MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू

MP Board Class 11th Hindi Book Solutions हिंदी मकरंद, स्वाति Chapter 10 राजेन्द्र बाबू- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को लेखिका ने प्रथम बार कहाँ देखा?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू को लेखिका ने प्रथम बार पटना के रेलवे स्टेशन पर देखा।

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प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू पौत्रियों को प्रयाग क्यों लाए थे?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू अपनी पौत्रियों को प्रयाग लाए थे। यह इसलिए कि उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। वे लेखिका महादेवी वर्मा के प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय के छात्रावास में रहकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ दे सकें। इससे उन्हें शीघ्र कुछ विद्या प्राप्त हो सकेगी।

प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू के निकट सम्पर्क में आने का अवसर लेखिका को किस प्रकार मिला?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू के निकट सम्पर्क में आने का अवसर लेखिका को सन 1937 में मिला। उस समय के कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में लेखिका के प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय भवन का शिलान्यास करने प्रयाग आए। उनसे ज्ञात हुआ कि उनकी 15-16 पौत्रियाँ हैं, जिनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यदि वह अपने छात्रावास में रखकर उन्हें विद्यापीठ की परीक्षाओं में बैठा सकें तो उन्हें शीघ्र कुछ विद्या प्राप्त हो सकेगी।

प्रश्न 4.
महादेवी वर्मा, राजेन्द्र बाबू के साथ बिताई संध्या क्यों नहीं भूल पातीं?
उत्तर:
महादेवी वर्मा, राजेन्द्र बाबू के साथ बिताई संध्या को नहीं भूल पातीं। यह इसलिए कि उसने उन्हें अर्थात् भारत के प्रथम राष्ट्रपति को सामान्य आसन पर बैठकर दिन भर के उपवास के बाद केवल कुछ उबले आलू खाकर पारायण करते देखा था। उसे भी वही खाते हुए देखकर उनकी दृष्टि से संतोष और होंठों पर बालकों जैसी सरल हँसी छलक उठी थी।

राजेन्द्र बाबू दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के उन कतिपय पहचान चिह्नों का उल्लेख कीजिए जो भारतीय जन की आकृति को व्यक्त करते हैं?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सारे गठन में एक साधारण भारतीय जन की आकृति और गठन की छाया थी। इसलिए उन्हें देखने वाले को कोई-न-कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था। वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है। आकृति और वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन-सहन में भी साधारण भारतीय या भारतीय किसान का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशेषता के साथ-साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।

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प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के गुणों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के निम्नलिखित गुण थे –

बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने का उन्हें कभी न घमण्ड हुआ और न कोई मानसिक ग्रन्थि ही हुई।
सबके प्रति वे समान ध्यान रखती थीं।
राष्ट्रपति भवन में भी वे स्वयं भोजन बनाती थीं। पति, परिवार और परिजनों को खिलाने के बाद ही स्वयं भोजन करती थीं। इस प्रकार वह एक सामान्य भारतीय गृहिणी के समान ही रहती थीं।
वह अपने पति के साथ सप्ताह में एक दिन उपवास किया करती थीं।
प्रश्न 3.
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ हैं –

उनकी शारीरिक बनावट बड़ी ही अदभुत थी। वह ऐसी विशेषता थी, जो पहली ही नजर में किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। उन्हें देखने वाला हर कोई यही मान लेता था कि उसने इस आकृति को अवश्य कहीं-न-कहीं देखा है।
उनकी वेशभूषा ग्रामीणों की थी। उसमें भारतीयता की साफ झलक दिखाई देती थी।
उनकी आकृति, वेशभूषा तो आकर्षक थी ही, उनका स्वभाव और रहन-सहन भी सामान्य भारतीय या भारतीय किसान की ही तरह था।
उनकी प्रतिभा और बुद्धि उनकी सामान्यता को महत्त्व प्रदान करती थी।
उनमें जीवन-मूल्यों को परखने की अद्भुत दृष्टि थी। इसी से उन्हें ‘देशरत्न’ का सम्मान दिया गया।
उनके मन की सरल स्वच्छता ऐसी थी कि वे इन्हीं के आधार पर ‘अजातशत्रु’ के रूप सम्मानित होते रहे।
उनके समान कठिन लेकिन कोमल चरित्र आज नहीं है।
प्रश्न 4.
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु किस सन्दर्भ में कहा जाता है?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु उस सन्दर्भ में कहा जाता है कि उनका मन बहुत ही सरल और स्वच्छ था। उनके इन गुणों से अत्यधिक प्रभावित होकर उनके सम्पर्क में आने वाला हर कोई उनका लोहा मान लेता था।

