MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 7 विश्वभारतीयम्

MP Board Class 10th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दुर्वा Chapter 7 विश्वभारतीयम्
– NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 7 विश्वभारतीयम्


प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए-)।
(क) ‘संस्कृतभाषा भारतीयभाषाभ्यः गङ्गानदी अस्ति’ इति कः उक्तवान्?’ (संस्कृतभाषा भारतीय भाषाओं के लिए गंगा नदी है।’ यह किसने कहा?)

उत्तर:
महात्मागान्धिः (महात्मा गांधी ने)

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(ख) भारतस्य प्रथमप्रधानमन्त्री कः आसीत्? (भारत का पहला प्रधानमन्त्री कौन था?)
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरूः (पं. जवाहरलाल नेहरू)

(ग) वैयाकरणेषु पूर्णः सर्वमान्यश्च कः? (वैयाकरणों में पूर्ण व सर्वमान्य कौन है?)
उत्तर:
पाणिनिः (पाणिनि)

(घ) भारतीयैकता साधकं किम्? (भारतीय एकता का साधक कौन है?)
उत्तर:
संस्कृतम् (संस्कृत)

(ङ) संस्कृतं कस्याः भाषायाः अपेक्षया अधिक समृद्धम्? (संस्कृत किस भाषा की अपेक्षा अधिक समृद्ध है?)
उत्तर:
लैटिन भाषायाः (लैटिन भाषा की)

प्रश्न 2.
कवाक्येन उत्तरं लिखत- (एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) संस्कृतभाषा कस्य पोषणं करोति? (संस्कृत भाषा किसका पोषण करती है?)

उत्तर:
संस्कृतभाषा विश्वबन्धुत्वस्व पोषणं करोति। (संस्कृत भाषा विश्वबन्धुत्व का पोषण करती है।)

(ख) सर्वप्राचीना भाषा का अस्ति? (सबसे पुरानी भाषा कौन-सी है?)
उत्तर:
सर्वप्राचीना भाषा संस्कृतभाषा अस्ति। (सबसे पुरानी भाषा संस्कृत है।)

(ग) श्रीमाता संस्कृतविषये किं कथयति? (श्रीमाता संस्कृत के विषय में क्या कहती हैं?)
उत्तर:
श्रीमाता संस्कृतविषये कथयति यत्-“संस्कृतमेवराष्ट्रभाषा भवितुम् अर्हति इति।”

(श्रीमाता ने संस्कृत के विषय पर कहा कि, “संस्कृत ही राष्ट्रभाषा बनने योग्य है।)

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(घ) मैक्समूलरः संस्कतविषये किमुक्तवान्? (मैक्समूलर ने संस्कृत के विषय में क्या कहा?)
उत्तर:
मैक्समूलरः संस्कृतविषये उक्तवान् यत्-“संस्कृतं विश्वस्य महत्तमा भाषा अस्ति।” इति। (मैक्समूलर ने संस्कृत के विषय पर कहा कि, ‘संस्कृत विश्व की सबसे महत्वपूर्ण भाषा है।)

(ङ) अस्माकं सर्वेषां जननी का? (हम सब की जननी कौन है?)
उत्तर:
अस्माकं सर्वेषां जननी भारतमाता अस्ति। (हम सबकी जननी भारतमाता है।)

प्रश्न 3.
धोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए)
(क) संस्कृतविषये विवेकानन्देन किं कथितम्? (संस्कृत विषय पर विवेकानन्द ने क्या कहा?)

