MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 3 नदी बहती रहे

MP Board Class 9th Hindi Book Solutions हिंदी वासंती, नवनीत Chapter 3 नदी बहती रहे- NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 3 नदी बहती रहे

प्रश्न 1.
गंगा नदी की पहली तथा बड़ी पश्चिमी सहायक नदी कौन-सी है?
उत्तर:
यमुना।

प्रश्न 2.
नदियाँ हमारे जीवन के किस-किस पक्ष को समृद्ध करती हैं?
उत्तर:
नदियाँ हमारे जीवन के आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पक्ष को समृद्ध करती हैं।

प्रश्न 3.
‘स्वयंजात वन’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
‘स्वयंजात वन’ उन वनों को कहते हैं जो प्राकृतिक रूप में स्वयं बन गये हैं; यथा-कुरु प्रदेश का कुरु जंगल, साकेत का अंजनवन आदि।

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नदी बहती रहे लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय भू-भौगोलिक स्थिति को ठीक-ठीक किस प्रकार समझा जा सकता है?
उत्तर:
भारतीय भू-भौगोलिक स्थिति को ठीक-ठीक समझने के लिए यहाँ के पर्वत समूहों और नदी-समूहों का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 2.
भारत के ‘स्वयंजात’ वन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत के ‘स्वयंजात’ वनों में कुरु प्रदेश का कुरु जंगल, साकेत का अंजनवन, वैशाली और कपिलवस्तु में महावन, श्रावस्ती के तट पर पारिलेण्य वन एवं रोहिणी नदी के तट पर लुम्बिनी वन प्रमुख थे।

प्रश्न 3.
जनसंख्या वृद्धि के प्रकृति पर क्या प्रभाव हो रहे हैं?
उत्तर:
निरन्तर होती जा रही जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप योजनाविहीन विकास हो रहा है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण समाप्त होते जा रहे हैं।

नदी बहती रहे दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन, पर्वत और नदियों के नजदीकी रिश्ते को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनों, पर्वतों और नदियों का बहुत नजदीकी रिश्ता है। ये तीनों ही एक साथ रहते हैं और एक वन और नदियाँ मैदानों में उतरती हैं। लेकिन जिस प्रकार की वन व्यवस्था आज है उसमें न तो वनस्पतियाँ, न वन्य पशुओं और न नदियों की रक्षा सम्भव है। मनुष्य की समग्र समृद्धि के लिए अर्थात् आर्थिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक समृद्धि और विकास के लिए वनों, वन्य पशुओं, नदियों और पर्वतों का संरक्षण बहुत आवश्यक है। यदि इस ओर हमने ध्यान नहीं दिया तो इससे भारतीय सांस्कृतिक विरासत भी खतरे में पड़ जाएगी।

प्रश्न 2.
भारत की नदियाँ अब मोक्षदायिनी क्यों नहीं रह गई हैं? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कांवेरी आदि नदियाँ अत्यधिक पवित्र मानी जाती थीं। इनका जल पीकर तथा इनमें स्नान कर मनुष्य अपने शारीरिक एवं मानसिक क्लेशों से मुक्ति पाता था। इतना ही नहीं इनके किनारे तप करके मनुष्य अपने जीवन को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता था पर औद्योगीकरण के प्रभाव एवं नई शहरी संस्कृति ने अब इन नदियों को प्रदूषित कर दिया है। इनमें शहरों का मल-मूत्र, उद्योगों का अवशिष्ट कचरा आदि प्रवाहित किया जा रहा है। फलतः इनका जल प्रदूषित होकर वनस्पतियों, मनुष्यों, जलचरों, वन्य जीवों एवं पक्षियों आदि को रुग्ण बना रहा है। इस प्रकार ये नदियाँ अब मोक्षदायिनी न होकर संक्रामक रोगों को जन्म देने वाली बन गई है।