प्रश्न 5.
सामान्यतः हमारा उपवास कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्यतः हमारा उपवास अधिक सस्ता और कामचलाऊ होता है। कम-से-कम खर्च से अल्पाहार करके हम उपवास करते हैं।

राजेन्द्र बाबू भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.

क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।
कर्तव्य विलास नहीं कर्मनिष्ठा है।
सत्य में से कुछ घटाना या जोड़ना सम्भव नहीं रहता।

उत्तर:

  1. ‘क्या वह साँचा टूट गया, जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे’:
    उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन किन्तु कोमल चरित्रों का आज बिलकुल अभाव हो गया है। यों तो आज भी अनेक महान पुरुष हैं, लेकिन उनके जैसे बेजोड़ और अद्भुत चरित्रों का आज अकाल पड़ा हुआ दिखाई देता है। इससे यह सहज ही प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है कि राजेन्द्र बाबू जैसे बेजोड़ चरित्रों को तैयार करने वाला समय का साँचा आज नहीं दिखाई दें रहा है। वास्तव में यह एक बहुत बड़ी ही दुखद और अफसोस की बात है।
  2. ‘कर्तव्य विलास नहीं, कर्मनिष्ठा है’:
    उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि जीवन में महानता हासिल करने के लिए सुख-सुविधाओं को महत्त्क नहीं देना चाहिए। अगर ऐसा कोई करता है तो वह जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता है। वह अपने उद्देश्य से भटक जाता है। इससे वह अपना महत्त्व खोने लगता है। इसके विपरीत जो परिश्रमी होकर उद्देश्यमय जीवन जीना चाहते हैं, वे अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटते हैं। वे उसे विलास के रूप में नहीं देखते हैं। वे तो उसे कर्मनिष्ठा ही समझकर आगे बढ़ते जाते हैं। ऐसे ही लोग युग-पुरुष के रूप में सम्मानित होकर सदैव याद किए जाते रहते हैं।
  3. ‘सत्य में से कुछ घटाना या जोड़ना सम्भव नहीं रहता’:
    उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि सत्य अटल होता है। वह किसी दिशा में नहीं बदलता है। वह हमेशा अपने ही रूप में रहता है। इसलिए बदलने या इसे कुछ और रूप देने की कोशिश बिल्कुल व्यर्थ होती है। सत्य का यह अटल रूप परिश्रम, स्वभाव, चरित्र, सोच, विचार आदि कहीं और कभी देखा जा सकता है। इस प्रकार सत्य काल का अमर चिह्न और अमर पहचान कहा जा सकता है।

राजेन्द्र बाबू भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
पुरातन, सीमित, अनुपस्थित, संयम, अपेक्षा, विचलित, संकुचित

उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग एवं प्रत्यय युक्त शब्दों को छाँटकर पृथक-पृथक लिखिए –
प्रसारित, विचित्र, प्रतिनिधित्व, विशिष्टता, सहधर्मिणी।

उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
आँख, धरती, स्मृति, कृषक, सहधर्मिणी।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-3

प्रश्न 4.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं। इन शब्दों का पृथक-पृथक . अर्थों में प्रयोग कीजिए –
कोट, जान, भेंट, फल, सूप।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-4

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के भिन्नार्थक समोच्चरित शब्द लिखकर वाक्य बनाइए –
निर्वाण, चर्म, कच्छा, तुरंग, प्रासाद, वास, द्वीप, तरिण, आसन्न, परिधान, अनु, वाला।

उत्तर:
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राजेन्द्र बाबू योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप किन महापुरुषों के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं, कारण सहित लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

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प्रश्न 2.
क्या आपके जीवन में कभी कोई ऐसा संस्मरण घटित हुआ जिसे आप अपने साथियों के साथ बाँटना चाहेंगे। यदि हाँ, तो संस्मरण को लिखकर कक्षा में सुनाइए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

