MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 16 ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी

MP Board Class 10th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दुर्वा Chapter 16 ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी – NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 16 ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी


प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) भारतीयसमाजे का सदैव पूज्या अस्ति? (भारतीय समाज में कौन हमेशा पूजनीय है?)
उत्तर:
नारी (स्त्री)

(ख) मैत्रेयी कस्य पत्नी आसीत्? (मैत्रेयी किसकी पत्नी थी?)
उत्तर:
याज्ञवल्क्यस्य (याज्ञवल्क्य की)

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(ग) जनकः सीताम् अध्यापयितुं कां नियोजितवान्? (जनक ने सीता को पढ़ाने के लिए किसे नियुक्त किया?)
उत्तर:
मैत्रेयीम् (मैत्रेयी को)

(घ) आश्रमव्यवस्था का पश्यति स्म? (आश्रम की व्यवस्था कौन देखती थी?)
उत्तर:
कात्यायनी (कात्यायनी)

(ङ) सर्वस्य जलस्य आधारः कः? (सारे जल का आधार क्या है?)
उत्तर:
समुद्रः (समुद्र)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक पाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) देवताः कुत्र रमन्ते? (देवता कहाँ खुश होते हैं?)
उत्तर:
यत्र नार्यः पूज्यन्ते देवताः तत्र रमन्ते। (जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता खुश होते हैं।)

(ख) मैत्रेयी सीतां केषां ज्ञानं दत्तवती? (मैत्रेयी ने सीता को किसका ज्ञान दिया?)
उत्तर:
मैत्रेयी सीतां वेदानां संस्काराणाम् इन्द्रियनिग्रहस्य च ज्ञानं दत्तवती। (मैत्रेयी ने सीता को वेदों, संस्कारों और इन्द्रियों के संयम का ज्ञान दिया।)

(ग) धनेन किं न प्राप्यते। (धन से क्या नहीं मिलता?)
उत्तर:
धनेन अमृतत्वं न प्राप्यते। (धन से अमृतत्व प्राप्त नहीं होता।)

(घ) अमृतत्वस्य साधनं किम्? (अमृतत्व का साधन क्या है?)
उत्तर:
अमृतत्वस्य साधनम् आत्मसाक्षात्कारः आस्त। (अमृतत्व का साधन अपने को जानना है।)

(ङ) कः मुक्तिं प्राप्तुं न शक्नोति? (कौन मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता?)
उत्तर:
यः सर्वाणि भूतानि आत्मनः भिन्नानि पश्यति सः मुक्तिं प्राप्तुं न शक्नोति। (जो सब प्राणियों की आत्मा को भिन्न देखता है, वह मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) देवताः कुत्र रमन्ते? कुत्र न रमन्ते? (देवता कहाँ खुश होते हैं? कहाँ नहीं?)
उत्तर:
यत्र नार्यः पूज्यन्ते, देवता तत्र रमन्ते। यत्र ताः अपमानिताः भवन्ति, तत्र न रमन्ते। (जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता खुश होते हैं, जहाँ उनका अपमान होता है, वहाँ वे खश नहीं होते।)

(ख) उपनिषत्काले भारते नारीणां दशा कीदृशी आसीत्? (उपनिषद् के समय में भारत में नारियों की दशा कैसी थी?)
उत्तर:
उपनिषत्काले स्त्री शिक्षायाः महत्वम् अधिकम् आसीत्। ताः वेदाध्ययनम् अपि कुर्वन्ति स्म। तासाम् उपनयन संस्कारः अपि भवति स्म।
(उपनिषद् काल में स्त्री शिक्षा का महत्व बहुत अधिक था। वे वेदों का अध्ययन भी करती थीं। उनका उपनयन संस्कार भी होता था।)

(ग) याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं कात्यायनी च आहूय किम् उक्तवान्? (याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी और कात्यायनी को बुलाकर क्या कहा?)
उत्तर:
याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं कात्यायनी च आहूय उक्तवान् यत्-“अद्य अहं गृहस्थाश्रमं त्यक्त्वा संन्यासाश्रमं स्वीकरोमि। मम गमनादनन्तरं युवयोर्मध्ये कलहः मा भवतु। अतः सम्पत्ति विभाजनं कृत्वा एव गच्छामि” इति।

(याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी और कात्यायनी को बुलाकर कहा-“आज मैं गृहस्थाश्रम छोड़कर संन्यासाश्रम ले रहा हूँ। मेरे जाने के बाद तुम दोनों के बीच झगड़ा न हो। इसलिए सम्पत्ति का विभाजन करके ही जाऊँगा।”)

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प्रश्न 4.
प्रदत्तशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत-(दिए गए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(अद्वितीयं, आत्मा, मैत्रेयी, अमृतत्वस्य, वेदाध्ययन)
(क) सर्वेषु शरीरेषु…………. एक एव।
(ख) मैत्रेयी…………. कुर्वती आसीत्।
(ग) एकमेव ………….परब्रह्म।
(घ) याज्ञवल्क्यात् …………. ब्रह्मज्ञानं प्राप्तवती।
(ङ) आत्मसाक्षात्कारः एव …………. साधनम्
उत्तर:
(क) आत्मा
(ख) वेदाध्ययनं
(ग) अद्वितीयं
(घ) मैत्रेयी
(ङ) अमृतत्वस्य।

प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘न’ इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ तथा अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-
)
(क) आत्मा एव अखिलविश्वस्य आधारः अस्ति।
(ख) धनेन अमृतत्वं प्राप्यते।
(ग) वैदिककाले नारी शिक्षिता आसीत्।।
(घ) उपनिषत्काले नारीणाम् उपनयनसंस्कारः अपि क्रियते स्म।।
(ङ) कात्यायनी सीतां ज्ञानं दत्तवती।
उत्तर:
(क) आम्:
(ख) न:
(ग) आम्:
(घ) आम्:
(ङ) न।

प्रश्न 6.
अधोलिखितशब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के मूलशब्द, विभक्ति और वचन लिखिए-)

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उत्तर:
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प्रश्न 7.
अधोलिखितशब्दानां धातुं लकारं च लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के धातु और लकार लिखिए-)

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उत्तर:
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प्रश्न 8.
धोलिखितशब्दानां धातुं प्रत्ययञ्च पृथक कुरुत
(नीचे लिखे शब्दों के धातु और प्रत्यय अलग कीजिए-)

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उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 16 ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी img 4

प्रश्न 9.
अधोलिखितशब्दानां पर्यायशब्दान् लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए-)
यथा- नारीणाम् – स्त्रीणाम्
(क) सङ्कटकाले
(ख) उपनयनसंस्कारः
(ग) समुद्रे
(घ) पतिः
उत्तर:
(क) सङ्कटकाले – आपत्तिकाले/आपत्काले
(ख) उपनयनसंस्कारः – यज्ञोपवीतसंस्कारः
(ग) समुद्रे – सागरे
(घ) पतिः – भर्ता, स्वामी

प्रश्न 10.
अव्ययैः वाक्यनिर्माणं कुरुत-(अव्ययों से वाक्य बनाइए-)
यथा- यदा-तदा – यदा रामः पठति तदा कृष्णः पठति
(क) कृते
(ख) एव
(ग) बहिः
(घ) यत्र।
उत्तर:
(क) कृते – अहम् तव कृते कार्यं करोमि। (मैं तुम्हारे लिए काम करता हूँ।)
(ख) एव – रामः एव नृपः अभवत्। (राम ही राजा बने।)
(ग) बहिः – ग्रहात् बहिः वृष्टिः भवति। (घर के बाहर वर्षा हो रही है।)
(घ) यत्र – यत्र त्वम् कथयिष्यसि वयं तत्र गमिष्यामः (जहाँ तुम कहोगे हम सब वहीं चलेंगे।)