प्रश्न 3.
नदियों, पर्वतों और वनों से भरपूर देश की स्थिति में आज क्या परिवर्तन आया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत विशाल देश है। यह देश अनेक नदियों, पर्वतों एवं वनों से भरपूर है। नदियों, पर्वतों एवं वनों का परस्पर अटूट रिश्ता है। जिस प्रकार वनों का नदियों से सम्बन्ध है उसी प्रकार नदियों का भी वनों से सम्बन्ध है। यदि वनों का अस्तित्व बना रहता है तो नदियाँ स्वतः प्रवाहित होती रहेंगी। यदि वन नहीं रहेंगे तो नदियाँ स्वतः विलुप्त हो जाएँगी। जनसंख्या के बढ़ते दबाव तथा औद्योगीकरण के फलस्वरूप वनों को निर्ममता से साफ किया जा रहा है। बड़े-बड़े नगर नदियों के किनारे स्थित हैं फलतः नगर की गन्दगी बेरोकटोक इन नदियों में प्रवाहित की जा रही है। वनों की निरन्तर कटाई तथा नदियों के प्रदूषित जल से मानव जीवन के स्वास्थ्य को गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है। अतः हमें सावधानी से इन समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना चाहिए। वनों को कटाई से बचाना, नदियों को प्रदूषण से बचाना एवं पर्वतों के क्षरण को रोकना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है और हमें इनका सामना कर सुखद मार्ग बनाने होंगे।

प्रश्न 4.
वर्तमान समय में अपने परिवेश को प्रदूषण के प्रभाव से कैसे बचाया जा सकता है? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में अपने परिवेश को प्रदूषण के प्रभाव से तभी बचाया जा सकता है जबकि हम नदियों में गन्दगी प्रवाहित न कर उसे अन्यत्र डालें नदियों में नालों के जलों को मिलाने से पूर्व उनके पानी को प्रशोधित किया जाए तभी उसे नदियों में मिलाया जाए। आस-पास की वनस्पति के संरक्षण का प्रयास किया जाए और प्रतिवर्ष अधिक-से-अधिक नये वृक्ष लगाये जाएँ। वनों के अधिक उगाने से पर्वतों का भी क्षरण रुकेगा। इस प्रकार के उपाय करके हम अपने परिवेश को प्रदूषण के प्रभाव से बचा सकते हैं।

प्रश्न 5.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) जब गंगा गंगा न रही, तब काशी की क्या स्थिति रहेगी?
उत्तर:
आशय-लेखक का आशय है कि गंगा जैसी बारहमासी नदियाँ आज जल प्रदूषण से अधिक ग्रस्त हैं। मानव बस्तियों और उद्योगों के गन्दे पानी के इसमें निरन्तर मिलते रहने से पानी और अधिक प्रदूषण युक्त हो गया है। जब गंगा नदी की यह भयावह स्थिति है तो काशी भी इन प्रभावों से अछूती नहीं रह पायेगी।

(ख) वनों की उपयोगिता मानव की समग्र समृद्धि के लिए है। समृद्धि की इस समग्रता में उसकी आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक समृद्धियाँ शामिल हैं।
उत्तर:
आशय-लेखक का आशय है कि वनों की उपयोगिता मानव की समग्र समृद्धि के लिए है। बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों पर हमारी निर्भरता अधिक बढ़ गई है। अनेक उद्योगों के संचालन हेतु वनों की लकड़ी की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। इस कारण वनों को बेरहमी से काटा जा रहा है। इसके कारण वन सम्पदा शनैः-शनैः समाप्त होती जा रही है। वनों के अभाव में वर्षा की भी समस्या उत्पन्न होने लगी है। यह एक चिन्ता की बात है। इसके लिए हमें वनों का संरक्षण, परिवर्धन एवं विकास करना होगा तभी हम पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। वनों की समृद्धि में ही मानव की आर्थिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक समृद्धियाँ सम्मिलित हैं। अतः हमें हर सम्भव प्रयास से वनों का संरक्षण करना चाहिए।

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नदी बहती रहे भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिएपौराणिक, पश्चीमी, नरमदा, मंदीर, आर्थीक, स्थिती, शिघ्रता।
उत्तर:
MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 5 प्रकृति-चित्रण img 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
दर्दनाक, प्रदूषण, कृषि, समृद्धि, प्राकृतिक, स्थापना।
उत्तर:

