MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 2 न्यग्रोधवृक्षः

MP Board Class 10th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दुर्वा Chapter 2 न्यग्रोधवृक्षः- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 2 न्यग्रोधवृक्षः


प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) ग्रामे कः वृक्षः आसीत्? (गाँव में कौन-सा पेड़ था?)
उत्तर:
न्यग्रोधवृक्षः (बरगद का पेड़)

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(ख) के मार्गायासं परिहरन्ति स्म? (कौन रास्ते की थकान दूर करते थे?)
उत्तर:
पथिकाः (राहगीर)

(ग) कस्य ध्वनिः अन्तरिक्षम् अस्पृशत्? (किसकी आवाज अंतरिक्ष को छू रही थी?)
उत्तर:
काकस्य (कौए की)

(घ) प्रकृतिदत्तः वरः कः? (प्रकृति का दिया हुआ वरदान क्या था?)
उत्तर:
वृक्षः (पेड़)

(ङ) तरोः पत्राणि खादन् कः नन्दति स्म? (पेड़ के पत्ते खाकर कौन प्रसन्न होता था?)
उत्तर:
अजापुत्रः (बकरी का बच्चा)

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प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) सर्वैः कस्य निर्णयः स्वीकृतः? (सबने किसका निर्णय माना?)
उत्तर:
सर्वैः अजस्य निर्णयः स्वीकृतः। (सबने बकरे का निर्णय माना।)

(ख) कः वृष्टिं वर्षति? (कौन वर्षा करता है?)
उत्तर:
वरुणदेवः वृष्टिं वर्षति। (वरुणदेव वर्षा करते हैं।)

(ग) वृक्षस्य आधारभूता का? (वृक्ष का आधार कौन है?)
उत्तर:
वृक्षस्य आधारभूता भूमाता। (पेड़ का आधार धरती है।)

(घ) अस्माभिः का वर्धनीया? (हमें क्या बढ़ाना चाहिए?)
उत्तर:
अस्माभिः वृक्षसम्पत् वर्धनीया। (हमें वृक्ष-सम्पत्ति को बढ़ाना चाहिए।)

(ङ) किं महत् पापम् अस्ति? (क्या बहुत बड़ा पाप है?)
उत्तर:
वृक्षाणां छेदनं महत् पापम् अस्ति । (पेड़ों को काटना बहुत बड़ा पाप है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत- (नांचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) शकः किम् अवदत्? (तोते ने क्या कहा?)
उत्तर:
शुकः अवदत्-“अस्य वृक्षस्य फलानि खादन् जन्मतः अहम् अत्रेव वर्ते। नाहम् इमं द्रुमं परित्यक्तुमिच्छामि मदीय एवायं न्यग्रोधवृक्षः।” इति। (तोते ने कहा- “इस पेड़ के फल खाता हुआ मैं जन्म से यहीं हूँ। मैं इस पेड़ को नहीं छोड़ना चाहता। यह मेरा ही बरगद का पेड़ है।)

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(ख) कीटः किं प्रत्यवदत्? (कीड़े ने क्या जवाब दिया?)
उत्तर:
कीटः प्रत्यवदत्-“मदीयैः अर्भकैः सार्द्धम् अहं बहुवर्षेभ्यः अत्रैव उषितवानस्मि। अतः अयं वृक्षः ममैव” इति।

(कीड़े ने कहा-“मेरे पुत्रों के साथ मैं बहुत सालों से यहीं रह रहा हूँ। इसलिए यह पेड़ मेरा ही है।”)

(ग) वृक्षच्छेदनविषये काष्ठच्छेदकः किम् अवदत्? (वृक्ष काटने के विषय पर लकड़हारे ने क्या कहा?)
उत्तर:
वृक्षच्छेदनविषये काष्ठछेदकः अवदत्-“पूर्वम् अहं वृक्षान् छिनद्मि स्म। अधुना तादृशे कृत्सिते कर्मणि न व्यापारयामि। वृक्षाणां छेदनं महत् पापमिति मयाअधिगतमस्ति अतः न्यग्रोधवृक्षस्य छेदन अहं न करष्यिामि’ इति।