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योग्यताविस्तार –

वैदिककाले याः अन्याः ब्रह्मवादिन्यः आसन् तासां विषये अन्विष्य पठत।
(वैदिक काल में जो अन्य ब्रह्मवादिनी है; उनके विषय में ढूँढ़ कर पढ़िए।)

वैदिककाले नारीणां दशा भारतवर्षे कीदृशी आसीत् लिखत।
(वैदिक काल में भारत में नारी की दशा कैसी थी लिखिए।

ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में ‘ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी’ की विद्वत्ता का संक्षेप में वर्णन किया गया है। उनके जीवन-चरित्र पर भी प्रकाश डाला गया है कि वे याज्ञवल्क्य की पत्नी थी। वैदिक ज्ञान से युक्त थी तथा अधिक विदुषी थी। उनके कारण नारी जाति का स्थान समाज में ऊँचा हुआ था।

ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी पाठ का अनुवाद

  1. भारतीयसमाजे नारी सदैव सम्मानार्हा पूज्या च अस्ति। अत एवोक्तम्
    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
    यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥

यत्र नारीणाम् आरः भवति तत्र देवताः स्वयं निवसन्ति। परं यत्र ताः अपमानिताः भवन्ति तत्र सर्वाणि कार्याणि विफलानि भवन्ति।

भारते वैदिककाले उपनिषत्काले च नारी शिक्षिता आसीत्। सा न केवलम् अध्ययनम् अपितु सूक्तरचनाः अपि करोति स्म। वैदिककाले अपाला, घोषा, विश्ववारा, मैत्रेयी एतादृश्यः ब्रह्मवादिन्यः आसन् । उपनिषत्काले ताः जीवनविषयकं जगद्विषयकञ्च ज्ञानम् अधिगन्तुम इच्छन्ति स्म उपनिषत्काले वेदाध्ययनस्य कृते तासाम् उपनयनसंस्कारः अपि क्रियते स्म। “पुरा कल्पे तु नारीणां मौजीबन्धनमिष्यते” इत्यनेन स्मृतिवचनेन तद् ज्ञायते।

शब्दार्थाः :
सम्मानार्हा-सम्मान के योग्य- adorable, deserving honour; रमन्ते–आनन्दित होते हैं-enjoy, feel delighted; सूक्तरचनाः-वैदिक सूक्तों की रचना-composing vedic hymns; ब्रह्मवादिन्यः-ब्रह्मतत्व को जानने वाली/अध्यापन कराने वाली-knowers of delicacies of Brahman; अधिगन्तुम-जानने के लिए-to know/ to teach; मौजीबन्धनम्-मुंज की घास का बना कटि सूत्र पहनना-wearing a sacred thread of grass.

अनुवाद :
भारतीय समाज में नारी सदैव सम्मान के योग्य व पूजनीय (रही) है। इसलिए कहा भी है
जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहीं देवता खुश होते हैं, जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सभी कार्यों के फल प्राप्त नहीं होते।”

जहाँ नारियों का आदर होता है, वहाँ देवता स्वयं निवास करते हैं। पर जहाँ वे अपमानित होती हैं वहाँ सब कार्य विफल होते हैं।

भारत में वैदिक काल में और उपनिषद् काल में नारी शिक्षित थी। वह न केवल पढ़ती थी बल्कि सूक्तों की रचना भी करती थी। वैदिक समय में अपाला, घोषा, विश्ववारा, मैत्रेयी ऐसी ब्रह्मतत्व को जानने वाली थीं। उपनिषद् काल में वे जीवन विषयक और जगद विषयक का ज्ञान जानने के लिए इच्छुक थीं। उपनिषद् काल में वेदाध्ययन के लिए उनका उपनयन-संस्कार भी किया जाता था। “प्राचीन समय में तो नारियों के मौजी बंधती थी” इन स्मृति के वचनों के द्वारा यह ज्ञात होता है।

English :
Women were always held in respect. They were educated-composed vedic hymns also-women studied Brahman during vedic age–Their thread ceremony was held in upanisdic ageThey wore the girdle of grass.

