MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 4 धूपगढ़ की सुबह साँझ

MP Board Class 11th Hindi Book Solutions हिंदी मकरंद, स्वाति Chapter 4 धूपगढ़ की सुबह साँझ- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 4 धूपगढ़ की सुबह साँझ

प्रश्न 1.
धूपगढ़ कहाँ स्थित है?
उत्तर:
धूपगढ़ प्रसिद्ध पचमढ़ी पर स्थित है।

प्रश्न 2.
प्रकृति की दो सहज स्थितियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
लेखक ने प्रकृति की दो सहज स्थितियाँ मानी हैं-सुबह और साँझ।

प्रश्न 3.
सतपुड़ा का गौरव किसे कहा गया है? (2017)
उत्तर:
धूपगढ़ को सतपुड़ा का गौरव कहा गया है।

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धूपगढ़ की सुबह साँझ लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने सुबह और साँझ की तुलना माता-पिता के किन गुणों से की है?
उत्तर:
लेखक ने सुबह की तुलना पिता की प्रेरणा और शक्ति सम्पन्नता से की है तथा माता की ममता की तुलना साँझ की सहृदयता से की है।

प्रश्न 2.
साँझ की आँखों में करुणा क्यों उभर आती है?
उत्तर:
वनवासी की पगड़ी पर एवं वनवासी स्त्री की चूनर पर फूल संध्या के समय गिर जाते हैं। इससे साँझ की आँखें करुणा से द्रवित हो जाती हैं।

प्रश्न 3.
सुबह और साँझ की परस्पर तुलना क्यों अनुचित है?
उत्तर:
सुबह और साँझ की तुलना परस्पर अनुचित इसलिए है क्योंकि सुबह और साँझ दोनों की दुनिया अलग-अलग है, दोनों का अपना-अपना महत्व और सम्मोहन है।

धूपगढ़ की सुबह साँझ दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने प्रातःकालीन पूर्ण सूर्य बिम्ब की तुलना किन-किन बातों से की
उत्तर:
लेखक ने प्रात:कालीन पूर्ण सूर्य बिम्ब की तुलना विभिन्न प्राकृतिक उपमानों के माध्यम से की है-जिस प्रकार रोली से स्नात कलश को किरण से युक्त अल्पना पर रख दिया हो या किसी बड़े कुम्हार ने लाल मिट्टी का घड़ा अँधेरी सड़क पर प्यास से व्याकुल मानव की प्यास को बुझाने के लिए भर दिया हो। इसके अतिरिक्त जितने भी सेवा में व्यस्त मनुष्य हैं उनकी निस्वार्थ भावना युक्त सोने की कलश की चमक से तुलना की है।

प्रश्न 2.
तमतमाते दिवस की अवसान बेला कैसी है?
उत्तर:
तमतमाते दिवस की अवसान बेला में एक विशेष प्रकार का परिवर्तन आ जाता है। उसका प्रमुख कारण है कि इस बेला में सब कुछ शान्त हो जाता है। वनस्पति शान्त है, पक्षी भी शान्त हैं। सांसारिक झमेले भी शान्त हैं। आसमान की नीलिमा भी शान्त है। कभी न थकने वाले पक्षियों की उड़ान भी शान्त है क्योंकि वे संध्या काल में अपने नीड़ में विश्राम करते हैं। इसी कारण उनकी तीव्रगामी गति शान्त है। प्रकम्पित ध्वनियाँ शान्त हैं। उसका कारण है कि इस बेला में चारों ओर का कोलाहल शान्त हो जाता है।

प्रश्न 3.
लेखक सुबह और साँझ के माध्यम से क्या कहना चाहता है? (2008, 09)
उत्तर:
लेखक ने सुबह और साँझ के माध्यम से जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का वर्णन किया है। इसमें जीवन, मृत्यु, सुख, दु:ख और आदि-अंत तथा विभिन्न प्रकार के उतार-चढ़ाव के द्वारा जीवन के काल चक्र को दर्शाया है।।

सुबह और साँझ एक-दूसरे के विपरीत नहीं है अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं। पिता की तुलना एवं माता की तुलना लेखक ने सुबह और साँझ से की है और यह बताने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों को सहृदय व स्नेह द्वारा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं तदनुकूल सुबह और साँझ मानव को जीवन पथ पर अग्रसर होने का पाठ पढ़ाते हैं। साथ ही सन्देश देते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति को धैर्य से बढ़ते रहना चाहिए।