दर्दनाक – आज वनस्पतियों को जिस बेरहमी से काटा जा रहा है उससे मानव जीवन दर्दनाक बनता जा रहा है।
प्रदूषण – हमें अपने आसपास बढ़ रहे प्रदूषण से सावधान होना होगा।
कृषि – भारत एक कृषि प्रधान देश है।
समृद्धि – नदियों द्वारा ही मानव की सर्व प्रकार की समृद्धि आ सकती है।
प्राकृतिक – भारत का प्राकृतिक परिवेश बहुत विशाल है।
स्थापना – हमें वनों की सुरक्षा एवं नदियों के शुद्धीकरण के प्रयासों की स्थापना करनी चाहिए।
प्रश्न 3.
दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-
सम्मान, उन्नति, व्यापक, प्राचीन, आवश्यक, ज्ञान।

उत्तर:

शब्द विलोम
सम्मान असम्मान
उन्नति अवनति
व्यापक संकुचित, सीमित
प्राचीन नवीन
आवश्यक अनावश्यक
ज्ञान अज्ञान
प्रश्न 4.
नीचे दिये गये शब्दों के हिन्दी रूप लिखिए।
उत्तर:
नजदीकी = निकटता; खासकर = विशेषकर; रिश्ता = सम्बन्ध; जमीन = पृथ्वी; किस्म = प्रकार; दर्दनाक = पीड़ादायक; अमलदारी = प्रभावी।

प्रश्न 5.
दिये गये वाक्यों के वाक्यांश लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 5 प्रकृति-चित्रण img 2

नदी बहती रहे संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) भारत नदियों का देश रहा है इसलिए नहीं कि इस देश में नदियों की ही अधिकता है बल्कि इसलिए कि इस देश में नदियों का विशेष रूप से सम्मान हुआ है। वे हमारे जीवन में बहुत महत्त्व रखती रही हैं। इनसे हमारा आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन समृद्ध हुआ है।

कठिन शब्दार्थ :
अधिकता बहुतायत; सम्मान = आदर; समृद्ध = उन्नत।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्य खण्ड ‘नदी बहती रहे’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री भगवतीशरण सिंह हैं।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने नदियों के महत्त्व के बारे में बताया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि हमारा भारत देश नदियों का देश है। यह इस कारण नहीं कि इस देश में बहुत-सी नदियाँ बहती हैं बल्कि इस कारण से इसे नदियों का देश कहा गया है क्योंकि यहाँ पर नदियों का बड़ा ही आदर किया जाता है। नदियों में स्नान करके मनुष्य अपने जीवन को धन्य मानता है। इन नदियों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। इनसे हमारा आर्थिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन उन्नत हुआ है अर्थात् नदियों से हमें पैदावार मिलती है जिससे हमारी आर्थिक दशा सुधरती है। नदियों का सामाजिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व भी है। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि इन्हीं के किनारे पर तप एवं यज्ञ करते हैं।

विशेष :

लेखक ने नदियों को हमारे जीवन का आधार बताया है।
भाषा सहज एवं सरल है।
(2) नदियों के न रहने पर हमारी संस्कृति विच्छिन्न हो जाएगी हमारा जीवन-स्रोत ही सूख जाएगा। अतः वनों की आवश्यकता और महत्ता को अस्वीकार करके न तो हम आर्थिक उन्नति के सोपान गढ़ सकते हैं और न स्वास्थ्य और सुख की कल्पना ही कर सकते हैं।