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  1. याज्ञवल्क्यस्य भार्याद्वयम् आसीत्। कात्यायनी मैत्रेयी च। कात्यायनी गृहकर्मकुशला आश्रमव्यवस्थां पश्यति स्म। मैत्रेयी आध्यात्मिकरूचिसम्पन्ना वेदाध्ययनं शास्त्रचर्चा च कुर्वती आसीत्। महाराजजनकः तस्याः पाण्डित्यम् अध्यापनकौशलं ज्ञात्वा तां सीताम् अध्यापयितुं नियोजितवान्। मैत्रेयी सीतां वेदानां संस्काराणाम् इन्द्रियनिग्रहस्य च ज्ञानं दत्तवती। एतादृशेण अध्यापनेन दृढसंस्कारैः च सीता स्वजीवने सङ्कटकाले अपि न विचलिता अभवत्।

शब्दार्थाः :
पाण्डित्यम्-ज्ञान को-learning, wisdom, knowledge; इन्द्रियनिग्रहस्य-इन्द्रियों के संयम का-restraint over senses.

अनुवाद :
याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थीं। कात्यायनी और मैत्रैयी। कात्यायनी घर के कार्यों में कुशल थी तथा आश्रम की व्यवस्था देखती थी। मैत्रेयी आध्यात्मिक रूचि से सम्पन्न वेदाध्ययन और शास्त्रचर्चा करती थी। महाराज जनक ने उनके ज्ञान को तथा अध्यापन कौशल को जानकर उन्हें सीता को पढ़ाने के लिए नियुक्त किया। मैत्रेयी ने सीता को वेदों का, संस्कारों का और इन्द्रियों को संयम में रखने का ज्ञान दिया। ऐसे अध्यापन तथा दृढ़ संस्कारों से ही सीता अपने जीवन में सङ्कट के समय में भी विचलित नहीं हुई।

English :
Maitreyi was Yagyavalkayas’s wife she had spiritual tastes-she read vedas and discussed scriptures-king Janak engaged her to teach vedas, sacraments and sense restraint to Sita.

  1. एकदा याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं कात्यायनी च आहूतवान् तथा उक्तवान्-“अद्य अहं गृहस्थाश्रमं त्यक्त्वा संन्यासाश्रम स्वीकारोमि। मम गमनादनन्तरं युवयोर्मध्ये कलहः मा भवतु। अतः सम्पत्तिविभाजनं कृत्वा एवं गच्छामि” इति। पत्युः निर्णयं श्रुत्वा मैत्रेयी चिन्तामग्ना अभवत्। यदि मम सर्वाधारः पतिः संन्यासं स्वीकरोति तर्हि एतेन नश्वरेण धनेन किम्? इति विचिन्त्य सा उक्तवती-“भगवन् अनेन ऐश्वर्येण युक्तं पृथिवीं प्राप्य अहम् अमृता भविष्यामि वा?” नहि।” “धनेन धनिकः मनुष्यः यथा जीवनं सुखेनैव यापयति तथैव भवत्याः अपि जीवन सुखमयं भवेत्। परम् एतेन धनेन अमृतत्वं न प्राप्यते” इति याज्ञवल्क्यः उक्तवान्।

तत् श्रुत्वा मैत्रेयी अवदत्-“यदि वित्तेन नाहम् अमृता भविष्यामि तर्हि धनं स्वीकृत्य किं करोमि? यत् अमृतत्वस्य साधनम् अस्ति तद् वदतु भवान्।”

शब्दार्थाः :
आहूतवान्-बुलाया-called; गमनादनन्तरम्-जाने के बाद-after departure; युवयोर्मध्ये–तुम दोनों के बीच में-between you both; सर्वाधारः-सम्पूर्ण आधार-basis.