प्रश्न 3.
रेल-यात्रा के लिए पूर्व में आरक्षण कराया जा सकता है। रेल यात्रा के आरक्षण तथा रद्दकरण हेतु आवेदन पत्र देना होता है। यहाँ दिए आरक्षण पत्र को भरिए तथा रेलवे की अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

राजेन्द्र बाबू परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
राजेन्द्र बाबू लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका को किसने बताया?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका को उसके भाई ने बताया।

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति देखकर ऐसा अनुभव होता था?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति देखकर ऐसा अनुभव होता था, मानो उन्हें पहले कहीं देखा है।
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प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू को ‘देशरत्न’ की उपाधि क्यों मिली?
उत्तर:
जीवन-मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण राजेन्द्र बाबू को ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली।

राजेन्द्र बाबू दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा कैसी थी?
उत्तर:
उनकी वेशभूषा की ग्रामीणता तो दृष्टि को और भी उलझा लेती थी। खादी की मोटी धोती ऐसा फेंटा देकर बाँधी गई थी कि एक ओर दाहिने पैर पर घुटना छूती थी और दूसरी ओर बाएँ पैर की पिण्डली। मोटे, खुरदरे, काले बंद गले के कोट में ऊपर का भाग बटन टूट जाने के कारण खुला था और घुटने के नीचे का बटनों से बंद था। सरदी के कारण पैरों में मोजे-जूते तो थे, परन्तु कोट और धोती के समान उनमें भी विचित्र स्वच्छंदतावाद था। एक मोजा जूते पर उतर आया था और दूसरा टखने पर घेरा बना रहा था।

मिट्टी की पर्त से न जूतों के रंग का पता चलता था, न रूप का। गाँधी टोपी की स्थिति तो और भी विचित्र थी। उसकी आगे की नोक बाईं भौंह पर खिसक आई थी और टोपी की कोर माथे पर पट्टी की तरह लिपटी हुई थी। देखकर लगता था मानो वे किसी हड़बड़ी में चलते-चलते कपड़े पहनते आए हैं, अतः जो जहाँ जिस स्थिति में अटक गया, वह वहीं उसी स्थिति में अटका रह गया।

प्रश्न 2.
जवाहरलाल और राजेन्द्र बाबू की अस्त-व्यस्तता में क्या अन्तर था?
उत्तर:
जवाहरलाल जी की अस्त-व्यस्तता भी व्यवस्था से निर्मित होती थी किन्तु राजेन्द्र बाबू की सारी व्यवस्था ही अस्त-व्यस्तता का पर्याय थी। दूसरे, यदि जवाहरलाल जी की अस्त-व्यस्तता देख लें तो उन्हें बुरा नहीं लगता था, परन्तु अपनी अस्त-व्यस्तता के प्रकट होने पर राजेन्द्र बाबू भूल करने वाले बालक के समान संकुचित हो जाते थे। एक दिन यदि दोनों पैरों में दो भिन्न रंग के मोजे पहने किसी ने उन्हें देख लिया तो उनका संकुचित हो उठना अनिवार्य था। परन्तु दूसरे दिन जब वे स्वयं सावधानी से रंग का मिलान करके पहनते तो पहले से भी अधिक बेमेल रंगों को पहन लेते।

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प्रश्न 3.
लेखिका राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के सम्पर्क में कव आयी? वह कैसी थीं?
उत्तर:
पहले बड़ी, फिर छोटी, फिर उनसे छोटी के क्रम से बालिकाएँ मेरे संरक्षण में आ गईं और उन्हें देखने प्रायः उनकी दादी और कभी-कभी दादा भी प्रयाग आते रहे। तभी राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के निकट सम्पर्क में आने का अवसर मिला। वे सच्चे अर्थ में धरती की पुत्री थीं साध्वी, सरल, क्षमामयी, सबके प्रति ममतालु और असंख्य सम्बन्धों की सूत्रधारिणी। ससुराल में उन्होंने बालिका-वधू रूप में पदार्पण किया था। संभ्रांत जमींदार परिवार की परम्परा के अनुसार उन्हें घण्टों सिर नीचा करके एकासन में बैठना पड़ता था, परिणामतः उनकी रीढ़ की हड्डी इस प्रकार झुक गई कि युवती होकर भी वे सीधी खड़ी नहीं हो पाईं।