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प्रश्न 4.
लेखक की भाषा अलंकारिक तथा शैली ललित है। उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक की अलंकारिक भाषा का उदाहरण निम्नवत् है-
(1) वैसे तो कई सुबहों और साँझों का प्रकाश भीगी-पलकों ने उठते-गिरते देखा है परन्तु उन साँझों में एक साँझ यादों के वृक्ष पर फल की तरह लगी हुई है। धूपगढ़ की साँझ का रूप, रंग, आकार, रस सब कुछ निराकार बनकर अंतरिक्ष में फैला हुआ है। पंचमढ़ी, पर्वतों की रानी कही जाती है। सतपुड़ा का सारा निसर्गगत सौन्दर्य पचमढ़ी की गोदी में झूल रहा है।

(2) लेखक की भाषा शैली का अनुपम उदाहरण द्रष्टव्य है-प्राची के हिरण्य गर्भ से बालारूण की जन्म बेला की प्रतीक्षा में विश्व मोहिनी शक्ति जैसे जाग गई हो। क्षितिज पर पतली-सी रेखा उभरती है और बालक की किलकारी दिशाओं तक फैल जाती है। पक्षी उसी किलक को अपने स्वरों में भरकर आकाश को जाते हैं। क्षितिज पर भुवन भास्कर की पहली रेखा जैसे किसी बालक ने पूरब की स्लेट पर स्वर्णिम पेन से लकीर खींच दी हो; जिसका बीच का भाग ऊपर की ओर हल्का-सा उठा हुआ है। जैसे अंधेरे के महासमुद्र में आती हुई ऊषा का जल सतह पर सुनहरे रंग का केशबंध’ (हेयर बैंड) दिखाई दे रहा है।

(3) अन्य उदाहरण देखिए-यह साँझ पृथ्वी को अमृत, सोम, शीतलता और दुग्ध धार देने वाली है। यह वनैले पशुओं की जागरण बेला है। इसमें मनुष्य जीवन की अलस भरी है, तो हिंसक पशुओं की अंगड़ाई भी है। मनुष्य और मनुष्येत्तर जीव इसकी अतिथिशाला में विश्राम कर सूर्य की पहली किरण के साथ पुनः धरती को नापने हेतु उत्फुल्ल होते हैं तो जंगल राज का राजा अपनी कर्णभेदी दहाड़ से सारसवर्णी जीवों की साँसोच्छेदन में तत्पर भी होता है। उपर्युक्त उदाहरणों द्वारा भाषा की अलंकारिकता एवं शैली की विशेषता अवलोकनीय है।

प्रश्न 5.
इन गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(1) गगन से सूर्योदय ……………. विरला ही पहुँचता है।
(2) धूपगढ़ की साँझ…………….. सुला लेती है।
उत्तर:
(1) सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के निबन्ध ‘धूपगढ़ की सुबह साँझ’ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक ‘डॉ. श्रीराम परिहार’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण में परिहार जी ने धूपगढ़ की सुबह को देखने का अत्यन्त ही सुन्दर वर्णन किया है।

व्याख्या :
धूपगढ़ में प्रात:काल आकाश से सूरज के प्रकाश का अमृत झरता हुआ प्रतीत होता है क्योंकि यह प्रकाश मन एवं मस्तिष्क पर अमृत की शीतलप्रद बिन्दुओं के समान सुखदायी एवं आनन्दप्रद है। किरणें ही अमृत का स्रोत हैं। ये ही सूर्य से लेकर धूपगढ़ की चोटी तक किरणों का बाँध बनाती हैं। यद्यपि किरणों का बाँध देखने में तो मनोरम है लेकिन इस तक पहुँचने में कोई विरला ही सक्षम हो सकता है। लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि प्राकृतिक दृश्यों के सौन्दर्य का पान हर-एक के वश की बात नहीं है।

(2) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में धूपगढ़ की साँझ के रचनात्मक पक्ष का सटीक अंकन किया है।

व्याख्या :
धूपगढ़ की साँझ धरती को आनन्ददायी अमृत, चन्द्रमा, शीतलता प्रदान करती है। इससे दूध की धार प्रवाहित होती हैं। वन में रहने वाले पशुओं के लिए यह जागे रहकर सक्रिय रहने का समय है। साँझ होते ही दिनभर काम में लगे रहने वाला आदमी सोने को तत्पर होता है तो शिकारी पशु अंगड़ाई लेकर शिकार की खोज में निकल पड़ता है। आराम देने वाले संध्या के आवास में मानव चैन की नींद लेकर सूर्योदय के साथ पुनः संसार के कार्यों में सक्रिय हो जाता है। इसी समय वनराज सिंह अपनी तेज गर्जन से सारस आदि निरीह प्राणियों की स्वांसों के उच्छेदन के लिए तैयार होता है।