(वृक्ष काटने के विषय पर लकड़हारे ने कहा-“मैं पहले पेड़ काटता था पर अब यह बुरा काम नहीं करता। पेड़ काटना बहुत बड़ा पाप है, यह मैं जान गया हूँ, इसलिए मैं पेड़ नहीं काटूंगा।”)

प्रश्न 4.
प्रदत्तशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत
(दिए गए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(नीडानि, अनिलं, मार्गायासं, सूर्यदेवः, चंक्रम्य)

(क) शाखान्तरं …………….. एकः कीटः अवदत्
(ख) पथिकाः …………….. परिहरन्ति स्म।
(ग) पक्षिणः शाखासु …………….. विरच्य वसन्ति स्म।
(घ) वायुः …………….. ददाति।
(ङ) …………….. प्रकाशं प्रयच्छति।
उत्तर:
(क) चंक्रम्य
(ख) मार्गायासं
(ग) नीडानि
(घ) अनिलं
(ङ) सूर्यदेवः

प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत
(उचित रूप से जोड़िए-)

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 2 न्यग्रोधवृक्षः img 1
उत्तर:
(क) 2
(ख) 3
(ग) 1
(व) 5
(ङ) 4

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्यों के सामाने ‘न’ लिखिए-)
(क) शुकस्य ध्वनिः अन्तरिक्षम् अस्पृशत्।
(ख) कीटः अर्भकैः सार्द्धम् वसति स्म।
(ग) वृक्षच्छेदकः वृक्षं खण्डशः कृतवान्।
(घ) वृक्षाणां छेदनं महत् पापम्।
(ङ) सूर्यदेवः वृष्टिं वर्षति।।
उत्तर:
(क) न
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न।

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प्रश्न 7.
धोलिखितपदानां प्रकृतिं प्रत्ययं च पृथक्कुरुत
(नीचे लिखे पदों की प्रकृति व प्रत्यय अलग कीजिए-)

यथा-भक्षयित्वा – भक्ष्+ क्त्वा
(क) कुर्वन्
(ख) विभज्य
(ग) छेत्तुम
(घ) विस्मृत्य
उत्तर:
(क) कुर्वन् – कृ+शतृ
(ख) विभज्य – वि+भ+ल्यप्
(ग) छेत्तुम – छिद्+तुमुन्
(घ) विस्मृत्य – वि+स्मृ+ल्यप्

प्रश्न 8.
अधोलिखितपदानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम लिखत
(नीचे लिखे पदों के सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम लिखिए-)

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 2 न्यग्रोधवृक्षः img 2
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 2 न्यग्रोधवृक्षः img 3

प्रश्न 9.
अधोलिखितपदानां पर्यायशब्दान् लिखत
(नीचे लिखे पदों के पर्यायवाची शब्द लिखिए-)

यथा- वृक्षः – तरुः
(क) काकः
(ख) सर्पः
(ग) पिताः
(घ) पुत्रः
उत्तर:
(क) काकः – वायतः
(ख) सर्पः – भुजङ्गः
(ग) पिता – जनकः
(घ) पुत्रः – अर्भकः

प्रश्न 10.
अव्ययैः वाक्यरचनां कुरुत- (अव्ययों के द्वारा वाक्य बनाइए-)
यथा- एव – ईश्वरः एव रक्षकः अस्ति

(क) अपि
उत्तर:
अपि-पुत्रः अपि पित्रा सह गच्छति। (पुत्र भी पिता के साथ जाता है।)

(ख) तहिं
उत्तर:
तर्हि-यदि सः परिश्रमं करिष्यति तर्हि सफलं भविष्यति।
(यदि वह मेहनत करेगा तभी सफल होगा।)

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(ग) ततः
उत्तर:
ततः-ततः पार्वे उपवनम् अस्ति। (उसके पास में एक बगीचा है।)

योग्यताविस्तार

“वृक्षः” इति विषयमधिकृत्य संस्कृते निबन्धं लिखत।
‘वृक्ष’ इस विषय के आधार पर संस्कृत में निबन्ध लिखिए।