राजेन्द्र बाबू लेखिका परिचय

प्रश्न 1.
श्रीमती महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में 26 मार्च, 1907 को हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्रयाग से प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से वह बहुत अधिक परिचित और प्रभावित होने लगीं। उन पर वह लगातार कविताएँ भी लिखने लगी थीं। अपने जीवन में आने वाले सामान्य और विशिष्ट दोनों लोगों के प्रति उनमें आत्मीयता और सहानुभूति की भावधारा आने लगी थी। उन्होंने राष्ट्रीय संकट के समय में अपनी व्यापक मानवीय संवेदना से भरी हुई साहित्यिक रचनाएँ राष्ट्र को दी। कुछ समय बाद वह प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या और फिर उपकुलपति रहीं। उनका निधन 11 सितम्बर, 1987 को हुआ।

रचनाएँ:
‘नीहार’, ‘नीरजा’, दीपशिखा, ‘यामा’ आदि महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्हें ‘यामा’ काव्य-संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्य की विशेषताएँ:
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री हैं। आपने द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, नैतिकता, पौराणिकता और उपदेशात्मकता के अतिरिक्त भावुक मन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूतियों को संगीतात्मक लय के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। भावुकता की अतिशयता के कारण उन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ भी कहा • जाता है। आपके व्यक्तित्व पर बौद्ध दर्शन का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।

राजेन्द्र बाबू पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ एक हृदयस्पर्शी संस्मरण है। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के प्रेरणादायक स्वरूपों पर प्रकाश डाला है। लेखिका के अनुसार-उसने एक गद्यात्मक वातावरण में जष राजेन्द्र बाबू को पहली बार देखा तो उनमें अकथनीय भावात्मक क्षणों के अनेक रूप झलकते हुए दिखाई दे रहे थे। उस समय वह प्रयाग में बी.ए. की छात्रा थी। शीतकाल में उसने अपने घर जब भागलपुर जाते समय अपने भाई से मिलने की प्रतीक्षा में पटना स्टेशन पर राजेन्द्र बाबू को देखा था। उनका व्यक्तित्व बहुत सहज होते हुए भी बड़ा असहज था। उनकी वेशभूषा बिलकुल देहाती थी। उन्हें देखकर लगता था, मानो वे किसी हड़बड़ी में चलते-चलते कपड़े पहनते आए हैं।

उनकी मुखाकृति को देखकर लगता था, मानो उन्हें कहीं देखा है। उनके शरीर के सारे गठन में एक साधारण भारतीय की आकृति और गठन की झलक थी। इसी प्रकार उनकी प्रतिभा, बुद्धि, स्वभाव और रहन-सहन भी थी। कुल मिलाकर वे भारतीय होने का ही प्रतिनिधित्व करते थे। उनकी अस्त-व्यस्तता जवाहर लाल जी की अस्त-व्यस्तता से अलग थी। जवाहर लाल जी की अस्त-व्यस्तता भी व्यवस्था से निर्मित होती थी, तो राजेन्द्र बाबू की सारी व्यवस्था ही अस्त-व्यस्तता का पर्याय थी। उनकी वेशभूषा की अस्त-व्यस्तता को ठीक करने में उनके निजी सचिव और सहचर भाई चक्रधर का योगदान सराहनीय रहा। उन्होंने वर्षों तक राजेन्द्र बाबू के पुराने कपड़े से अपने आपको प्रसाधित कर कृतार्थता का अनुभव किया था। इस प्रकार के गुरु-शिष्य या स्वामी-सेवक आज सचमुच में दुर्लभ हैं।

लेखिका का कहना है कि राजेन्द्र बाबू के सम्पर्क में आने का सुअवसर उसे सन् 1937 में प्राप्त हुआ। उस समय वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे और प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय के भवन का शिलान्यास करने प्रयाग आए थे। उन्होंने उसे बताया कि उनकी 15-16 पौत्रियाँ हैं। उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यदि वह उन्हें अपने छात्रावास में रखकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ दिलवा सके, तो वे कुछ शिक्षित हो सकेंगी। इसे सहर्ष स्वीकार कर उसने उन्हें अपने संरक्षण में रख लिया। उसी समय उसे राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी से परिचय प्राप्त हुआ। वह सचमुच में धरती की पुत्री थीं। एक सरल, क्षमामयी, ममतामयी, साध्वी और उदार। सम्भ्रान्त जमींदार परिवार की परम्परा के अनुसार वह घण्टों सिर नीचा करके एकासन में बैठी रहती थीं। इससे