प्रश्न 6.
(क) प्रकृति सुख-दुःख से परे है। वह नियंता है।
(ख) जन्म और मृत्यु प्रकृति के लिए दो सहज स्थितियाँ हैं।
(ग) सुख के केन्द्र में स्वतन्त्रता और उन्मुक्तता होती है।
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव पल्लवन कीजिए।

उत्तर:
(क) लेखक ने इस पंक्ति द्वारा यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि प्रकृति पर दुःख हो अथवा सुख, किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रकृति नियंता एवं वीतराग है। वह भौतिक सुख-दुःख से परे रहकर विश्व का नियन्त्रण करती है। उसी के निर्देशन में परिवर्तन के दृश्य उपस्थित होते रहते हैं। प्रकृति पर विषम से विषम परिस्थितियाँ तनिक भी अपना प्रभाव नहीं डाल सकतीं।

(ख) लेखक का कथन है कि इस धरती पर प्रकृति के माध्यम से निरन्तर जन्म और मृत्यु चक्र चलता ही रहता है। इनसे किसी को भी मुक्ति नहीं मिल सकती है। लेखक ने यहाँ गीता के इस तथ्य को उजागर किया है जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु निश्चित है तथा मृत्यु के पश्चात् पुनः जन्म होता है जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नवीन वस्त्र धारण करता है। तद्नुरूप आत्मा पुराना काया रूपी वस्त्र उतारकर नया कायारूपी वस्त्र धारण करती है।

(ग) लेखक का कथन है धूपगढ़ वन क्षेत्र में रहने वाले मानव अभावों एवं गरीबी से त्रस्त हैं। वे इन अभावों के अन्तर्गत एक असीम सुख का अनुभव करते हैं। यद्यपि वे सांसारिक दृष्टि से कंगाल हैं लेकिन प्रकृति की गोद में पल कर एक अनिवर्चनीय सुख का अनुभव करते हैं। उनका सुख किसी के माध्यम से प्राप्त न होकर प्रकृति की निकटता का परिणाम है। वे स्वयं को पराधीन न मानकर स्वतन्त्र भाव से वन की धरती पर विचरण करते हैं।

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धूपगढ़ की सुबह साँझ भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय और उपसर्ग छाँटकर लिखिए
प्रस्थान, मनुष्यता, उन्मुक्तता, उज्ज्वल, तन्मयता, अविजित, नैसर्गिक, प्राकृतिक।
उत्तर:

प्रत्यय-मनुष्यता, उन्मुक्तता, तन्यता, नैसर्गिक, प्राकृतिक।
उपसर्ग : प्रस्थान, उज्ज्वल, अविजित।

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
सुबह, साँझ, गाँव, पाँव, आँच।

उत्तर:
प्रातः, संध्या, ग्राम, पाद, अग्नि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए
उत्तर:

जहाँ जाया न जा सके – अगम्य
जिसकी उपमा न हो – अनुपमेय
जिसे पढ़ा न हो – अपठित
काँटों से भरा हुआ – कंटकाकीर्ण
आकाश को छूने वाला – गगनचुम्बी
सदा हरने वाला – अमर।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्य में विराम चिह्नों का यथास्थान प्रयोग कीजिए-
यह साँझ पृथ्वी को अमृत सोम शीतलता और दुग्ध धार देने वाली है

उत्तर:
यह साँझ पृथ्वी को अमृत, सोम, शीतलता और दुग्ध धार देने वाली है।

धूपगढ़ की सुबह साँझ पाठ का सारांश

पंचमढ़ी स्थित धूपगढ़ सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं की सर्वाधिक ऊँची चोटी है। सूर्य के निकलने एवं अस्त होने के समय नेत्रों एवं मन को लुभाने वाले दृश्यों की शोभा देखते ही बनती है। पर्यटक इन्हें देखते-देखते अघाते नहीं हैं। डॉ. श्रीराम परिहार ने अपने निबन्ध में धूपगढ़ की -प्रातः एवं साँझ बेला का छायावादी चित्रण अंकित किया है। प्रकृति का मानवीकरण सटीक एवं जीवन्त है। सुबह एवं शाम के प्रतीकों के द्वारा जिन्दगी, मृत्यु, विषाद एवं सुख आदि कालचक्र का ऐसा गतिशील विवेचन किया है जो जीवन की वास्तविकता को हमारे नेत्रों के समक्ष उपस्थित करने में सक्षम है। वनवासियों के संकटग्रस्त जीवन का भी वर्णन किया है। पशुओं एवं वन प्रदेश का भी चित्रण किया है। प्रातः एवं सन्ध्या के माध्यम से जिन्दगी के संघर्ष एवं शान्ति के तालमेल को भी अंकित किया है। निबन्ध में जिन्दगी का राग गुञ्जित है। आत्मा का वैराग्य भी ध्वनित है। सुबह-शाम एक-दूसरे के विरोधी न होकर जीवन के संदेशप्रद हैं।

