार के ठप पड़ने से बेरोजगारी बढ़ी, कर्ज की वसूली नहीं होने से बैंक बर्बाद हो गए।
लगभग 110000 कंपनियाँ चौपट हो गई।
प्रश्न 2.
1945 से 1960 के बीच विश्वस्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधों पर । प्रकाश डालें।
उत्तर-
1945 के बाद विश्व में दो भिन्न अर्थव्यवस्था का प्रभाव बढ़ा और दोनों ने विश्व स्तर पर अपने प्रभावों तथा नीतियों को बढ़ाने का प्रयास किया। इस स्थिति से विश्व में एकनवीन आर्थिक और राजनैतिक प्रतिस्पर्धा ने जन्म लिया। सम्पूर्ण विश्व मुख्यतः दो गुटों में विभाजित हो गया। एक साम्यवादी अर्थतन्त्र वाले देशों के गुट का नेतृत्व सोवियत रूस कर रहा था। दूसरा पूँजीवादी अर्थतन्त्र वाले देशों के गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था।

सोवियत रूस ने पूर्वी यूरोप और भारत जैसे नवस्वतंत्र देशों में अपनी आर्थिक व्यवस्था को फैलाने का गंभीर प्रयास किया, जिसमें पूर्वी यूरोप तथा उ. कोरिया वियतनाम जैसे देशों में उसे पूर्ण सफलता मिली। दूसरी ओर पूँजीवादी अर्थतन्त्र का मुखिया सं. रा. अमेरिका ने विश्व के दो क्षेत्रों दक्षिण अमेरिका और मध्य तथा पश्चिमी एशिया के तेल सम्पदा सम्पन्न देशों (ईरान, ईराक, सऊदी अरब, जार्डन, यमन, सीरिया, लेबनान) में जबरन अपनी नीतियों को थोपने का काम किया। दक्षिणी अमेरिकी महादेश के देशों में तो सं. रा. अमेरिका ने अपनी खूफिया संस्था सी. आई. ए. के माध्यम से सैनिक शक्ति के इस्तेमाल की हद तक जाकर अपना प्रभाव स्थापित किया। जबकि पश्चिमी मध्य एशिया के देशों पर अपने प्रभाव को बनाने के लिए अरब बहुल आबादी वाले फिलिस्तीन क्षेत्र में एक नये यहूदी राष्ट्र इजरायल को स्थापित करवाकर, उसका सहारा लिया।

पश्चिमी यूरोपीय देशों (ब्रिटेन, फ्रांस, प. जर्मनी, बाल्टिक देश स्पेन) में भी महत्वपूर्ण आर्थिक संबंधों का विकास हुआ। 1944 में नीदरलैंड बेल्जियम और लग्जमवर्ग ने ‘बेनेलेक्स’ नामक संघ बनाया। 1948 में ब्रेसेल्स संधि हुआ जिसमें यूरोपीय आर्थिक सहयोग की प्रक्रिया कोयला एवं इस्पात के माध्यम से शुरू किया।

1957 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय यूरोपीय इकॉनॉमिक कम्यूनिटि की स्थापना हुई। इसमें फ्रांस, प. जर्मनी, बेल्जियम, हालैण्ड, लग्जमवर्ग और इटली शामिल हुए। इन देशों ने एक साझा बाजार स्थापित किया। ग्रेट ब्रिटेन 1960 में इसका सदस्य बना। इन सभी देशों पर सं. रा. अमेरिका का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 3.
भूमंडलीकरण के कारण आमलोगों के जीवन में आने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भूमंडलीकरण राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विश्वव्यापी समायोजन की एक प्रक्रिया है जो विश्व के विभिन्न भागों के लोगों को भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर एकीकृत करने का सफल प्रयास करती है। अर्थात जीवन के सभी क्षेत्रों में लोगों के द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों में विश्वस्तर पर पायी जानेवाली (एकरूपता या समानता) भूमंडलीकरण के अन्तर्गत सम्मिलित होती है। भूमंडलीकरण के कारण जीविकोपार्जन के क्षेत्र में काफी बदलाव आया है। इसकी झलक शहर, कस्बा और गाँव सभी जगहों पर दिख रही है। इसके कारण जीविकोपार्जन के गई नए क्षेत्र खुले हैं जैसे-कॉल सेंट, शॉपिंग मॉल, होटल और रेस्टोरेंट, बैंक और बीमा क्षेत्र में दी जानेवाली सुविधा, दूरसंचार और सूचना तकनीक का विकास इत्यादि। इन क्षेत्रों में कई लोगों को रोजगार मिला है और मिल रहा है जिससे अच्छी आमदनी होती है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आर्थिक भूमण्डलीकरण ने हमारी आवश्यकताओं के दायरे को बढ़ाया है और उसी अनुरूप उसकी पूर्ति हेतु नयी-नयी सेवाओं का उदय हो रहा है जिससे जुड़कर लाखों लोग अपनी जीविका चला रहे हैं इससे उनका जीवन स्तर भी बढ़ा है।