उत्तर:
संस्कृतविषये विवेकानन्देन कथितम्- “संस्कृतम् अनिवार्यतया शिक्षणीयम्, तोहि तस्योच्चारणध्वनिरेव राष्ट्रियभावम् आत्मगौरवम् उदात्तभावञ्च जनयति। किन्तु अस्माभिः सर्वैरपि भारतीयैः संस्कृतस्य प्रसारे प्रचारे च प्रयत्नः न क्रियते इति खेदस्य विषयः।’

(संस्कृत के विषय पर विवेकानन्द ने कहा, “संस्कृत अनिवार्य रूप से पढ़नी चाहिए, क्योंकि उसकी उच्चारण ध्वनि से ही राष्ट्रीय भाव, आत्मगौरव और उदात्तभाव उत्पन्न होता है। किन्तु हम सभी भारतीयों के द्वारा संस्कृत के प्रसार और प्रचार में प्रयत्न नहीं किया जाता, यह दुख का विषय है।”)

(ख) वेबरमहोदयेन संस्कृतविषये किमुक्तम्? लिखत। (वेबर महोदय ने संस्कृत के विषय पर क्या कहा? लिखो।)
उत्तर:
वेबरमहोदयेन संस्कृतविषये उक्तम्- “सम्प्रति सम्पूर्ण विश्वे पाणिनिरेव वैयाकरणेषु पूर्णः सर्वमान्यश्चास्ति। दर्शने व्याकरणे च प्रामाणिकतायाम् उर्वरतायाञ्च भारतीयाः उच्चतमस्थले प्रतिष्ठिताः।

(वेबर महोदय ने संस्कृत के विषय में कहा, “अब पूरे विश्व में पाणिनी ही वैयाकरणों में पूर्ण व सर्वमान्य है। दर्शन में और व्याकरण में प्रामाणिकता और उर्वरता में भारतीयों का सबसे ऊँचा स्थान है।”)

(ग) एच.एच. विल्सनमहोदयः संस्कृतविषये किम् उक्तवान्?
(एच.एच. विल्सनमहोदय ने संस्कृत के विषय पर क्या कहा?
)
उत्तर:
च.एच. विल्सन महोदयः संस्कृतविषये उक्तवान्-“न जाने अत्र संस्कृते किं तन्माधुर्यं विद्यते, येन वयम् वैदेशिकाः सर्वदैव समुन्मत्ता।”

(एच.एच. विल्सन महोदय ने संस्कृत के विषय पर कहा, “नहीं जानता कि इस संस्कृत में कौन-सा माधुर्य है, जिससे हम विदेशी हमेशा ही उन्मत्त होते हैं।”)

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प्रश्न 4.
उचितशब्देन रिक्तस्थानापूर्तिं कुरुत (दिए गए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(क) भारतीयैकता………….संस्कृतम। (बाधक/साधक)
(ख) ………….वैदेशिकः विद्वान् अस्ति। (मैक्समूलरः/अरविन्दः)
(ग) ………….सम्पोषकं संस्कृतम्। (देशत्व/विश्वबन्धुत्व)
(घ) संस्कृतभाषा प्राचीनर्वाचीनयोर्मध्ये………….अस्ति। (सेतुः/केतुः)
(ङ) संस्कृतराहित्यं मानवजातेः कृते………….अस्ति। (अमूल्यधनम्/मूल्यधनम्)
उत्तर:
(क) साधकं
(ख) मैक्समूलरः
(ग) विश्वबन्धुत्व
(घ) सेतुः
(ङ) अमूल्यधनम्

प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत-(कस्य कः कथनांशः अस्ति) (उचित क्रम से जोडिए-) (कौन-सा कथन किसका है?)
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उत्तर:
(क) 5
(ख) 3
(ग) 4
(घ) 2
(ङ) 1

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत (शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)
(क) संस्कृतं विश्वस्य महत्तमा भाषा अस्ति।
(ख) संस्कृतस्य व्याकरणं सर्वमान्यं न अस्ति।
(ग) संस्कृतभाषायाः अपेक्षा ग्रीकभाषा अधिकपूर्णा वर्तते।
(घ) संस्कृतमाधुर्यं वैदेशिकैः अपि अनुभूतम्।
(ङ) भारतीयैकतार्थं संस्कृतम् आवश्यकम् अस्ति।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) आम्

प्रश्न 7.
निम्नलिखितशब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत (नीचे लिखे शब्दों के मूलशब्द, विभक्ति व वचन लिखिए-)
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उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 7 विश्वभारतीयम् img 3

