MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 8 मातृभूमि का मान

MP Board Class 10th Hindi Book Solutions हिंदी Chapter 8 मातृभूमि का मान- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 8 मातृभूमि का मान

प्रश्न 1.
बूंदी के राव मेवाड़ के अधीन क्यों नहीं रहना चाहते?
उत्तर:
बूंदी के राव मेवाड़ के अधीन नहीं रहना चाहते थे क्योंकि वे स्वतन्त्रता में विश्वास करते थे और किसी की भी गुलामी स्वीकार नहीं करते थे।

प्रश्न 2.
मुट्ठी भर हाड़ाओं ने किसे पराजित किया था?
उत्तर:
मुट्ठी भर हाड़ाओं ने महाराणा लाखा तथा उनकी सेना को पराजित किया था।

प्रश्न 3.
वीर सिंह का प्राणान्त कैसे हुआ?
उत्तर:
वीर सिंह का प्राणान्त गोले के वार से हुआ।

प्रश्न 4.
“अनुशासन का अभाव हमारे देश के टुकड़े किये हुए है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन महाराणा लाखा के विश्वास पात्र दरबारी अभयसिंह का है।

प्रश्न 5.
महाराणा लाखा वीर सिंह के किस गुण से प्रसन्न हुए?
उत्तर:
महाराणा लाखा वीर सिंह की वीरता के गुण से प्रसन्न हुए।

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मातृभूमि का मान लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराणा लाखा ने कौन-सी प्रतिज्ञा की थी?
उत्तर:
महाराणा लाखा ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।

प्रश्न 2.
चारणीने राजपूत शक्तियों के विषय में महाराणा से क्या कहा था?
उत्तर:
चारणी ने महाराणा से कहा था कि आप हाड़ा वंशजों की धृष्टता को भूल जायें और राजपूत शक्तियों में स्नेह का सम्बन्ध बना रहने दें।

प्रश्न 3.
वीर सिंह ने जन्मभूमि की रक्षा के विषय में अपने साथियों से क्या कहा था?
उत्तर:
वीर सिंह ने कहा कि जिस जन्मभूमि की गोद में खेलकर हम बड़े हुए हैं, उसके अपमान को हम किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकते। वीर सिंह ने अपने साथियों से कहा कि तुम अग्नि कुल के अंगारे हो। अपने वंश की शान को कमजोर मत होने देना। प्रतिज्ञा करो कि जब तक हमारे शरीर में प्राण हैं, तब तक इस दुर्ग (बूंदी का नकली दुर्ग) पर हम मेवाड़ राज्य पताका को स्थापित नहीं होने देंगे।

प्रश्न 4.
महाराणा अपनी विजय को पराजय क्यों कहते
उत्तर:
महाराणा अपनी विजय को पराजय इसलिए कहते हैं क्योंकि उनके व्यर्थ के अभिमान और विवेकहीन प्रतिज्ञा ने कितने ही निर्दोष प्राणों की बलि ले लीं थी। महाराणा को वीर सिंह जैसे देशभक्त और बहादुर युवक की मृत्यु का भी बहुत अफसोस था।

मातृभूमि का मान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वीर सिंह का चरित्र मातृभूमि के सम्मान की शिक्षा देता है’ इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
वीर सिंह मेवाड़ के महाराणा लाखा के यहाँ नौकर था और बूंदी राज्य उसकी जन्मभूमि था। जब उसे पता लगता है कि महाराणा लाखा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने हेतु बूंदी का नकली दुर्ग बनवाया है तथा उस पर चढ़ाई करके उसे मिट्टी में मिला देना चाहते हैं तो वह इस बात को सहन नहीं कर पाया। उसने अपने साथियों से कहा कि नकली बूंदी भी हमें प्राणों से अधिक प्रिय है और हम लोग अपनी मातृभूमि का अपमान नहीं होने देंगे। लेकिन जब उसके साथियों ने उससे कहा कि हम महाराणा के नौकर हैं, हमारा शरीर महाराणा के नमक से बना है, अत: हमें उनके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। इस पर वीर सिंह कहता है कि जब कभी मेवाड़ की स्वतन्त्रता पर आक्रमण हुआ है, हमारी तलवार ने उनके नमक का बदला दिया है। परन्तु जब मेवाड़ और बूंदी के मान का प्रश्न आयेगा तो हम मेवाड़ की दी हुई तलवारें महाराणा के चरणों में चुपचाप रख कर विदा लेंगे और बूंदी की ओर से अपने प्राणों का बलिदान देंगे। अन्ततः वीर सिंह ने अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।