अनुवाद :
एक बार याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी और कात्यायनी को बुलाया और कहा-“आज मैं गृहस्थाश्रम छोड़कर संन्यासाश्रम स्वीकार कर रहा हूँ। मेरे जाने के बाद तुम दोनों के बीच क्लेश न हो। इसलिए सम्पति का विभाजन करके ही जाऊँगा।” पति का निर्णय सुनकर मैत्रेयी चिन्तित हो गई। यदि मेरा सम्पूर्ण आधार पति संन्यास ले रहे हैं तो इस नश्वर धन से क्या? यह सोचकर उसने कहा-“भगवन्! इस ऐश्वर्य से युक्त पृथ्वी को प्राप्त कर मैं अमर हो जाऊँगी क्या?” नहीं। “धन से धनवान् मनुष्य जैसे जीवन सुख से ही बिताता है वैसे ही तुम्हारा जीवन भी सुखमय हो। पर इस धन से अमरत्व नहीं मिलेगा” ऐसा याज्ञवल्क्य ने कहा। यह सुनकर मैत्रेयी ने कहा- “यदि धन से मैं अमर नहीं होऊँगी तो धन लेकर क्या करूँगी? जो अमरत्व का साधन है, आप वह कहिए।”

English :
Yagyavalkya desired to make division of property between his wife Katyayani and Maitrayi. Maitrayi called the worldly possessions useless-They could not make her immortal-rejected the acceptance (offer) of division.

  1. स्वपल्याः ब्रह्मजिज्ञासां ज्ञात्वा याज्ञवल्क्यः आत्मनिरूपणम् आरब्धवान्-“मैत्रेयि! पत्न्याः कृते पतिः प्रियः भवति, पुत्रः प्रियः भवति। परं सः पुत्रस्य कृते पत्युः कृते वा प्रियः न भवति, अपितु आत्मनः कृते प्रियः भवति। तथैव धनं प्रियं भवति, देवाः प्रियाः भवन्ति। परं सर्वम् आत्मनः कृते एव। यस्मिन् आत्मनि वयं स्निह्यामः सः एकः एव। अयं ब्राह्मणः, अयं क्षत्रियः इति एतेषां शरीराणि भिन्नानि परन्तु तेषु शरीरेषु सर्वेषु आत्मा एक एव। यः सर्वाणि भूतानि आत्मनः भिन्नानि पश्यति सः मुक्तिं प्राप्तुं न शक्नोति। सर्वेषु शरीरेषु एकः एव आत्मा इति यः जानाति सः मुक्तिं प्राप्नोति। अयम् आत्मा एव अखिलस्य विश्वस्य आधारः इति। ‘कथम्’ इति तं मैत्रेयी अपृच्छत्।

शब्दार्थाः :
आरब्धवान्-शुरू किया-began; आत्मनः-स्वयं का-of self;स्निह्यापः-स्नेह करते हैं-love, attachment.

अनुवाद :
अपनी पत्नी की ब्रह्म जिज्ञासा को जानकर याज्ञवल्क्य ने आत्मा का निरूपण शुरू किया-“मैत्रेयी! पत्नी के लिए पति प्रिय होता है, पुत्र प्रिय होता है। परन्तु वह पुत्र के लिए और पति के लिए प्रिय नहीं होता, बल्कि अपने लिए प्रिय होता है। वैसे ही धन प्रिय होता है, देव प्रिय होते हैं। पर सब अपने ही लिए। जिस आत्मा में हम स्नेह रखते हैं वह एक ही है। यह ब्राह्मण है, यह क्षत्रिय है, इस प्रकार शरीर भिन्न हैं पर उन सब शरीरों में आत्मा एक ही है। जो सब प्राणियों की आत्मा को भिन्न देखता है, वह मुक्ति नहीं पा सकता। सब शरीरों में एक ही आत्मा है जो यह जानता है वह मुक्ति प्राप्त करता है । यह आत्मा ही पूरे विश्व का आधार है। ‘कैसे’ मैत्रेयी ने उससे पूछा।

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English :
Yagyavalkaya started describing the soul one loves every being or object for one’s own sake. There is a single soul in all bodies of all castes-one who knows this seeks salvation and vice versa.

