MP Board Class 11th English The Spectrum Solutions Chapter 18 India’s Gift to the World

MP Board Class 11th English Book Solutions A Voyage, The Spectrum Chapter 18 India’s Gift to the World – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 11th English The Spectrum Solutions Chapter 18 India’s Gift to the World

Fill in the blanks to complete the following paragraph with the help of the words given in the box.
बॉक्स में दिये गये शब्दों से निम्नलिखित पैराग्राफ के खाली स्थाने भरकर इसे पूरा कीजिए।
Answer:
history, providence, everything. sacrificed, dearer, study, living. foreign lands, knowledge, service, rejoice, single.

Comprehension

A. Answer the following questions in one or two sentences each.
इन प्रश्नों का उत्तर एक या दा वाक्यों में दीजिए।।

Question 1.
What was the author concerned about before visiting India ?
भारत आने से पूर्व लेखक की चिन्ता का विषय क्या था ?
Answer:
He was concerned about gathering material for a biography of Mahatma Gandhi.
उसकी चिन्ता का विषय महात्मा गाँधी के जीवन वृतान्त के लिए सामग्री एकत्रित करना था।

Question 2.
What was the only decoration in Gandhiji’s hut’ (2012, 15)
Answer:
The only decoration was a black and white print of Jesus Christ with the inscription, “He is our peace”.
एकमात्र अलंकरण था ईसा मसीह का श्वेत-श्याम चित्र जिस पर लिखा था, “यह हमारी शान्ति है।”

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Question 3.
What religion Gandhiji confess to believe in’ (2008)
गाँधीजी का विश्वास किस धर्म में था ?
Answer:
He was a Christian and a Hindu and Muslim and a Jew.
वे ईसाई थे, हिन्दू थे, मुस्लिम थे और यहूदी थे।

Question 4.
Why did Gandhiji regret that people gave him adulation ?
गाँधीजी को खेद क्यों था कि लोग उनकी चापलूसी करते थे ?
Answer:
Because he wanted them to accept his way of life.
क्योंकि वे चाहते थे कि लोग उनकी जीवनपद्धति को स्वीकार करें।

Question 5.
How did the author come to know that Gandhiji had been killed ?
लेखक को कैसे पता चला कि गाँधीजी की हत्या हो गई है ?
Answer:
He came to know it when he turned on his radio on the morning of 31 January, 1948.
उन्हें तब पता चला जब उन्होंने 31 जनवरी, 1948 की सुबह अपना रेडियो चालू किया।

Question 6.
What did Gandhiji prescribe for mental health ?
मानसिक स्वास्थ्य के लिए गाँधीजी का क्या नुस्खा था ?
Answer:
For mental health Gandhiji prescribed truth.
मानसिक स्वास्थ्य के लिए गाँधीजी का नुस्खा था सत्य ।

Question 7.
What was Gandhiji’s elixir of growth ? (2009)
विकास के लिए गाँधीजी का अमृत क्या था ?
Answer:
His elixir was fearlessness.
उनका अमृत था निर्भीकता।

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Question 8.
What, according to Gandhiji was the central evil of the modern world?
गाँधीजी के अनुसार आधुनिक विश्व की मुख्य बुराई क्या थी ?
Answer:
According to him the central evil was materialism.
उनके अनुसार मुख्य बुराई भौतिकवाद थी।

Question 9.
How did Gandhiji pay for his principles ?
गाँधीजी ने अपने सिद्धान्तों की कीमत कैसे चुकाई ?
Answer:
He did it by going to jail, by inviting death and by courting poverty.
उन्होंने उसे जेल जाकर, मृत्यु का आह्वान करके तथा गरीबी को गले लगाकर चुकाई।

Question 10.
Why, according to the author, did most ofGandhiji’s followers accept his leadership?
लेखक के अनुसार उनक अधिकतर अनुयायियों ने उनके नेतृत्व को क्यों स्वीकार किया ?
Answer:
They merely accepted his leadership because it smoothed the way to their objective which was an Indian nation without the British.
उन्होंने उनका नेतृत्व इसलिए स्वीकार किया क्योंकि वह उनके उद्देश्य अर्थात् भारत राष्ट्र बिना अंग्रेजों के, को प्राप्त करने में उनका रास्ता आसान बना रहे थे।