उनकी रीढ़ की हड्डी इतनी झुक गई थी कि वह युवती होने पर भी सीधी खड़ी नहीं हो पाती थीं। फिर भी उन्हें कोई अहंकार नहीं था। सबके प्रति उनकी आत्मीयता थी। संगम में वह स्नान-ध्यान करके बड़ी श्रद्धा से अधिक-से-अधिक दूध-फूल संगम को भेंट कर देती थीं। पंडों. को वह यथोचित दान-दक्षिणा दिया करती थीं। लेखिका का पुनः कहना है कि बालिकाओं के प्रति राजेन्द्र बाबू का स्पष्ट निर्देश था कि वे सामान्य बालिकाओं के साथ संयम और सादगी से रहें। इससे वे एक स्वयंसेविका की तरह सब कुछ कर लेती थीं। जब वे भारत के पहले राष्ट्रपति हुए तब उन्होंने लेखिका को लिखा था-“महादेवी बहन, दिल्ली मेरी नहीं है, राष्ट्रपति भवन मेरा नहीं है।

अहंकार से मेरी पोतियों का दिमाग खराब न हो जाए, तुम केवल इसकी चिन्ता करो। वे जैसी रहती आई हैं, उसी प्रकार रहेंगी। कर्त्तव्य-विलास नहीं, कर्मनिष्ठा है।” उनकी धर्मपत्नी में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वे अन्त तक भारतीय गृहिणी के समान पति, परिवार और परिजनों को खिलाने के बाद ही भोजन करती थीं। उन्होंने लेखिका को एक दर्जन सिरके के बने सूप दिल्ली लाने का आदेश दिया। प्रयाग से प्रथम श्रेणी के डिब्बे में टंग कर दिल्ली स्टेशन आए। फिर उन्हें बड़ी कार में लादा गया। राष्ट्रपति भवन के हर द्वार पर सलाम ठोकने वाले सिपाहियों की आँखें इसे देखकर हैरान हो गईं। सचमुच में ऐसी भेंट लेकर कोई अतिथि न वहाँ पहुँचा था और न पहुँचेगा।

लेखिका का अंत में कहना है कि राजेन्द्र बाबू और उनकी धर्मपत्नी सप्ताह में एक दिन उपवास करते थे। संयोग से वह उनके उपवास के दिन पहुँची तो उन्होंने उनका अतिथि-सत्कार किया। लेखिका भी उनके उपवास में शामिल हो गई। वह आज भी वह शाम नहीं भूल पाई कि किस प्रकार भारत के पहले राष्ट्रपति ने सामान्य आसन पर बैठकर उपवास के बाद कुछ उबले हुए आलू खाकर, पारायण किया था। उसे वही खाते हुए देखकर वे किस प्रकार संतोषकर बच्चों की सरल हँसी से खिल उठे थे। जीवन-मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली थी। उनके मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजातशत्रु बना दिया। जिज्ञासा होती है कि क्या वह साँचा टूट गया, जिसमें ऐसे कठिन-कोमल चरित्र ढलते थे।

राजेन्द्र बाबू संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
काले घने पर छोटे कटे हुए बाल, चौड़ा मुख, चौड़ा माथा, घनी भृकुटियों के नीचे बड़ी आँखें, मुख के अनुपात में कुछ भारी नाक, कुछ गोलाई लिए चौड़ी ठुड्डी, कुछ मोटे पर सुडौल होंठ, श्यामल झाँई देता हुआ गेहुआँ वर्ण, ग्रामीणों जैसी बड़ी-बड़ी मूंछे जो ऊपर के होंठ पर ही नहीं नीचे के होंठ पर भी रोमिल आवरण डाले हुए थीं। हाथ, पैर; शरीर सबमें लम्बाई की ऐसी विशेषता थी, जो दृष्टि को अनायास आकर्षित कर लेती थी।