कठिन शब्दार्थ :
संस्कृति = सभ्यता; विच्छिन्न = अलग-थलग; जीवन-स्रोत = जीवन का झरना; अस्वीकार = न मानकर; सोपान = सीढ़ी; गढ़ सकते हैं = बना सकते हैं।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक ने इस अंश में इस बात को स्पष्ट किया है कि नदियों के अभाव में न तो हमारी संस्कृति जीवित रह पायेगी और न सुख-समृद्धि।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि यदि नदियाँ नहीं रहेंगी तो हमारी संस्कृति भी जीवित नहीं रह पायेगी, वह छिन्न-भिन्न हो जाएगी। नदियों के न रहने पर हमारे जीवन की निरन्तरता व ताजगी नष्ट हो जाएगी। नदियों से ही वनों का सम्बन्ध है। यदि हम वनों की आवश्यकता और महत्ता को नकारते हैं तो हम न तो आर्थिक दृष्टि से उन्नति कर पाएँगे और न स्वास्थ्य एवं सुख की कल्पना कर पाएंगे। अतः हमें नदियों और वनों दोनों को महत्व देना चाहिए।

विशेष :

इस अंश में लेखक ने मानव जीवन की खुशहाली एवं उन्नति के लिए वन एवं नदी दोनों के महत्त्व को स्वीकार किया है।
भाषा सहज एवं सरल है।
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(3) आदमी की जिन्दगी अपने आप में बहत ही अकेली और नीरस होती है। आदमी-आदमी के रिश्ते नाते उसका बहुत दूर तक साथ नहीं देते। पर जब वह इनसे आगे बढ़कर एक व्यापक सम्बन्ध कायम करने की कोशिश करता है, तो उसके साथ वन, पर्वत, नदी आदि सभी चल पड़ते हैं। तब वह अकेला नहीं रह जाता। आज वह वनस्पतियों और पानी के रिश्ते को भूलकर अपने को भी अकेला बना रहा है और उनके आपसी सम्बन्धों को भी विच्छेद करता जा रहा है। गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा और कावेरी आज भी भारत में बह रही हैं पर अब वे मोक्षदायिनी नहीं रह गई हैं।

कठिन शब्दार्थ :
नीरस = सूखी; व्यापक = विशाल, लम्बा चौड़ा; विच्छेद = नष्ट; मोक्षदायिनी = मोक्ष (जीवन के आवागमन को नष्ट करने वाली) देने वाली।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक मानव के जीवन में नदियों एवं वनों के महत्त्व को स्थापित करता है पर वह आज प्रदूषण के द्वारा नदियों की दुर्दशा पर भी चिन्ता व्यक्त करता है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि आदमी अकेला रहकर कभी सुखी नहीं रह सकता। आदमी और आदमी के बीच जो रिश्ते और नाते होते हैं वे एक सीमा तक ही उसके मददगार होते हैं। परन्तु जब वह इनसे आगे बढ़कर व्यापक सम्बन्ध जोड़ना चाहता है तब उसके साथ वन, पर्वत एवं नदी आदि प्राकृतिक उपादान जुड़ जाते हैं। ऐसी दशा में वह अकेला नहीं रह जाता है। आज मनुष्य वनस्पतियों एवं पानी से सम्बन्ध तोड़कर जहाँ अपने आपको अकेला बना रहा है वहीं वह उनके आपसी सम्बन्धों को भी नष्ट करता जा रहा है। यद्यपि आज भी भारत में गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा एवं कावेरी आदि नदियाँ बह रही हैं पर वे पूर्व की भाँति प्रदूषण के कारण मोक्ष देने वाली नहीं रही हैं।

विशेष :
नदियों की वर्तमान दशा से लेखक दु:खी है।

(4) मानव बस्तियों और उद्योगों का गंदा पानी सीधे जल प्रवाह में मिल जाता है। जो अधिकांश रूप में उपयोग लायक नहीं रह जाता। रोजाना जिस प्रकार गंदा पानी छोड़ा जा रहा है उससे प्राकृतिक जल, जैसे-नदियों, खाड़ियों और समुद्र तटवर्ती पानी को खतरा पैदा हो गया है। अत: ऐसी स्थिति में न कश्मीर ही स्वर्ग रह गया और न काशी ही तीन लोक से न्यारी रह गई। जब गंगा गंगा न रही तब काशी की क्या स्थिति रहेगी?