प्रश्न 2.
महाराणा और अभयसिंह के चरित्र की दो-दो। विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मेवाड़ के महाराणा लाखा की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) स्वाभिमानी वीर :
चित्तौड़ के महाराणा लाखा में स्वाभिमान का भाव कूट-कूटकर भरा है। बूंदी के हाड़ा द्वारा पराजित होने पर वे अपने वंश को कलंकित अनुभव करते हैं। उस कलंक से छुटकारा पाने के लिए प्रतिज्ञा करते हैं कि जब। तक मैं बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।

(2) सहृदय मानव :
महाराणा लाखा बड़े सहृदय व्यक्तित्व के धनी हैं। वे अपनी प्रतिज्ञा रखने के लिए बूंदी का नकली दुर्ग बनाकर उस पर विजय प्राप्त तो करते हैं परन्तु उस किले की। रक्षा में मारे गये वीरसिंह और सिपाहियों के रक्तपात से वे द्रवित। हो उठते हैं।

मेवाड़ के सेनापति अभयसिंह के चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) कुशल सेनानायक :
अभयसिंह अपने पद के अनुरूप। कार्य सम्भालने में निपुण हैं। वे महाराणा की प्रतिज्ञा रक्षा के लिए बूंदी के नकली दुर्ग की व्यवस्था तुरन्त करते हैं और सैनिकों को उस पर विजय प्राप्त करने के लिए युद्ध करने को भेजते हैं। वे युद्ध का संचालन करने में भी समझदारी से काम लेते हैं।

(2) राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत :
अभयसिंह में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूटकर भरी है। वे मेवाड़ के सेनापति हैं। मेवाड़ के सम्मान को बढ़ाने का वे हर प्रयास करते हैं। वे बूंदी के राव हेमू को मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करने को प्रेरित करते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(1) ये सागर से रत्न निकाले …………….. ।
………………. तोड़ मोतियों की मत माला।

उत्तर:
चारणी गीत गाते हुए महाराणा को कुछ सन्देश देते हुए कहती है कि आज राजस्थान की भूमि पर जितने भी राजा हैं, वे सब. सागर से निकाले गये श्रेष्ठ रत्न हैं और युगों से इन्हें सँभालकर रखा गया है। इनकी शक्ति एवं पराक्रम का उजाला सब ओर छाया हुआ है। अतः किसी को भी मोतियों की माला को तोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए। आगे चारणी कहती है कि अनेक कष्टों एवं विपत्तियों को झेलकर बड़ी मुश्किल से ये एक हुए हैं। अतः इनमें अब फूट मत डालो। इस सुन्दर मोतियों की माला को मत तोड़ो। भाव यह है कि राजस्थान के वीर राजाओं में बड़ी मुश्किल से एकता बनी है। अतः किसी भी राजा को उस एकता को तोड़ने का अधिकार नहीं है।

(2) “नकली बूंदी भी प्राणों से अधिक प्रिय है …………….
…………. हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगी।”

उत्तर:
महाराणा की सेना में कुछ सैनिकं बूंदी के भी थे। बूंदी के नागरिक अपने देश की आन-बान के कट्टर पुजारी थे। जब उनको महाराणा को नकली बूंदी के किले को जीतने की योजना की जानकारी हुई तो वे लोग विद्रोह पर उतारू हो गये। उन्हीं लोगों में से एक देश भक्त वीर सिंह था। वीर सिंह ने ऐलान कर दिया कि नकली बूंदी भी बूंदी वासियों को प्राणों से अधिक प्यारी है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं होने दिया जायेगा। वह आगे कहता है कि महाराणा आज आश्चर्य के साथ देखेंगे कि नकली बूंदी को जीतने का यह कोई साधारण खेल नहीं है। यहाँ की भूमि का कण-कण आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगा। कहने का अर्थ यह है कि इस नकली बूंदी को फतह करना महाराणा के लिए आसान नहीं है। आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं में घमासान युद्ध होगा और खून की नदियाँ बह जायेंगी।