पर्यावरणसंरक्षणार्थम् उपायान् लिखत।
पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय लिखिए।

न्यग्रोधवृक्षः पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जागरुकता एक कथा के माध्यम से दाई गई है। इस कथा में वृक्ष का महत्त्व बताया गया है तथा उसे काटने से होने वाली हानियों का वर्णन किया गया है, जिससे वन-सरंक्षण किया जा सके।

न्यग्रोधवृक्षः पाठ का अनुवाद

  1. कस्मिंश्चित ग्रामे एकःप्राचीनः विशालः त्च न्यग्रोधवृक्षः आसीत्। सः पशुपक्षिभ्यः बहुविधेभ्यः जीवजन्तुभ्यः मनुष्येभ्यः अपि नित्यं बहूपकारकः आसीत्। पथिकाः तस्य वृक्षस्य छायायां पाथेयं भक्षयित्वा मार्गायासं परिहरन्ति स्म। पशवः छायार्थं वृक्षमिमम् आश्रयन्ति स्म। पक्षिणः तस्य शाखासु नीडानि विरच्य वसन्ति स्म। साश्च तत्रत्येषु वल्मीकेषु वासं कुर्वन्ति स्म। एवं स वृक्षः सर्वप्रिय सर्वहितः सर्वापेक्षितः च आसीत्।

शब्दार्था :
न्यग्रोधवृक्षः-बरगद का पेड़-A banyan tree; बहुविधेभ्यः-अनेक प्रकार के-in various (different) ways; पथिकाः -राहगीर-travellers,passers by; way farers; पाथेयम्-रास्ते का भोजन-foodstuff; मार्गायासम्-रास्ते की थकान को-fatigue of the way;नीडानि-घोंसले-nests; विरच्य-बनाकर-making, building; वल्मीकेषु-बिलों में-holes (white ant; termite).

हिन्दी अनुवाद :
किसी गाँव में एक पुराना और विशाल बरगद का पेड़ था। वह पशु-पक्षियों व अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं तथा मनुष्यों के लिए भी सदा बहुत उपकारक था। राहगीर उस वृक्ष की छाया में रास्ते का भोजन खाकर रास्ते की थकान दूर करते थे। पशु छाया के लिए इस वृक्ष का आश्रय लेते थे। पक्षी उसकी शाखाओं पर घोंसले बनाकर रहते थे। और साँप वहीं पर बिलों में रहते थे। इस प्रकार वह वृक्ष सबका प्यारा, सबका हित करने वाला तथा सबके द्वारा अपेक्षित था।

  1. तस्य न्यग्रोधवृक्षस्य शाखायाम् एकः काकः बहुकालात् वसन्नासीत्। कस्मिंश्चित् दिने स वायसः किमपि स्मरन् इतस्ततः दृष्ट्वा एवम् उच्चैः अरटत्-“हे बन्धवः श्रूयतां-श्रूयतां मे वचः। अहम् अस्मिन् वृक्षे चिरात् वसामि। अतः अस्योपरि ममैव अधिकारः वर्तते। अयं मदीयः वृक्षः इति। काकस्य ध्वनि क्रमेण अन्तरिक्षम् अस्पृशत्।

शब्दार्था :
वायसः-कौआ-Crow;अरटत-रटने लगा (लगातार) cawed persistently; चिरात्-बहुत समय से-since a long time; मदीयः-मेरा-mite, my.

अनुवाद :
उस बरगद के वृक्ष की शाखा पर एक कौआ बहुत समय से रहता था। किसी (एक) दिन वह कौआ कुछ याद कर इधर-उधर देखकर ही जोर से रटने लगा-‘हे बन्धुओ। सुनो, सुनो मेरी बात। मैं इस पेड़ पर बहुत समय से रहता हूँ। अतः इसके ऊपर मेरा ही अधिकार है। यह मेरा वृक्ष (पेड़) है। कौए की आवाज, क्रम से अन्तरिक्ष को छू रही थी।

English :
A crow lived in the tree; proclaimed himself as sole owner of the tree. Made a loud cry and tall claim over the tree.

