MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 1 कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री

MP Board Class 11th Hindi Book Solutions हिंदी मकरंद, स्वाति Chapter 1 कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 1 कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री

प्रश्न 1.
लाल बहादुर शास्त्री को निष्काम कर्मयोगी क्यों कहा गया? (2014)
उत्तर:
प्रस्तावना-लाल बहादुर शास्त्री के नाम के साथ यदि ‘कर्मयोगी’ भी जोड़ दिया जाए, तो यह अधिक उपयुक्त होगा। उनका सम्पूर्ण जीवन कर्म से परिपूर्ण था। शास्त्री जी एक सामान्य परिवार में जन्मे, पले, बड़े हुए और शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा भी सामान्य स्तर से प्रारम्भ हुई। इस तरह एक साधारण परिवार का बालक प्रधानमन्त्री के उत्तरदायित्वपूर्ण पद तक पहुँचे, यह एक अति आश्चर्य की बात मानी जाएगी। उनके जीवन में असुविधाएँ ही असुविधाएँ थीं। कठिनाइयों का तो कोई जोड़-तोड़ ही नहीं रहा। लेकिन इन सबके पीछे स्वयं शास्त्री जी की विचारधारा और कर्म प्रधान जीवन में ही उनके जीवन की सफलता का रहस्य छिपा था। उनको जीवन का रास्ता स्वयं निर्मित करना पड़ा। उन्हें किसी के द्वारा बना-बनाया रास्ता नहीं मिला।

जीवन शैली और दर्शन :
अब आती है बात, शास्त्री के जीवन की शैली और उनके जीवन के प्रति दर्शन की। वे ऐसे लोगों में से नहीं थे जो भाग्य में विश्वास करते थे और यह सोचकर बैठ जाते कि जो भाग्य में होगा, वही प्राप्त होगा और देखा जाएगा। भाग्यवादी लोगों को कभी अचानक सफलता मिल जाती है, ऐसा उनके साथ नहीं था। यह उनके जीवन की शैली नहीं थी। वे ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें अपने चिन्तन और कर्म शक्ति पर अधिक भरोसा होता है। वे अपने हाथ की लकीरों को मिटाकर चलने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन का रास्ता स्वयं चुना और उस पर आगे बढ़ते गये।

कर्मफल में निष्काम भाव :
शास्त्री ने अपने कर्म और उत्तरदायित्व का निर्वाह किया। कर्म साधना ही उनके लिए ईश्वर की साधना थी, भक्ति थी। वे अपने कर्म के लिए समर्पित थे। कर्म के फल और उसकी परिणति में उन्हें कभी भी आशा नहीं थी। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वे निराशावादी थे। सम्पूर्ण भाव से कर्म में निरत रहना, उनकी ईश आराधना और भक्ति से कम नहीं थी। उन्हें अपने कर्म फलानुसार जब भी अवसर प्राप्त हुए, वे उस कर्म के फल की ओर उपेक्षापूर्ण दृष्टि ही अपनाते रहे। इस तरह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म की व्याख्या करते हुए जो मार्ग दिखाया है, उसी का अनुपालन उन्होंने अपने जीवन में पूरे समय किया। इस सबका यह निष्कर्ष निकलता है कि श्री शास्त्री जी निष्काम कर्मयोगी थे।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
“शास्त्री जी अत्यन्त लोकप्रिय थे”, कारण सहित उनकी लोकप्रियता पर प्रकाश डालिए। (2008, 09)
उत्तर:
प्रस्तावना :
शास्त्री जी सदैव ही भारतीय आजादी के आन्दोलनों के दौरान- चाहे जेल में रहे या जेल से बाहर; वे समाजगत समस्याओं के निराकरण के लिए जूझते रहे। उनके जीवन का उद्देश्य समाज और देश में रचनात्मक कार्यों को प्राथमिकता से पूरा करना था। इस दिशा में, वे पूरी लगन और तत्परता से प्रयत्नशील रहे और कार्यों को सम्पन्न किया और सहयोगीजनों से सहयोग प्राप्त किया।

शास्त्रीजी और जनसेवा :
रचनात्मक कार्यों के अतिरिक्त एक पदाधिकारी के रूप में भी जनसेवा को महत्त्व प्रदान किया। वे सन् 1935 ई. में संयुक्त प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे और सन् 1938 तक जनसेवा में लगे रहे। खासतौर से उनका लगाव किसानों की सेवा व उनके उत्थान के उपायों के प्रति रहा। उन्होंने किसानों को संगठित किया। इस कार्य शैली और जीवन दिशा की सोच के कारण उन्हें उस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया, जो किसानों की दशा का अध्ययन कर रही थी। यह सन् 1936 की बात है। उन्होंने अपनी पक्की लगन और दृढ़ आस्था से अपनी रिपोर्ट तैयार की और उस रिपोर्ट में जमींदारी उन्मूलन पर विशेष बल दिया था।