Question 11.
What would be the best symbol of Gandhiji’s philosophy according to the author ?
लेखक के अनुसार गाँधीजी के दर्शन का सबसे अच्छा प्रतीक क्या होगा ?
Answer:
The best symbol of Gandhiji’s philosophy would be the two parallel bars of the equal sign.
गाँधीजी के दर्शन का सबसे अच्छा प्रतीक बराबर के चिह्न के दो समानान्तर दण्ड है।

Question 12.
What were the manifestations of status in India ?
भारत में प्रतिष्ठा का दिखावा क्या था ?
Answer:
It was the caste system, the torture of untouchables and pride.
वे थे जाति प्रथा, अछूतों को दी जाने वाली यातना और घमण्ड।

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B. Answer the following questions in two to four sentences each.
[इन प्रश्नों का उत्तर दो से चार वाक्यों में दीजिए।]

Question 1.
The writer weeps on Gandhiji’s death. He still says that it was the best way to die. What are his justifications for this statement ? Do you agree with him?
लेखक गाँधीजी की मृत्यु पर रो पड़ते हैं। तब भी वे कहते हैं कि मृत्यु का यह सबसे अच्छा रास्ता था। इस कथन से समर्थन में उनका तर्क क्या है ? क्या आप इससे सहमत है ?
Answer:
His justification is that Gandhiji had been a fighter all his life and it would have been strange if he had died of a cold. I fully agree with him.

उनका तर्क यह है कि गाँधीजी जीवन भर जुझारू रहे और यदि वे सर्दी जुकाम से मरते अर्थात् एक आम इन्सान की मौत मरते तो थोड़ा अजीब लगता। मैं उनके मत से पूरी तरह सहमत हूँ।

Question 2.
In what sense was Gandhiji a self remade man ? (2011)
किस रूप में गाँधीजी एक स्वयं पुनर्निर्मित व्यक्ति थे ?
Answer:
He was an ordinary individual, a blundering boy, a mediocre student and a poor lawyer. Then he changed himself and became a great leader, a saint.

वे साधारण व्यक्ति थे, एक गलती करने वाला बालक, एक औसत दर्जे का विद्यार्थी और एक कमजोर वकील। फिर उन्होंने अपने को बदला और एक महान नेता, एक सन्त बन गये।

Question 3.
What warning did Gandhiji give on renouncing a worldly asset? What suggestions did he give on this subject ?
गाँधीजी ने सांसारिक सम्पत्ति त्यागने के सम्बन्ध में क्या चेतावनी दी थी ? इस विषय पर उन्होंने क्या सुझाव दिये थे ?
Answer:
Gandhiji wamed that one should not renounce a worldly asset in a mood of self-sacrifice or out of a sense of duty. He suggested that one should do it only when that thing no longer had an attraction or when it started interfering with one’s recent desires.

गाँधीजी ने चेतावनी दी थी कि व्यक्ति को सांसारिक सम्पत्ति का परित्याग आत्मत्याग के भावावेश में अथवा कर्त्तव्य की भावना से नहीं करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसा केवल उस समय करना चाहिए जब उस चीज के प्रति व्यक्ति में कोई आकर्षण नहीं बचा हो या जब वह व्यक्ति की वर्तमान आकांक्षाओं में बाधा डालने लगी हो।

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Question 4.
How is the life of Gandhiji remembered ? (2008, 09)
गाँधीजी के जीवन को कैसे याद किया जाता है ?
Answer:
He is remembered as an outstanding individual of the twentieth century or perhaps of the preceding nineteenth too. He was an Indian but now he belongs to the world.
उन्हें बीसीं सदी के और शायद पिछली उन्नीसी के भी एक आदर्श पुरुष के रूप में याद किया जाता है। वे भारतीय थे किन्तु अब वे विश्व के हैं।

Language Practice

इस खण्ड के मूल प्रश्न व तालिकाएँ अपनी पाठ्य-पुस्तक में से देखिये। यहाँ केवल उनके उत्तर दिये जा रहे हैं।]

A Pick out the adverb clauses in the following sentences.
निम्नलिखित वाक्यों में adverb clauses छाँटिये।।
Answer:

where angels fear to tread.
as he had expected.
even if you pay me.
so terrible that very few people survived.
Since you swear to serve me faithfully.
whenever he is sent for.
If you have tears.
than false promise.
lest your lord come in the night.
before you forget.
B. Match items under A with those under B to make sentences with conditional clauses. Use correct punctuation and write complete sentences.
[A में दी गई वस्तुओं का B के clauses से मिलान करो। सही विराम चिह्न प्रयुक्त करो और पूरे वाक्य लिखो।।
Answer:

