MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम्

MP Board Class 10th Sanskrit Book Solutions संस्कृत दुर्वा Chapter – 8 सद्वृत्तम् NCERT पर आधारित Text Book Questions and Answers Notes, pdf, Summary, व्याख्या, वर्णन में बहुत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है.

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम्


प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) आत्महिताय किम् अनुष्ठेयम्? (अपने हित के लिए क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
सद्वृत्तम। (सज्जनों का आचरण)

(ख) किं न रोचयेत्? (किसमें रुचि नहीं होनी चाहिए?)
उत्तर:
वैरं। (वैरभाव)

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(ग) कुत्र न आरोहेत? (कहाँ नहीं चढ़ना चाहिए?)
उत्तर:
द्रुमम्। (पेड़ पर)

(घ) कान् न विघट्टयेत्? (किसको नहीं किटकिटाना चाहिए?)
उत्तर:
दन्तान्। (दाँतों को)

(ङ) कदा दधि न भुञ्जीत? (दही कब नहीं खानी चाहिए?)
उत्तर:
नक्तम्। (रात में)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) कान् न वादयेत्? (किसको नहीं बजाना चाहिए?
)
उत्तर:
नखान् न वादयेत्। (नाखून नहीं बजाने चाहिए।)

(ख) कैः न विरुध्येत्? (किसके द्वारा (साथ) विरोध नहीं होना चाहिए।)
उत्तर:
उत्तमैः न विरूध्येत्। (महापुरुषों द्वारा (के साथ) विरोध नहीं किया जाना चाहिए।)

(ग) कं न भिन्द्यात्? (किसे नहीं तोड़ना चाहिए?)
उत्तर:
नियमं न भिन्द्यात्। (नियम नहीं तोड़ना चाहिए।)

(घ) कं न अतिपातयेत्? (क्या व्यर्थ नहीं करना चाहिए?)
उत्तर:
कार्यकालं न अतिपातयेत्। (काम का समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।)

(ङ) के न अनुवसेत्? (किसको नहीं रहना चाहिए?)
उत्तर:
शोकं न अनुवसेत्। (शोक नहीं रहना चाहिए।)

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प्रश्न 3.
धोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए.-)
(क) सद्वृत्तेन मानवः किं सम्पादयति? (सवृति से मनुष्य क्या प्राप्त करता है?)

उत्तर:
सद्वृत्तेन मानवः आरोग्यम् इन्द्रियविजयं च संपादयति। (सद्वृत्ति से मनुष्य आरोग्य-लाभ और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है।)

(ख) कथं न अध्ययनम् अभ्यस्येत्? (अध्ययन कैसे नहीं करना चाहिए?)
उत्तर:
नातिमात्रं न तान्तं न विस्वरं नानवस्थितपदं नातिद्रुतं न विलन्बितं। नातिक्लीचं नात्युच्चैः नातिनीचैः स्वरैः अध्ययनमभ्यस्येत।

(न अधिक मात्रा से युक्त, न रुक्ष स्वर, न स्वर रहित, न पाठ का अनियमित पाठ, न ज्यादा तेज, न ज्यादा धीरे, न ज्यादा ऊँचा और न ज्यादा नीचे स्वर में अध्ययन करना चाहिए।)

(ग) अन्नं कथं न आददीत? (अन्न कैसे नहीं लेना खाना चाहिए?)
उत्तर:
न अस्नातः नोपहतवासा न अजपित्वा न आहुत्वा देवताभ्यः नाभिरूप्य पितृभ्यः नादत्वा गुरुभ्य: नातिथिभ्यः न उपाश्रितेभ्य न अप्रक्षालितपाणि पादवदनः नाशुद्धमुखः नोदङ्मुखः न विमना न पात्रीष्वमेध्यासुन कुत्सयन् न कुत्सितं न प्रतिकूलोपहितम् अन्नम् आददीत।