इलाहाबाद की नगरपालिका से भी लगातार 6 वर्षों तक किसी न किसी रूप में जुड़े रहे। वे ग्रामीण जीवन शैली से पूर्णतः परिचित थे ही। अब इसके साथ इलाहाबाद नगरपालिका ने जनसेवा का भी अनुभव जोड़ दिया। लोकतन्त्र की आधारभूत इकाई इलाहाबाद नगरपालिका थी। इसके कार्य करने से देश की छोटी-छोटी समस्याओं और उनके निराकरण की व्यावहारिक प्रक्रिया से वे बहुत अच्छी तरह परिचित हो चुके थे।

शास्त्रीजी का संसदीय जीवन :
शास्त्री जी के व्यक्तित्व में कार्य के प्रति निष्ठा और परिश्रम करने की अदम्य क्षमता व्याप्त थी। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें सन् 1937 ई. में संयुक्त प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित कर लिया गया। अगर सही अर्थ की बात मानें तो शास्त्री जी का संसदीय जीवन यहीं से प्रारम्भ हुआ और उसका समापन देश के प्रधानमन्त्री के पद तक पहुँचने में हुआ।

उपसंहार :
शास्त्रीजी को भारतीय राजनीति की इतनी सही और गहरी पकड़ थी कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा कि वे उनके राजनीतिक गुरु थे और उन्हीं के मार्गदर्शन में उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुई।

प्रश्न 3.
शास्त्री जी के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2012)
अथवा
कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ लिखिए। (2016)
उत्तर:
शास्त्री जी के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं-
(1) शास्त्री जी का निष्काम कर्मयोग :
शास्त्री जी एक सामान्य स्थिति के परिवार से ऊपर उठकर देश के प्रधानमन्त्री के अति महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचे, इस सबका रहस्य उनके कर्मयोगी होने में निहित है। लोगों को बहुत से आसान तरीके मिल जाते हैं और वे आगे तक सुविधाभोगी जीवन बिताते हैं। लेकिन शास्त्री जी ऐसे नहीं थे। वे भाग्य पर भरोसा करके बैठे रहने वाले व्यक्ति नहीं थे। वे तो उन लोगों में से थे, जो अपने हाथ की लकीर मिटाकर अपने चिन्तन और कर्म की शक्ति पर भरोसा करते थे और आगे बढ़ते थे। शास्त्री जी के लिए कर्म ही ईश्वर था। वे किसी भी कर्म के फल के प्रति आशावान नहीं थे। वे तो मात्र कर्म में ही समर्पित थे। उनका जीवन दर्शन गीता के निष्काम कर्मयोग से प्रभावित था।

(2) अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ आस्था :
शास्त्री जी अपने कर्म उद्देश्य को प्राप्त करने में आस्था रखते थे। उद्देश्य में सफलता उनका ध्येय होता था।

(3) उद्देश्य प्राप्ति के लिए कर्म :
शास्त्री जी अपने निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। अपनी समग्र क्षमताओं से विश्वास के द्वारा उद्देश्य प्राप्ति के लिए कर्म करते जाना उनके जीवन का प्रधान लक्ष्य था।

(4) उद्देश्य प्राप्ति हेतु कर्म करने के लिए समर्पित :
शास्त्री जी सदैव ही अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के प्रति सद्प्रयासों से कर्म के प्रति संकल्पित थे। इस संकल्प की पूर्ति करने तक वे कर्म निष्पादन में समर्पित रहते थे।

(5) स्वस्थ चिन्तन :
शास्त्री जी का चिन्तन पूर्णतः स्वस्थ था। अपने स्वस्थ चिन्तन से ही वे अपनी सफलताएँ प्राप्त करते चले गये। शास्त्री का चिन्तन ही ऐसा था जिससे स्वयं अपना, देश का विकास आगे बढ़ सका। इस चिन्तन में भी भक्ति और कर्म का सिद्धान्त निहित था।

(6) श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण :
शास्त्री जी को कोई भी उत्तरदायित्व सौंपा गया, वे उस उत्तरदायित्व का निर्वाह श्रम से, सेवाभाव से, सादगी से और समर्पण (त्याग) की भावना से करते थे। इस तरह किसी भी कर्म के फल के प्रति उनका स्वार्थ अथवा लगाव नहीं था।

(7) सादगी, विनम्रता एवं सरलता :
शास्त्री जी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी सादगी। वे साधारण परिवार में उत्पन्न हुए, सादगी से ही परवरिश हुई परन्तु देश के प्रधानमन्त्री पद पर आरूढ़ शास्त्री जी सदैव सामान्य बने रहे, सादगी से जीवन बिताते रहे। विनम्रता, सादगी और सरलता ने उनके व्यक्तित्व में एक विचित्र आकर्षण पैदा कर दिया था।

(8) कठिनाइयों में भी न घबराना :
शास्त्री जी ने सन् 1930 से सन् 1942 तक के जीवन के सफर में अर्थात् बारह वर्ष की इस समयावधि में लगभग सात वर्ष तक जेल का जीवन काटा। उस साधारण स्थिति वाले व्यक्ति के लिए इस तरह की साधना अत्यन्त कठिनताओं से भरी हुई थी। वे अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं हुए। राजनैतिक अथवा


Leave a Comment