प्रश्न 4.
1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक सम्बन्धों पर । टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
1920 के बाद जो भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विकसित हुए। उसमें आर्थिक कारकों का महत्वपूर्ण स्थान था। 1929 के आर्थिक मंदी को आधार वर्ष मानकर 1919-1945 के बीच बनने वाले आर्थिक सम्बन्धों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।

1920 से 1929 तक का काल सामान्यतः आर्थिक समुत्थान और विकास का काल था! प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्व पर से यूरोप का प्रभाव क्षीण हो गया। यद्यपि उपनिवेशों (एशिया-अफ्रीका) पर उसकी पकड़ बनी रही लेकिन इस दौर में सं. रा. अमेरिका, जापान और सोवियत रूस ये तीन देश विश्व की सर्वप्रमुख्न शक्ति के रूप में उभरे। सं. रा. अमेरिका में युद्ध के तुरंत बाद का दो वर्ष आर्थिक संकट का काल था। परंतु 1922 के बाद तकनीकी उन्नति के कारण औद्योगिक विकास हुआ। परन्तु इसका एक नकारात्मक परिणाम देखने को मिला कि देश की आर्थिक शक्ति और सता कुछ हाथों और कम्पनियों के पास केन्द्रित हो गयी।

रूस और जापान ने 1920-1929 के बीच आर्थिक क्षेत्र में काफी प्रगति की। जापान अपनी आर्थिक प्रगति को बनाए रखने के लिए साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को आक्रामक रूप दिया जिसका शिकार चीन हुआ। इसी समय भारत एवं अन्य और निवेशिक देशों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ।
इस काल में नए राजनैतिक संबंधों का भी विकास हुआ। 1932 ई. में अमेरिकी राजनीति में फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट का उदय हुआ। उसने ‘न्यू डील” नामक नवीन आर्थिक नीतियों को अमेरिका में लागः उसके अन्तर्गत रेलमार्ग, सड़क, पुल स्थानीय विकास हेतु ऋण वितग्नि किया गया। औद्योगिक क्षेत्र में व्यापार और उत्पादन का नियमन, मजदूरी में वृद्धि, काम के घण्टे तथ करना, मूल्यों में वृद्धि रोकना इत्यादि सम्मिलित थे। कृषि क्षेत्र में किसानों की क्रय शक्ति तथा सामान्य आर्थिक स्थिति को युद्ध के पूर्व के स्तर तक ले जाने का प्रयास हुआ।

आर्थिक मंदी के आलोक में यूरोप की राजनैतिक स्थिति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। एक रूस में स्थापित साम्यवादी आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था का आकर्षण सम्पूर्ण विश्व में बढ़ा क्योंकि वही एक देश था, जिसपर इस मंदी का प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ा इससे उसका प्रभाव बहुत बढ़ा। इटली और जर्मनी में लोकतंत्र की विफलता और अधिनायकवादी तथा तानाशाही तंत्र के उदय ने यूरोप के कई और देशों को अपने लपेटे में ले लिया जैसे-स्पेन, आस्ट्रिया, यूनान इत्यादि। यूरोप में आर्थिक मंदी के बाद उदित होने वाली राजनैतिक व्यवस्था ने अपनी नीतियों से द्वितीय महायुद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया।

Bihar Board Class 10 History व्यापार और भूमंडलीकरण Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रेशम माग कहाँ से आरंभ होता था?
उत्तर-
रेशम मार्ग का आरंभ चीन से होता था।

प्रश्न 2.
गुलामी प्रथा का प्रचलन किस देश में था?
उत्तर-
गुलामी प्रथा का प्रचलन इंगलैंड, जर्मनी एवं फ्रांस में था।