प्रश्न 8.
क्रियापदानां धातुं, लकारं, पुरुषं, वचनं च लिखत (क्रियापदों के धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 7 विश्वभारतीयम् img 6
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 7 विश्वभारतीयम् img 4

प्रश्न 9.
अधोलिखितपदानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम लिखत। (नीचे लिखे पदों के सन्धि विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिए।)
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उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 7 विश्वभारतीयम् img 5

प्रश्न 10.
व्ययैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
(अव्ययों से वाक्य बनाइए।)
यथा- एव संस्कृतभाषा एवं देववाणी अस्ति

उत्तर:
शब्द – वाक्य
(क) यदि-यदि सः न आगमिष्यति तर्हि किं?
(यदि वह न आया तो क्या होगा?

(ख) विना-अहं त्वाम् विना न गमिष्यामि।
(मैं तुम्हारे बिना नहीं जाऊँगी।)

(ग) यत्-सः कथयति यत्- ‘अहं कार्यं न करोमि।’
(वह कहता है कि-“मैं काम नहीं करता हूँ।”)

(घ) च-रामः श्यामः च आपणं गच्छतः।
(राम और श्याम बाजार जाते हैं)

(ङ) कृते-अहं तव कृते कार्यं करोमि।
(मैं तुम्हारे लिए काम कर रहा हूँ।)

योग्यताविस्तार –

संस्कृतभाषाविषये अन्ये के के विद्वांसः किं किमुक्तवन्तः अन्विष्य लिखत।
संस्कृतभाषा के विषय पर अन्य कौन-से विद्वान क्या कहते हैं, ढूँढ़ कर लिखो।

‘संस्कृतभाषा’ इति विषयमगधृत्य निबन्धं लिखत।
‘संस्कृत भाषा’ इस विषय के आधार पर निबन्ध लिखो।

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विश्वभारतीयम् पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में सरकत भाषा की महत्ता बताते हुए अनेक राजनेताओं, देशी व विदेशी साहित्यकारों के संस्कत के विषय में मतों का वर्णन किया गया है। सभी ने संस्कृत भाषा का स्थान सव भाषाओं में सर्वोच्च बताते हुए उसे सम्मानीय भाषा कहा है तथा संस्कृत भाषा को सब भाषाओं की जननी स्वीकार किया है।

विश्वभारतीयम् पाठ का अनुवाद

  1. आचार्यः-भोः छात्राः! ध्यानेन श्रृण्वन्तु। वयं संस्कृतं पठामः, लिखामः, वदामः, किञ्चिन्महत्त्वमपि जानीमः। किन्तु संस्कृतस्य विषये भारतीयाः वैदेशिकाः विद्वान्सः किं कथयन्ति भवन्तः जानन्ति वा?
    सर्वे छात्राः-आचार्य! न जानीमः।

आचार्य :
तर्हि अद्य संस्कृतविषये मूर्धन्यविदुषां प्रसिद्धराजनेतृणां वैदेशिकानां विचाराणां। चर्चा कुर्मः।

दिशा :
आचार्य! के के भारतीयाः विद्वान्सः संस्कृतविषये उक्तवन्तः?

आचार्य :
नैके विद्वान्सः, राजनेतारः, साहित्यकारश्च संस्कृतस्य महत्त्वं प्रतिपादितवन्तः। भारतीयेषु महात्मागान्धि, पं जवाहरलालनेहरू- महर्षिअरविन्दस्वामिविवेकानन्दप्रभृतयः, तथा च वैदेशिकेषु मैक्समूलर- मैक्डानल-वेबर, विलियम-बॉप-हीरेन प्रभृतयः उल्लेखनीयाः।

शब्दार्थ :
शृण्वन्तु-सुनो-listen; मूर्धन्य-महान-top ranking, विदुषाम्-विद्वानों के-learned people, नैके-अनेक-many, प्रभृतपः-इत्यादि-etcetera.