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धूपगढ़ की सुबह साँझ कठिन शब्दार्थ

सुगन्ध = खुशबू। साँझ = सायंकाल। वर्ण रंग। अदृश्य = जो दिखायी न दे। दिक्काल = दिशाओं के स्वामी। उद्गम = निकलने का स्थान। क्षितिज = जहाँ आकाश और पृथ्वी मिले हुए दिखाई देते हैं। पखेरुओं = पक्षियों। कर्मपूर्णता = काम के पूरा होने का भाव। अग्निमय = आग से भरा हुआ। शक्ति सम्पन्नता = शक्ति से युक्त। हृदय रसज्ञता = हृदय के रस को जानने की क्षमता। भोर तक = प्रात:काल तक। भीगी पलकों = आँसुओं से गीली पलकें। अंतरिक्ष = आकाश। निसर्गगत सौन्दर्य = प्राकृतिक सुन्दरता। पाग = पगड़ी। निशिवासर = रात-दिन। सान्निध्य = सम्पर्क। ब्रह्ममुहूर्त = प्रात:काल। वन वल्लरियों = लताओं। प्राची = पूर्व। हिरण्य-गर्भ = स्वर्ण या सोने की कोख। बालारुण = प्रात:कालीन सूर्य। स्वर्णिम = सोने के। ऊषा = प्रात:काल। महानिलय = आकाश। तृषा = तृप्ति, प्यास बुझाने के लिए। निष्कलुष = पवित्र। गोरिक वसना = गेरुए वस्त्र धारण करने वाली। नील-कुसुमित = नीले पुष्प के रूप में खिलना, नीलकलिका। माधवी लता = माधवी पुष्प की लता। प्रातिभ = प्रात:कालीन सूर्य की लाली। देहयष्टि = शरीर सौष्ठव। अल्हड़ ठवनि = चंचलमुद्रा। नूपुरों = घुघरुओं। कर्ण आह्लादन = कानों में खुशी उत्पन्न करने वाली। सारस्वत = ज्ञानमयी, बौद्धिक। पूर्वपीठिका = पहली भूमिका। तिमिर = अन्धकार। अनुताप-पूरित = दुःख से भरा हुआ। दिवस = दिन। प्राण बल्लभा = प्रेयसी, प्रियतमा। मलयज चीर = सुगन्धित वस्त्र, मलय चन्दन गन्ध से सुगंधित। मृग मरीचिका = मृगतृष्णा, मिथ्या प्रतीति। भास्वर = प्रकाशवान। उत्पुल्ल = प्रसन्न। सारसवर्णी = सारस के रंग वाली। साँसोच्छेदन = साँसों को समाप्त करना। अहेतुक = निस्वार्थ, स्वार्थ हीन। वात्सल्य = सन्तान के प्रति माता-पिता का प्रेम। स्लथ = बकी। शुभ्र = श्वेत, स्वच्छ।

धूपगढ़ की सुबह साँझ संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

  1. गगन से सूर्योदय के प्रकाश का अमृत झरता है। किरणें फूटती हैं और रश्मि-सेतु सूर्य से लेकर धूपगढ़ की चोटी तक बन जाता है। इसे देखना अच्छा लगता है। इस रश्मि सेतु पर चलकर सूर्य तक कोई विरला ही पहुँचता है। (2015)

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के निबन्ध ‘धूपगढ़ की सुबह साँझ’ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक ‘डॉ. श्रीराम परिहार’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण में परिहार जी ने धूपगढ़ की सुबह को देखने का अत्यन्त ही सुन्दर वर्णन किया है।