प्रश्न 3.
कॉर्न लॉ किस देश में पारित किया गया था ?
उत्तर-
कॉर्न लॉ को ब्रिटेन में पारित किया गया था।

प्रश्न 4.
अमेरिका में वृहत उत्पादन व्यवस्था किसने आरंभ की?
उत्तर-
हेनरी फोर्ड ने अमेरिका में वृहत उत्पादन व्यवस्था को आरंभ किया।

प्रश्न 5.
गिरमिटिया मजदूर किस देश से ले जाए जाते थे ?
उत्तर-
गिरमिटिया मजदूर भारत से ले जाए जाते थे।

प्रश्न 6.
अमेरिका के उपनिवेशीकरण में किसका महत्वपूर्ण योगदान था?
उत्तर-
अमेरिका के उपनिवेशीकरण में इंगलैंड का महत्वपूर्ण योगदान था।

प्रश्न 7.
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय किन तीन प्रवाहों पर आधृत है ?
उत्तर-
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय तीन प्रवाहों पर आधारित हैं वे हैं व्यापार, श्रम एवं पूंजी।

प्रश्न 8.
गिरमिटिया मजदूर कौन थे?
उत्तर-
औपनिवेशिक देशों के ऐसे मजदूर जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अपने शासित क्षेत्रों में ले जाया जाता था, गिरमिटिया मजदूर कहलाते थे

प्रश्न 9.
ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापित दो वित्तीय संस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर-
ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापित दो वित्तीय संस्थाओं के नाम हैं-

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं
विश्व बैंक।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में वैश्वीकरण का अर्थ है अपनी अर्थव्यवस्था और विश्व अर्थव्यवस्था में सामंजस्य स्थापित करना। इसके अंतर्गत अनेक विदेशी उत्पाद अपना सामान और सेवाएं बेच सकते हैं। इसी प्रकार हम अपने देश से निर्मित माल और सेवाएँ दूसरे देशों में बेच सकते हैं। इस प्रकार वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक-दुसरे से परस्पर रूप में निर्भर हते हैं।

प्रश्न 2.
भारत के सूती वस्त्र उद्योग में गिरावट के क्या कारण थे?
उत्तर-
18वीं शताब्दी तक भारतीय सूती कपड़े की मांग सारे विश्व में थी, परंतु 19वीं शताब्दी के आते-आते इस में गिरावट आती गयी जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण थे।

भारतीय सूती कपड़े के उद्योग की गिरावट का सबसे मुख्य कारण इंगलैंड की औद्योगिक क्रांति थी जिसके कारण अब उसने भारत से सूती कपड़े का आयात बंद कर दिया था।
औपनिवेशिक सरकार भारतीय बाजारों में ब्रिटिश निर्मित सूती वस्त्रों की भरमार कर दी जो भारतीय वस्त्र के मुकाबले काफी सस्ते होते थे।
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी काफी कम कीमत में भारतीय कपास या रूई खरीदकर इंगलैंड भेज देती थी। जिससे भारतीय निर्माताओं को अच्छी कपास मिलना मुश्किल हो गया। तथा
भारतीय सूती कपड़े के निर्यात पर काफी कर लगा दिए गए।
प्रश्न 3.
सत्रहवीं शताब्दी के पूर्व होनेवाले आदान-प्रदान का एक उदाहरण एशिया से और एक अमेरिका से दें।
उत्तर-
विभिन्न देशों के संपर्क का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि खाने-पीने की वस्तुएँ एक देश से दूसरे देश में जाने लगी। व्यापारी और यात्री अपने देश का सामान ले जाते थे और विदेशों की विशिष्ट वस्तुओं को अपने यहाँ लाते थे। नूइल्स के विषय में विद्वानों का मानना है कि यह चीनी मूल का था और वहाँ से ही यह पश्चिमी जगत में पहुँचा। क्रिस्टोफर कोलम्बस अमेरिका से आलु, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर इत्यादि अपने साथ यूरोप ले गया जहाँ से वे एशिया आए।