  1. काकस्य रटनं श्रुत्वा वृक्षस्य समीपे चरन्तः वृक्षाग्रे डयमानाः वृक्षस्य कोटरेषु निवसन्तः च सर्वे प्राणिनः पशवः पक्षिणः साश्च समायाताः। तेषां मध्ये प्रथमं सर्पः फटाटोपं कुर्वन् न्यगदत् “पितृपितामहान कालादपि अहम् अत्रैव निवसामि अतोऽयं वृक्षः मदीय एद” इति। ततः शाखातः शाखान्तरं चंक्रम्य एकः कीटः प्रत्यवदत् “मदीयैः अर्भकैः सार्द्धम् अहं बहुवर्षेभ्यः अत्रैव उषितवानस्मि। अतोऽयं वृक्षः ममैव” इति।

शब्दार्था :
डयमानाः-उड़ते हुए-flying; समायाताः-आ गए-gathered; assembled; flocked; फटाटोपम्-फण् से क्रोध को-showing anger by spreading its hood; न्यगदत्-बोला-uttered;spoke out; अर्भकैः-पुत्रों के साथ-with male issues.

अनुवाद :
कौए की रट को सुनकर पेड़ के पास में चरते हुए, पेड़ के आगे (ऊपर) उड़ते हुए और पेड़ के बिल में रहते हुए सभी प्राणी पशुओं, पक्षी और साँप वहाँ आ गए। उनके बीच में से पहले साँप फण से क्रोध प्रकट करते हुए बोला- “मेरे बाप-दादा के समय से ही मैं यहीं रह रहा हूँ, इसलिए यह मेरा ही पेड़ है।” तब एक शाखा से दूसरी शाखा पर घूमते हुए एक कीड़ा बोला-“मेरे पुत्रों के साथ मैं बहुत सालों से यहीं रह रहा हूँ। इसलिए यह मेरा ही पेड़ है।”

English :
All creatures flocked near the banyan tree. The snake spread its hood and called himself the possessor of the tree. An insect proclaimed its possession of the tree because of the long stay of his family in it.

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  1. अनन्तरं शुकः “अस्य वृक्षस्य फलानि खादन् जन्मतः अहमत्रैव वर्ते। नाहमिमं द्रुमं परित्यक्तुमिच्छामि। मदीय एवायं न्यग्रोधवृक्षः” इति उच्चैः अभणत्। ततश्च तत्रत्याः अपरिमिताः कृमयः कीटाश्च “अयं तरुः अस्मदीय एव” इत्युक्त्वा वृक्षस्योपरि स्वं स्वम् अधिकार घोषयन् विचित्रतरं कोलाहलम् अकुर्वन्।

शब्दार्था :
द्रुमम्-पेड़ को-the tree; परित्यक्तुम्-छोड़ना-to leave; अभणत्बोला-repeated, uttered; तत्रत्याः -वहाँ के-living there; अपरिमिताः-न मापने योग्य-numberless; कृमयः-कीड़े-मकोड़े-insects (worms).

अनुवाद :
इसी बीच में तोता जोर से बोला-“इस पेड़ के फलों को खाता हुआ जन्म से ही मैं यहीं हूँ। मैं इस पेड़ को छोड़ना नहीं चाहता हूँ। यह बरगद का पेड़ मेरा ही है।” और तब वहाँ के सब छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े “यह पेड़ हमारा ही है” ऐसा कहकर पेड़ पर अपने-अपने अधिकार की घोषणा करते हुए अजीब-सा शोर करने लगे।

English :
Parrot lived in the banyan since its birth. Claimed the tree its own. The worms and insects also declared their claim, created a strange bediam (clamour) scene of confusion).