शब्दार्थ:

भृकुटियों – भौंहों।
श्यामल – साँवला।
गेहुआ – गेहूँ के।
ग्रामीण – देहाती।
रोमिल – रोएँ।
आवरण – पर्दा।
दृष्टि – नज़र।
अनायास – अचानक।
आकर्षित – खींच लेती।
प्रसंग:
प्रस्तत गंद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सामान्य हिन्दी भाग-1’ में संकलित तथा श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूपरेखा का चित्रण करते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूपरेखा बड़ी ही अद्भुत थी। उनके सिर के बाल बहुत काले और घने थे। वे कटे हुए थे। इसलिए बहुत छोटे-छोटे थे। उनका मुँह और माथा चौड़ा था। उनकी आँखें बड़ी-बड़ी थीं। वे भौंहों के बीच दिखाई देती थीं। उनके मुँह की तुलना में उनकी नाक बड़ी लगती थी। उनकी ठुड्डी गोल थी लेकिन चौड़ी थी। उनके मुँह की आकृति कुछ ऐसी थी कि उनके होंठ सुडौल तो थे, लेकिन भारी और मोटे थे। उनका पूरा शरीर गेहुएँ रंग का तो था, लेकिन वह पूरी तरह ऐसा नहीं था।

उसमें साँवलेपन की कुछ झलक अवश्य थी। उनकी मूंछे भी असाधारण थीं। वे छोटी-छोटी नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी थीं। उन्हें देखने से ऐसा लगता था कि वे किसी देहाती की मूंछों के समान थीं। वे ऊपर के होंठ पर होने के साथ-ही-साथ नीचे के भी होंठ पर रोएँ के पर्दा डाले हुए दिखाई देती थीं। उनके हाथ और पैर भी अद्भुत ही थे। वे लम्बे-लम्बे थे। इससे भी वे देखने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। कहने का भाव यह कि उनकी शारीरिक बनावट को देखकर हर कोई उनकी ओर अपने आप खिंचा चला जाता था।

विशेष:

राजेन्द्र बाबू के अद्भुत शारीरिक स्वरूप का चित्रण किया गया है।
शैली चित्रमयी है।
शब्द-योजना बिम्बात्मक।
यह गद्यांश रोचक है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

प्रस्तुत गद्यांश में किसका उल्लेख हुआ है?
प्रस्तुत गद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बांबू का शारीरिक रूप-ढाँचा का चित्रांकन हुआ है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा लेखिका ने यह भाव स्पष्ट करना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व बड़ा ही सरल और आकर्षक था। वह सबको चकित करने वाला था। यों तो वह बहुत ही सरल और सहज था लेकिन उसका प्रभाव निश्चय ही अमिट और बेजोड़ था। कुल मिलाकर वह एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व था।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व मुख्य रूप से कैसा था?
राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूप-रचना की कौन-सी विशेषता थी?
उत्तर:

राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व मुख्य रूप से देहाती था।
राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूप-रचना की मुख्य विशेषता वह थी, जो किसी को अनायास ही आकर्षित कर लेती थी।
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प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सम्पूर्ण गठन में एक सामान्य भारतीय जन की आकृति और गटन की छाया थी, अतः उन्हें देखने वाले को कोई-न-कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था और वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है। आकृति तथा वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन-सहन में सामान्य भारतीय या भारतीय कृषक का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशिष्टता के साथ-साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।

शब्दार्थ:

मुखाकृति – मुँह की बनावट।
जन – मनुष्य।
आकृति – बनावट।
स्मरण – याद।
कृषक – किसान।
प्रतिभा – तेज।
विशिष्टता – विशेषता।
संवेदना – गहरा प्रभाव।
गरिमा – महत्त्व।
प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का महत्त्वांकन करते हुए कहा है कि… व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की मुख की बनावट बिलकुल साधारण थी। उसमें भारतीयता की पूरी रूपरेखा दिखाई देती थी। इसी प्रकार उनका शारीरिक गठन भी था। यही कारण था कि उन्हें जो कोई देखता था, उसे यही लगता था कि उसने उन्हें कहीं-न-कहीं या कभी-न-कभी अवश्य देखा है। इस प्रकार अनुभव करने वाला उनसे अपनापन का भाव रखने का प्रयत्न करने लगता था। लेखिका का पुनः कहना है कि वे अपनी शारीरिक रचना और अपनी वेशभूषा के अनुसार ही अपने स्वभाव और जीवन-स्तर को भी ढाल चुके थे।

