MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 18 सुभाषितानि

MP Board Class 7th Sanskrit Book Solutions संस्कृत सुरभिः Chapter 18 सुभाषितानि- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 18 सुभाषितानि


प्रश्न 1.
एक शब्द में उत्तर लिखो
(क) कति जनाः नित्यदुःखिता? [कितने लोग नित्य ही दुखी होते हैं?]

उत्तर:
षट्

(ख) कस्य विद्या विवादाय भवति? [किसकी विद्या विवाद के लिए होती है?]
उत्तर:
खलस्य

(ग) साधोः शक्तिः किमर्थं भवति? [साधु की शक्ति किसलिए होती है?]
उत्तर:
रक्षणाय।

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प्रश्न 2.
एक वाक्य में उत्तर लिखो-
(क) देवताः कुत्र रमन्ते? [देवता कहाँ निवास करते हैं?]
उत्तर:
यत्र नार्यः तु पूज्यन्ते, तत्र देवताः रमन्ते। [जहाँ स्त्रियों की पूजा की जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।]

(ख) कति पुराणानि सन्ति? [पुराण कितने होते हैं?]
उत्तर:
अष्टादश पुराणानि सन्ति। [पुराण अठारह होते हैं।]

(ग) परोपकारः किमर्थं भवति? [परोपकार किसके लिए होता है?]
उत्तर:
परोपकारः पुण्याय भवति। [परोपकार पुण्य के लिए होता है।]

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों को पूरा करो
(क) …………. जनाः नित्युदुखिताः। (पञ्च/षड्)
(ख) साधौ धनं …………. भवति। (दानाय/मदाय)
(ग) …………. पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्। (नवदश/अष्टादश)
(घ) …………. परपीडनम्। (पुण्याय/पापाय)
(ङ) परोपकारः ………….. भवति। (पापाय/पुण्याय)
उत्तर:
(क) षड्
(ख) दानाय
(ग) अष्टादश
(घ) पापाय
(ङ) पुण्याय।

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प्रश्न 4.
श्लोक को पूरा करो
(क) राष्ट्र मम ………….. सुखम्।
……………. स्वराष्ट्रकम्॥
(ख) अष्टादश…………।
…………. परपीडनम् ॥
उत्तर:
(क) राष्ट्रं मम पिता माता प्राणाः स्वामी धन सुखम्।
बन्धुराप्तः सखा भ्राता सर्वस्वं मे स्वराष्ट्रकम्।।
(ख) अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।

प्रश्न 5.
विलोम शब्दों को मिलाओ
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 18 सुभाषितानि img 1
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (12)
(ग) → (2)
(घ) → (9)
(ङ) → (1)
(च) → (3)
(छ) → (10)
(ज) → (11)
(झ) → (6)
(ञ) → (14)
(ट) → (13)
(ठ) → (5)
(ड) → (7)
(ढ) → (15)
(ण) → (8)

प्रश्न 6.
कोष्ठक से चुनकर वाक्य बनाओ-
[एतत्, एते, एषा, एषः, एतानि, एताः, एतौ]

उत्तर:
एतत् = एतत् फलम् मधुरम्।
एते = एते बालिके पठतः।
एषा = एषा बालिका लिखति।
एषः = एषः बालकः क्रीडति।
एतानि = एतानि फलानि मधुराणि।
एताः = एताः बालिकाः गच्छन्ति।
एतौ = एतौ बालकौ धावतः।

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सुभाषितानि हिन्दी अनुवाद

यथा यथा हि पुरुषः कल्याणे कुरुते मनः।
तथा तथास्य सर्वार्थाः सिद्धयन्ते नात्र संशयः॥१॥

अनुवाद :
जैसे-जैसे पुरुष कल्याण में मन लगाता जाता है, वैसे ही वैसे उसके सभी कार्य सिद्ध होते जाते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है।

ईर्ष्या घृणी न सन्तुष्टः क्रोधनो नित्यशङ्कितः।
परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदुःखिताः॥२॥

अनुवाद :
ईर्ष्या करने वाले, घृणा करने वाले, सन्तुष्ट न रहने वाले, क्रोध करने वाले तथा नित्य शङ्कालु और दूसरे के भाग्य पर जीवित रहने वाले-ये छः (प्रकार के लोग) प्रतिदिन ही दुःख पाते रहते हैं।

विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोः विपरीतमेतत्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥३॥

अनुवाद :
दुष्ट की विद्या वाद-विवाद के लिए, दुष्ट का धन घमण्ड करने के लिए, दुष्ट की शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुँचाने के लिए हुआ करती है, परन्तु सज्जन की ये सभी वस्तुएँ इसकी (दुष्ट की) वस्तुओं से विपरीत होती हैं। सज्जन की विद्या ज्ञान के लिए, उसका धन दान के लिए, उसकी शक्ति दूसरों की रक्षा करने के लिए हुआ करती हैं।

राष्ट्रं मम पिता माता प्राणाः स्वामी धनं सुखम्।
बन्धुराप्तः सखा भ्राताः सर्वस्वं मे स्वराष्ट्रकम्॥४॥

अनुवाद :
राष्ट्र ही मेरा पिता, मेरी माता, मेरे प्राण, मेरा स्वामी, मेरा धन व सुख है। राष्ट्र के निवासी ही मेरे बन्धु, आप्तजन, सखा, भाई हैं। इस तरह अपने राष्ट्र के मेरे सर्वस्व हैं।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥५॥

अनुवाद :
जहाँ स्त्रियों की पूजा की जाती है (सम्मान किया जाता है) वहाँ देवता रमण करते हैं (निवास करते हैं)। जहाँ इनकी पूजा नहीं की जाती है, वहाँ सम्पूर्ण क्रियाएँ निष्फल जाती हैं।

सत्यं माता पिता ज्ञानं, धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः, षडेते मम बान्धवाः॥६॥

अनुवाद :
माता सत्य स्वरूप होती है, पिता ज्ञान स्वरूप होता है, धर्म भाई के समान तथा दयालुता सखा (मित्र) के समान होती है। पत्नी शान्ति सदृश होती है तथा क्षमा का गुण पुत्र तुल्य होता है। ये सभी छ: तो मेरे बान्धव हैं (बान्धव परिवारीजन होते हैं)।

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रमेको गुणी पुत्रो न च मूर्ख-शतान्यपि।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति, न च तारागणा अपि॥७

अनुवाद-एक गुणवान् पुत्र श्रेष्ठ होता है परन्तु सौ मूर्ख पुत्र (अच्छे) नहीं होते। अकेला चन्द्रमा (रात्रि के) अन्धकार को नष्ट कर देता है, लेकिन तारों का समूह (अन्धकार को) नष्ट नहीं कर सकता।

अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्॥८॥

अनुवाद :
अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन ही श्रेष्ठ हैं। परोपकार से पुण्य लाभ होता है और दूसरों को पीड़ा (दुःख) पहुँचाने से पाप लगता है।

सुभाषितानि शब्दार्थाः

ईर्ष्या = ईर्ष्या करने वाला। घृणी = घृणा करने वाला। खलस्य = दुष्ट का। रमन्ते = निवास करते हैं। वरम् = श्रेष्ठ। तमः = अन्धकार। क्रोधनः = क्रोधित रहने वाला।

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