  1. अत्रान्तरे कश्चित् अजापुत्रः तत्रागतः। सोऽपि तस्य तरोः पत्राणि खादन नन्दति स्म। तं दृष्ट्वा सर्वे प्राणिनः न्यायनिर्णयं कर्तुं तं प्रार्थयन्त। सर्वेषां वचनानि श्रुत्वा स अजः अवदत्-“अस्तु मया समेषां समस्या समाकर्णिता। इदानीं मम चचनानि यूयं शृणुत। काश्चन शाखाः काकेभ्यः, शाखान्तराणि च कृमिकीटेभ्यः, मूलं सर्वेभ्यः अनेन प्रकारेण सर्वेभ्योऽपि वृक्षं विभज्य दापयिष्यामि। अस्मिन्नेव ग्रामे कश्चित् वृक्षच्छेदकः मे मित्रमस्ति। तम् आह्वयामि इमं वृक्षं खण्डशः कर्तुम्” इति।

शब्दार्था :
अजापुत्रः-बकरी का बच्चा-Kid; नन्दति-प्रसन्न होता है-rejoices; समेषाम्-सभी की-of one and all; समाकर्णिता-सुन ली है-have heard; दापयिष्यामि-दिलवाऊँगा-cause to be given; वृक्षच्छेदकः-लकड़हारा-a woodcutter; आह्वयामि-बुलाता हूँ-call.

अनुवाद :
तभी यहाँ कोई बकरी का बच्चा आता है। वह भी उस पेड़ के पत्तों को खाकर प्रसन्न होता था। उसे देखकर सभी प्राणियों ने न्यायनिर्णय करने की उससे प्रार्थना की। सबके वचनों को सुनकर वह बकरा बोला-“ठीक है, मेरे द्वारा सारी समस्या सुन ली गई है। अब मेरी बात तुम सब सुनो। कोई शाखा कौओं के लिए, शाखाओं के अन्दर का भाग कीड़े-मकोड़ों के लिए और जड़ सबके लिए इस प्रकार से सबको ही पेड़ को विभाजित कर दिलवाऊँगा। इसी गाँव में ही कोई लकड़हारा मेरा मित्र है। उसे इस पेड़ के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए बुलाता हूँ।

English :
A kid arrives there. All the creatures asked him to give its judgement on the claimant of the tree. He proposed that the tree should be cut into pieces. (branches for crows, inner portion for worms and insects and root for all).

  1. अजस्य निर्णयः सर्वैः स्वीकृतः अतः सर्वेऽपि वृक्षच्छेदकस्य समीपं गत्वा न्यग्रोधवृक्षं छित्वा तस्य भागानाम् वितरणार्थं प्रार्थयन्त। परं सोऽयं काष्ठच्छेदकः अवदत् “पूर्वम् अहं वृक्षान् छिनमि स्म। अधुना तादृशे कुत्सिते कर्मणि न व्यापारयानि। वृक्षाणां छेदनं महत् पापमिति मया अधिगतमस्ति अतः न्यग्रोधवृक्षस्य छेदनं अहं न करिष्यामि” इति।

शब्दार्था :
वितरणार्थम्-बाँटने के लिए-to make a division; कुल्सिते-बुरे में-evil, vicious, sinful; अधिगतम्-जान गया-have known.

अनुवाद :
बकरे का निर्णय सब ने मान लिया, इसलिए सभी ने लकड़हारे के पास जाकर बरगद के पेड़ को काटकर उसके टुकड़ों को बाँटने की प्रार्थना की। पर उस लकड़हारे ने कहा-‘पहले मैं पेड़ काटता था। अब उस बुरे काम (में) को नहीं करता हूँ’ पेड़ों को काटना बहुत बड़ा पाप है, मैं यह जान गया हूँ। इसलिए मैं बरगद का पेड़ नहीं काटूंगा।”

English :
Everyone honoured the kid’s decision. All approached the woodcutter to cut the tree into pieces; the woodcutter declined to do the sinful job of cutting a tree.