अनुवाद :
आचार्य-छात्रो! ध्यान से सुनो। हम संस्कृत पढ़ते हैं, लिखते हैं, बोलते हैं, थोड़ा महत्व भी जानते हैं। किन्तु संस्कृत के विषय पर भारतीय व विदेशी विद्वान, क्या कहते हैं, जानते हो या नहीं?

सभी छात्र-आचार्य! नहीं जानते।

आचार्य :
तो आज संस्कृत विषय पर महान विद्वानों के प्रसिद्ध राजनेताओं के और विदेशियों के विचारों की चर्चा करते हैं।

दिशा :
आचार्य! कौन-से भारतीय विद्वानों ने संस्कृत के विषय पर कहा है?

आचार्य :
अनेक विद्वान्, राजनेता और साहित्यकारों ने संस्कृत के महत्व को बताया है। भारतीयों में महात्मा गांधी, पं. जवाहरलात नेहरू, महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानन्द इत्यादि और वैसे ही विदेशियों में मैक्समूलर, मैक्डानल, वेबर, विलियम, बॉप, हीरेन इत्यादि प्रमुख हैं।

English :
The teacher refers to top ranking scholars and lovers of Sanskrit.

Many Indian scholars, political leaders and literary persons loved Sanskrit. Many foreign scholars are also noteworthy.

  1. मृदुलः-आचार्य! महात्मागांधिः संस्कृतविषये किमुक्तवान्?
    आचार्य :
    महात्मागान्धिः अवदत्-“यत् संस्कृतम् अस्माकं भारतीयभाषाभ्यः गङ्गा : नदी अस्ति। अहं चिन्तयामि यदि संस्कृतगङ्गा शुष्का भवेत् तर्हि सर्वाः अपि भाषाः सारहीनाः स्युः।”

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प्रत्युष :
स्वामिविवेकानन्दः किमुक्तवान्?

आचार्य :
विवेकानन्दः उक्तवान् यत् “संस्कृतम् अनिवार्यतया शिक्षणीयम्, यतोहि तस्योच्चारणध्वनिरेव राष्ट्रियभावम् आत्मगौरवम् उदात्तभावञ्च जनयति। किन्तु अस्माभिः सर्वैरपि भारतीयैः संस्कृतस्य प्रसारे प्रचारे च प्रयत्नः न क्रियते इति खेदस्य विषयः।”

अनिकेत :
भारतस्य प्रथमप्रधानमन्त्री पं. जवाहरलालनेहरूः अपि संस्कृतभक्तः इति श्रूयते। असौ संस्कृतभाषाविषये किं चिन्तयति?

शब्दार्थाः :
शुष्का-सूखी-dry, सारहीनाः-साररहित- meaningless.

अनुवाद :
मृदुल-आचार्य! महात्मा गान्धी ने संस्कृत के विषय में क्या कहा?

आचार्य :
महात्मा गान्धी ने कहा- ‘संस्कृत हमारी भारतीय भाषाओं के लिए गङ्गा नदी है। मैं सोचता हूँ कि यदि संस्कृत रूपी गङ्गा सूख जाए तो सारी भाषाएँ भी ‘सारहीन हो जाएंगी।
प्रत्यूष-स्वामी विवेकानन्द ने क्या कहा?

आचार्य :
विवेकानन्द ने कहा कि-“संस्कृत अनिवार्य रूप से सीखनी चाहिए, क्योंकि उसकी उच्चारण ध्वनि से ही राष्ट्रीय भाव, आत्मगौरव और उदात्त (ऊँचा) भाव उत्पन्न होता है। किन्तु हम सब भारतीयों के द्वारा संस्कृत का प्रसार और प्रचार का प्रयत्न नहीं किया जा रहा, यह दुख का विषय है।

अनिकेत :
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी संस्कृत के भक्त थे, ऐसा सुना है। वे संस्कृत भाषा के विषय पर क्या सोचते हैं?

English :
Gandhi calied Sanskrit as Ganga or the source of all the Indian languages. Swami Vivekananda pitied that Sanskrit is neglected which arouses national sentiments.

Pt. Nehru’s views about Sanskrit.