प्रश्न 4.
ब्रिटेन में कॉन लॉ समाप्त करने के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी से ब्रिटेन की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई जिसके कारण खाद्यान्न की मांग बढ़ने लगी। शहरों के विकास और औद्योगीकरण ने भी खाद्यान्नों की मांग बढ़ा दी। खाद्यानों की बढ़ती मांग ने कृषि उत्पादों की मांग में तेजी ला दी। इससे कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ गया। इसका लाभ बड़े कृषकों एवं भूस्वामियों ने उठाया। अपने उत्पादों को बेचने के लिए इन दोनों ने सरकार पर दबाव डालकर ब्रिटेन में कॉर्न लॉ द्वारा मक्का के आयात को प्रतिबंधित करवा दिया। फलतः इंगलैंड में भू-स्वामी कृषि उत्पादों को ऊंची कीमत पर बेचकर लाभ कमाने लगे। दूसरी ओर अनाज की बढ़ी कीमतों से उद्योगपति और शहरों में रहने वाले लोग त्रस्त हो गए। इन लोगों ने कॉर्न लॉ का जबर्दस्त विरोध किया और इसे वापस लेने की मांग की। सरकार को बाध्य होकर कॉर्न लॉ को समाप्त करना पड़ा तथा खाद्यान्न के आयात की अनुमति देनी पड़ी।

प्रश्न 5.
न्यू डील से आप क्या समझते हैं ? इसे क्यों लागू किया गया?
उत्तर-
आर्थिक महामंदी के प्रभावों को समाप्त करने एवं उसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से 1932 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट ने नई आर्थिक नीति अपनाई। इसे न्यू डील का नाम दिया गया। इस नई नीति के अनुसार जनकल्याण की व्यापक योजना के अंतर्गत आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक नीतियों को नियमित करने का प्रयास किया गया। नई योजना का उद्देश्य कृषि और उद्योग में संतुलन स्थापित करना तथा मानव समान और स्वाधीनता को सुरक्षित रखना था। जनकल्याण की नीति के अंतर्गत परिवहन के साधनों तथा स्थानीय विकास कार्यों के लिए . आर्थिक सहायता दी गयी जिससे रोजगार के लिए नए अवसर उपलब्ध हो सके। औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक और उत्पादन में नियमन का प्रयास किया गया। श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि की गयी उनके काम के घंटे भी नियत किए गए। किसानों की क्रयशक्ति को बढ़ाने.तथा उनकी सामान्र ।
आर्थिक स्थिति को युद्ध के पूर्व की स्थिति तक ले जाने का प्रयास किया गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय के तीन प्रवाहों का उल्लेख करें। भारत से संबद्ध तीनों प्रवाहों का उदाहरण दें।
उत्तर-
9वीं शताब्दी से नई विश्व अर्थव्यवस्था का विकास हुआ। इसमें आर्थिक विनिमयों की प्रमुख भूमिका थी। अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक विनिमय तीन प्रकार के प्रवाहों पर आधारित है वे हैं-(i) व्यापार, (ii) श्रम तथा (ii) पूंजी। 19वीं सदी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तेजी से विकास हुआ। परंतु यह व्यापार मुख्यतः कपड़ा और गेहूँ जैसे खाद्यानों तक ही सीमित थे। दूसरा प्रवाह श्रम का था। इसके अंतर्गत रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग एक स्थान या देश से दूसरे स्थान और देश की जाने लगे। इसी प्रकार कम अथवा अधिक अवधि के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों में पूँजी निवेश किया गया। विनिमय के ये तीनों प्रवाह एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, यद्यपि कभी-कभी ये संबंध टूटते भी थे। इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में इन तीनों प्रवाहों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

भारत से संबंधित तीनों प्रवाह का उदाहरण इस प्रकार हैं –

भारत से श्रम का प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय बाजार की माँग के अनुरूप उत्पादन बढ़ाने के लिए 19वीं शताब्दी से श्रम का प्रवाह भारत से दूसरे देशों की ओर हुआ। इन श्रमिकों को गिरमिटिया श्रमिक कहा जाता था क्योंकि इन्हें विदेशों में काम करने के लिए एक अनुबंध के तहत ले जाया गया।

वैश्विक बाजार में भारतीय पूंजीपति विश्व बाजार के लिए बड़े स्तर पर कृषि उत्पादों के लिए पूँजी की आवश्यकता थी। बागान मालिक बैंक और बाजार से अपने लिए पूँजी की व्यवस्था कर लेते थे परंतु असली कठिनाई छोटे किसानों की थी। अतः उन्हें साहूकारों और महाजनों की शरण में जाना पड़ा जो ऊँची सूद की दर पर किसानों को पूँजी उपलब्ध कराते थे। इससे महाजनी और साहूकारी का व्यवसाय चल निकला।