(3) हम युग-युग से एक हैं और एक रहेंगे …………… वीर सिंह के बलिदान ने हमें जन्मभूमि का मान करना सिखाया है।
उत्तर:
महाराणा द्वारा नकली बूंदी के युद्ध का खेल खेले जाने पर जब वीर सिंह की मृत्यु हो गयी तो महाराणा पश्चाताप करने लगा। इसी पर राव हेमू भी राजपूतों की एकता की बात कहते हैं कि हम सभी राजपूत युगों-युगों से एक हैं और आगे भी एक रहेंगे। राव हेमू आगे कहता है कि राजपूतों में न कोई राजा है और न महाराजा। हम सब राजपूत तो देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी तलवारें अपने ही लोगों पर न उठे। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हम सभी राजपूत सूर्य के वंशज हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। वीर सिंह के त्याग ने हमें जन्मभूमि का सम्मान करना सिखाया है।

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मातृभूमि का मान भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
सामासिक पदों का विग्रह कर समास लिखिए
उत्तर:

राजपूत = राजा का पूत = तत्पुरुष समास।
जन्मभूमि = जन्म की भूमि = तत्पुरुष समास।
महाराजा = महान् राजा = कर्मधारय समास।
सेनापति = सेना का पति = तत्पुरुष समास।
बाण-वर्षा = वाणों की वर्षा = तत्पुरुष समास।
आदर भाव = आदर का भाव = तत्पुरुष समास।
प्रश्न 2.
बहुब्रीहि समास उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
बहुब्रीहि समास-जिस समास में पूर्व एवं उत्तर पद के अतिरिक्त कोई अन्य पद प्रधान होता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे-
पंचानन-पाँच मुख वाला = शिव, लम्बोदर-लम्बा है उदर जिसका = गणेश।

मातृभूमि का मान महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
मातृभूमि का मान बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मातृभूमि का मान’ कौन-सी विधा है?
(क) कहानी
(ख) निबन्ध
(ग) एकांकी
(घ) रेखाचित्र।
उत्तर:
(ग) एकांकी

प्रश्न 2.
‘मातृभूमि का मान’ एकांकी का नायक है-
(क) लाखासिंह
(ख) हेमूराव
(ग) अभयसिंह
(घ) वीरसिंह।
उत्तर:
(घ) वीरसिंह।

प्रश्न 3.
यह कथन किसका है-“जब तक बूंदी दुर्ग पर ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।”?
(क) वीरसिंह
(ख) अभयसिंह
(ग) महाराणा लाखा
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) महाराणा लाखा

प्रश्न 4.
‘मातृभूमि का मान’ एकांकी प्रेरणा देता है
(क) मातृभूमि की सेवा की
(ख) देश के लिए प्राणों को न्योछावर करने की
(ग) आन-बान की रक्षा की
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
‘मातृभूमि का मान’ में बूंदी शब्द का प्रयोग किसके लिये किया है?
(क) शहर
(ख) महल
(ग) तीर्थ स्थान
(घ) दुर्ग।
उत्तर:
(घ) दुर्ग।

रिक्त स्थानों की पूर्ति

बूंदी स्वतन्त्र रहकर महाराणाओं का आदर कर सकता है, परन्तु ………….. होकर किसी की सेवा नहीं कर सकता।
राणा लाखा नीमरा के मैदान में बूंदी से पराजित होने के ……………. को धोने की प्रतिज्ञा करते
ये सागर से रत्न निकाले। युग-युग से हैं गये …………. ।
………….. भी मुझे प्राणों से प्रिय है।
हम प्रतिज्ञा करते हैं कि प्राणों के रहते इस दुर्ग पर ………….. का ध्वज न फहरने देंगे।

उत्तर:

अधीन
कलंक
सँभाले
नकली बूंदी
मेवाड़।
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सत्य/असत्य

