MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 3 सुभाषितानि

MP Board Class 9th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दूर्वा Chapter 3 सुभाषितानि – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 3 सुभाषितानि

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत्-(एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) गुणाः कं प्राप्य दोषाः भवन्ति? (गुण किसे प्राप्त कर दोषमय होते हैं?)

उत्तर:
निर्गुणमः। (निर्गुणी के पास)

(ख) प्रथमे का अर्जनीया? (पहले क्या प्राप्त करना चाहिए?)
उत्तर:
विद्या। (विद्या)

(ग) विद्यां का तनोति? (विद्या किसका विस्तार करती है?)
उत्तर:
लक्ष्मी।

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(घ) किं धनं भ्रातृभाज्यं नास्ति? (कौन-सा धन भाइयों में नहीं बंटता है?)
उत्तर:
विद्या।

(ङ) दैवेन देयमिति के वदन्ति? (भाग्य द्वारा प्राप्त होना चाहिए यह कौन कहते हैं?)
उत्तर:
का पुरुषा।

प्रश्न 2.
क वाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखिये)
(क) समुद्रमासाद्य नदीनां तोयाः कीदृशाः भवन्ति? (समुद्र के लिए नदियों के जल की स्थिति कैसे होती
है?)
उत्तर:
अपेयाः। (न पीने योग्य होती है।)

(ख) माता इव का रक्षति? (माता के समान क्या रक्षा करतो है?)
उत्तर:
माता इव विद्या रक्षति। (माता के समान विद्या रक्षा करती है।)

(ग) देहस्य सारं किम्? (देह का सार क्या है?)
उत्तर:
देहस्य सारं धर्मः। (देह का सार धर्म है।)

(घ) संतः केन पूर्णाः भवन्ति? (संत किससे पूर्ण होते हैं?)
उत्तर:
संतः मनसि, वचिस काये पुण्यपीयुषपूर्णाः भवन्ति।। (संत मन, वचन और शरीर से पूर्ण होते हैं।)

प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो)
(क) निर्गन्धा किंशपत्रः इव के न शोभन्ते? (गंधहीन टेसू के फूल की तरह कौन शोभा नहीं पाता?)

उत्तर:
विद्याहीनाः निर्गन्धाः किंशुकाः इव न शोभन्ते। (विद्या से हीन व्यक्ति गन्धहीन टेसू के फूल की तरह होता है।)

(ख) गुणानां स्वभावः कीदृशः भवति? (गुणियों का स्वाभाव किस तरह का होता है?)
उत्तर:
गुणानां स्वभावः नद्याः इव भवति। (गुणी लोगों का स्वभाव नदी के समान होता है।)

(ग) विद्या किं किं साधयति? (विद्या वया-क्या साधती है?)
उत्तर:
माता इष रक्षति, पिता इव हिते नियुक्ते, कान्ता इष च खेदम् अपनीय अभिरमयति, लक्ष्मी तनोति इदृशं विद्या सर्वम् साध्यति। (विद्या माता के समान रक्षा करती है, पिता के समान कल्याण (हित) करती है, पत्नी के समान कष्ट को दूर करती है साथ ही लक्ष्मी की वृद्धि करती है, यश में वृद्धि करती है।)

(घ) विद्याधनस्य किं वैशिष्ट्रयम्? (विद्या की क्या विशेषता है)
उत्तर:
अस्मिन चौरहार्य न च राजहार्य न, भ्रातृभाज्यं न, च भारकारिन व्यये कृते वर्धत एवं नित्यम्।

(इस चोर चुरा नहीं सकता, राजा हरण नहीं कर सकता, भाइयों में बँट नहीं सकती और न ही यह भारकारी है। यह खर्च करने पर बढ़ती जाती है।)

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प्रश्न 4.
शुद्धवाक्यानां समक्षम “आम” अशुद्ध वाक्यानां समक्षम् ‘न’ इति लिखत
(क) नद्य आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति
(ख) यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोडल दोषः
(ग) विद्या मातेव रक्षति
(घ) गात्रम् अङ्गेन विना शोभते
(ङ) उद्योगिनम् पुरुष लक्ष्मीः उपैति
उत्तर:
(क) आम्
(ख) आम्
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्

प्रश्न 5.
युग्ममेलनं कुरुत(सही जोड़ी बनाइये)
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प्रश्न 6.
श्लोकपूर्ति कुरुत
(क) स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम।
परिवर्तिनिसंसारे मृतः को वा न जायते॥

(ख) बुद्धेः फलं तत्त्वविचारका च देहस्य सारं व्रत धारणं च।
अर्थस्य सारं किल पात्रदानं वाचः फलं प्रतिकरं नराणाम्॥

प्रश्न 7.
संधि कृत्वा संधेः नाम लिखत (संधि विग्रह करके नाम लिखो)
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प्रश्न 8.
अव्ययैः वाक्यरचनां कुरुत
(क) कृते – व्यये कृते वर्धत एव नित्यम्।
(ख) यदि, – यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोऽत्र दोष।
(ग) खलु – वाग्यं प्रधानं खलु योग्यतायाः।
(घ) इव – मातेव रक्षति।
(ङ) बिना – धर्म बिना न राजयते।
(च) एव – व्यये कृते वर्धत एव नित्यम्।