भारतीय व्यापार इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के पूर्व इंगलैंड को भारत से सूती वस्त्र और महीन कपास का निर्यात बड़ी मात्रा में किया जाता था। इसी बीच कृषि के विकास होने से ब्रिटेन में कपास का उत्पादन बढ़ गया साथ ही सरकार ने भारतीय सूती वस्त्र पर इंगलैंड में भारी आयात शुल्क लगा दिया। इसका असरं भारतीय निर्यात पर पड़ा। संती वस्त्र एवं कपास का निर्यात घट गया। दूसरी ओर मैनचेस्टर में बने वस्त्र का आयात भारत में बढ़ गया।

प्रश्न 2.
कैरीबियाई क्षेत्र में काम करनेवाले गिरमिटिया मजदूरों की जिंदगी पर प्रकाश डालें। अपनी पहचान बनाए रखने के लिए उन लोगों ने क्या किया ?
उत्तर-
गिरमिटिया मजदूर ऐसे मजदूरों को कहा जाता था जिन्हें विदेशों में काम करने के लिए एक अनुबंध अथवा एग्रीमेंट के अंतर्गत ले जाया गया। इन मजदूरों को कृषि, खाद्यानों, सड़क और रेल निर्माण कार्यों में लगाया गया। भारत से अधिकांश अनुबंधित श्रमिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु से ले जाए गए। भारत से श्रमिक मुख्यतः कैरीबियाई द्वीप समूह में स्थित त्रिनिदाद गुयाना, और सूरीनाम ले जाए गए। बहुतेरे जमैका, मॉरीशस एवं फिजी भी ले जाए गए। हालाकि ब्रिटिश सरकार ने 1921 में गिरिमिटिया श्रमिकों की व्यवस्था समाप्त कर दी।

इस प्रथा के समाप्त होने के बाद भी दशकों तक अनुबंधित मजदूरों के वंशज कैरीबियाई द्वीप समूह में कष्टदायक और अपमानपूर्ण जीवन व्यतीत करने को विवश किए गए। गिरमिटिया मजदूर सुखी-संपन्न जीवन की उम्मीद में अपना घर द्वार छोड़कर काम करने जाते थे लेकिन कार्य स्थल पर पहुँचकर उनका स्वप्न भंग हो जाता था। बागानों अथवा अन्य कार्यस्थलों पर उनका जीवन कष्टदायक था। उन्हें एक प्रकार की दासता की जंजीरों में जकड़ दिया गया था। इस स्थिति से ऊबकर अनेक मजदूर काम छोड़कर भागने का प्रयास करते थे परंतु मालिक के चंगुल से बच निकलना आसान नहीं था। पकड़े जाने पर उन्हें कठोर दंड दिया जाता था।

इस स्थिति स रहते हुए आप्रवासी भारतीयों ने जीवन की राह ढूँढी जिससे वे सहजता से नए परिवेश में खप सकें। इसके लिए उन लोगों ने अपनी मूल संस्कृति के तत्वों तथा नए स्थान के सांस्कृतिक तत्वों का सम्मिश्रण कर एक नई संस्कृति का विकास कर लिया। इसके द्वारा उन लोगों ने अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान बनाए रखने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए त्रिनिदाद में गिरमिटिया श्रमिकों ने वार्षिक मुहर्रम के जुलूस को एक भव्य उत्सव और मेले के रूप में परिवर्तित कर दिया।

इस मेले का नाम उन लोगों ने ‘होसे मेला रखा। यह मेला सांप्रदायिक एकता और सद्भावना का प्रतीक बन गया। इसमें त्रिनिदाद में रहने वाले सभी धर्मों और नस्लों के श्रमिक भाग लेते थे। इसी प्रकार त्रिनिदाद और गुयाना में विख्यात ‘चटनी म्यूजिक’ में भी स्थानीय और भारतीय संगीत के तत्वों का मिश्रण कर आप्रवासी भारतीयों ने इसे बनाया। इस प्रकार आप्रवासी भारतीयों ने कैरीबियाई द्वीप समूह के सांस्कृतिक तत्वों को अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हुए भी आत्मसात करने का प्रयास किया।