If I make a promise, I keep.
If she had bought a television, her children would have watched the serials.
You will miss the train if you don’t hurry.
If it rains, we shall stay at home.
I would wear woollen clothes if it was snowing.
India’s Gift to the World Summary in Hindi

मैं एक बार फिर महात्मा गाँधी के जीवनवृतान्त के लिए सामग्री एकत्रित करने उस भारतवर्ष की ओर जा रहा था जो एक मनोरंजक एवं निर्णायक देश है। ऐसा लग सकता है कि इटली से सीधे भारत जाने में एक बड़ा परिवर्तन होगा लोग, भूगोल, इतिहास और दोनों देशों की समस्याएँ इतनी भिन्न हैं। किन्तु दोनों देशों में रह रहे मित्रों के कारण यह परिवर्तन आसान हो गया और हालाँकि समस्याएँ अलग लगती थीं किन्तु आवश्यक निदान दोनों का एक ही था-विधान द्वारा लाई गई एक सामाजिक क्रान्ति जो गरीब और अमीर तथा नीची और ऊँची जातियों के बीच के कष्टदायक अन्तर को खत्म कर दे।

गाँधीजी इटली, यूरोप, दोनों अमेरिका और अफ्रीका से दूर नहीं हैं। जितना ही मैं उनके जीवन के बारे में सोचता हूँ उतना ही वे आज के पश्चिमी विश्व की चिन्ताओं के लिए प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। गाँधीजी के सिद्धान्तों और कार्यविधि की थोड़ी सी प्रेरणा से भी सभी जगह युद्ध के बाद का काल बहुत भिन्न होता । मैं 1942 में एक सप्ताह के लिए गाँधीजी के गाँव में उनके मेहमान के रूप में रह चुका हूँ और मैंने उनको बुद्धिमान, तनाव रहित, अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करने वाला और संवेदनशील पाया था।

एक दिन उनसे हुए एक घण्टे के साक्षात्कार के दौरान मैंने संकेत दिया कि उनकी मिट्टी की दीवार पर मात्र एक अलंकरण था : ईसा मसीह का एक श्वेत श्याम चित्र जिस पर लिखा था, “यह हमारी शान्ति है।” “यह कैसे ?”, मैंने पूछा, “आप तो ईसाई नहीं है।” “मैं एक ईसाई, एक हिन्दू, एक मुस्लिम और एक यहूदी हूँ।”, उन्होंने उत्तर दिया। उन्होंने सहनशीलता से आगे जाकर दूसरों से तादात्म्य स्थापित किया था जो प्रेम का पर्याय है। इस कारण गाँधीजी

ईसाइयों से अधिक ईसाई थे वे ईसा के समान थे। अगर गाँधीजी भारत में तीन हजार वर्ष पूर्व पैदा हुए होते तो उनके बारे में देवकथाएँ बन गई होती और उनका यौवन अलौकिक घटनाओं से पूर्ण हो गया होता और ईश्वर के समान उनकी पूजा होने लगती। राजनीति में शुद्धता को अंगीकार करके वे सन्त राजनेता बन गये। मैं उनके साथ भारत के कई भागों में गया। मैंने उनके साथ बम्बई से पूना तक रेलवे के तृतीय श्रेणी के डिब्बे में यात्रा की। जहाँ भी गाड़ी रुकती, मानसून की भारी बारिश के बावजूद वहाँ भारी संख्या में लोग उपस्थित मिलते। एक स्टेशन पर करीब चौदह साल के दो लड़के, अपनी भूरी त्वचा तक भीगे हुए, उनके काले बालों से पानी टपकता हुआ, गाँधीजी की खिड़की के पास उछल-उछलकर चिल्ला रहे थे, “गाँधीजी, गाँधीजी, गाँधीजी।” (‘जी’ आदरसूचक प्रत्यक है) गाँधी मुदित मुद्रा में थे।