व्याख्या :
धूपगढ़ में प्रात:काल आकाश से सूरज के प्रकाश का अमृत झरता हुआ प्रतीत होता है क्योंकि यह प्रकाश मन एवं मस्तिष्क पर अमृत की शीतलप्रद बिन्दुओं के समान सुखदायी एवं आनन्दप्रद है। किरणें ही अमृत का स्रोत हैं। ये ही सूर्य से लेकर धूपगढ़ की चोटी तक किरणों का बाँध बनाती हैं। यद्यपि किरणों का बाँध देखने में तो मनोरम है लेकिन इस तक पहुँचने में कोई विरला ही सक्षम हो सकता है। लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि प्राकृतिक दृश्यों के सौन्दर्य का पान हर-एक के वश की बात नहीं है।

विशेष :

प्रकृति का मानवीकरण है।
प्रात: बेला की मनोरम झाँकी है।
शैली अलंकारिक एवं परिमार्जित है।

  1. धूपगढ़ की सुबह देखी है, साँझ भी देखी है। दोनों में किसका सौन्दर्य ज्यादा है? किसका रंग घना है? किसका प्रभाव गहरा है? नहीं कह सकते। यह तुलना भी अनुचित है। सुबह, सुबह है। साँझ, साँझ है। दोनों की अपनी दुनिया है। अपनी महिमा है। अपना सम्मोहन है। सामान्यतः सुबह और साँझ अपने प्राकृतिक चक्र के कारण सहज रूप में आती जाती हैं। इनके होने में प्रकृति की इच्छा ही अभिव्यक्त होती है। (2016)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में सुबह और साँझ दोनों के स्वाभाविक महत्व को समझाया गया है।

व्याख्या :
धूपगढ़, प्राकृतिक सौन्दर्य का भण्डार है। यहाँ की सुबह और साँझ बहुत ही रोमांचकारी होती है। यहाँ की सुबह और साँझ दोनों की सुन्दरता को देखा है। दोनों का सौन्दर्य अद्भुत है। यह कहना सम्भव नहीं है कि इनमें किसकी सुन्दरता अधिक है। किसका रंग घना प्रभावी है अथवा किसकी प्रभावशीलता गहन है। इन दोनों की सुन्दरता की तुलना करना भी उचित नहीं है। सुबह का सौन्दर्य सुबह का है और साँझ की सुन्दरता साँझ की है। इन दोनों का संसार अपना-अपना है। इनका गौरव, महत्व एवं मोहकता भी अपनी-अपनी है। वास्तविकता यह है कि सुबह और साँझ प्रकृति के चक्र के कारण स्वाभाविक रूप से आती हैं और चली जाती हैं। ध्यान से देखें तो इन दोनों के सम्पादन में प्रकृति की मनोकामना ही व्यक्त होती प्रतीत होती है।

विशेष :

सुबह और साँझ के आवागमन की स्वाभाविकता का सटीक अंकन हुआ है।
शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
काव्यमयी आलंकारिक शैली में विषय का प्रतिपादन हुआ है।
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  1. यह साँझ पृथ्वी को अमृत, सोम, शीतलता और दुग्ध धार देने वाली है। यह वनैले पशुओं की जागरण बेला है। इसमें मनुष्य जीवन की अलस भरी है, तो हिंस्त्र पशुओं की अंगड़ाई भी है। मनुष्य और मनुष्येतर जीव इसकी अतिथिशाला में विश्राम कर सूर्य की पहली किरण के साथ पुनः धरती को नापने हेतु उत्फुल्ल होते हैं, तो जंगल राज का राजा अपनी कर्णभेदी दहाड़ से सारसवर्णी जीवों की साँसोच्छेदन में तत्पर भी होता है। (2012)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में धूपगढ़ की साँझ के रचनात्मक पक्ष का सटीक अंकन किया है।

व्याख्या :
धूपगढ़ की साँझ धरती को आनन्ददायी अमृत, चन्द्रमा, शीतलता प्रदान करती है। इससे दूध की धार प्रवाहित होती हैं। वन में रहने वाले पशुओं के लिए यह जागे रहकर सक्रिय रहने का समय है। साँझ होते ही दिनभर काम में लगे रहने वाला आदमी सोने को तत्पर होता है तो शिकारी पशु अंगड़ाई लेकर शिकार की खोज में निकल पड़ता है। आराम देने वाले संध्या के आवास में मानव चैन की नींद लेकर सूर्योदय के साथ पुनः संसार के कार्यों में सक्रिय हो जाता है। इसी समय वनराज सिंह अपनी तेज गर्जन से सारस आदि निरीह प्राणियों की स्वांसों के उच्छेदन के लिए तैयार होता है।

विशेष :

संध्या के समय होने वाली गतिविधियों का रोचक वर्णन हुआ है।
लाक्षणिक भाषा तथा रोचक शैली में विषय का प्रतिपादन हुआ है।


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