यह भी कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने स्वभाव और जीवन-स्तर के अनुकूल ही अपनी वेशभूषा को अपना लिया था। इस प्रकार वे अपने स्वभाव, शारीरिक गठन और रहन-सहन के आधार पर एक साधारण भारतीय लगते थे। दूसरे शब्दों में वे एक सच्चे भारतीय किसान के प्रमाण थे। इसी तरह वे अपनी तेज समझ और तीव्र बुद्धि की बहुत बड़ी विशेषता से सम्पन्न थे। इसके साथ-ही-साथ उनमें बहुत अधिक गम्भीरता थी। उस गम्भीरता से वे किसी बात की तह तक पहुँच जाते थे। उनकी इस प्रकार की साधारण विशेषता का महत्त्व सहज ही स्पष्ट हो जाता था।

विशेष:

राजेन्द्र बाबू के बाहरी और आन्तरिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
यह गद्यांश प्रेरक रूप में है।
भाषा उच्च स्तरीय है।
शैली भावात्मक और वर्णनात्मक है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के किन पक्षों पर प्रकाश डाला गया है?
इस गद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर:

प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बाबू के बाहरी और आन्तरिक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।
इस गद्यांश का मुख्य भाव है-राजेन्द्र बाबू के आन्तरिक और बाहरी पक्षों का चित्रण कर प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना।
गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

राजेन्द्र बाबू को देखकर कोई उन्हें क्या समझता था?
राजेन्द्र बाबू किसके द्वारा किसका प्रतिनिधित्व करते थे?

उत्तर:

राजेन्द्र बाबू को देखकर हर कोई यही समझता था कि उसने उन्हें कहीं-न-कहीं अवश्य देखा है।
राजेन्द्र बाबू अपने स्वभाव और अपने रहन-सहन के द्वारा भारतीय या भारतीय किसान का ही प्रतिनिधित्व करते थे।
प्रश्न 3.
बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने का न उन्हें कभी अहंकार हुभा और न उनमें कोई मानसिक ग्रन्थि ही बनी। छात्रावास की सभी बालिकाओं तथा नौकर-चाकरों का उन्हें समान रूप से ध्यान रहता था। एक दिन या कुछ घण्टों ठहरने पर भी वे सबको बुला-बुलाकर उनका तथा उनके परिवार का कुशल-मंगल पूछना न भूलती थीं। घर से अपनी पौत्रियों के लिए लाए मिष्ठान्न में से प्रायः सभी बँट जाता था। देखने वाला यह जान ही नहीं सकता था कि वह सबकी इया, अइया अर्थात् दादी नहीं है।

शब्दार्थ:

स्वातंत्र्य – स्वतन्त्र।
अपराजेय – पराजित नहीं होने वाला।
अहंकार – घमण्ड।
मानसिक ग्रन्थि – मन सम्बन्धी दोष।
पौत्रियों – पोतियों।
मिष्ठान्न – मिठाई।
प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी के आकर्षक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी साधारण भारतीय महिला होने के बावजूद असाधारण थीं। वे बिहार के एक उच्च जमींदार परिवार की वधू थीं। इसके साथ ही वे स्वतन्त्र युद्ध के अपराजेय सेनानी राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी भी थीं। लेकिन अपनी इन अद्भुत विशेषताओं का न उन्हें कोई अनुभव था और न कोई घमण्ड ही था। इसके लिए उनके मन में कभी कोई विकार या दोष भी नहीं आया। दूसरी बात यह कि उनमें सबके प्रति समानता और अभेद की भावना थी। इसका प्रमाण एक यह भी था कि छात्रावास की सभी छात्राएँ और नौकर-चाकरों से उनका समान व्यवहार होता था।