“आप उनके लिए क्या हैं ?” मैंने पूछा। उन्होंने अपनी मुट्ठी अँगूठे को ऊपर उठाते हुए कनपटी पर रखी, “सींगों वाला एक इन्सान, एक दर्शनीय वस्तु।”, उन्होंने उत्तर दिया। उन्हें सदा इस बात पर खेद होता था कि लोग उनकी चाटुकारिता करते हैं जबकि वे उनसे अपनी जीवनपद्धति की स्वीकारोक्ति चाहते थे। उस साल मैंने उनके संसर्ग में आठ दिन बताए। मैं गाँधीजी से अपने सम्बन्ध के लिए कोई बड़ा शब्द प्रयोग करने से हिचकता हूँ, कदाचित मैंने उन्हें प्यार करना शुरू कर दिया था। दो वर्ष बाद, 31 जनवरी, 1948 शनिवार की सुबह आठ बजे मैंने अपने न्यूयॉर्क के फ्लैट में रेडियो चालू किया तो सुना कि गाँधीजी की नयी दिल्ली में अपनी प्रार्थना सभा में गत दिवस हत्या कर दी गई।

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मैंने गाँधीजी को देखा था, उनके साथ भोजन किया था, उनके साथ पैदल घूमा था, उनसे मजाक किया था। जो समय उन्होंने मुझे दिया था उसे मैं स्वर्णिम मानता था। अब इसका विवरण पढ़कर कि मृत्यु में वे कितने असहाय पड़े थे, मैं रो पड़ा हालांकि मैं बहुत वर्षों से नहीं रोया था। मैं स्तम्भित रह गया। बाद में, जब मुझमें सोचने की शक्ति पुनः वापस आई, मुझे ऐसा लगा कि शायद मरने का यह सबसे अच्छा तरीका था। वे पूरे जीवन एक संघर्षशील व्यक्ति रहे थे और अगर वे सर्दी जुकाम से मरते तो शायद यह अजीब लगता। उनकी हिंसात्मक मृत्यु एक और सेवा थी। पर्ल बक ने इसे दूसरा सूली पर चढ़ना कहा था।
गाँधीजी पाश्चात्य विश्व को भारत का एक तोहफा हैं। उनका जीवन हमारे भयंकर रोगों के लिए एक नुस्खा है। मनुष्य की सम्पदा को एक भविष्य द्रष्टा के विश्वव्यापी चक्षुओं से, जिनकी एक्स-रे जैसी दृष्टि लौहावरण एवं राष्ट्रीय सीमाओं को भेदने में समर्थ हो, देखते हुए गाँधी ने देखा कि व्यक्ति का कद जनतन्त्र एवं तानाशाही दोनों में एक समान घटता जा रहा है।

व्यक्ति गाँधीजी की चिन्ता का मुख्य विषय रहा है और विशेषकर यह चिन्ता ही उन्हें बीसौं शताब्दी के दूसरे अर्धाश की समस्याओं के लिए अत्यन्त प्रासंगिक बनाती है। बीसवीं शताब्दी जो सामान्य आदमी अथवा असामान्य आदमी की नहीं बल्कि दोनों की स्वाधीता, ईमानदारी और मानसिक स्वास्थ्य के ऊपर हल्ले की शताब्दी है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए गाँधीजी का नुस्खा था सत्य। वे अपने स्वयं के लिए, जिस पर वे विश्वास करते थे, जो वे करते थे तथा जो वे कहते थे इन सबका सम्मिलन चाहते

थे। यथा करनी और कथनी एक थे। यही वह सम्मिलन है जो ईमानदारी या सत्य है। जब कथनी कार्यों से और कार्य विश्वासों से टकराते हैं तो व्यक्ति विखण्डित और रुग्ण हो जाता है। गाँधी जैसी सीख देते थे वैसा आचरण करते थे जैसा विश्वास करते थे वैसा ही आचरण करते थे। अपनी चिन्ताओं और कर्त्तव्य बोझ के बावजूद मैंने उन्हें स्वस्थ और प्रसन्नचित पाया। वे आन्तरिक सामंजस्य का अनुभव करते थे। गाँधीजी पैदाइशी महान नहीं थे। जब उन्होंने अपना पुनर्निर्माण किया उसके पूर्व वे गलती करने वाले लड़के, औसत दर्जे के विद्यार्थी, कमजोर वकील और साधारण व्यक्ति थे। वे एक स्वयं पुनर्निर्मित व्यक्ति थे। उन्हें अपने आप में भरोसा था किन्तु इन सबसे परे उन्हें अत्यधिक स्पन्दित कर देने वाला विश्वास था किसानों में, फेरी वालों में, खदान में काम करने वालों में, और अनगढ़े नौजवान स्त्री पुरुषों में जिनको उन्होंने अपने साथ जोड़ा था। इन सबको उन्होंने विकास का एक ऐसा अमृत पिला दिया था जिसने इन नाम रहित, शिक्षा रहित लोगों को सिंहवत सूरमा बना दिया था। वह अमृत था भयहीनता।