  1. आचार्यः :
    संस्कृतसन्दर्भे एकदा पं. नेहरूः उक्तवान् यत्-“यदि कश्चित् मां पृच्छेत् यत् भारतस्य उदात्ततमकोषः कः? अथवा भारतस्य सर्वश्रेष्ठा सम्पत्तिः का? तर्हि अहं तु कथयिष्यागि संस्कृतभाषा अथवा संस्कृतवाङमयम् एव। अहं विश्वसिमि यावत् संस्कृतभाषा जीवति, जीवने प्रभवति तावत भारतराष्ट्रस्य मूलभूता एकता स्थास्यत्येव।”

रजतः :
अन्येषां साहित्यकाराणां विषयेऽपि ज्ञातुम् इच्छामि।

आचार्यः :
आम्! अहं संक्षेपेण वदामि-साहित्यकारः राजनेता डॉ. सम्पूर्णानन्दः अवोचत् यत्-‘संस्कृतमेव अस्य देशस्य राष्ट्रभाषा भवितव्या ।संस्कृते अमूल्यरत्नानि सन्ति। संस्कृतं न केवलं जीवितानाम् अपितु दिवङ्गतानां कृतेऽपि सञ्जीवनी अस्ति।’ इति।

अपि च साहित्ये घुमक्कड़धर्मस्य प्रस्तावकः साहित्यकारः राहुलसांस्कृत्यायनोऽपि उक्तवान् यत्-“अस्मत्प्राचीनतमा वाणी संस्कृतरूपेण अधुनाऽपि विद्यमाना। तत्त्वतः यथा हिन्दीकथासाहित्यादिनाम् अध्ययनं भवति तथा संस्कृतग्रन्थानाम् अपि अध्ययनमध्यापनञ्च सर्वत्र भवेत्।”

शब्दार्थाः :
वाङमयम-वाणी, भाषा-language;विश्वसिमि-विश्वास करता हूँ-believe, दिवङ्गतानाम्-मरे हुए लोगों का-of the dead.

अनुवाद :
आचार्य-संस्कृत के सन्दर्भ में एक बार पं. नेहरू ने कहा कि, “यदि कोई मुझे पूछे कि भारत का सबसे ऊँचा/बड़ा खजाना क्या है? या भारत की सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति क्या है? तो मैं कहूँगा संस्कृत भाषा या संस्कृत वाणी। मैं विश्वास करता हूँ कि जब तक संस्कृत भाषा जीवित है, जीवन चल रहा है, तब तक भारत राष्ट्र की मूलभूत एकता स्थित है।

रजत :
अन्य साहित्यकारों के विषय में भी जानना चाहता हूँ।

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आचार्य :
हाँ! मैं संक्षेप में बताता हूँ-साहित्यकार राजनेता डॉ. संपूर्णानन्द ने कहा कि, “संस्कृत ही इस देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। संस्कृत में बहुमूल्य रत्न हैं। संस्कृत न केवल जीवित लोगों को अपितु मरे हुए लोगों के लिए भी संजीवनी है।।

और साहित्य में घुमक्कड़ धर्म के प्रवर्तक साहित्यकार राहुल सांस्कृत्यायन ने भी कहा-“यह सबसे पुरानी भाषा। वाणी संस्कृत रूप में अब भी विद्यमान है। तत्व के जैसे हिन्दी कथा साहित्यादि का अध्ययन होता है वैसे ही संस्कृत ग्रन्थों का भी अध्ययन और अध्यापन सब जगह होना चाहिए।”

English :
Nehru-Sanskrit is the noblest treasure of India-It is the basis of national integrity. Dr. Sampooranananda-Sanskrit enshrines precious jewels-It gives life to all. Rahul SanskrityayanaSanskrit should be invariably taught everywhere like Hindi as it is our oldest language.