वे उनके प्रति हमेशा समान व्यवहार करने को पहला महत्त्व दिया करती थीं। इस सन्दर्भ में यह कहना समुचित ही होगा कि जब कभी वे छात्रावास में आती थीं, तब वे सभी छात्राओं और नौकरों-चाकरों को अपने पास बुला लेती थीं। फिर उनका और उनके परिवार सहित उनके सगे-सम्बन्धियों का भी समाचार बड़े प्रेमपूर्वक अवश्य पूछती थीं। वे अपने पोतियों के लिए जो भी मिठाइयाँ लाती थीं, उन्हें सबके बीच उसी समय बाँट देती थीं। उस समय यहाँ जो कोई भी रहता, वह उनकी इस समानता की सोच-समझ और व्यवहार से चकित हो जाता था। फिर वह नहीं समझ पाता कि वह किसकी अपनी दादी हैं और किसकी नहीं।

विशेष:

राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी की असाधारण विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है।
वाक्य-गठन उच्चस्तरीय हैं।
तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
यह अंश रोचक और हृदयस्पर्शी है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी का स्वभाव कैसा था?
प्रस्तुत गद्यांश के मूल भाव को स्पष्ट कीजिए
?
उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी का स्वभाव बहुत ही सरल, सहज और उदार था। वह किसी को अपरिचित और पराया नहीं समझती थीं। वह सबके प्रति अपनापन का. भाव रखती थीं। इस प्रकार वह एक आदर्श भारतीय नारी थीं।
  2. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा लेखिका ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी एक ऐसी आदर्श भारतीय नारी थीं, जिनके लिए अपने-पराये का कोई भेदभाव नहीं था। वह बहुत सरल, स्पष्ट, उदार और विनम्र थीं। उनकी समानता की विशेषता सबको प्रभावित कर मोह लेती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न

राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी किस प्रकार के अहंकार और मानसिक ग्रन्थि से दूर थीं?
राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी किस प्रकार समानता का व्यवहार करती थीं?

उत्तर:

राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने के अहंकार और मानसिक ग्रन्थि से दूर थीं।
राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी सबका कुशल-मंगल पूछा करती थीं। अपनी कोई भी चीज वह सबको बाँट देती थीं। इस प्रकार वह समानता का व्यवहार करना कभी भी नहीं भूलती थीं।
प्रश्न 4.
जीवन मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली और मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजातशत्रु बना दिया। अनेक बार प्रश्न उठता है, क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।

शब्दार्थ:

परख – पहचान।
उपाधि – सम्मान।
अजातशत्रु – शविहीन, जिसका कोई शत्रु न हो!
साँचा – वह साधन, जिसमें गीली वस्तु डालकर उसी के आकार की दूसरी और वस्तुएँ ढाली जाती हैं।
प्रसंग:
पूर्ववत्! इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की महानता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की सबसे बड़ी महानता यह थी कि उन्हें जीवन-मूल्यों की बहुत बड़ी पहचान थी। इसी कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि देकर उनका बहुत बड़ा मूल्यांकन किया गया था। उनके व्यक्तित्व की दूसरी बहुत बड़ी विशेषता थी उनके मन की सरलता, सहजता, स्पष्टता और स्वच्छता। इसी विशेषता के बलबूते पर वे अजातशत्रु के रूप में याद किए जाते हैं। उनकी इस प्रकार की महानता और विशेषता की कमी आज के महापुरुषों में दिखाई देती है। इससे यह स्वाभाविक रूप से जिज्ञासा होती है कि इस प्रकार की विशेषता को तैयार करने वाला साँचा क्या आज नहीं है, जो राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन किन्तु सरल और सरस चरित्रों को ढाल सके।

विशेष:

राजेन्द्र बाबू की बेजोड़ व्यक्तित्व को स्पष्ट करने पर प्रयास किया गया है।
भाषा की शब्दावली तत्सम शब्दों की है।
भावात्मक शैली है।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोतर
प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को ‘देश रत्न’ को उपाधि क्यों मिली?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू में जीवन-मूल्यों की पहचान करने की अद्भुत दृष्टि थी। इसीलिए उन्हें देशरत्न’ की उणधि दी गई।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
आज किस साँचे का. अभाव दिखाई देता है?
उत्तर:
आज उस साँचे का अभाव दिखाई देता है, जिसमें राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन और कोमल दोनों ही प्रकार के चरित्र ढलते थे।


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