वीरसिंह का चरित्र मातृभूमि के सम्मान की शिक्षा देता है। (2009)
वीरसिंह ने महाराणा लाखा की अधीनता स्वीकार कर ली।
“बूंदी का अपमान सरलता से नहीं किया जा सकता।” यह कथन वीरसिंह का है।
“व्यर्थ के दम्भ ने आज कितने निर्दोष प्राणों की बलि ले ली।”-कथन महाराणा लाखा का है।
बूंदी पर महाराणा लाखा ने असली कीर्ति-पताका फहरायी।

उत्तर:

सत्य
असत्य
सत्य
सत्य
असत्य।
सही जोड़ी मिलाइए

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उत्तर:

  1. → (घ)
  2. → (क)
  3. → (ङ)
  4. → (ग)
  5. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

मातृभूमि का मान’ एकांकी का प्रमुख पात्र कौन है?
मेवाड़ के सेनापति कौन थे?
मुट्ठी भर हाड़ाओं ने किसे पराजित किया था? (2010)
वीरसिंह की मातृभूमि का क्या नाम था? (2009)
‘मातृभूमि का मान’ एकांकी के लेखक कौन हैं?
मातृभूमि का मान किसने रखा? (2016)

उत्तर:

वीरसिंह
अभय सिंह
महाराणा लाखा
बूंदी
हरिकृष्ण ‘प्रेमी’
वीरसिंह ने।
मातृभूमि का मान पाठ सारांश

‘मातृभूमि का मान’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का एकांकी है। यह एकांकी देशप्रेम की प्रेरणा देता है। मातृभूमि की सेवा के लिए आन-बान-शान से प्राणों को न्योछावर करने की भावना जाग्रत करता है।

इस एकांकी में हाड़ा राजपूत वीरसिंह के बलिदान का शौर्यपूर्ण वर्णन है। मेवाड़ के नरेश महाराणा लाखा ने सेनापति अभयसिंह से बूंदी के राव हेमू के पास यह सन्देश भेजा कि वह मेवाड़ की अधीनता स्वीकार कर ले। ऐसा न करने से राजपूतों की संगठन शक्ति छिन्न-भिन्न हो जायेगी।

लेकिन हेमू राव को महाराणा लाखा का यह प्रस्ताव पसन्द नहीं आया। उन्होंने कहा कि बूंदी स्वतन्त्र रहकर महाराणाओं का सम्मान तो कर सकता है लेकिन वह किसी के अधीन रहकर सेवा कदापि नहीं कर सकता।

उन्होंने यह भी कहा कि हाड़ा प्रेम एवं अनुशासन के पुजारी हैं, शक्ति के नहीं। वे उनका प्रस्ताव नहीं मानते हैं। तभी महाराणा लाखा ने यह प्रतिज्ञा कर ली “जबतिक मैं बूंदी से पराजित होने के कलंक को धो नहीं दूंगा तथा सेना सहित बूंदी के दुर्ग में प्रवेश नहीं करूँगा तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।”

महाराणा लाखा की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए नकली बूंदी का दुर्ग बनाकर उस पर विजय पताका फहरा दी गयी। वीरसिंह को अपनी मातृभूमि का अपमान अच्छा नहीं लगा और उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए चाहे वह नकली दुर्ग ही था। इस प्रकार वीरसिंह ने नकली बूंदी के दुर्ग की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया तथा मातृभूमि का मान बढ़ाया।

वास्तव में यह एक शिक्षाप्रद एवं ऐतिहासिक एकांकी है। यह एकांकी मान-मर्यादा तथा . देशप्रेम का ज्वलन्त उदाहरण है। इसके अतिरिक्त राजपूतों की एकता की शक्ति व मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा का भी परिचायक है।

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मातृभूमि का मान संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) प्रेम का अनुशासन मानने को हाड़ा-वंश सदा तैयार है, शक्ति का नहीं। मेवाड़ के महाराणा को यदि अपने ही जाति भाइयों पर अपनी तलवार आजमाने की इच्छा हुई है, तो उससे उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। बूंदी स्वतन्त्र राज्य है और स्वतन्त्र रहकर वह महाराणाओं का आदर करता रह सकता है। अधीन होकर किसी की सेवा करना वह पसन्द नहीं करता।