प्रश्न 3.
आर्थिक महामंदी के कारणों की व्याख्या करें? भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
1929 ई. की आर्थिक महामंदी के निम्नलिखित कारण थे
(i) बुनियादी कारण-1929 के आर्थिक संकट का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ तो दूसरी तरफ अधिकांश जनता गरीबी और अभाव में पिसती रही। नवीन तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन में तो भारी वृद्धि हुई लेनिन उत्पादित वस्तुओं के खरीदार बहुत कम थे।

(ii) कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल में कमी-बढ़े हुए कृषि उत्पाद के खरीदार नहीं मिलने के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें काफी गिर गयी जिससे किसानों की आय घट गयी। प्रमुख अर्थशास्त्री काडलिफ ने अपनी पुस्तक “दि कॉमर्स ऑफ नेशन” में लिखा कि विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल की विकृति 1929-32 के आर्थिक संकटों के प्रमुख कारण थे।

(iii) यूरोपीय देशों के बीच संकुट-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के बहुत सारे देशों में अपनी तबाह हो चुकी अर्थव्यवस्था को नए सिरे से विकसित करने के लिए अमेरिका से कर्ज लिया। अमेरिकी पूँजीपतियों ने कर्ज तो दिए लेकिन जब अमेरिका में घरेलु संक्रट के संकेत मिले तो वे कर्ज वापस माँगने लगे। इस परिस्थिति से यूरोपीय देशों के बीच गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। परिणामस्वरूप यूरोप के कई बैंक डूब गये तथा कई देशों के मुद्रा मुल्य गिर गया।

(iv) सट्टेबाजी की प्रवृत्ति- इन उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त अमेरिकी बाजारों में शुरू हुआ सट्टेबाजी की प्रवृत्ति भी आर्थिक मंदी में निर्णायक भूकिा निभाई। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् अमेरिका की आर्थिक समृद्धि में वृद्धि के परिणामस्वरूप वहाँ के पूँजीपति अतिरिक्त पूँजी को सट्टा ।। लगाने की ओर आकर्षित हुए। शुरू में तो काफी लाभ हुआ बाद में संकट उभरकर सामने आ गया।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव-आर्थिक मंदी का प्रभाव विश्वव्यापी था। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत पर आर्थिक मंदी के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

(i) व्यापार में गिरावट-महामंदी के पूर्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में आयातक और निर्यातक के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भागीदारी थी। महामंदी का प्रभाव इस आयात-निर्यात व्यापार पर पड़ा। यह काफी घट गया। 1928-34 के मध्य आयात-निर्यात घटकर आधा रह गया।

(ii) कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी-विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी आने के पश्चात भारतीय कृषि उत्पादों के मूल्य में भी गिरावट आई। 1928-1934 के मध्य गेहूँ की कीमत में 50 प्रतिशत की कमी आई।

(iii) किसानों की दयनीय स्थिति-महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव किसानों पर पड़ा। मूल्य में कमी आने तथा बिक्री कम हो जाने से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय बन गई। वे लगान चुकाने में असमर्थ हो गए लेकिन सरकार ने न तो लगान की राशि घटाई और न ही लगान माफ की। जिससे किसानों में असंतोष की भावना बढ़ी। इसी आर्थि संकट के कारण महात्मा गांधी ने भारत में व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया।

प्रश्न 4.
ब्रिटेन वुड्स समझौता की व्याख्या करें।
उत्तर-
दो महायुद्धों के बीच आर्थिक अनुभवों से सीख लेकर अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं ने आर्थिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए दो उपाय सुझाव ये थे- (i) आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक सरकारी हस्तक्षेप तथा (ii) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को सुनिश्चित करने में सरकार की भूमिका। इसे कार्यान्वित करने की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श करने के लिए जुलाई 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में बबन वुड्स नामक स्थान पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया। विचार-विमर्श करने के बाद दो संस्थाओं का गठन किया गया। इनमें पहला अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) था और दूसरा अंतराष्ट्रीय पुनर्निमाण एवं विकास बैंक अथवा विश्व बैंक (World Bank)। इन दोनों संस्थानों को ‘ब्रेटन वुड्स ट्विन’ या ‘क्रेटनवुड्स की जुड़वाँ संतान’ कहा गया।