कठिन शब्दार्थ :
अधिकांश = अधिकतर; तीन लोक से न्यारी = तीनों लोकों में श्रेष्ठ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक की चिन्ता है कि उद्योग-धन्धों के गन्दे पानी ने नदियों में मिलकर नदियों को गन्दा बना दिया है, उनकी महत्ता खत्म हो गई है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि नदी किनारे रहने वाले लोगों . ने अपनी गन्दगी नदियों में बहाना शुरू कर दिया साथ ही नदियों के किनारे जो उद्योग-धन्धे, कल-कारखाने लगे हैं वे भी अपना गन्दा पानी इन नदियों में मिल रहे हैं, इसके कारण नदियों का स्वच्छ पवित्र जल अब उपयोग लायक नहीं रहा है। नदियों में निरन्तर गन्दे जल को छोड़े जाने से नदियों, खाड़ियों और समुद्र तटों के पानी पर संकट आ गया है। ऐसी विषम दशा में न तो अब कश्मीर स्वर्ग रह पायेगा और न काशी ही तीन लोक से न्यारी रह पायेगी।

विशेष :

मनुष्यों द्वारा नदियों में गन्दगी बहाने और उद्योगों द्वारा अपना कचरा प्रवाहित कर देने से नदियों का पानी उपयोग लायक नहीं रहा है, यही लेखक की चिन्ता है।
भाषा सहज एवं सरल है।
(5) निरन्तर तेजी से बढ़ती जा रही जनसंख्या के दबाव के कारण लुप्त होती जा रही प्रजातियाँ तथा पारिस्थितिकीय व्यवस्थाओं के फलस्वरूप तथा प्राकृतिक पर्यावरण के योजनाविहीन विकास के कारण हमारी प्रजातियों के प्राकृतिक आवास शीघ्रता से समाप्त अथवा कुछ बदलते जा रहे हैं।

कठिन शब्दार्थ :
प्रजातियाँ = अनेकानेक छोटी जातियाँ; पारिस्थितिकीय व्यवस्थाओं = प्राकृतिक परिवेश में परिवर्तन के कारण।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने बताया है कि हमारे देश में तीव्रगति से बढ़ रही जनसंख्या के कारण वनों और नदियों में रहने वाली अनेक प्रजातियाँ नष्ट होता जा रही हैं।

व्याख्या :
लेखक का मत है कि हमारे भारतीय उपमहाद्वीप में जनसंख्या का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है, जिसके कारण यहाँ के प्राकृतिक परिवेश में रहने वाले पशुओं, पक्षियों, जलचरों की प्रजातियाँ समाप्त होती जा रही हैं। आज प्रगति एवं उन्नति के नाम पर विकास योजनाएँ प्राकृतिक परिवेश को नष्ट करने पर तुली हुई हैं। इन योजनाओं के फलस्वरूप वनचरों, नभचरों एवं जलचरों के प्राकृतिक शरण स्थल नष्ट किये जा रहे हैं जिससे इनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।

विशेष :

लेखक का मत है कि योजनाएँ, इस ढंग से विचारपूर्वक बनाई जाएँ जिससे प्रजातियों पर कोई संकट न आने पाए।
भाषा सहज एवं सरल है।
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(6) वनों का उपयोग उद्योग-व्यापार में होगा। इससे विरत नहीं हुआ जा सकता। वनों की उपयोगिता मानव की समग्र समृद्धि के लिए है। समृद्धि की इस समग्रता में उसकी आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक समृद्धियाँ शामिल हैं।

कठिन शब्दार्थ :
विरत = अलग; समग्र = सम्पूर्ण; समृद्धि – उन्नति।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने वनों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक का कथन है कि हमारे बहुत-से उद्योगों के उत्पाद पूरी तरह वनों पर ही निर्भर हैं। इस तरह वनों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। वनों के सहयोग से मानव निरन्तर उन्नति की सीढ़ियों पर चढ़ता गया है। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वनों की उपयोगिता मानव की सम्पूर्ण उन्नति के लिए अनिवार्य है। समृद्धि की यह समग्रता आर्थिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नति को अपने में समेटे हुए हैं।

विशेष :

लेखक की मान्यता है कि मानव की उन्नति में वनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
भाषा सहज एवं सरल है।


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