BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 4 बिहार में चित्रकला

Bihar Board Class 9th Hindi Book Solutions हिंदी गद्य खण्ड Chapter 4 बिहार में चित्रकला – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 4 बिहार में चित्रकला

श्न 1.
पटना कलम क्या है? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
बौद्ध धर्म के विकास के साथ भारतीय चित्रकला के इतिहास में एक नवीन और विकसित अध्याय आरंभ होता है। इस युग में बिहार और उसकी राजधानी पाटलीपुत्र का स्थान चित्रकला में सबसे अग्रगण्य था। पटना अर्थात् पाटलीपुत्र क्षेत्र के चित्रकारों की चित्रकारी में दिल्ली वाली चित्रकारी की विशेषताएँ तो थी ही किन्तु : स्थानीय प्रभाव से इसमें कुछ विशेष व नवीन विशेषताओं का उभार आया। इसी नवीन चित्रकारी शैली को पटना शैली अर्थात् पटना कलम का नाम दिया गया। पटना कलम का तात्पर्य हुआ चित्रकारी की पटना शैली। बिहार में चित्रकला का व्यापक विकास पटना कलम के रूप में हुआ है।

पटना कलम के चित्रों में विषय के रूप में पशु-पक्षी, प्राकृतिक दृश्य, किसान, लघु व्यवसाय, नाई, धोबी, बढ़ई, लुहार, मोची, तेली, गरीब ब्राह्मण, मुनीम, जमींदार आदि के जीवन व कार्य हआ करते थे. जिसमें बिहार के वर्ग विभाजित लोक जी का यथार्थ अंकन हुआ करता था।
पटना चित्रशैली के जयराम दास, झमक लाल, फकीरचंद लाल, शिवदयाल, भैरोजी, मिर्जा निसार, मेंहदी, गुरु सहाय, सेवक राम, कन्हैया लाल, सोना कुमारी, महादेव लाल, ईश्वरी प्रसाद वर्मा और राधामोहन प्रसाद जी प्रमुख चित्रकार, शिल्पकार, मूर्तिकार आदि थे। थे। सन् 1760 से 1947 ई. तक के काल को पटना कलम के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 2.
राधामोहन बाबू के महत्व पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
बिहार में पटना चित्रशैली के अंतिम महत्वपूर्ण चित्रकार के रूप में राधामोहन जी का नाम स्वर्णाक्षरित है। यद्यपि विद्वानों ने ईश्वरी प्रसाद वर्मा को पटना कलम का अंतिम चित्रकार माना है। किन्तु वास्तविकता यह है कि महादेव लाल जी के शिष्य बाबू राधामोहन प्रसाद और ईश्वरी प्रसाद के शिष्य दामोदर प्रसाद अम्बष्ट ने पटना चित्रकारी शैली का अपनी पीढ़ी तक बखूबी निर्वाह किया है। फिर भी राधामोहन बाबू का नाम का पटना कलम में कलात्मक पुनर्जागरण की चेतना को व्यापक उभार प्रदान करने में अति महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इन्होंने कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना पटना में करके चित्रकारी को नव-अभ्युदय प्रदान किये। राधागोहन जी का कहना है “बौद्ध धर्म के विकास के साथ-साथ भारतीय चित्रकला के इतिहास में एक नवीन और विकसित अध्याय प्रारंभ होता है और इसका विकास इतिहास मौर्यकाल तक पहुंचता है।” पाटलीपुत्र से बौद्ध प्रचारकों के साथ-साथ चित्रकार और मूर्तिकार भी बाहर भेजे जाते थे। जो बुद्ध के उपदेश और उनकी जीवनी के विविध प्रसंग मंदिरों की भित्तियों तथा स्तूपों पर चित्रमूर्ति के रूप में अंकित करते थे।

बिहार परिवर्तनों का प्रदेश रहा है। प्रवृत्ति को नया उन्मेष और धारा को नया मोड़ देने वाली विभूतियों का यहाँ कभी कमी नहीं हई ऐसे ही एक विभूति के रूप में चित्रकार राधामोहन बाबू का जन्म पटना में हुआ जो पटना चित्रशैली के ऐसी अंतिम कड़ी थे, जिन्होंने भविष्य के कलात्मक विकास के लिये एक पुख्ता स्थायी और उर्वर भूमि तैयार की थी। पटना में कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना करवा कर तो राधामोहन बाबू ने पटना चित्रकला शैली को स्थायी स्थायित्व रूप दिया।

प्रश्न 3.
चित्रकला के क्षेत्र में उपेन्द्र महारथी के महत्वपूर्ण योगदानों का परिचय दीजिए।
उत्तर-
पटना में कला और शिल्प महाविद्यालय के स्थापना के पश्चात् पूरे बिहार राज्य में कलात्मक पुनर्जागरण की चेतना का व्यापक उभार हुआ उसी दौरान उपेन्द्र महारथी जैसे बड़े कलाकार का बिहार में पर्दापण हुआ। इस प्रदेश में ये ऐसी अंतरंगता के साथ रमे कि आजन्म अपनी कला यात्रा का पल-पल बिहार की मिट्टी को समर्पित करते रहे। इस कला साधक ने अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर बिहार का नाम चित्रकारिता में सुशोभित किया।