  1. गिरिराजः :
    महर्षेः अरविन्दस्य संस्कृतविषये कोऽभिप्रायः?
    आचार्यः :
    महर्षिः प्राह “सरलसंस्कृतमेव भारतराष्ट्रस्य राष्ट्रभाषा भवेत्।” अयमेव भावः श्रीमातु कथनेऽपि दृश्यते सा “संस्कृतमेवराष्ट्रभाषाभवितुम् अर्हति।” इत्युक्तवती। अन्येऽपि प्रसिद्धाः नायकाः संस्कृतस्य प्रशसां कृतवन्तः महनीयतां च स्वीकृतवन्तः। यथा-प्रथमः राष्ट्रपतिः डॉ. राजेन्द्रप्रसादः कथितवान् यत् ‘संस्कृतसाहित्यं न केवलं भारतस्य कृते अपितु मानवजातेः कृते अमूल्यधनम् अस्ति।’

पङ्कजः :
आचार्य! अन्यधर्मावलम्बिनः अपि संस्कृतस्य प्रशंसकाः खलु?

आचार्यः :
आम्! प्रसिद्धः मुस्लिमविचारकः बदरुद्दीनतय्यबमहोदयः उक्तवान् यत् ‘मम मते प्रत्येकम् अपि हिन्दुः, मुस्लिमः भारतीयो वा संस्कृतज्ञो भवेदिति।’

अन्यच्च प्रसिद्धः न्यायवेत्तां मु अली छागला उक्तवान् यत्” ममेच्छा यत् मातृभाषया सह संस्कृतशिक्षा अनिवार्या भवेत्।’ संस्कृतभाषा प्राचीनार्वाचीनयोर्मध्ये सेतुरस्तीति।

शब्दार्थाः :
महनीयताम्-महानता को-greatness, ममेच्छा-मेरी इच्छा-my wish, प्राचीनार्वाचीनयोर्मध्ये-पुराने और नए के बीच-between old and new, सेतुरस्ति-पुल हैं-bridge, धर्मावलम्बितः-धर्म को मानने वाले-religious persons.

अनुवाद :
गिरिराज-महर्षि अरविन्द का संस्कृत विषय पर क्या अभिप्राय है?

आचार्य :
महर्षि ने कहा-“सरल संस्कृत ही भारतराष्ट्र की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए।” यही भाव श्री माता के कथन में भी दिखाई देता है, वह ‘संस्कृत ही राष्ट्रभाषा होने योग्य है” कहती थी। अन्य प्रसिद्ध नायक भी संस्कृत की प्रशंसा करते हुए उसकी महानता को मानते हैं। जैसे-प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा, “संस्कृत साहित्य न केवल भारत के लिए बल्कि मानव जाति के लिए अमूल्य धन है।”

पङ्कज :
आचार्य! अन्य धर्मानुयायी भी संस्कृत के प्रशंसक होंगे?

आचार्य :
हाँ! प्रसिद्ध भुस्लिम विचारक बदरुद्दीनतय्यबमहोदय ने कहा- “मेरे विचार में प्रत्येक हिन्दू व मुस्लिग जो भारतीय हो संस्कृत को जानने वाला हो।”

और अन्य प्रसिद्ध न्यायमूर्ति मु. अली छागला ने कहा-“मेरी इच्छा है कि मातृभाषा के साथ संस्कृतशिक्षा अनिवार्य हो।” संस्कृत भाषा प्राचीन और नवीन के बीच पुल है।

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English :
Maharishi Aurovindo and Shri Mata-Sanskrit should be the national language of India.

Dr. Rajendra Prasad-Sanskrit literature is a precious treasure not only for India but for the entire humanity.

Badruddin Tayyabji-Every Indian should learn Sanskrit. Mohd Ali Chhagla-Sanskrit is bridge between the old and the new.