प्रश्न 9.
अधोलिखित पदानाम् मूलशब्दं विभक्तिं वचनञ्च लिखत्
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प्रश्न 10.
अधोलिखित क्रियापदानां धातु, लकार, पुरुष, वचन लिखत्
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सुभाषितानि पाठ संदर्भ प्रतिपाद

सुंदर कथन को सुभाषित कहते हैं। संस्कृत साहित्य में सुभाषित के अंतर्गत नीति, आदर्श, सुंदर आचार-विचार एवं जीवन के मूल्यपरक ज्ञान का भंडार है। वस्तुतः सुभाषितानि में जीवन जीने के लिए काम आने वाले आवश्यक तत्त्वों का वर्णन है जो शिक्षण माध्यम से विद्यार्थियों तक पहुँचाना संस्कृत भाषा की विशेषता है। सुभाषित के माध्यम से लोगों के जीवन में परिवर्तन लाया जा सकता है। अतः सुभाषित श्लोक से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए।

सुभाषितानि पाठ का हिन्दी अर्थ

  1. उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः
    दैवेन देयमिति का पुरुषा वदन्ति।
    दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
    यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोऽत्रदोषः॥

शब्दार्थ :
उद्योगिनम्-प्रयत्न करने वाले को-Laborious; उपैति-पास जाती है-to near; कापुरुषा-कायर पुरुष-timed person, coward, feared man; वदन्ति-कहते हैं-says.

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अर्थ :
उद्योगी अर्थात् प्रयत्नशील पुरुष के पास ही लक्ष्मी आती है। कायर लोग भाग्य पर निर्भर रहते हैं कि भाग्य में होगा तो धन मिलेगा। अतः भाग्य पर भरोसा न कर अपने शक्ति भर पौरुष करना चाहिए। यदि इतने पर भी कार्य सिद्ध न हो तो यह सोचना चाहिए कि कार्य संपन्न करते समय कौन-सी गलती हुई जिससे कार्य संपन्न नहीं हुआ।

  1. रूपयौवन सम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः।
    विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः॥

शब्दार्थ :
निर्गंधा-बिना गंध वाले-adourless; किंशुका-टेसू ढाक के फूलोंflower of Tessu.

हिन्दी अर्थ :
अद्वितीय रूप एवं यौवन संपन्न होने एवं बड़े कुल में उत्पन्न होने पर भी विद्याविहीन व्यक्ति उसी प्रकार शोभाहीन होता है जैसे पलाश का पुष्प (जो देखने में सुंदर तो होता है किन्तु गन्धहीन होने के कारण बेकार होता है)।

  1. गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
    आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥

शब्दार्थ :
आस्वाधतोयाः-पीने योग्य/स्वादिष्ट जल वाली-drinking, tasty; प्रवहन्ति-बहती है-flows; आसाद्य-पहुँचकर/पाकर-After reaching; अपेयाः-न पीने योग्य-without drinking.

हिन्दी अर्थ :
गुणवान व्यक्ति गुणीजनों के बीच रहकर उनके अच्छे गुण ग्रहण करता है किन्तु वही दुर्गुणी की संगति में दुर्गुणों से भर जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे नदी का जल पीने में मीठा होता है किन्तु समुद्र में वही जल मिलते ही खारा हो जाता है और पीने योग्य नहीं रह जाता।

  1. प्रथमे नार्जिता विद्या, द्वितीये नार्जितं धनम्।
    तृतीये नार्जितं पुण्यं, चतुर्थं किं करिष्यति॥

शब्दार्थ :
प्रथमे-बाल्यावस्था में-inchild hood; द्वितीये–यौवनावस्था में-inyouth; अर्जितम्-इकट्ठा किया/कमाया-collected; अभिरमयति-आनंदित करती है-enjoyes; कल्पतेव-कल्पवृक्ष की भाँति-like kalpbriksh (one of the fabulous plants or trees of India’s or of Krisna’s paradise, a tree that grants all desires.)

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हिन्दी अर्थ :
जिसने (जीवन के) प्रथम चरण में विद्या नहीं प्राप्त की, दूसरे चरण में धनार्जन नहीं किया एवं तीसरे चरण में पुण्य नहीं कमाया वह चौथे पन में क्या करेगा?

  1. मातेव् रक्षति पितेव हिते नियुङ्क्ते
    कान्तेव चाभिरमयत्यपनीय खेदम्।
    लक्ष्मी तनोति वितनोति च दिक्षुकीर्ति
    किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या॥

शब्दार्थ :
नियुङ्क्ते-लगाता है-aid; खेदम्-कष्ट/दुख को-seems to sorrow, to sad;अभिरमयति-आनंदित करती है-enjoys; तनोति-फैलाती है-spreads; दिक्षु-दिशाओं में-in direction.