कठिन शब्दार्थ :
अनुशासन = आज्ञा, नियन्त्रण। अधीन = गुलाम।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मातृभूमि का मान’ एकांकी से लिया गया है। इसके लेखक हरिकृष्ण प्रेमी हैं।

प्रसंग-इस अंश में हाड़ा वंश का राजा राव हेमू अपनी स्वाधीनता की रक्षा की प्रतिज्ञा करता है।

व्याख्या :
अभयसिंह के मेवाड़ के अधीन होने के प्रस्ताव पर राव हेमू अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहता है कि हम हाड़ा वंशज प्रेम का अनुशासन तो मानने को तैयार हैं, पर किसी की दाब-धौंस या शक्ति को मानने को तैयार नहीं हैं। मेवाड़ के महाराणा को यदि अपने भाइयों पर ही तलवार चलाने की इच्छा है तो उससे उन्हें कौन रोक सकता है ? वे चलायें लेकिन यह बात अच्छी तरह सोच लें कि बूंदी एक स्वतन्त्र राज्य है और वह स्वतन्त्र रहकर ही महाराणाओं का आदर कर सकता है। वह गुलाम बनकर किसी की सेवा करना पसन्द नहीं करता।

विशेष :

हेमू अपने स्वाभिमान की बात करता है।
भाषा भावानुकूल।
(2) जिनकी खाल मोटी होती है, उनके लिए किसी भी बात में कोई भी अपयश, कलंक या अपमान का कारण नहीं होता किन्तु जो आन को प्राणों से बढ़कर समझते आये हैं, वे पराजय का मुख देखकर भी जीवित रहें, यह कैसी उपहासजनक बात है।

कठिन शब्दार्थ :
अपयश = बदनामी। आन = इज्जत, मान-सम्मान।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्। प्रसंग-इस अंश में महाराणा का प्रायश्चित व्यक्त हुआ है।

व्याख्या :
महाराणा अभय सिंह से कहते हैं कि जिनकी खाल मोटी होती है अर्थात् जो अपनी आन मर्यादा पर नहीं डटते हैं उनके लिए किसी भी बात में कोई भी अपयश, कलंक या अपमान का कोई महत्त्व नहीं होता है परन्तु जो आन या मर्यादा को अपने प्राणों से भी बढ़कर मानते आये हैं, अर्थात् हमारे वंश की यह परम्परा रही है कि हमने अपनी आन और मर्यादा के लिए सब कुछ त्याग दिया है और आज उन्हीं के वंशज हाड़ा वंशियों से पराजित होकर जीवित रहें, यह निश्चय ही उपहास की बात है।

विशेष :

महाराणा में अपने पूर्वजों की आन-मान को बनाये रखने की चिन्ता है।
भाषा भावानुकूल।
(3) ये सागर से रत्न निकाले। युग-युग से हैं गये सँभाले।
इनसे दुनिया में उजियाला। तोड़ मोतियों की मत माला।
ये छाती में छेद कराकर। एक हुए हैं हृदय मिलाकर।
इनमें व्यर्थ भेद क्यों डाला। तोड़ मोतियों की मत माला।

कठिन शब्दार्थ :
सँभाले = सँजोकर रखे गये हैं। व्यर्थ = बेकार।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यह चारणी द्वारा गाया हुआ गीत है जिसमें वह सम्पूर्ण राजस्थान की एकता की बात कहती है।

व्याख्या :
चारणी गीत गाते हुए महाराणा को कुछ सन्देश देते हुए कहती है कि आज राजस्थान की भूमि पर जितने भी राजा हैं, वे सब. सागर से निकाले गये श्रेष्ठ रत्न हैं और युगों से इन्हें सँभालकर रखा गया है। इनकी शक्ति एवं पराक्रम का उजाला सब ओर छाया हुआ है। अतः किसी को भी मोतियों की माला को तोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए। आगे चारणी कहती है कि अनेक कष्टों एवं विपत्तियों को झेलकर बड़ी मुश्किल से ये एक हुए हैं। अतः इनमें अब फूट मत डालो। इस सुन्दर मोतियों की माला को मत तोड़ो। भाव यह है कि राजस्थान के वीर राजाओं में बड़ी मुश्किल से एकता बनी है। अतः किसी भी राजा को उस एकता को तोड़ने का अधिकार नहीं है।