  1. सलीमः-आचार्य! संस्कृतविषये भारतीयानां मन्तव्यम् अवगतम्। अधुना वैदेशिकानां विषयेऽपि ज्ञातुम् इच्छामि।

आचार्यः :
साधूक्तं त्वया। इदानीमहं वैदेशिकविदुषां संस्कृतविषयकं मन्तव्यं बोधयामि। ‘विलड्यूरन्ट’ विख्यातः पाश्चात्यसमीक्षकः सः उक्तवान् यत् भारतम् अस्माकं जातेः जन्मभूमिः, तथा संस्कृतं यूरोपीयभाषाणां जननी अस्ति। संस्कृतमेव अस्माकं दर्शनस्य जननी, अरबदेशात् प्राप्तस्य गणितस्य जननी, ईसाईधर्मे समाहितानां बौद्धादर्शानां जननी, ग्रामीणसभुदायेन स्वायत्तशासनस्य तथा गणतन्त्रस्य जननी एवं प्रकारेण भारतमाता नानाविधरूपेषु अस्माकं सर्वेषां जननी अस्ति। जॉनः–वैदेशिकेषु मैक्समूलरमहोदयः विख्यातः। तेन किमुक्तम?

शब्दार्थाः :
मन्तव्यम्-विचार-view, अवगतम्-जान लिए-known, साधूक्तम्ठीक/बहुत अच्छा कहा-well spoken, पाश्चात्यसमीक्षकः-पश्चिमी देश के समीक्षकreviewers of western countries, विख्यातः-प्रसिद्ध-famous.

अनुवाद :
सलीम-आचार्य! संस्कृत विषय पर भारतीयों के विचार जान लिए। अब विदेशियों के विषय में भी जानना चाहता हूँ।

आचार्य :
तुम्हारे द्वारा सही कहा गया है। अब मैं विदेशी विद्वानों के संस्कृत विषयक विचारों को बताता हूँ। ‘विलड्यूरन्ट’ प्रसिद्ध पाश्चात्य समीक्षक, उसने कहा कि भारत हमारी जाति की जन्मभूमि है तथा संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी है। संस्कृत ही हमारे दर्शन की जननी है, अरब देश से प्राप्त गणित की जननी है। ईसाई धर्म में समाहित बौद्ध दर्शनों की जननी है, ग्रामीण समुदाय द्वारा स्वायत्तशासन की व गणतन्त्र की जननी है। इस प्रकार से भारतमाता अनेक प्रकार के रूपों में हम सबकी जननी है।

जॉन-विदेशियों में मैक्समूलर महोदय प्रसिद्ध हैं। उन्होंने क्या कहा?

English :
Wildurant-India is the birth place of our race and Sanskrit is the mother of all European languages and our philosophy. It is the mother of Arabic Mathematics–Mother of Buddhistic, philosophy-mother of autonomous and republic rule-Hence Mother India is ‘Mother of all’ in one way or the other.

  1. आचार्यः-मैक्समूलरः उक्तवान् यत्-“संस्कृतं विश्वस्य महत्तमा भाषा अस्ति।” एवमपि प्राध्यापकः बॉप उक्तवान् यत्-‘संस्कृतमेव सम्पूर्णविश्वस्य एका भाषा आसीत् कदाचित् इति।” करतारसिंह-इतरेषामपि वैदेशिकविचारकाणाम् अभिप्रायः अपि ज्ञातव्यः खलु?

आचार्यः :
सत्यमेव! जानन्तु। विद्वान मैक्डानल उक्तवान् यत्-“वयं योरोपीयाः अद्यावधि स्ववर्णमालाम् अपि पूर्णीकर्तुं न समर्थाः परं भारतीयानां भाषा तथा भाषाविज्ञानं न केवल पूर्णम् अपितु वैज्ञानिकम् अस्ति।’ अन्यच्च विलियमजोन्समहोदयः उक्तवान् यत्-“संस्कृतस्य रचना आश्चर्यकारिणी अस्ति। इयं ग्रीकभाषायाः अपेक्षया अधिकपूर्णा, लैटिनभाषायाः अपेक्षया अधिका समृद्धा तथा च उभयोः तुलनायाम् अति परिष्कृता वर्तते।” मनीषः-केनापि अन्येन पाश्चात्यविद्वषाम् अपि संस्कृतविषये किमपि उक्तम्?

शब्दार्थाः :
ज्ञातव्यः-जानना चाहिए-should be known, अद्यावधि-आज के समय तक-up till the modern age, इतरेषामपि-दूसरों का भी-of others also, स्ववर्णमालाम्-अपनी वर्णमाला को-Own Letters (alphabet), पूर्णीकर्तुम-पूरा करने के लिए-to complete.