हिन्दी अर्थ :
विद्या (व्यक्ति की) माता सदृश्य रक्षा करती है, पिता के सदृश अच्छे हितकर कार्यों में लगाती है, पत्नी के समान आमोद-प्रमोद प्रदान करते हए कष्टों को दूर करती है। विद्या धन-सम्पत्ति में वृद्धि करती है, चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है। विद्या कल्पलता के सदृश है, यह क्या-क्या नहीं कर सकती (अर्थात्) सब कार्य साधती है।

  1. बुद्धेः फलं तत्त्वविचारणा च देहस्य सारं व्रतधारणं च
    अर्थस्य सारं किल पात्रदान, वाचः फलं प्रीतिकरं नराणाम्॥

शब्दार्थ :
तत्वविचारणा-नित्य वस्तुओं का शोध करना-Philosopher; देहस्य-शरीर का-By body; बुद्धे फलं-बुद्धि का फल-Fruit of wise; व्रतधारणं-व्रतधारण करना-Keeping fast; अर्थस्य-धन का-To wealth; नराणाम्-व्यक्ति को-Toperson, to man.

हिन्दी अर्थ :
बुद्धि के परिणामस्वरूप तत्त्वचिंतन, शरीर का तत्त्व है-व्रत धारण करना, अर्थ (धन) का सार (तत्त्व) है-दान देना (उचित पात्र या व्यक्ति को), और वाणी का सार तत्त्व है-प्रेम युक्त व्यवहार करना (अर्थात् प्रेम पूर्ण मधुर वचन बोलना)।

  1. न चौरहार्यं न च राजहार्यम्
    न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
    व्यये कृते वर्धत एवं नित्यम्
    विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥

शब्दार्थ :
चौरहार्यम्-चोर के द्वारा चुराई जाने वाली-Through thing; भारकारि-बोझ करने वाली-Burdenable thing, weighheavily: राजहार्यम्-राजा के द्वारा हरण करने वाली-Through king snatching thing; भ्रातृभाज्यं-भाइयों के द्वारा बांटे जाने वाली-Through brothers distributing thing; व्ययेकृते-व्यय करने में-In expensive; वर्धत-बढ़ती है -Increase; नित्यम्-हमेशा-Always; विद्याधनम-विद्याधन-Wealth of knowledge; सर्वधनं-सभी धनों में-in all wealth.

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हिन्दी अर्थ :
(विद्या धन ऐसा धन है जिसे) चोर चोरी नहीं कर सकता, जिसे राजा हरण नहीं कर सकता, भाई उसका बंटवारा नहीं कर सकता। (यह धन) जितना खर्च किया जाए, निरंतर बढ़ता है इसीलिए विद्याधन को सर्वश्रेष्ठ धन कहा गया है।

  1. अङ्गेन गात्रं नयनेन वक्त्रम्
    न्यायेन राज्यं लवणेन भोज्यम्।
    धर्मेण हीनं खलु जीवितञ्च
    न राजते चंद्रमसा बिना निशा॥

शब्दार्थ :
गात्रम्-शरीर-Body; अङ्गेन-अंग के बिना-Without part of body; नयनेन-नयन के बिना-Without eye; न्यायेन-न्याय के बिना-Without judge; धर्मेण-धर्म के बिना-Without religion; हीन-हीन-Weak; नराजते-सुशोभित नहीं होता-Unfit, unmatched.

हिन्दी अर्थ :
अंगों के बिना शरीर, बिना नेत्र के मुँह, न्यायहीन राज्य, बिना नमक का भोजन, बिना धर्म के जीवन एवं बिना चंद्रमा के रात्रि सुशोभित नहीं होती।

  1. परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।
    स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्॥

शब्दार्थ :
जातः-उत्पन्न हुआ-Arce; परिवर्तिनि-परिवर्तनशील-Changeable;

हिन्दी अर्थ :
इस परिवर्तनशील मर्त्यलोक में कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जो मरणधर्मा न हो (अर्थात् जो मृत्यु को प्राप्त नहीं होता हो) किन्तु इस संसार में उसी का पैदा होना सार्थक है जिससे समस्त कुल उन्नति को प्राप्त हो।

  1. मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः
    त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः ‘प्रीणयन्तः
    परगुणपरमाणून पर्वतीकृत्य नित्यम्
    निजहृदि विकसन्तः संति सन्तः कियन्तः॥

शब्दार्थ :
मनसि-मन में-In mind; वचसि-वाणी में-In word, in speach; त्रिभुवनम्-तीनों लोकों को-To three world; प्रीणयन्तः-प्रसन्न करते हुए-Doing happy; पर्वतीकृत्य-पर्वत के समान बनाकर-Build like mountain; निजहृदि-अपने हृदय में-In own heart; विकसन्तः–बढ़ाते हुए-Progressive; पीयूषपूर्णाः-अमृत से भरे हुए-With full of nectar.

हिन्दी अर्थ :
मन, वचन, शरीर से पुण्य रूपी अमृत से परिपूर्ण, अपने उपकार से तीनों लोक को प्रसन्न करते हुए, दूसरों के छोटे से गुणों को भी पर्वत के सदृश्य जानकर अपने हृदय में ध्यान देने वाले सन्त कितने हैं।


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