(स्नान न किए हुए को, बिना शुद्ध वस्त्र धारण किए हुए को, बिना जपे हुए व बिना बुलाए हुए देवताओं से, बिना भोजन कराये पितरों से, बिना दिए गुरु से, न अतिथि से, न आश्रित से, न बिना हाथ-पैर-मुँह धोये हुए से, बिना मुँह शुद्ध किए हुए से, बिना उत्तर दिशा में मुख किए हुए से, अपवित्र मन वाले से, बिना पात्र पवित्र किए हए में, न निन्दा करते हुए से, न निन्दित से और प्रतिकूल पुरुष के द्वारा दिया गया अन्न नहीं लेना चाहिए (खाना)।)

प्रश्न 4.
प्रदत्तशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत? (नीचे दिए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(नादेशे, नातिसमयं, पापेऽपि, विवृणुयात्, गवां)
(क) न ……………. पापी स्यात्।

(ख) न नक्तं ……………. चरेत्।
(ग) ……………. जह्यात्।
(घ) न ……………. दण्डमुद्यच्छेत्।
(ङ) न गुह्यं …………….।
उत्तर:
(क) पापेऽपि
(ख) नादेशे
(ग) नातिसमयं
(घ) गवां
(ङ) विवृणुयात्

प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत-(उचित क्रम से जोड़िए-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 1
उत्तर:
(क) 4
(ख) 5
(ग) 1
(घ) 2
(ङ) 3

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प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘न’ इति लिखत-(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ तथा अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)
(क) देवगोगुरुवृद्धसिद्धाचार्यानर्चयेत्।
(ख) एकः शून्यगृहम् अनुप्रविशत्।
(ग) अस्नातः अन्नम् आददीत।
(घ) सर्वकालविचारो न भवेत् !
(ङ) चञ्चलं मनः न अनुभ्रामयेत्
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) न
(घ) न
(ङ) आम्

प्रश्न 7.
निम्नलिखितशब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के मूलशब्द विभक्ति और वचन लिखिए-)

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 2
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 3

प्रश्न 8.
क्रियापदानां धातुं लकारं च पृथक् कुरुत (क्रियापदों के धातु और लकार अलग कीजिए)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 4
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 5

प्रश्न 9.
अधोलिखितपदानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम लिखत
(नीचे लिखे पदों के सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम लिखिए)

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 6
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 8 सद्वृत्तम् img 7

प्रश्न 10.
विपरीतार्थिशब्दान् लिखत-(विपरीत शब्द लिखिए-)
यथा – गुरुः – शिष्यः

(क) पिता
(ख) प्रतिकूलम
(ग) पापम्
(घ) दोषः
(ङ) सिद्धिः
उत्तर:
(क) माता
(ग) पुण्यम्
(ङ) असिद्धिः
(ख) अनुकूलम्
(घ) गुणः योग्यताविस्तारः

स्वास्थ्यहिताय उपदेशयुक्ताः अन्याः रचनाः पठत।
(स्वास्थ्य हित के लिए उपदेश युक्त अन्य रचनाएँ पढ़ो।)

पाठे आगताः शिक्षाः आचरणीयाः। (पाठ से मिली शिक्षा का आचरण करो।)

सद्वृत्तम् पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में ‘आयुर्वेद’ पर आधारित ‘चरक संहिता’ से लिया गया है, जिसमें स्वास्थ्य संबंधी बातें बताई गई हैं कि स्वस्थ किस प्रकार रहा जा सकता है। इस पाठ में व्यक्ति को स्वस्थ व नीरोगी रहने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यह बताया गया है।