  1. याज्ञवल्क्यः उदाहरणेन स्पष्टं कृतवान्-“यथा सर्वस्य जलस्य समुद्रः एव आधारः। समुद्रात् निर्मितं जलं पुनः समुद्रे एव विलीनं भवति। तथैव ब्रह्मतत्वात् निर्मितं विश्वं तत्रैव विलीनं भवति। इदं ब्रह्मतत्वं सम्पूर्णविश्व व्याप्तम् अस्ति। यथा शर्करा जले सर्वत्र समानरूपेण व्याप्ता भवति तथैव आत्मा अपि अन्तर्बाह्यव्याप्तः। अयमात्मा सर्वेषां देहे तिष्ठति। देहः नश्वरः। यदा सः देहे तिष्ठति तदा तस्य भिन्नानिनामानि सन्ति। देहनाशादनन्तरम् आत्मा देहात बहिः निर्गच्छति, तदा तस्य कापि संज्ञा नास्ति। सः न नश्यति। तत्र विकाराः अपि न भवन्ति। एकमेव अद्वितीयं परब्रह्म। यदा तस्य ज्ञानं भवति तदा सर्वं विदितं भवति। अमृतत्वं च प्राप्यते।

अस्य अमृतत्वस्य साधनं किम्? इति मैत्रेयी अपृच्छत्। तदा याज्ञवल्क्यः उक्तवान्-आत्मसाक्षात्कारः एव अमृतत्वस्य साधनम्। इति ब्रह्मनिरूपणं कृत्वा याज्ञवल्क्यः संन्यासं स्वीकृतवान्। एवं ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी याज्ञवल्क्यात् ब्रह्मज्ञानं प्राप्तवती।

नास्ति कुत्रचित् एतादृशी ब्रह्मवादिनी स्त्रीः या धनं विहाय ब्रह्मज्ञानम् इच्छति। अतः मैत्रेयी भारतीयसंस्कृती आदर्शभूता।

शब्दार्थाः :
अन्तर्बाह्यव्याप्तः-अन्दर और बाहर (शरीर व संसार में) व्याप्त-pervading bothinsideand outside the body; विकाराः-दोष-deformation; विदितम्-ज्ञात-is known; आत्मसाक्षात्कार-स्वयं को जानना-knowing of self; ब्रह्मनिरूपणम्-ब्रह्म का निरूपण-description of brahman.

अनुवाद :
याज्ञवल्क्य ने उदाहरण से स्पष्ट किया-“जैसे सारे जल का आधार समुद्र ही है। समुद्र से बन कर जल फिर समुद्र में ही विलीन होता है। वैसे ही ब्रह्मतत्व से बना विश्व उसी में लीन होता है। यह ब्रह्मतत्व पूरे विश्व में व्याप्त है। जैसे शक्कर पूरे जल में समान रूप से व्याप्त होती है, वैसे ही आत्मा भी अन्दर और बाहर (शरीर और संसार में) व्याप्त होती है, यह आत्मा सबके शरीर में रहती है। शरीर नश्वर है। जब वह शरीर में होती है, तब उसके अलग-अलग नाम होते हैं। शरीर के नष्ट होने के बाद आत्मा शरीर से बाहर निकल जाती है, तब उसका कोई नाम नहीं होता। वह नष्ट नहीं होती। उसमें कोई विकार नाम नहीं होता। एक ही अद्वितीय परब्रह्म है। जब उसका ज्ञान होता है तब सबका ज्ञान होता है। और अमृतत्व की प्राप्ति होती है।

इस अमृतत्व का साधन क्या है? ‘मैत्रेयी ने पूछा। तब याज्ञवल्क्य ने कहा- “स्वयं को जानना ही अमृतत्व का साधन है। इस प्रकार ब्रह्मनिरुपण करके याज्ञवल्क्य ने संन्यास स्वीकार किया। इस तरह ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी ने याज्ञवल्क्य से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया।

ऐसी ब्रह्मवादिनी स्त्री कहीं नहीं है, जो धन को छोड़कर ब्रह्मज्ञान चाहती है। अतः मैत्रेयी भारतीय संस्कृति में आदर्श है।


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