एक उत्कट और आजीवन अहिंसा के उपासक, गाँधी कहते थे,“यदि कायरता और हिंसा में चुनाव करना हो तो मैं हिंसा को चुनूँगा क्योंकि कायरता और भय आदमी को छोटा बना देती है जो दबावों के सामने समर्पण कर देता है और अपनी आजादी, अपने सिद्धान्तों की या अपने आपकी रक्षा नहीं कर पाता है।” अन्तरात्मा के उच्चतर कानून के पालन हेतु सविनय अवज्ञा या बड़ी मात्रा में जान-बूझकर कानून का उल्लंघन गाँधी का एक अनुपम राजनैतिक शस्त्र था। ‘सविनय अवज्ञा’ पद उन्होंने 1849 में प्रकाशित हेनरी थोरड के इसी नाम के लेख से लिया था। “उसने मुझ पर गहरी छप छोड़ी थी।” गाँधी ने थोरड के लेख के बारे में लिखा था। थोरड के समान गाँधी भी व्यक्ति के द्वारा सरकारों का, युद्ध के समय भी, विरोध करने के अधिकार का समर्थन करते थे क्योंकि असहमति के अधिकार के बिना जनतन्त्र खोखला है और भय से असहमति समाप्त हो जाती है।

गाँधीजी को लगता था कि आधुनिक विश्व की मुख्य बुराई भौतिकवाद था। गाँधी के अनुसार, पदार्थ या भौतिकवाद केवल सम्पदा नहीं शक्ति था, स्वतन्त्रता की भावना को कुचलने के लिए नृशंस शक्ति का संचय, एक ऐसी मशीन का निर्माण जो नफरत के ईधन से चलती हो। गाँधी ने कभी किसी से सम्पदा या शक्ति के परित्याग का आग्रह नहीं किया। उन्होंने ऐसे मूल्यों की शिक्षा दी जिनके कारण प्रसन्नता भौतिक सम्पदा पर कम आश्रित हो। “जब तक तुम किसी चीज से आन्तरिक सुख व सहायता की आकांक्षा करते हो तब तक उसे रखों”, उन्होंने सुझाया, “अन्यथा तुम उस सांसारिक सम्पदा का आत्मत्याग की भावावस्था में अथवा निष्ठुर कर्तव्य की भावना से परित्याग कर दों” बजाय उसको वापस चाहो और दुखी हो उठो। “किसी चीज का परित्याग उसी समय करों”, उन्होंने कहा, “जब तुम दूसरी स्थिति को इतना अधिक चाहने लगो कि उस वस्तु के प्रति तुममें कोई आकर्षण शेष न हो या जब ऐसा लगे कि जिस चीज की तुम्हारे मन में उत्कृष्ट अभिलाषा है उसमें वह बाधा डाल रही है। ऐसी भावना से हो सकता है एक परिवार शहर में अपना रहना त्याग कर प्रकृति के संसर्ग में रहने लगे या एक व्यक्ति सरकारी पद अथवा व्यवसाय त्यागकर कुछ और काम करने लगे व ऊपर उठे।

“मैं तहेदिल से नफरत करता है”, गाँधीजी ने घोषणा की, “इस पागल-सी अभिलाषा की, दूरियाँ और समय को समाप्त करने की, पार्श्विक अभिरुचि बढ़ाने की और फिर पृथ्वी के छोरों तक उनको सन्तुष्ट करने के लिए जान की। इनमें से कोई भी विश्व को लक्ष्य के नजदीक नहीं पहुँचा रही है।”जब 1946 में मैंने उनसे कहा कि उन्हें पश्चिम जाकर अपने सिद्धान्त उन्हें सिखाने चाहिए तो उन्होंने उत्तर दिया, ” पश्चिम क्यों चाहता है कि मैं उन्हें दो गुणा दो चार होते हैं, यह सिखाऊँ ?” उनका पूर्वाग्रह यह था कि पश्चिमी विश्व सच्चाई जानता है किन्तु वस्तुओं का गुलाम होने के कारण सिद्धान्तों की रक्षा के लिए सामने नहीं आता। यदि उसमें नौकरी के लिए, जनता की स्वीकृति के लिए, व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए या आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा हों। उन्हें स्वयं अपने सिद्धान्तों की कीमत चुकानी पड़ी थी, जेल जाकर, गरीबी को गले लगाकर, मुत्यु को आमन्त्रित करके और इसने उन्हें भावना के सिक्कों में धनी बनाया है। भावना ही एकमात्र ऐसी मुद्रा है जिसे वे मूल्यवान मानते थे।