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सद्वृत्तम् पाठ का अनुवाद

  1. आत्महितं चिकीर्षता सर्वेण सर्वं सर्वदा स्मृतिमास्थाय सद्वृत्तमनुष्ठेयम्। तद्धि सद्वृतम् अनुतिष्ठन् मानवः युगपत् अर्थद्वयं सम्पादयति आरोग्यम् इन्द्रियविजयं च। तत् यथा-देवगोगुरुवृद्धसिद्धाचार्यानर्चयेत्। नानृतं ब्रूयात्। नान्यस्वमाददीत। न वैरं रोचयेत्। न कुर्यात् पापम्। न पापेऽपि पापी स्यात्। नान्यदोषान् ब्रूयात्। नान्यरहस्यमागमयेत्। न द्रुममारोहेत्। न जलोग्रवेगमवगाहेत्। नौच्चैर्हसेत्। न अनावृतमुखो जृम्भां क्षवयुं हास्यं वा प्रवर्तयेत्। न दन्तान् विघट्टयेत्। न नखान् वादयेत्। न एकः शून्यगृहं न च अटवीमनुप्रविशेत्। नोत्तमैर्विरुध्येत्। न अवरानुपासीत्। न साहसातिस्वप्नप्रजागरस्नानपानान्यासेवेत। न अस्नातः नोपहतवासा न अजपित्वा न आहुत्वा देवताभ्यो नानिरूप्य पितृभ्यो नादत्वा गुरुभ्यो नातिथिभ्यो नोपाश्रितेभ्यो नाप्रक्षालितपागिपादवदनः नाशुद्धमुखः नोदङ्मुखःन विमना न पात्रीष्वमेध्यासुन कुत्सयन्न कुत्सित न प्रतिकूलोपहितम् अन्नमाददीत। न नक्तं दधि भुजीत।

शब्दार्थाः :
चिकीर्षता-चाहने वालों के द्वारा-By those who desire; सद्वृत्तम-अच्छा आचरण-good conduct; अनुष्ठेयम्-व्यवहार करना चाहिए-should behave; युगपत्-एकसाथ-jointly; नानृतम् (न + अनृतम्)-झूठ नहीं-Not falsehood (a lie); स्वम्-धन-wealth; अगमयेत्-जानने का प्रयत्न करना चाहिए-should try to know; अवगाहेत्-उतरना (जाना) चाहिए-dive, plunge; अनावृत्तमुख-मुख खोलने हुए-with open mouth; सवरान्-नीचों के-of the mean; नोपहतवासा-बिना शुद्ध वस्त्र धारण किए-without wearing clean clothes; नानिरुप्य-भोजन कराये बिना-without feeding; नादत्त्वा-बिना दिए-withoutgiving;प्रक्षालित-धोये हुए-washed; क्षवयुम्-छींक को-sneeze; नोदङ्मुखः-बिना उत्तर दिशा को मुख किए-without facing north; पात्रीष्वमेध्यासु-गन्दे । अपवित्र पात्रों में-in dirty and impure utensils; कुत्सयन्-निन्दा करते हुए-condemning;कुत्सित्-निन्दित-cursed; आददीत-नहीं लेना चाहिए-should not beaccepted; नक्तम्-रात में-atnight; भुज्जीत-खाना चाहिए-should beeaten.

अनुवाद :
अपने हित को चाहने वाले सब लोगों के द्वारा हमेशा स्मृति पूर्वक सज्जनों का आचरण करना चाहिए। तब ही अच्छा आचरण करने वाले मनुष्य एकसाथ दो अर्थ निकलते हैं-आरोग्य लाभ और इन्द्रिय विजय। तो जिस प्रकार देवता गाय, गुरु, वृद्ध तथा सिद्धाचार्यों की अर्चना (पूजा) करनी चाहिए। झूठ नहीं बोलना चाहिए। दूसरे का धन नहीं लेना चाहिए। न वैर में रुचि होनी चाहिए। न पाप करना चाहिए। न पाप में भी पापी (भागी) होना चाहिए। दूसरों के दोषों को नहीं बोलना चाहिए। न दूसरों के रहस्य को जानना चाहिए। न पेड़ पर चढ़ना चाहिए। न तेज बहाव वाले जल में उतरना/जाना चाहिए। न जोर से हंसना चाहिए। न मुँह खोल कर जंभाई को, छींक को और हँसी को करना चाहिए। न दाँत किटकिटाने चाहिएं। न नाखून बजाने चाहिए। न किसी खाली घर में और न वन प्रदेश में अकेले जाना चाहिए। न महापुरुषों के द्वारा विरोध किया जाना चाहिए। न नीचों के पास बैठना चाहिए। न अधिक श्रम, अधिक सोना व जागना, स्नान करना चाहिए।