आई. एम. एफ. ने अंतराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था और राष्ट्रीय मुद्राओं तथा मौद्रिक व्यवस्थाओं को जोड़ने की व्यवस्था की। इसमें राष्ट्रीय मुद्राओं के विनिमय की दर अमेरिकी मुंद्रा ‘डॉलर’ के मूल्य पर निर्धारित की गयी। डॉलर का मूल्य भी सोने के मूल्य से जुड़ा हुआ था। विश्व बैंक चने विकसित देशों को पुनर्निर्माण के लिए कर्ज के रूप में पूँजी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। इसी आधार पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को नियमित करने का प्रयास किया गया। ब्रेटनवुड्स संस्थानों ने औपचारिक रूप से 1947 से काम करना आरंभ कर दिया। इन संस्थानों के निर्णयों पर पश्चिमी औद्योगिक देशों का नियंत्रण स्थापित किया गया। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को अई. एम. एफ. और विश्व बैंक के किसी भी निर्णय पर निषेधाधिकार (वीटो) प्रदान किया गया।

Bihar Board Class 10 History व्यापार और भूमंडलीकरण Notes
प्राचीन भारत में विकसित सिन्धुघाटी सभ्यता का व्यापारिक सम्बन्ध प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ था।
1919 में विश्व स्तर पर आर्थिक मंदी का दौर था क्योंकि 1929 के बाद ब्रिटेन के उत्पादन, निर्यात, रोजगार, आयात तथा जीवन निर्वाह स्तर, इन सब में तेजी से गिरावट आया।
1932 में फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट (अमेरिकी राष्ट्रपति) ने जनकल्याण की एक बड़ी योजना से संबंधित नई नीति बनायी जिसे न्यू-डील कहते हैं। इसमें आर्थिक क्षेत्र के अलावा राजनीतिक और प्रशासनिक नीतियों को भी नियमित किया गया।
जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर “ब्रेटन वुड्स’ नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन हुआ, जिसमें एक सहमति बनी जिसके बाद अन्तर्राष्ट्री मुद्राकोष एवं विश्व बैंक का गठन किया।
1119 के बाद विश्वव्यापी अर्थतंत्र में यूरोप के स्थान पर संयुक्त राज्य अमारका और रूस का प्रभाव बढ़ा जो द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व व्यापार और राजनैतिक व्यवस्था में निर्णायक हो गया।
1919 के बाद विश्व बाजार के अन्तर्गत ही एक नवीन आर्थिक प्रवृति भूमंडलीकरण का उत्कर्ष हुआ जो निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण से प्रत्यक्षतः जुड़ा था।
भूमंडलीकरण ने सम्पूर्ण विश्व के अर्थतंत्र का केन्द्र बिन्दु संयुक्त राज्य अमेरिका को बना दिया। उसकी मुद्रा डॉलर पूरे विश्व की मानक मुद्रा बन गई।
आर्थिक मंदी का सबसे बुरा असर अमेरिका को ही झेलना पड़ा।
1928 से 1934 के बीच भारत में गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत गिर गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट ने 1932 में न्यूडील (नई व्यवस्था) नामक नवीन आर्थिक नीतियों को अमेरिका में लागू किया।
व्यापार को बढ़ाने के उद्देश्य से 1932 में लोजान सम्मेलन हुआ जिसमें जर्मनी के क्षतिपूर्ति राशि को कम कर दिया गया।
फ्रांस के विदेश मंत्री त्रिया ने पहली बार यूरोप में एक आर्थिक संघ बनाने का सुझाव दिया।
1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैल्थशायर में ‘ब्रेटनवुडस’ नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन हुआ।
1948 में ब्रसेल्स संधि हुई जिसमें यूरोपीय आर्थिक सहयोग की प्रक्रिया कोयला एवं इस्पात के माध्यम से शुरू हुआ।
1991 के बाद विश्व बाजार के अंतर्गत ही एक नवीन आर्थिक प्रवृत्तिं भूमंडलीकरण का उत्कर्ष हुआ जो निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण से प्रत्यक्षतः जुड़ा था।
भौगोलिक खोजों पुनर्जागरण तथा राष्ट्रीय राज्यों के उदय से वाणिज्यक क्रांति हुई।
औद्योगिक क्रांति और उपनिवेशवाद के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास हुआ।
रेशम मार्ग चीन से आरंभ होकर जमीनी मार्ग द्वारा मध्य एशिया होते हुए यूरोप से जुड़ जाता था।

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