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गाँधीजी जाने जाते हैं भारत को स्वाधीन कराने के उनके सफल प्रयत्न के लिए। वास्तव में उनके लिए भारत को मुक्त करने से एक भारतीय का स्वतन्त्र मनुष्य के रूप में विकास अधिक महत्त्वपूर्ण था। भारत में गाँधीजी के अधिकतर अनुयायी गाँधीवादी नहीं थे और न उनके आदर्शों के सहाभागी। उन्होंने उनका नेतृत्व इसलिए स्वीकार कर लिया क्योंकि उसने अंग्रेजों के बिना भारतीय राष्ट्र के उनके लक्ष्य को आसान बना दिया। उनके लिए राष्ट्रीय स्वाधीनता एक उद्देश्य था, एक वांछित वस्तुः उनके लिए यह एक साधन था भद्रतर मनुष्य और श्रेष्ठतर जीवन के लिए, और क्योंकि जिस तरह से आजादी प्राप्त की गई थी उससे उसका हृदय शंकाकुल था कि क्या वास्तव में इन उद्देश्यों को आगे बढ़ाया जा सकेगा-दो रक्तरंजित बच्चे भारत माँ के शरीर से हिंसात्मक तरीके से अलग किये गए-उन्होंने 15 अगस्त, 1947 को जिस दिन भारतीय राष्ट्र विश्व के नक्शे पर उभरा, किसी प्रकार का जश्न नहीं मनायावे दुखी थे और उन्होंने बधाइयाँ स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।

कदाचित् गाँधीजी के दर्शन का सबसे अच्छा प्रतीक बराबर के चिह्न की दो शलाका हैं। सभी राष्ट्र, धर्म व्यक्ति बराबर थे हालाँकि एक समान नहीं। गाँधी ने वरीयता को अलग नहीं किया था। उन्होंने हिन्दुत्व को पसन्द किया, वे भारत को अन्य देशों से अधिक प्यार करते थे, वे अपने कुछ निकटतम सहयोगियों को गले लगा लेते थे। लेकिन कोई भी द्वितीय दर्जे का नहीं था। वे प्रतिष्ठा से नफरत करते थे और सारे जीवन भारत में उसके भद्दे दिखावे के विरुद्ध काम करते रहे। जाति प्रथा, अछूतों की दी जाने वाली यन्त्रणा, घमण्ड तथा प्रादेशिक और धार्मिक अलगाव।

इन सब तथा अन्य बहुत से विषयों पर कई दशक तक गाँधीजी ने विस्तार से और बहुत बारीकी से लिखा। असंख्य अवसरों पर उन्होंने इन पर बोला–लेकिन आधुनिक सभ्यता को उनका एक बड़ा योगदान उनका जीवन है। गाँधीजी ने यह दिखा दिया कि इस बीसी सदी में भी ईसा मसीह बनना सम्भव है। उन्होंने दिखा दिया कि अच्छा और प्रभावी दोनों बनना सम्भव है। कदाचित्, भारतीय कवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने गाँधी के बारे में लिखा, “वे सफल न होंगे। कदाचित् वे मनुष्यों को अपनी बुरी आदतों से अलग करने में असफल हो जायेंगे जैसे बुद्ध असफल हुए और जैसे ईसा मसीह असफल हुए, किन्तु उन्हें हमेशा याद किया जाएगा, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने अपना जीवन आने वाली सदियों के लिए एक सबक बना दिया।”

जब हम छोटे-छोटे आदमियों को उनकी बढ़ती हुई समस्याओं से निपटते हुए देखते हैं तो गाँधी का कद बढ़ता है। गाँधी, जो हिन्द, ईसाई, बौद्ध, यहूदी, मुस्लिम सब एक साथ है, का जीवन उद्देश्य की शुचिता, मानवता और सत्यनिष्ठ की एक मिसाल है। उनकी मानसिक, भावनात्मक और चारित्रिक महानता उन्हें बीसीं सदी का और शायद इसके पूर्व की उन्नीसी का भी आदर्श पुरुष बना देती है। वे भारतीय थे। वे विश्व के हैं। -लुइस फिशर


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