न बिना स्नान किए हुए को, न बिना शुद्ध वस्त्र धारण किए हुए को, न बिना जप किए, बिना बुलाए हुए देवताओं को, भोजन कराये बिना पितरों को, बिना दिए गुरु को, न अतिथियों, न आश्रित को, बिना हाथ-पैर व मुँह धोए हुए को, बिना मुख को शुद्ध किए, बिना मुख को उत्तर दिशा में किए, बिना मन को पवित्र किए, बिना पात्रों को पवित्र किए, न निन्दा करते हुए को, न निन्दित को, न प्रतिकूल पुरुष के द्वारा दिया अन्न लेना चाहिए। न रात को दही खानी चाहिए।

English : Act nobly-To achieve physical strength and control over senses-worship gods, cows, teachers, aged and saintly persons-Avoid telling lies grabbing other’s wealth, envy, sins, exposing others’ faults and weaknesses,-climbing trees, plunge in fast flowing water-laughing loudly, sneezing-chattering yawning, going alone in dreary and isolated places-company of mean-feed gods, manes, guests and dependent with pure mind-avoid eating curd at night.

  1. न स्त्रियमवजानीत। न सन्ध्ययो मुखाद्गुरोर्नावपतितं नातिमात्रं न तान्तं न विस्वरं नानवस्थितपदं नातिद्रुतं न विलम्बितं नातितीबं नात्युच्चै तिनीचैः स्वरैः अध्ययनमभ्यस्यते। नातिसमयं जह्यात्। न नियम भिन्द्यात्। न नक्तं नादेशे चरेत्। न सन्ध्यास्वभ्यवहारस्वप्नसेवी स्यात्। न बालवृद्धलुब्धमूर्खक्लिष्टैः सह सख्यं कुर्यात्। न गुह्यं विवृणुयात्। न कञ्चिदवजानीयत्। न गवां दण्डमुद्यच्छेत्। न वृद्धान् न गुरुन् न गणान् न नृपान वाऽधिक्षिपेत् न चाति ब्रूयात्। न बान्धवानुरक्तकृच्छ्रद्वितीयगुह्यज्ञान् बहिष्कुर्यात्।

शब्दार्थाः :
अवजानीत-अपमान करें-insult; नावपतितम्-हीन वर्ण युक्त वाक्य-with less syllables; नातिमात्रम्-अधिक वर्ण या मात्रा युक्त वाक्य-a sentence with more syllables; तान्तम्-रुक्ष स्वर-rude voice; विस्वरम्-स्वर रहित-without tune, अनवस्थितपदम्-पद का अनियमित पाठ-irregular study of a verse; अतिद्रुतम्-ज्यादा जल्दी-too fast; अतिक्लीबम्-अत्यन्त धीरे-too slow; जह्यात्-नष्ट करे, जप करे, छोड़े-waste, leave; नादेशे-अपरिचित स्थान पर-unknown place; अभ्यवहारभोजन-food; स्वप्नसेवी-शयन करने वाला-a dreamer; सख्यं-मित्रता-friendship; गुह्मम्-गुप्त बातों को-secrets;अधिक्षिपेत्-दोषारोपण करे-accusation; कृच्छूद्वितीय-आपत्ति काल में सहायक-helpful in adversity.