अनुवाद :
आचार्य-मैक्समूलर ने कहा कि-संस्कृत विश्व की महत्वपूर्ण भाषा है। ऐसे ही प्राध्यापक बॉप ने कहा कि, “संस्कृत ही कभी पूरे विश्व की एकमात्र भाषा थी।”
करतारसिंह-दूसरे विदेशियों के विचारों का अभिप्रायः भी जानना चाहिए?

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आचार्य :
सत्य ही है। जानते हो। विद्वान् मैक्डानल ने कहा कि, “हम सब यूरोपीय आज तक अपनी वर्णमाला भी पूरा करने में समर्थ नहीं हो पाए, पर भारतीयों की भाषा तथा भाषाविज्ञान न केवल पूरा है, बल्कि वैज्ञानिक है।” और अन्य, विलियमजोन्स महोदय ने कहा कि, “संस्कृत की रचना आश्चर्यचकित करने वालो है। यह ग्रीकभाषा की अपेक्षा अधिक पूर्ण, लैटिन भाषा की अपेक्षा अधिक समृद्ध और दोनों की तुलना में अधिक परिष्कृत है।
मनीष-और किन पाश्चात्य विद्वानों ने भी संस्कृत के विषय पर कुछ कहा?

English :
Max Muller, “Sanskrit is important language of the world, Bopp, ‘Sanskrit was the only language of entire world sometimes.
Macdonell, Sanskrit and philology are both perfect and scientific.
William Jones-The structure of Sanskrit is wonder striking. It is perfect, prosperous and refined.

  1. आचार्यः-आम्! वेबर महोदयेन कथितं यत्-‘सम्प्रति सम्पूर्ण विश्वे पाणिनिरेव वैयाकरणेषु पूर्णः सर्वमान्यश्चास्ति। दर्शने व्याकरणे च प्रामाणिकतायाम् उर्वरतायाञ्च भारतीयाः उच्चतमस्थले प्रतिष्ठिताः।’ तथा च एच.एच. विल्सन् महोदयेन कथितम् यत् –
    न जाने विद्यते कं तन्माधुर्यमत्र संस्कृते।
    सर्वदैव समुन्मत्ता येन वैदेशिका वयम्॥

सर्वे छात्राः-आचार्य! वयम् आनन्दिताः, संस्कृतं प्रति विश्वप्रसिद्धानां विदुषाम् अभिमतं श्रुत्वा, संस्कृतस्य वैश्विक महत्त्वं च ज्ञात्वा। उच्यते हि
भारतीयैकता साधकं संस्कृतम्।
विश्वबन्धुत्वसम्पोषकं संस्कृतम्॥
(सर्वे मिलित्वा श्लोकस्य सस्वरगायनं कुर्वन्ति)

शब्दार्थाः :
सम्प्रति-अब-now, समुन्मत्ता-उन्मत्ता को-Craziness, infatuation.

अनुवाद :
आचार्य-हाँ! वेबर महोदय ने कहा कि-अब पूरे संसार में पाणिनि ही वैयाकरणों में पूर्ण और सर्वमान्य है। दर्शन में और व्याकरण में प्रामाणिकता और उर्वरता में भारतीयता सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित है। और एच.एच. विल्सन महोदय ने कहा कि –
नहीं जानते कि इस संस्कृत में कौन-सा माधुर्य है, जिससे हम विदेशी हमेशा ही उन्मत्त होते हैं।
सभी छात्र-आचार्य! हम सब प्रसन्न हुए, संस्कृत के प्रति विश्वप्रसिद्ध विद्वानों के विचार सुनकर और संस्कृत का वैश्विक महत्व जानकर।।

भारतीय एकता का साधक है संस्कृत।
विश्व बन्धुत्व की सम्पोषक है संस्कृत॥
(सब मिलकर श्लोक का ऊँचे स्वर में गायन करते हैं।)

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