उपेन्द्र महारथी ने चित्रकला की शिक्षा कलकत्ते में ग्रहण के दौरान ही महसूस कर लिया था कि कला को विदेशी प्रभावों से मुक्त कर राष्ट्रीय चेतना से जोड़ना आवश्यक है। इनकी चित्रकारी में भारतीय धर्म, दर्शन तथा राष्ट्रीयता का गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है। उन्होंने अपने दरभंगा-निवास के दौरान ही मिथिला की चित्रमूर्ति आदि लोककलाओं का गहरा अध्ययन किया और उनके महत्व से लोगों को परिचित कराया। लोक कलाओं पर उन्होंने लंबे काल तक शोधपरक कार्य करते हुए बिहार तथा बंगाल के सुदूर देहाती क्षेत्रों की यात्रायें की थी। उन्होंने प्राप्त कलाकृतियों तथा शिल्पों की विशेषताओं से विशेषज्ञों को परिचित कराया था

स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ बिहार सरकार ने उपेन्द्र महारथी को उद्योग विभाग में डिजाइनर के पद पर नियुक्त कर किया और महारथी जी ने भी इस पद पर रहते हुए सिद्ध कर दिया कि चित्रकारी तथा शिल्प के अलावे वे वास्तु-कला के भी महारथी हैं। उनका डिज़ाइन किया हुआ राजगीर, शांति स्तूप, प्राकृत और जैनॉलॉजी संस्थान नालंदा और धौली (भुवनेश्वर) के शांति स्तूप उनकी राष्ट्रीयता मूलक कला-चेतना , तथा कल्पनाशीलता के कालजयी प्रमाण है।

वेणु शिल्प (बाँस कला) में विशेषज्ञता प्राप्ति के पश्चात् इन्हें राष्ट्रपति भवन के एक कक्ष को वेणुशिल्प से अलंकृत करने के लिये विशेष रूप से दिल्ली बुलाया गया था। चित्रकारी, शिल्पकर्म, अध्ययन और शोध-ये चार विशेषतायें उपेन्द्र महारथी के व्यक्तित्व के अंग थे। ये कला से संबंधित लेखन और कथा साहित्य की रचना किया करते थे। “वैशाली की लिच्छिवी”, बौद्ध धर्म का अधत्म,” और “इन्द्रगुप्त” ‘ जैसी पुस्तकों के साथ जापानी वेणु शिल्प पर भी उन्होंने एक स्वतंत्र पुस्तक लिखी थी। बिहार में कलाकर्म और शिल्पकर्म का वास्तविक उन्नयन उपेन्द्र महारथी जी द्वारा ही किया गया है ऐसा उनके कर्तृत्व द्वारा सिद्ध होता है। अतः चित्रकला के क्षेत्र में महारथी जी का योगदान उनकी महारत को भी प्रमाणित कर देता है।

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प्रश्न 4.
छापा चित्रकारी क्या है? इसके विशेषज्ञ चित्रकार कौन हैं? .
उत्तर-
छापा चित्रकारी का बिहार में शुभारंभ अत्यंत स्नेहिल तथा सरल-सहज व्यक्तित्व वाले श्याम शर्मा जी द्वारा हुआ है। सन् 1760 से सन् 1947 तक का समय पटना शैलि का समय है। समय के पटना शैली के चित्रकार राधामोहन बाबू थे। राधामोहन बाबू के साथ पटना चित्र शैली (पटना कलम) का अंत माना जा सकता है।

किन्तु उनके बाद जिन कलाकारों ने बिहार में कलाकर्म और शिल्प कर्म को बहुआयामी आधुनिकता तथा प्रयोगात्मक नवीनता से युक्त किया उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम श्याम शर्मा जी का माना जा सकता है, जिनका जन्म सन् 1941 में
थरा (उत्तर प्रदेश) में हआ था। कलाशिल्प महाविद्यालय लखनऊ में इन्होंने छापा चित्रकारी में विशेषज्ञता प्राप्त कर कला और शिल्प महाविद्यालय पटना, बिहार में छापा कला के विशेषज्ञ शिक्षक के रूप में कार्य करने लग गये। छापा चित्रकारी के विशेषज्ञ चित्रकार श्याम शर्मा ही हैं।

प्रश्न 5.
पटना कला और शिल्प महाविद्यालय का परिचय दीजिए।
उत्तर-
बिहार में पटना कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना चित्रकार राधामोहन बाबू ने किया था, जो प्रवृत्ति को नवीन उन्मेष और प्रवाह को नया मोड़ देने वाले विभूतियों में से एक थे। इनका जन्म पटना में हुआ था।

पटना कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना के साथ बिहार की कला और शिल्प के क्षेत्र को नवअभ्युदय के साथ एक सशक्त ज्ञान-विज्ञानशाला प्राप्त हो गया जहाँ से अनेक विश्व-विख्यात चित्रकार, मूर्तिकार, शिल्पकार, वेणु शिल्पकारों के निर्माण के साथ राष्ट्रीय व राज्य स्तर के चित्रकार शिल्पकार भी तैयार हुए। इन कलाकारों ने विश्व चित्रकारिता के क्षेत्र में गजब का प्रभाव कायम किया और मूर्तिकारों व शिल्पकारों के निए विश्वस्तरीय आकर्षण का निर्माण भी किया।