  1. तथापि सर्वे प्राणिनः तं वृक्षं छेत्तुं यदा निर्बन्धम् अकुर्वन् सदा स धीमान् इदमाह-“अस्तु तर्हि प्रथमं मे वचः शृणुत-यूयं सर्वेऽपि अनेन वृक्षण उपकृताः एव। वृक्षस्य उपकारं स्वीकृत्य युष्माभिः कः प्रत्युपकारः कृतः? युष्माकं मध्ये कः वृक्षस्य जलसेचनम् अकरोत्? कः तस्य॑ रक्षणं विहितवान्? न कोऽपि किञ्चिदपि अकरोत्। वरुणदेवः वृष्टि वर्षति। सूर्यदेवः प्रकाशं प्रयच्छति। भूमाता वृक्षस्य आधारभूता अस्ति। वायुः अनिलं ददाति। ते सर्वे वृक्षं पालयन्ति पोषयन्ति रक्षन्ति च। ते न कदापि “मम अधिकारः वर्तते।” इति अवदन्। ते सर्वे परोपकारिणः। परं यूयं सर्वे परापकारिणः वृक्षस्य साहाय्यं स्वीकृत्य तमेव नाशयितुं कृतसङ्कल्पा यूयं स्वाश्रयमेव नाशयथ। अस्मिन् वृक्षे छिन्ने सति यूयं कुत्र गच्छथ?

शब्दार्था :
निर्बन्धम्-अत्यधिक आग्रह करना-Appealed repeatedly; insisted; प्रत्युपकारः-उपकार का बदला उतारना-to repay the gratitude; सेचनम्-सींचना-to sprinkle, वृष्टिम्-वर्षा को-rain.

अनुवाद :
तभी भी सब प्राणियों ने जब उसको पेड़ काटने के लिए अत्यधिक आग्रह किया, तब उस बुद्धिमान् ने कहा-“ठीक है, तो पहले मेरी बात सुनो-तुम सभी उस पेड़ के द्वारा उपकृत (उ कार करवाया जाना) हो। पेड़ के उपकार को लेकर तुम सब ने क्या प्रत्युपकार (उपकार बदला) किया? तुम सब के बीच में से किसने पेड़ को जल से सींचा? किसने इसकी रक्षा की? किसी ने भी कुछ भी नहीं किया। वरुण देव ने वर्षा की। सूर्यदेव ने प्रकाश दिया। भूमि माता पेड़ का आधार है। वायु ने हवा दी। उन सब ने पेड़ को पाला, पोषण किया और रक्षा की। उन्होंने कभी नहीं कहा कि “मेरा अधिकार है।” वे सब परोपकारी हैं। पर तुम सभी परापकारी हो, पेड़ की सहायता स्वीकार करके उसे ही नष्ट करने का सङ्कल्प कर तुम सब अपने आश्रय को ही नष्ट कर रहे हो। इस पेड़ के कट जाने पर तुम सब कहाँ जाओगे?

English :
Being insisted repeatedly the woodcutter reminded them of their ungrate fulness. They were out at harming themselves by cutting the tree reared by the divine powers. They would lose their own refuge.

  1. सर्वमिदं श्रुत्वा पशुपक्षिणः “आम्। सत्यम्। वयं स्वकर्त्तव्यं विस्मृत्य अधिकारार्थं कोलाहलं कुर्मः। वृक्षः प्रकृतिदत्तः वरः अस्ति। स न कस्यापि एकस्य सम्पत् भवितुमर्हति। अस्माभिः सर्वैः मिलित्वा वृक्षस्य संरक्षणं संवर्धनं समारोपणं च कर्त्तव्यम्। न तु विनाशः कार्यः” इति दृढनिश्चयम् अकुर्वन्। अस्माभिः मानवैः अपि वृक्षसम्पत् वर्धनीया ननु।

शब्दार्था :
विस्मृत्य-भूलकर-forgetting; दत्तः-दिया हुआ-given;सम्पत्-संपत्तिproperty; संवर्धनम्-बढ़ाने का-growing (rearing).

अनुवाद :
यह सब सुनकर पशु-पक्षियों ने-“हाँ। सत्य है। हम सब अपने कर्तव्य को भूलकर अधिकार के लिए शोर कर रहे हैं। पेड़ प्रकृति का दिया हुआ वरदान है। वह किसी भी एक की सम्पत्ति नहीं हो सकती। हम सब को मिल कर पेड़ की रक्षा करनी चाहिए, बढ़ाना चाहिए और उगाना चाहिए। न कि विनाश करना चाहिए” ऐसा दृढ़निश्चय किया। हम मानवों के द्वारा भी वृक्ष सम्पत्ति को बढ़ाना चाहिए।


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