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अनुवाद :
न स्त्री का अपमान करे। सन्ध्या समय में गुरु के मुख से हीन वर्ण युक्त वाक्य न निकले, न अधिक वर्ण युक्त वाक्य, न रुक्ष स्वर, न स्वर रहित, न पद का अनियमित पाठ हो, न ज्यादा जल्दी, न देर से, न अत्यन्त धीरे, न ज्यादा जोर से (ऊँचा), न ज्यादा नीचे स्वर में अध्ययन का अभ्यास करना चाहिए। न अधिक समय छोड़े (टाले) या नष्ट करे। न नियम भंग करने चाहिए। रात में अपरिचित स्थान में नहीं जाना चाहिए। न संध्या समय में भोजन तथा शयन करना चाहिए। बालक, वृद्ध, लोभी, मूर्ख तथा क्लेश करने वालों से मित्रता नहीं करनी चाहिए। न गुप्त बातों का व्याख्यान करना चाहिए। न किसी का अपमान करना चाहिए। न गाय को डण्डे से पीटना चाहिए। वृद्धों, बड़ों, गणों न राजा पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए और न अधिक बोलना चाहिए। बन्धुओं का प्रिय व आपत्ति में सहायक की गुप्त बात बाहर नहीं करनी चाहिए।

English :
Avoid insulting others-irregular and vague studiesstudying loudly or mildly, meditating long-going unknown place at night-feeding and sleeping at sunset–accusing elderly-people exposing help extended in adversity.

  1. नाधीरो नात्युच्छ्रितसत्वः। नाविश्रब्धस्वजनः नैकः सुखी न दुःखशीलाचारोपचारः न सर्वविश्रम्भी न सर्वाभिशङ्की न सर्वकालविचारी स्यात्। न कार्यकालमतिपातयेत्। न चञ्चलं मनोऽनुभ्रामयेत्। नचातिदीर्घसूत्री स्यात्। न क्रोधहर्षावनुविदध्यात्। न शोकमनुवसेत्। न सिद्धात्सेकं गच्छेत् नासिद्धौ दैन्यम्। नापवादमनुस्मरेत्। ब्रह्मचर्यज्ञानदानमैत्रीकारुण्य हर्षापेक्षाप्रशमपरश्च स्यात् इति।।
    स्वस्थवृत्तं यथोद्दिष्टं यः सम्यगनतिष्ठति।
    स समाः शतमव्याधिरायुषा न वियुज्यते।।

शब्दार्थाः :
उच्छ्रितसत्वः-उद्धत स्वभाव वाला-arrogant; विश्रब्धः-धैर्ययुक्त-being contented, patiently; सर्वविश्रम्भी-सब पर विश्वास करने वाला-relying on all; दीर्घसूत्री-अधिक विलंब से कार्य करने वाला-delaying; सिद्धावुत्सेकम्-कार्य के सिद्ध हो जाने पर उत्सुक-curious on completionof work;प्रशमपरः-शान्तिपरक-peaceful; समाः-वर्ष-year.

अनुवाद :
न अधैर्य वाला, न अधिक उद्धत स्वभाव वाला होना चाहिए, न अपने लोगों को असंतुष्ट करना चाहिए, न अकेले सुखी, न दुख में शीलता का व्यवहार, न सब पर विश्वास करने वाला, न सब पर शक करने वाला, न हर समय सोचने वाला होना चाहिए। न कार्य के समय को व्यर्थ करना चाहिए। न चञ्चल मन के साथ घूमना चाहिए। न अधिक दीर्घसूत्री होना चाहिए। न क्रोध और हर्ष का पता चलने देना चाहिए। न शोक करते रहना चाहिए। न कार्य सिद्ध होने पर उत्सुक होना चाहिए, न असिद्ध होने पर दुरखी। न निन्दा को याद करना चाहिए। ब्रह्मचर्य, ज्ञान, दान, मैत्री, कारुण्य, हर्ष, उपेक्षा और शान्तिपरक होना चाहिए।

जो ऐसे उपदेशित स्वस्थ आचरण करता है वह ठीक (स्वस्थ) रहता है। वह सौ वर्षों तक नीरोगी व दीर्घायु रहता है।

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