प्रश्न 6.
वेणु शिल्प क्या है? वेणु शिल्प में उपेन्द्र महारथी के महत्वपूर्ण योगदानों का परिचय. दीजिए।
उत्तर-
वेणु शिल्प अर्थात् बाँस कला, आज भी बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलायें मुंज, कुश तथा गेहूँ के डंठलों से दौरी, दौरा, डाली, मऊनी, मोढ़ा आदि विभिन्न रंगों की बना लेती हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् उद्योग विभाग में सरकारी डीजाइनर, श्री उपेन्द्र महारथी जो चित्र कला, शिल्प कला के साथ वास्तुकला के भी महारथी थे। वेणु शिल्प में जापान तक की कला यात्रा करके विशेषज्ञता प्राप्त करके वे जब वापस आये तो प्रथमतः राष्ट्रपति भवन में एक कक्ष को विशेष वेणुकला से अलंकृत करने के लिये दिल्ली बुलाये गये थे।

वेणु शिल्प कला के क्षेत्र में पेन्द्र महारथी जी का योगदान अविस्मरणीय ऐतिहासिक के साथ सांस्कृतिक भी है। कला से संबंधित लेखन तथा कथा-साहित्य की रचनायें उपेन्द्र महारथी जी के महान योगदान के साक्षी हैं। ‘वैशाली की लिच्छवी’, ‘बौद्ध धर्म का अध्यात्म’ के अलावा वेणु शिल्प जगत में एक नया अध्याय जोड़ते हुए जापानी वेणु शिल्प पर एक स्वतंत्र पुस्तक तैयार की थी। वास्तव में बिहार में कलाकर्म और शिल्पधर्म के साथ वेणु शिल्प (बॉस कला) का यथार्थ उन्नयन उपेन्द्र महारथी जी ने किया था।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 4 बिहार में चित्रकला
प्रश्न 7.
बिहार की चित्रकारी में डब्ल्यू. जी. आर्चर का क्या महत्त्व रहा है?
उत्तर-
बिहार की चित्रकारी में विशिष्ट स्थान रखने वाली मधुबनी चित्रकला से अंतर्राष्ट्रीय जगत को प्रथम बार परिचित कराने वाले तत्कालीन जिलाधिकारी डब्लू० जी० आर्चर थे। इन्होंने चित्रकार ईश्वरी प्रसाद वर्मा के तीन सौ चित्र खरीद कर विश्वस्तर पर उन चित्रों के माध्यम से बिहार के मधुबनी चित्र कला को विश्व स्तर पर स्थापित किया। बिहार की चित्रकारी में डब्लू. जी. आर्चर अतिविशिष्ट महत्व की भूमिका निभायी है।

प्रश्न 8.
‘पटना कलम’ चित्रशैली का काल कब से कब तक माना जाता है?
उत्तर-
‘पटना कलम’ चित्रशैली का काल लगभग सन् 1760 से सन् 1986 तक का माना जाता है।

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प्रश्न 9.
सामाजिक जीवन में चित्रकला के महत्व पर एक निबंध लिखें।
उत्तर-
सामाजिक जीवन में चित्रकला विभिन्न विशेष अवसरों या मांगलिक कार्यों में अथवा ज्ञानार्जन या मनोरंजन में अथवा सांस्कृतिक या ऐतिहासिक वैशिष्टय के विभिन्न प्रसंगों पर विभिन्न प्रकार को प्रभाव निर्माण करने वाली है। यह सामाजिक जीवन का दर्पण कहलाने वाली चित्रकला व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीयता या वैश्विक जीवन में नवीनता व प्रेरणा उत्पन्न करने वाली है।

चित्रकला के माध्यम से समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण और ऐतिहासिक विरासत को सुरक्षित रखता है। किसी भी क्षेत्र विशेष की संपूर्ण जानकारी एक चित्र के माध्यम से भी संभव है।

सोलह कलाओं में चित्रकला भी एक कला है। यह जीवन के रुचि-रुझान व आकर्षण का प्रतिबिंब उपस्थित करता है। जीवन में परंपरावश अथवा महत्तावश मनुष्य इस कला को अपने अंदर विकसित करता है। चित्रकला के क्षेत्र में कशलता एवं तल्लीनता से लगे लोगों की आजीविका भी पुष्ट होती है। अनेक लोगों के जीवन यापन का साधन भी यह चित्रकला है। चित्रकला हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है, जिसके माध्यम से हम वर्तमान, भविष्य और भूत काल के साक्ष्यों को छायांकित कर प्रकट करने में सक्षम हो पाते हैं। अपने परिवार और पूर्वजों के चित्र एवं प्रतिमाएँ, देवी-देवताओं या महापुरुषों के चित्र एवं प्रतिमाएँ उनके जीवन का हमें सदा स्मरण दिलाती रहती है। यह चित्रकला सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग है।


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