विशेष :

चारणी अपने गीत में राजपूतों को एकता का पाठ पढ़ाना चाहती है।
लाक्षणिक भाषा का प्रयोग है।
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(4) नकली बूंदी भी प्राणों से अधिक प्रिय है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं किया जा सकता। आज महाराणा आश्चर्य के साथ देखेंगे कि यह खेल केवल खेल ही नहीं रहेगा, यहाँ की चप्पा-चप्पा भूमि सिसोदियों और हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगी।

कठिन शब्दार्थ :
सरल है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
महाराणा द्वारा यह प्रतिज्ञा करने पर कि जब तक मैं बूंदी पर सिसोदिया का झण्डा नहीं फहरा लूँगा तब तक अन्न, जल ग्रहण नहीं करूंगा। महाराणा की यह प्रतिज्ञा असम्भव थी। अतः अभयसिंह जैसे चापलूसों ने नकली बूंदी का किला बनवाकर उस पर मेवाड़ का ध्वज फहराने की योजना बना ली, पर हाड़ा राजपूत इस पर बिदक गये, उसी का वर्णन है।

व्याख्या :
महाराणा की सेना में कुछ सैनिकं बूंदी के भी थे। बूंदी के नागरिक अपने देश की आन-बान के कट्टर पुजारी थे। जब उनको महाराणा को नकली बूंदी के किले को जीतने की योजना की जानकारी हुई तो वे लोग विद्रोह पर उतारू हो गये। उन्हीं लोगों में से एक देश भक्त वीर सिंह था। वीर सिंह ने ऐलान कर दिया कि नकली बूंदी भी बूंदी वासियों को प्राणों से अधिक प्यारी है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं होने दिया जायेगा। वह आगे कहता है कि महाराणा आज आश्चर्य के साथ देखेंगे कि नकली बूंदी को जीतने का यह कोई साधारण खेल नहीं है। यहाँ की भूमि का कण-कण आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगा। कहने का अर्थ यह है कि इस नकली बूंदी को फतह करना महाराणा के लिए आसान नहीं है। आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं में घमासान युद्ध होगा और खून की नदियाँ बह जायेंगी।

विशेष :

वीर सिंह सच्चा देशभक्त है।
भाषा भावानुकूल है।
(5) हम युग-युग से एक हैं और एक रहेंगे। आपको यह जानने की आवश्यकता थी कि राजपूतों में न कोई राजा है, न कोई महाराजा। सब देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमारी तलवार अपने ही स्वजनों पर न उठनी चाहिए। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और रहेंगे। हम सब राजपूत अग्नि के पुत्र हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से पृथक् हो सकते हैं। वीर सिंह के बलिदान ने हमें जन्म-भूमि का मान करना सिखाया है।

कठिन शब्दार्थ :
स्वजनों = अपने ही लोगों। अग्नि के पुत्र = सूर्यवंशी हैं। पृथक् = अलग। बलिदान = त्याग।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अवतरण में बूंदी के शासक राव हेमू का समस्त राजपूत राजाओं को एकता का पाठ पढ़ाने का सन्देश है।

व्याख्या :
महाराणा द्वारा नकली बूंदी के युद्ध का खेल खेले जाने पर जब वीर सिंह की मृत्यु हो गयी तो महाराणा पश्चाताप करने लगा। इसी पर राव हेमू भी राजपूतों की एकता की बात कहते हैं कि हम सभी राजपूत युगों-युगों से एक हैं और आगे भी एक रहेंगे। राव हेमू आगे कहता है कि राजपूतों में न कोई राजा है और न महाराजा। हम सब राजपूत तो देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी तलवारें अपने ही लोगों पर न उठे। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हम सभी राजपूत सूर्य के वंशज हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। वीर सिंह के त्याग ने हमें जन्मभूमि का सम्मान करना सिखाया है।

विशेष :

राव हेमू उदारवादी शासक है तथा वह सभी को साथ लेकर चलना चाहता है।
भाषा भावानुकूल।

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